जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के पैनल आईपीसीसी की ताज़ा आंकलन रिपोर्ट के पहले भाग में गंभीर संकट की चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है आने वाले दिनों में बाढ़, हीटवेव और समुद्र सतह में बढ़ोतरी की घटनायें तेज़ होंगी। रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा है कि दुनिया के देशों के मौजूदा कदमों को लेकर कोई अधिक उम्मीद नहीं है।
पैनल कहता है कि अभी भले ही हम इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या धरती की तापमान वृद्धि 1.5 से 2.0 डिग्री पर रुकेगी लेकिन सरकारों की नीतियां इसे बढ़ोतरी को 4.0 डिग्री तक भी ले जा सकती है। अभी के वादे भी 3.0 डिग्री तापमान वृद्धि करेंगे। रिपोर्ट कहती है कि इस दशक के अंत तक औसत तापमान वृद्धि 1.5-2.0 डिग्री होगी। एशिया को लेकर मुख्य बातों में कहा गया है कि हीट एक्ट्रीम बढ़ी हैं और कोल्ड एक्सट्रीम कम हुई है यानी ग्लोबल वॉर्मिंग के साफ बढ़ने के संकेत हैं। इसका अर्थ यह है तापमान बढ़ने की दिशा में और तेज़ होगा और भीषण ठंड कम होती जायेगी। दक्षिण एशिया को लेकर कहा गया है कि हीटवेव (लू) और ह्यूमिड हीट स्ट्रैस (नमी भरी गर्मी की मार) बढ़ेगी इस सदी में बरसात के सालाना और ग्रीष्म मॉनसून स्तर नें लगातार बढ़ोतरी होगी।
समुद्र में हलचल, ग्लेशियर पिघलेंगे और जंगलों में आग की घटनायें बढ़ेंगी: आईपीसीसी
आईपीसीसी रिपोर्ट में यह चेतावनी भी है कि समुद्री हीट वेव का बढ़ना जारी रहेगा। जानकार मानते हैं कि इससे चक्रवाती तूफानों की संख्या और मारक क्षमता बढ़ेगी। भारत की तटरेखा करीब 7500 किलोमीटर लम्बी है और इसकी वजह से उसे कई संकटों का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर एशिया में हर जगह औसत से भारी बारिश होगी खासतौर से जंगल में आग लगने के महीनों( वक़्त) में । दक्षिण एशिया को लेकर कहा गया है कि हीटवेव (लू) और ह्यूमिड हीट स्ट्रैस (नमी भरी गर्मी की मार) बढ़ेगी इस सदी में बरसात के सालाना और ग्रीष्म मॉनसून स्तर नें लगातार बढ़ोतरी होगी।
ग्लेशियरों को लेकर दी गई चेतावनी में कहा गया है कि उनकी बर्फ कम होना जारी रहेगा और पर्माफ्रॉस्ट (हिमनदों पर जमी बर्फ) गल कर पिघलेगी। पर्माफॉस्ट के गलने से कार्बन इमीशन बढ़ जाता है क्योंकि उसने नीचे दबे कार्बनिक तत्व या जीवाश्म कार्बन छोड़ेंगे। हिन्दुकुश-हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र सतह का स्तर बढ़ेगा और मॉनसून पैटर्न प्रभावित होगा। बहुत सारे परिवर्तन ऐसे होंगे जिन्हें फिर वापस ठीक नहीं किया जा सकता।
मानवता के लिये ख़तरे की घंटी: गुट्रिस
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस आईपीसीसी की ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनियों को “मानवता के लिये ख़तरे की घंटी” बताया है। गुट्रिस के मुताबिक, ‘इस घंटी का शोर हमारे कानों को बहुत जोर से सुनाई पड़ रहा है और इससे इनकार करना नामुमकिन है। जीवाश्मों के जलने से उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों और जंगलों के लगातार कटते जाने से दुनिया का दम घुट रहा है और अरबों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है। तापमान बढ़ने से धरती का हर इलाका प्रभावित हो रहा है। इनमें से कई बदलाव ऐसे हैं, जो अब अपरिवर्तनीय बन रहे हैं”
आईपीसीसी की रिपोर्ट कहती है कि अब इस बात के बिल्कुल स्पष्ट प्रमाण है कि ग्लोबल वॉर्मिंग मानव जनित है और इसे रोकने के लिये युद्ध स्तर पर कोशिश करनी होंगी। रिपोर्ट के मुताबिक “मानव जनित ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिये स्पेस में लगातार जमा हो रहे कार्बन को नियंत्रित करना होगा और नेट ज़ीरो हासिल करना होगा। इसके साथ ही अन्य ग्रीन हाउस गैसों को भी रोकना होगा।”
वैज्ञानिकों ने कहा है कि बहुत कम कार्बन उत्सर्जन की स्थिति में ग्लोबल तापमान 1-1.9 डिग्री या 1-1.26 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा। इस तापमान वृद्धि के साथ जिंदा रहना मुमकिन है और इससे बचने के उपाय किये जा सकते हैं। मगर बहुत कम कार्बन उत्सर्जन नहीं हासिल करने की स्थिति ग्लोबल वार्मिंग और ज्यादा बढ़ेगी जिसमें जीवन मुश्किल होगा।
तीन अमेरिकियों का उत्सर्जन एक आदमी को मारने के लिये काफी: शोध
नेचर कम्युनिकेशन में छपे शोध से पता चलता है कि औसतन 3 अमेरिकी अपने लाइफ स्टाइल से इतना कार्बन उत्सर्जन करते हैं जो एक इंसान को मारने के लिये काफी है। इसी शोध में कहा गया है कि एक कोल प्लांट करीब 900 लोगों की मौत के लिये ज़िम्मेदार है। जन स्वास्थ्य को केंद्र में रखकर किये गये इस शोध में यह भी बताया गया है कि विश्व में होने वाले हर 4,434 टन CO2 इमीशन के कारण एक इंसान की समय से पहले मृत्यु होने का ख़तरा है। यह करीब 3.5 अमेरिकियों द्वारा पूरे जीवन में किये गये उत्सर्जन के बराबर है। इस शोध के लेखक कहते हैं कि यह आंकड़ा बहुत सटीक नहीं है और असल समस्या से काफी कम है क्योंकि इसमें केवल तापमान को लेकर मृत्यु दर की गणना की गई है और जलवायु के कारण बाढ़, सूखे और चक्रवाती तूफानों को छोड़ दिया गया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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