फोटो: @ITBP_official/X

उत्तराखंड के चमोली में हिमस्खलन के बाद 25 मजदूर लापता

उत्तराखंड के चमोली जिले में भारी बर्फबारी और बारिश के बाद, शुक्रवार को बद्रीनाथ के पास मौजूद माना गांव में हिमस्खलन के कारण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के 57 श्रमिक फंस गए थे, जिनमें से 32 को सुरक्षित बचाया जा चुका है। हालांकि शेष 25 फंसे मजदूरों के लिए बचाव दल की चिंता बढ़ रही है क्योंकि अंधेरा होने के बाद रहत और बचाव कार्य को अस्थायी रूप से रोकना पड़ा है।

शुक्रवार तड़के हुए हिमस्खलन में बीआरओ का शिविर गहरी बर्फ के नीचे दब गया था। बचाव टीमों ने चरम मौसम और दुर्गम इलाके का सामना करते हुए शुरू में 10 श्रमिकों को बाहर निकाला और बाद में अन्य 22 को सुरक्षित निकालने में भी कामयाब रहे। बचाए गए श्रमिकों में से चार की हालत गंभीर है और उन्हें उपचार के लिए आईटीबीपी के शिविर में ले जाया गया है। भारत-तिब्बत सीमा से 3,200 मीटर की दूरी पर स्थित यह गांव गहरी बर्फ में ढका है, जिससे बचाव कार्य मुश्किल हो गया है। खराब मौसम और हिमस्खलन के खतरे के कारण बचाव कार्य को स्थगित कर दिया गया है।

मुख्य हिमस्खलन के बाद दो और हल्के स्नोस्लाइड हुए। डिफेंस जियोइनफॉर्मेटिक्स रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट ने एक दिन पहले हिमस्खलन की चेतावनी दी थी, और मौसम विभाग ने भारी बर्फबारी और बारिश का अनुमान लगाया गया था। इन चेतावनियों के बावजूद, बीआरओ कैंप एक ज्ञात हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्र में खुला रहा।

एवरेस्ट पर बर्फ इन सर्दियों में 150 मीटर पीछे खिसकी, सैटेलाइट से मिली जानकारी 

शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक माउंट एवरेस्ट पर बर्फ का आवरण 150 मीटर तक पीछे चला गया है, जो 2024-2025 के सर्दियों के मौसम के दौरान बर्फ जमा होने की कमी का संकेत देता है। अमेरिका के निकोल्स कॉलेज में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर, ग्लेशियोलॉजिस्ट मॉरी पेल्टो ने 2 फरवरी को एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा था कि अक्टूबर 2023 से लेकर जनवरी 2025 की शुरुआत तक नासा उपग्रह चित्रों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि “2024 और 2025 दोनों में जनवरी में हिमरेखा में वृद्धि” दिखती है यानी बर्फ कम हुई है। 

समुद्र तल से 8,849 मीटर ऊपर, माउंट एवरेस्ट पृथ्वी पर सबसे ऊँची चोटी है। हिमालय शिखर नेपाल और तिब्बत के बीच स्थित है। ‘स्नो लाइन’ या हिम रेखा उस सीमा या ऊंचाई को बताती है जहां पर  किसी पर्वत पर बर्फ स्थायी रूप से रहती है। अगर यह हिमरेखा ऊपर खिसक रही हो (जब निचली चोटियों पर बर्फ गल जाये और केवल ऊंचाई पर ही बर्फ रहे) – तो यह एक गर्म जलवायु का सूचक है। पेल्टो ने कहा कि 2021, 2023, 2024 और 2025 सहित हाल की सर्दियों में हालात गर्म और शुष्क बने रहे हैं, जिससे बर्फ का आवरण कम हो रहा है, हिमरेखाएं ऊंची हो रही हैं और जंगल की आग बढ़ रही है।

