Photo: Windpowerengineering.com

स्वच्छ ऊर्जा: सभी क्षेत्रों में भारत की प्रगति नाकाफी

स्वच्छ ऊर्जा संबंधित योजनाओं के रिपोर्ट कार्ड की इस श्रृंखला के प्रथम भाग में हमने सौर ऊर्जा और जैव ऊर्जा संबधित योजनाओ का आकलन किया था। इस भाग में हम पवन ऊर्जा, मेथनॉल, परमाणु ऊर्जा और महासागरीय ऊर्जा (मरीन एनर्जी) से जुड़ी योजनाओं की प्रगति को देखते हैं। 

इंटरनेशनल एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 से 2030 के दौरान भारत में ऊर्जा की मांग में हर साल 3 प्रतिशत से अधिक वृद्धि होगी, जो किसी भी देश के मुकाबले सबसे अधिक होगी। दूसरी ओर 2070 तक नेट जीरो प्रतिबद्धता और जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं के कारण, भारत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कोयले का उपयोग नहीं कर सकता। पेट्रोलियम के लिए भारत 80% आयात पर निर्भर है। लेकिन दूसरी ओर, भारत ने 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में  आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य भी रखा है।

ऊर्जा क्षेत्र के इन तमाम विरोधाभासों को सुलझाने का एकमात्र उपाय है स्वच्छ ऊर्जा। इसलिए भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावाट करने का बड़ा लक्ष्य रखा है।

स्वच्छ ऊर्जा संबंधित योजनाओ के रिपोर्ट कार्ड की इस श्रृंखला के प्रथम भाग में हमने सौर ऊर्जा और जैव ऊर्जा संबधित योजनाओ का आकलन किया था।

इस भाग में हम पवन ऊर्जा, मेथनॉल, परमाणु ऊर्जा और महासागरीय ऊर्जा (मरीन एनर्जी) से जुड़ी योजनाओं की प्रगति को देखते हैं। 

पवन ऊर्जा

भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का जो लक्ष्य रखा था, उसमें सौर ऊर्जा (100 गीगावाट) के बाद सबसे बड़ा हिस्सा पवन ऊर्जा से प्राप्त होना नियोजित था — 60 गीगावाट।

लेकिन जहां सौर ऊर्जा का लक्ष्य करीब 62 प्रतिशत हासिल हो पाया वहीं पवन ऊर्जा के मामले में 2022 के अंत तक 60 की अपेक्षा लगभग 41 गीगावाट के संयंत्र ही स्थापित हो पाये। भारत पिछले कई सालों से लगातार पवन ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रहा है। 2019-20 में 3,000 मेगावाट की जगह 2,117 मेगावाट, जबकि 2020-21 में 3,000 मेगावाट के लक्ष्य का करीब 50 प्रतिशत —  1,503 मेगावाट — ही प्राप्त हो सका।

अक्टूबर 2015 में सरकार ने ‘राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति‘ (नेशनल ऑफशोर विन्ड एनर्जी पॉलिसी) अधिसूचित की थी, जिसके अंतर्गत गुजरात और तमिलनाडु में आठ-आठ ज़ोन संभावित अपतटीय क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किए गए थे। इन क्षेत्रों के भीतर 70 गीगावाट ऊर्जा क्षमता स्थापित होने का अनुमान था। लेकिन अगस्त 2022 की संसद की स्थाई समिति  की रिपोर्ट बताती है कि पॉलिसी नोटिफाई के सात साल बाद भी देश में एक भी अपतटीय पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट स्थापित नहीं हो पाया है।

सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत जहां आयात पर निर्भर है, वहीं पवन ऊर्जा क्षेत्र में हम टर्बाइनों के साथ-साथ अन्य संबंधित उपकरणों का अमेरिका, यूरोप और एशिया के देशों को निर्यात करते हैं। फिर भी साल 2014 से 2022 के बीच, जहां सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता में 2063.86% की असाधारण वृद्धि हुई है, वहीं पवन ऊर्जा क्षेत्र में 93.45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

संसद की स्थाई समिति ने सिफारिश की है कि पवन ऊर्जा को सौर की तुलना में समुचित प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

मेथनॉल

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 2016 में एक कार्यक्रम में बताया था कि नीति आयोग ने मेथनॉल को ऊर्जा के एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में विकसित करने के लिए पहल शुरू की है।

नीति आयोग की वेबसाइट पर ‘प्रमुख पहल’ नाम से एक सेक्शन है, जहा ‘मेथनॉल इकॉनमी’ पर विवरण दिया गया है।

