महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की है कि वह राज्य में अब कोई नये कोयला बिजलीघर नहीं लगायेगी। इसके बजाय पावर की मांग को देखते हुये 25 गीगावॉट के सोलर पैनल लगाये जायेंगे। महाराष्ट्र भारत के सबसे औद्योगिक शहरों में है लेकिन क्लाइमेट रिस्क हॉराइज़न की रिपोर्ट कहती है कि कोयला बिजलीघर 55% क्षमता पर चल रहे हैं जो दिखाता है बिजली की मांग कम है और पुराने संयंत्रों को बन्द किया जा सकता है।
रिपोर्ट में अनुमान है कि पुरानी कोल पावर यूनिटों को बन्द करने से अगले 5 साल में ₹ 16,000 करोड़ बचेंगे और इसलिये (कड़े नियमों के पालन के लिये) इन बिजली यूनिटों में प्रदूषण नियंत्रक टेक्नोलॉजी लगाने से बेहतर है कि इन्हें बन्द कर दिया जाये।
कोल पावर नहीं कर पायेगी अक्षय ऊर्जा दरों का मुकाबला: आईफा
ऊर्जा क्षेत्र में काम करने वाली आईफा ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि भविष्य में भारत के बिजलीघरों से मिलने वाली बिजली की कीमत इतनी अधिक होगी कि वह दरें अक्षय ऊर्जा स्रोतों का मुकाबला नहीं कर पायेंगी। आईफा ने यह चेतावनी करीब 33 गीगावॉट के निर्माणाधीन बिजलीघरों और कुल 29 गीगावॉट के उन संयंत्रों के लिये दी है जो अभी बनना शुरू नहीं हुए हैं। आईफा की रिपोर्ट कहती है कि सोलर पावर की दरें अभी काफी कम हैं और कोल पावर की मांग घटती जा रही है। फिर भी केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने संकेत दिये हैं कि साल 2030 तक भारत 58 गीगावॉट के नये कोल पावर प्लांट लगायेगा। अप्रैल 2021 से कोल इंडिया की ई-नीलामी बुकिंग 52.5% बढ़ गई हैं।
नॉर्वे ने नये तेल और गैस लाइसेंस प्रस्तावित किये
नार्वे सरकार ने तेल और गैस के नये लाइसेंस देने के लिये 84 नई निविदायें मांगी हैं। सरकार को लगता है कि इससे “पेट्रोलियम उद्योग में लम्बे समय के लिये आर्थिक तरक्की” का रास्ता खुलेगा। यह एक विरोधाभासी कदम है क्योंकि खुद पहले देश की जीवाश्म ईंधन से किनारा करने की नीति बना रहा था। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) ने जीवाश्म ईंधन का दोहन तुरंत रोकने को कहा था। क्लाइमेट कार्यकर्ता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं और नॉर्वे सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ड्रिलिंग लाइसेंस रोकने में नाकाम रहने के लिये यूरोप की मानवाधिकार अदालत में घसीटने की सोच रहे हैं।
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