उन्होंने कहा, हालांकि इस क्षेत्र में प्रत्येक सर्दियों की शुरुआत में कुछ छोटी बर्फबारी की घटनाएं देखी गईं, लेकिन बर्फ का आवरण ठहर नहीं रहा, जिससे पता चलता है कि माउंट एवरेस्ट पर ग्लेशियर 6,000 मीटर से भी ऊपर पीछे हट रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिसंबर 2024 में, नेपाल में सामान्य से 20-25 प्रतिशत अधिक तापमान और पूर्व में शुष्क परिस्थितियों के साथ औसत से अधिक तापमान देखा गया। इसके परिणामस्वरूप कोशी प्रांत सहित कई प्रांतों में अत्यधिक सूखा पड़ा। जनवरी 2025 शुष्क बना रहा, लगातार गर्म स्थितियाँ बनी हुई हैं, जिससे उच्च हिम रेखाएँ बनी हुई हैं और दिसंबर की शुरुआत से फरवरी, 2025 की शुरुआत तक बढ़ रही हैं।

महाकुंभ में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा, लिए गए यह उपाय

महाकुंभ में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और आस्था पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण नदियां सूख रही हैं और चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस मौके पर ‘महाकुंभ जलवायु परिवर्तन घोषणापत्र’ जारी करते हुए आदित्यनाथ ने लोगों से आग्रह किया कि एक दूसरे को दोष देने की बजाय, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम करने का प्रयास करें।

इस पहल के तहत राज्य भर में धार्मिक केंद्रों और मंदिरों को पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाया जाएगा। सरकार की योजना सोलर पैनल स्थापित करने, वर्षा जल संग्रह प्रणाली स्थापित करने, कचरे को रीसायकल करने, सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने और पवित्र स्थलों के आसपास हरित क्षेत्र बनाने की योजना है। इसके अतिरिक्त, धार्मिक संगठनों को पर्यावरणीय शिक्षा और सस्टेनेबल प्रैक्टिस को बढ़ावा देने के लिए समर्थन दिया जाएगा।

सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के कारण गंगा नदी पर मंडरा रहे खतरे पर भी चर्चा की गई। विशेषज्ञों और धर्मगुरुओं ने गंगा नदी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की, और इस महत्वपूर्ण जल स्रोत की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया।

जानकारों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पर चर्चा में धार्मिक नेताओं को शामिल करके इसे आम लोगों तक और बेहतर तरीके से पहुंचाया जा सकता है। 

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक आईफॉरेस्ट सम्मेलन की नॉलेज पार्टनर है। संस्था के सीईओ चंद्रा भूषण कहते हैं कि “धर्म और आस्था में समाज को प्रभावित करने की अपार क्षमता है। क्लाइमेट एक्शन तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि यह जनता को सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित न करे। वैज्ञानिकों या नीति निर्माताओं के विपरीत, धार्मिक नेताओं को पता है कि लोगों को यह संदेश कैसे देना है।”

ग्रीन कवर ने उत्सर्जन से अधिक कार्बन को सोखा 

एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में ग्रीन कवर ने पिछले 10 सालों में सालाना उत्सर्जित होने वाले कार्बन से अधिक कार्बन को अवशोषित किया है, लेकिन सूखे जैसी चरम जलवायु घटनाओं के दौरान अवशोषण की दर में गिरावट आई। 

भोपाल स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एडुकेशम एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में जलवायु परिवर्तन मिटिगेशन और एडाप्टेशन में वनस्पति की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया गया।

पेड़ और हरी वनस्पतियां प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करती हैं लेकिन बाकी जंतुओं की तरह ही श्वसन की प्रक्रिया में CO2 वापस हवा में छोड़ देती हैं। इस अवशोषण और उत्सर्जन के अंतर को नेट इकोसिस्टम एक्सचेंज (एनईई) कहा जाता है। शोध करने वाले जानकारों ने बताया है कि पिछले एक दशक में 380 से 530 मिलियन कार्बन प्रति टन सोखा गया। 

कार्बन अवशोषण को लेकर वनस्पति की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए शोधकर्ता और पत्र की सह लेखक अपर्णा रवि ने कहा कि कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन (पृथक्करण) का स्तर प्रभावशाली है, लेकिन एक्स्ट्रीम क्लाइमेट हो तो इसमें गिरावट आती है।

