अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया में विवादित रहे कार्मिकल कोल प्रोजेक्ट में आखिरकार खनन शुरु कर दिया है और इस साल के अंत तक वह भारत सहित कई देशों को कोयला निर्यात करने लगेगा। ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड प्रांत में अडानी ग्रुप ने 2010 में इस प्रोजेक्ट की घोषणा की थी लेकिन स्थानीय इकोलॉजी पर इसके प्रभाव को लेकर पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका काफी विरोध किया। इस कारण कई अन्तर्राष्ट्रीय निवेशकों ने इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिया। अडानी ग्रुप ने शुरुआत में इस प्रोजेक्ट के तहत 1650 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 92,000 करोड़ रुपये) के निवेश की घोषणा की थी लेकिन फिर उसे इसे घटाकर 200 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 11000 करोड़ रुपये) करना पड़ा। अडानी ग्रुप ने यह कहकर इस कोल प्रोजेक्ट का बचाव किया है कि इससे भारत को सस्ता कोयला मिलेगा और ऑस्ट्रेलिया में नौकरियां पैदा होंगी।
कोल पावर में 80% निवेश के लिए भारत समेत पांच एशियाई देश जिम्मेदार
दुनिया भर में कोल पावर में किये जा रहे 80 प्रतिशत निवेश के लिये भारत और चीन समेत पांच एशियाई देश ज़िम्मेदार हैं। कार्बन ट्रैकर समूह ने बुधवार को कहा कि नये संयंत्र महंगी कोल पावर के कारण चल नहीं पायेंगे और इससे दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिये जो लक्ष्य तय किये गये हैं उन्हें हासिल करने में देरी होगा| भारत और चीन के अलावा विएतनाम, जापान और इंडोनेशिया उन पांच देशों में हैं जो दुनिया में लगायी जा रही 80% कोल पावर के लिये ज़िम्मेदार हैं।
रिपोर्ट में सभी नई परियोजनाओं को रद्द करने का सुझाव दिया हैं. अगर सुझाव नहीं माना गया तो निवेशकों और करदाताओं को $ 15000 करोड़ यानी 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होगा । रिपोर्ट के मुताबिक एशिया की सरकारों को कोयले से हटकर तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) पर जाने का विरोध करना चाहिए।
चीन दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निवेशक है। रिपोर्ट के अनुसार चीन अपने कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को मौजूदा 1,100-गीगावाट से बढ़ाकर 1287 गीगावाट करने की योजना कर रहा है। भारत कोल पावर का दूसरा बड़ा उत्पादक है जहां अभी 250 गीगावॉट क्षमता के कोयला बिजलीघर हैं और वह 60 गीगाव़ॉट के प्लांट्स और लगाना चाहता है। कार्बन ट्रैकर का दावा है कि सोलर और विंडफार्म पहले से ही देश के मौजूदा कोयला संयंत्रों के 85% से अधिक सस्ती बिजली पैदा कर सकते हैं, और 2024 तक अक्षय ऊर्जा सभी कोयले से चलने वाली बिजली को पछाड़ने में सक्षम होगी। भारत और इंडोनेशिया में नवीकरणीय ऊर्जा 2024 तक कोयले को पछाड़ने में सक्षम होगी। जबकि जापान और वियतनाम में कोयला 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में घाटे वाला होगा।
बांग्लादेश ने 10 कोयला बिजलीघरों का निर्माण रद्द किया
बांग्लादेश ने देश में प्रस्तावित 10 कोयला बिजलीघरों का निर्माण न करने का फैसला किया है। सरकार ने यह फैसला कोयले की बढ़ती कीमत और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरोध को देखते हुए किया है। क्लाइमेट एक्टिविस्ट देश की पावर सप्लाई को अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित करने की मांग करते रहे हैं। महत्वपूर्ण है कि पिछले एक दशक में बांग्लादेश ने तेज़ी से कोल पावर में बढ़ोतरी की लेकिन अब उन्होंने इसकी बढ़ती कीमत और क्लाइमेट प्रभाव को समझ लिया है। बांग्लादेश उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव सबसे अधिक और तेज़ी से पड़ रहा है। सरकार का कहना है कि जब 2010 में देश का एनर्जी पालिसी बनी थी तो गैस के बाद कोयला सबसे सस्ता और प्रभावी विकल्प था लेकिन अब हालात बदल गये हैं। अभी देश की केवल 3.5% बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से आती है लेकिन सरकार का लक्ष्य 2041 तक इसे बढ़ाकर 40% करने का है।
रूस के मेगा ऑइल प्रोजेक्ट से आदिवासियों के ख़तरा
रूस के पूर्व-मध्य के इलाके में सरकारी कंपनी रोज़नेफ्ट के एक आइल ड्रिलिंग प्रोजेक्ट से वहां सैकड़ों साल से रह रहे आदिवासियों के जीवन के रहन सहन और जीवन को ख़तरा हो गया है। रोज़नेफ्ट यहां देश जो प्रोजेक्ट शुरू कर रही है वह रूस के अब तक के सबसे बड़े तेल प्रोजेक्ट्स में एक होगा। यह प्रोजेक्ट कारा समुद्र में तेल के भंडार के दोहन के लिये है लेकिन इससे लगे तेरा प्रायद्वीप में रहने वाले 11,000 डोल्गन आदिवासी कहते हैं कि एक मेगा इंडस्ट्रियल हब बनने से वो बर्बाद हो जायेंगे। इन आदिवासियों का जीवन आज भी शिकार और मछलीपालन पर निर्भर है। रोज़नेफ्ट का कहना है कि यहां दो आइल फील्ड में 600 करोड़ टन तेल की संभावना है और वह 2024 तक यहां से 3 करोड़ टन और 2030 आने तक सालाना 10 करोड़ टन तेल निकाल सकेगी।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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