भारत जुलाई में रूसी तेल के दुनिया के सबसे बड़े आयातक के रूप में चीन से आगे निकल गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चीनी रिफाइनर्स ने ईंधन उत्पादन लाभ मार्जिन में कमी के कारण अपनी खरीदारी कम कर दी। कुल 2.07 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) पर, पिछले महीने (जुलाई में) भारत के कुल आयात में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी रिकॉर्ड 44% थी। व्यापार और उद्योग स्रोतों से प्राप्त भारतीय शिपमेंट के आंकड़ों के अनुसार, यह एक साल पहले की तुलना में 12% की वृद्धि और जून की तुलना में 4.2% की वृद्धि दर्शाता है।
चीनी सीमा शुल्क आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में पाइपलाइनों और जहाजों के माध्यम से रूस से चीन का आयात प्रति दिन 1.76 मिलियन बैरल रहा था जिससे भारत आगे निकल गया। पश्चिमी देशों द्वारा मॉस्को के खिलाफ प्रतिबंध लगाने और ऊर्जा आपूर्ति में कटौती के बाद, भारतीय रिफाइनर ने रियायती रूसी तेल के आयात में वृद्धि की है।
दो साल लगातार उछाल के बाद चीन में इस साल कोल पावर प्लांट को मंज़ूरी का ग्राफ गिरा
मंगलवार को जारी एक विश्लेषण के अनुसार, इस साल की पहली छमाही में चीन में नए कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिए स्वीकृतियों का ग्राफ तेजी से गिर गया है, क्योंकि पिछले दो वर्षों में चीन ने कोयला बिजलीघरों के लिए परमिटों की जो झड़ी लगाई उससे जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में चिंता बढ़ा दी थी। ग्रीनपीस ईस्ट एशिया द्वारा परियोजना दस्तावेजों की समीक्षा में पाया गया कि जनवरी से जून तक 10.3 गीगावाट की कुल क्षमता के साथ 14 नए कोयला संयंत्रों को मंजूरी दी गई थी, जो पिछले साल की पहली छमाही में 50.4 गीगावाट के मुकाबले 80% कम है। ग्रीनपीस ने यह विश्लेषण सरकार से जुड़े थिंक टैंक, शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के साथ मिलकर जारी किया।
चीनी अधिकारियों ने वर्ष 2022 में 90.7 गीगावाट और 2023 में 106.4 गीगावाट क्षमता के कोयला बिजलीघरों को मंजूरी दी, और इस वृद्धि ने जलवायु विशेषज्ञों के बीच चिंता बढ़ा दी। चीन सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों में भी दुनिया में सबसे आगे है लेकिन सरकार ने कहा है कि पीक डिमांड को पूरा करने के लिए कोयला बिजलीघरों की अभी भी आवश्यकता है क्योंकि पवन और सौर ऊर्जा कम विश्वसनीय हैं। जबकि चीन का ग्रिड ऊर्जा के हरित स्रोतों को प्राथमिकता देता है, विशेषज्ञों को चिंता है कि नई क्षमता बनने के बाद चीन के लिए कोयले से खुद को दूर करना आसान नहीं होगा।
विज्ञापन के लिए बड़े प्रदूषकों की नजर है ई-स्पोर्ट्स उद्योग पर: रिपोर्ट
अंग्रेज़ी अख़बार द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि प्रमुख प्रदूषक अब विज्ञापनों के लिए ई-स्पोर्ट्स उद्योग का इस्तेमाल कर रहे हैं – जो युवाओं के बीच बड़ा लोकप्रिय है। ये प्रदूषक तेल कंपनियां, पेट्रोस्टेट, एयरलाइंस और वाहन निर्माता हैं। इलेक्ट्रॉनिक स्पोर्ट्स, या ईस्पोर्ट्स, प्रतिस्पर्धी वीडियो गेम ऐसे ई-स्पोर्ट्स हैं, जिनमें से कुछ की दर्शक संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है। ख़तरनाक विज्ञापनों पर इस पर नज़र रखने वाले अभियान संगठन बैडवर्टाइजिंग के अनुसार, 2017 के बाद से, कार्बन-सघन कार्पोरेशनों ने बढ़ते उद्योग के साथ कम से कम 33 महत्वपूर्ण समझौते किए हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश समझौतों में वाहन निर्माता शामिल थे। पांच अन्य में जीवाश्म ईंधन कार्पोरेशन, तीन में एयरलाइंस, दो में पेट्रोस्टेट और दो में अमेरिकी सेना शामिल थी।
पेरिस संधि के अनुरूप काम न करने वाली जीवाश्म ईंधन कंपनियों को कर्ज़ नहीं देगा कॉमनवेल्थ बैंक
अपने प्रतिद्वंदियों से अलग राह चुनते हुए ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े कर्ज़दाता संस्थान कॉमनवेल्थ बैंक (सीबीए)ने फैसला किया है कि वह उन जीवाश्म ईंधन कंपनियों को कर्ज़ नहीं देगा जो खुद को इस साल के अंत तक पेरिस संधि के नियमों के अनुरूप नहीं ढालते।
सीबीए ने कहा, जो कंपनियां वैश्विक तापमान में वृद्धि को “पेरिस समझौते के 2 डिग्री सेंटीग्रेड लक्ष्य से पर्याप्त नीचे” रखने के अनुरूप नहीं चलेंगी उन्हें “31 दिसंबर 2024 के बाद नए कॉर्पोरेट या व्यापार वित्त, या बांड सुविधा” नहीं मिलेगी। बैंक ने अपनी सालाना क्लाइमेट रिपोर्ट में कंपनियों के लिए 2035 तक इमीशन घटाने के लक्ष्य तय करने और कोयला खनन और प्रोसेसिंग में कम से कम 95 प्रतिशत उत्सर्जन कम कर नेट ज़ीरो का एक रोडमैप बनाने की शर्तें रखी हैं।
क्लाइमेट पर काम करने वाले संगठनों में सीबीए के इस कदम का स्वागत किया है और जीवाश्म ईंधन कंपनियों के लिए इसे बैंक की ओर से एक स्पष्ट संकेत बताया है।
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