आईआईएसईआर से जुड़ी एसोसिएट प्रोफेसर धन्यलक्ष्मी पिल्लई ने कहा कि भारत में सदाबहार वन प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से सीओ2 सोखने में अत्यधिक कुशल हैं। हालाँकि, मध्य भारत में पर्णपाती जंगलों ने वातावरण में अधिक कार्बन छोड़ा। 

गर्म मौसम के बावजूद पक्षीप्रेमियों ने देखी 243 प्रजातियां 

पक्षीप्रेमियों का दावा है कि इस साल जल्दी गर्मी की आमद के बावजूद उन्होंने 23 फरवरी को बिग बर्ड डे के दौरान दिल्ली-एनसीआर के इलाके में पक्षियों की 243 प्रजातियां देखीं। जबकि पिछले साल 234 प्रजातियां देखी गईं थी। सबसे अधिक (144) प्रजातियां सुल्तानपुर में देखी गईं, इसके बाद चंदू में (136)। यमुना बायोडाइवर्सिटी पार्क और असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य जैसे शहरी पार्कों में भी आशाजनक पक्षी गतिविधि देखी गई। उल्लेखनीय प्रजातियों में ओरिएंटल पाइड हॉर्नबिल, वाटर रेल, शॉर्ट-ईयर्ड आउल और भारतीय स्पॉटेड ईगल आदि देखी गईं। 

यमुना बायोडाइवर्सिटी पार्क में लाल-क्रेस्टेड पोर्चर्ड्स को देखा गया, जो एक संकेत है कि इसकी हैबिटैट बहाली की सफलता को दर्शाता है। दिल्ली के सबसे नए पार्क असिता ईस्ट में 82 प्रजातियां देखी गईं, जो संकेत है कि यह बर्डवॉचिंग के लिए एक शानदार जगह हो सकती है। पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान परिवर्तन पक्षियों और पौधों को प्रभावित कर रहा है। बॉम्बैक्स सेबा जैसे पेड़ों का समय से पहले खिलना जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है। इसके बावजूद, दिल्ली के जैव विविधता पार्क स्थानीय और प्रवासी दोनों तरह की पक्षी प्रजातियों की महत्वपूर्ण शरणस्थली हैं। गर्मी के बावजूद भारत के वेटलैण्ड् में इन पक्षियों का आना एक अच्छा संकेत है। 

जीबीएस से 3 और मौतें, लक्षणों से डॉक्टर चिंतित

पिछले हफ्ते के दौरान गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) से महाराष्ट्र में दो और बंगाल में एक मौत की खबर आई। पुणे के दो अस्पतालों में एक 27 वर्षीय महिला और एक 37 वर्षीय पुरुष की मौत हो गई, जबकि कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में मुर्शिदाबाद के एक 22 वर्षीय पुरुष ने दम तोड़ दिया।  इसके साथ ही अबतक जीबीएस से महाराष्ट्र में कुल 21 और बंगाल में 4 मौतें हो चुकी हैं। 

पुणे में डॉक्टर चिंतित हैं कि जीबीएस के कुछ मरीजों में लक्षण तेजी से प्रगति कर रहे हैं। कुछ मरीजों में कुछ ही घंटों के भीतर पक्षाघात निचले अंगों से श्वसन की मांसपेशियों तक पहुँच गया। उदाहरण के लिए, वागोली के एक 34 वर्षीय मरीज ने 2 फरवरी को अपने निचले अंगों में झुनझुनी की शिकायत की, जो केवल छह घंटों में उसके ऊपरी अंगों तक पहुँच गई। इलाज के बावजूद 15 फरवरी को उसका निधन हो गया। जबकि आमतौर पर जीबीएस में मांसपेशियों में कमजोरी धीरे-धीरे विकसित होती है, हाल ही में आए मामलों में तेजी से प्रगति देखी जा रही है। हालांकि कुछ मरीज तुरंत इलाज के बाद तेजी से ठीक भी हो रहे हैं।

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