दुनिया भर में कोल पावर में किये जा रहे 80 प्रतिशत निवेश के लिये भारत और चीन समेत पांच एशियाई देश ज़िम्मेदार हैं। कार्बन ट्रैकर समूह ने बुधवार को कहा कि नये संयंत्र महंगी कोल पावर के कारण चल नहीं पायेंगे और इससे दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिये जो लक्ष्य तय किये गये हैं उन्हें हासिल करने में देरी होगा| भारत और चीन के अलावा विएतनाम, जापान और इंडोनेशिया उन पांच देशों में हैं जो दुनिया में लगायी जा रही 80% कोल पावर के लिये ज़िम्मेदार हैं।
रिपोर्ट में सभी नई परियोजनाओं को रद्द करने का सुझाव दिया हैं. अगर सुझाव नहीं माना गया तो निवेशकों और करदाताओं को $ 15000 करोड़ यानी 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होगा । रिपोर्ट के मुताबिक एशिया की सरकारों को कोयले से हटकर तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) पर जाने का विरोध करना चाहिए।
चीन दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निवेशक है. रिपोर्ट के अनुसार चीन अपने कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को मौजूदा 1,100-गीगावाट से बढ़ाकर 1287 गीगावाट करने की योजना कर रहा हैं । भारत कोल पावर का दूसरा बड़ा उत्कापादक है जहां अभी 250 गीगावॉट क्षमता के कोयला बिजलीघर हैं और वह 60 गीगाव़ट के प्लांट्स और लगाना चाहता है। कार्बन ट्रैकर का दावा है कि सोलर और विंडफार्म पहले से ही देश के मौजूदा कोयला संयंत्रों के 85% से अधिक सस्ती बिजली पैदा कर सकते हैं, और 2024 तक अक्षय ऊर्जा सभी कोयले से चलने वाली बिजली को पछाड़ने में सक्षम होगी।
भारत और इंडोनेशिया में नवीकरणीय ऊर्जा 2024 तक कोयले को पछाड़ने में सक्षम होगी। जबकि जापान और वियतनाम में कोयला 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में घाटे वाला होगा।
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