यहां लिखा गया है कि इज़राइल के साथ एक संयुक्त उद्यम में हाई ऐश कोयले पर आधारित पांच मेथनॉल संयंत्र, पांच डीएमई संयंत्र, और 20 एमएमटी वार्षिक क्षमता वाला एक प्राकृतिक गैस आधारित मेथनॉल उत्पादन संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई गई है। 

लेकिन 1 दिसंबर 2021 को संसद में एक लिखित जवाब में सरकार ने कहा कि ऐसी घोषणा नहीं की गई है।

हरित हाइड्रोजन और महासागरीय ऊर्जा

प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2021 को ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की घोषणा लाल किले से की थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस मिशन को इस साल 4 जनवरी को मंज़ूरी दी जिसके अंतर्गत भारत सरकार 19,744 करोड़ रुपए खर्च करेगी। कुछ महीने पहले ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के कार्यान्वयन में बाधाओं को लेकर एक सवाल पर संबंधित मंत्रालय के सचिव ने स्थाई समिति को बताया था कि “यह एक भविष्य की तैयारी के साथ बनाया गया दस्तावेज है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां दुनिया भर में कार्यान्वयन के संदर्भ में बहुत कुछ नहीं किया गया है।” ज़ाहिर है कि सरकार खुद कहती है कि इस भविष्योन्नमुखी मिशन के लागू होने और परिणाम मिलने में वक्त लगेगा। 

दूसरी ओर महासागरीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत ने ना के बराबर प्रगति की है। जबकि आईपीसीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘समुद्री ऊर्जा के लिए सैद्धांतिक क्षमता आसानी से वर्तमान मानव ऊर्जा आवश्यकताओं से अधिक है’।

महासागरीय ऊर्जा के तीन मुख्य प्रकार हैं: तरंग, ज्वारीय और तापीय-ज्वारीय ऊर्जा।   सभी प्रकार की महासागरीय ऊर्जा विकास के प्रारंभिक चरण में हैं, लेकिन कुछ स्थलों पर ज्वारीय ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की गई हैं।

भारत में भी 3.75 मेगावाट और 50 मेगावाट की संस्थापित क्षमता वाली दो ज्वारीय विद्युत परियोजनाएं 2007 और 2011 में पश्चिम बंगाल और गुजरात में शुरू की गई थीं। हालांकि, अत्यधिक लागत के कारण इन दोनों परियोजनाओं को स्थगित कर दिया गया था। 

भारत की लगभग 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर मौजूद मुहाने और खाड़ियों में ज्वारीय ऊर्जा का दोहन किया जा सकता है, फिर भी सरकार के 2022 तक 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा संस्थापन ने लक्ष्य में ज्वारीय ऊर्जा को शामिल नहीं किया गया।

इसके अतिरिक्त, ज्वारीय ऊर्जा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिए मंत्रालय ने अब तक कोई धनराशि खर्च नहीं की है, यह बात संसद की स्थाई समिति की कार्यवाही में दर्ज है।

अच्छी बात यह है कि मंत्रालय ने कहा है कि 2030 के लिए लक्ष्य निर्धारित करते समय ज्वारीय ऊर्जा सहित नवीकरणीय ऊर्जा के सभी स्रोतों पर विचार किया जाएगा। 

परमाणु ऊर्जा

भारत पूरे विश्व से हटकर थोरियम-आधारित परमाणु ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ा। भारत ने फ्रांस में निर्माणाधीन आईटीईआर प्रोजेक्ट में भाग लिया, जो भविष्य के ऊर्जा स्रोत के रूप में परमाणु संलयन (फ्यूज़न) की व्यवहार्यता सिद्ध करने के लिए एक प्रायोगिक रिएक्टर है।

परमाणु ऊर्जा विद्युत उत्पादन का स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल स्रोत माना जाता है जो सदैव उपलब्ध है। इसमें विशाल क्षमता है और यह देश को सतत रूप से दीर्घकालीन ऊर्जा सुरक्षा प्रदान कर सकती है।

इसके बावजूद, 2012 में स्थापित 4,780 मेगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता, 2022 में बढ़कर 6,780 मेगावाट तक पहुंची है, यानी एक दशक में केवल 2,000 मेगावाट।

भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में लीक से हटकर सोचना पड़ेगा। कार्बन अवशोषण और भंडारण, महासागरीय ऊर्जा, थोरियम-आधारित परमाणु ऊर्जा आदि के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन देने की जरुरत है।

(स्वच्छ ऊर्जा के संबंध में बनाई गई भारत सरकार की हालिया योजनाओं के आकलन की श्रृंखला का यह दूसरा भाग है। इस श्रृंखला का पहला भाग आप यहां पढ़ सकते हैं ।)

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