ज़हरीली हवा से बेपरवाह! बजट को देखते हुये यह नहीं लगता कि वायु प्रदूषण से लड़ना सरकार की प्राथमिकताओं में है। फोटो: CTVNews

बजट 2019: वायु प्रदूषण का ज़िक्र नहीं, “ब्लू स्काइ” विज़न गायब

पर्यावरण के जानकारों को हैरानी है कि सरकार ने बजट में वायु प्रदूषण जैसी विकराल समस्या का ज़िक्र तक नहीं किया। सरकार ने जल और ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिये 460 करोड़ रुपये रखे हैं जो तकरीबन पिछले साल के बजट जितना ही है। इसी साल जनवरी में केंद्र सरकार ने लंबे इंतज़ार के बाद नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) की घोषणा की जिसके तहत अगले 5 सालों में करीब 100 शहरों में प्रदूषण 35% कम किया जायेगा। लेकिन NCAP  के लिये कोई रोडमैप या बजट नहीं है ताकि सरकार के “प्रदूषण मुक्त भारत” और “ब्लू-स्काइ” विज़न को पूरा किया जा सके। 

उधर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संसद में यह डाटा रखे सालाना पिछले 3 साल में कुल 95 दिन दिल्ली में ओज़ोन प्रमुख प्रदूषक रहा लेकिन जावड़ेकर ने प्रदूषण से हो रही मौतों के आंकड़े मानने से इनकार कर दिया। जावड़ेकर ने कहा कि वायु प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं लेकिन मृत्यु संबंधी आंकड़े सिर्फ कयास हैं। 

बिजलीघरों से प्रदूषण: हरियाणा को एनजीटी का नोटिस

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हरियाणा के झज्जर के दो कोयला बिजलीघरों पर कड़ाई करते हुये उन्हें फ्लाई एश (प्लांट से निकलने वाली राख) फैलाने के लिये नोटिस दिया है। ट्रिब्यूनल ने महीने भर के भीतर सरकार से रिपोर्ट मांगी है और कहा है कि वह यह बताये कि इस समस्या से निबटने को लिये क्या प्लानिंग है। अब सरकार को अब उस पूरे इलाके की एयर क्वॉलिटी पर भी नज़र रखनी है और महीने भर में इस बारे में भी रिपोर्ट देनी है।

दिल्ली-एनसीआर: गैरक़ानूनी ईंट के भट्ठों पर कार्रवाई

वायु प्रदूषण फैलाने में ईंट के भट्ठों का बड़ा रोल रहता है और दिल्ली-एनसीआर के इलाके में पिछले कुछ वक्त में गैरक़ानूनी रूप से ये भट्ठे तेज़ी से पनपे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह मोदीनगर-मुरादाबाद के इलाकों में चल रहे ऐसे भट्ठों पर कार्रवाई करे। सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया है कि वह तय नीति के तहत इन भट्ठा मालिकों से 3 महीने के भीतर जुर्माना वसूल करेगी।

अफ्रीकी और एशियाई-अमेरिकी झेल रहे हैं अधिक ज़हरीली हवा  

अमेरिका में यूनियन ऑफ कन्सर्न्ड साइंटिस्ट (UCS) की ताज़ा रिसर्च बताती है कि उत्तर-पूर्व अमेरिका और मिड अटलांटिक में रह रहे अफ्रीकी या एशियाई अमेरिकी अपने श्वेत देशवासियों के मुकाबले औसतन 66% अधिक ज़हरीली हवा में सांस ले रहे हैं। इसकी वजह है कि जिन इलाकों यह अपेक्षाकृत ग़रीब और उपेक्षित आबादी रहती है वहां पर एयर क्वॉलिटी बहुत ख़राब है। पर्यावरण कार्यकर्ता इसे इन्वायरमेंटल रेसिज्म यानी पर्यावरणीय नस्लवाद कहते हैं। UCS के शोध में पता चला है कि अफ्रीकी-अमेरिकी करीब 61% अधिक ख़राब हवा और एशियाई-अमेरिकन तकरीबन 73% अधिक ज़हरीला हवा में सांस ले रहे हैं। इस हवा में PM 2.5 कणों की मौजूदगी अधिक है जो कि सांस की नलियों के रास्ते फेफड़ों और खून की नलियों तक पहुंच जाते हैं।

Website |  + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.