प्लास्टिक बैन होगा ?: सिंगल यूज़ प्लास्टिक हानिकारक कचरे के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार है लेकिन उत्पादक उस पर पाबंदी की डेडलाइन पीछे खिसकाना चाहते हैं फोटो – Mali Maeder from Pexels

प्लास्टिक बैन की समय सीमा आगे बढ़ाना चाहते हैं उत्पादक

भारत अगले साल (जनवरी 2022) से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पाबंदी लगाना चाहता है लेकिन इंडिया स्पेन्ड में प्रकाशित ख़बर बताती है कि ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन ने पाबंदी की डेडलाइन को आगे बढ़ाने को कहा है। गुब्बारों में इस्तेमाल होने वाली स्टिक, झंडे, टॉफी कवर, इयर बड, कटलरी, सिगरेट फिल्टर,  एसोसिएशन ने कोरोना महामारी के कारण पैदा आर्थिक दिक्कतों की दलील दी है। प्रस्तावित पाबंदी लागू हुई तो स्ट्रॉ और सजावट के लिये इस्तेमाल होने वाले थर्माकोल आदि पर रोक लग जायेगी। नये नियम अभी लागू प्लास्टिक प्रबंधन नियमों की जगह लेंगे। 

एक 13 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक में इन सभी चीज़ों को उनके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और दैनिक जीवन में उपयोगिता के इंडैक्स पर नापा। कमेटी अभी इस मुद्दे पर सभी भागेदारी  लोगों के  भारत में हर साल 95 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि  हर रोज़ 25,940 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। 

मसूरी में बनेगी सुरंग, वैज्ञानिकों ने उठाये सवाल 

उत्तराखंड के हिल स्टेशन मसूरी में करीब 3 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने के प्रस्ताव पर जानकारों ने सवाल उठाये हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले हफ्ते ट्विटर पर जानकारी दी कि मसूरी में 2.74 किलोमीटर लम्बी सुरंग के लिये उन्होंने 700 करोड़ रुपये मंज़ूर किये हैं जिससे मॉल रोड, मसूरी शहर और लाल बहादुर शास्त्री (आईएएस अकादमी) की ओर “आसान और बिना अटकाव” ट्रैफिक चलेगा। राज्य के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने नितिन गडकरी का आभार जताते हुए कहा था कि इससे मसूरी में “कनेक्टिविटी आसान” होगी।  

मसूरी हिमालय के अति भूकंपीय संवेदनशील (ज़ोन-4) में है। माना जा रहा है कि सुरंग के लिये करीब कुल 3000 से अधिक पेड़ कटेंगे और वन्य जीव क्षेत्र नष्ट होगा। इसके अलावा पहाड़ों पर खुदाई और ड्रिलिंग की जायेगी जिससे कई स्थानों पर भूस्खलन का खतरा बढ़ सकता है। डी डब्लू (हिन्दी) में छपी ख़बर के मुताबिक पिछले साल देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन इकोलॉजी और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रायपुर के भू-विज्ञानियों और विशेषज्ञों ने एक शोध प्रकाशित किया जिसके मुताबिक मंसूरी का करीब 44% हिस्से में भूस्खलन को लेकर औसत, अधिक या बहुत अधिक  खतरा है। 

इस शोध में कहा गया है कि भट्टाफॉल, जॉर्ज एवरेस्ट, कैम्पटी फॉल और  बार्लोगंज जैसे इलाके अधिक खतरे वाले (हाई हेजार्ड ज़ोन) में हैं। वाडिया संस्थान के जानकार कहते हैं कि उन्हें प्रस्तावित सुरंग बनाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी वरना उसके प्रभावों को अपने शोध में शामिल करते। मसूरी के संबंधित क्षेत्र के वन अधिकारियों ने भी कहा कि उन्हें इस प्रोजेक्ट को लेकर अब तक कुछ पता नहीं है। 

सड़क निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई अवमानना याचिका 

उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क इलाके में फिर से शुरू किये गये सड़क निर्माण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर हुई है। फॉरेस्ट और वाइल्ड लाइफ संबंधी अनुमति न होने के कारण कोर्ट ने यह सड़क निर्माण कार्य 2019 में रोक दिया था। लालढांग-चिल्लरखाल नाम से जानी जाने वाली करीब साढ़े ग्यारह किलोमीटर लम्बी यह सड़क संवेदनशील वन क्षेत्र से गुजरेगी जो राजाजी नेशनल पार्क और कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के बीच हाथियों और बाघों के आने जाने का रास्ता है। वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (डब्लूआईआई) और नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने इस क्षेत्र का मुआयना किया था और इस इलाके को “बाघों के विचरण के लिये महत्वपूर्ण” बताया था। याचिकाकर्ता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का 2-19 का आदेश अब भी मान्य है क्योंकि इस सड़क प्रोजेक्ट के लिये फॉरेस्ट और वाइल्डलाइफ संबंधी अनुमति अभी तक नहीं ली गई है। 

भोपाल गैस पीड़ित विधवाओं की पेंशन डेढ़ साल से अटकी 

औद्योगिक प्रदूषण समाज के गरीब और कमज़ोर तबकों को किस तरह प्रभावित करता है भोपाल गैस त्रासदी इसकी एक मिसाल रही है। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक  कोरोना महामारी के दौर में विधवाओं को मिलने वाली 1000 रुपये प्रति माह की पेंशन पिछले 18 महीनों से अटकी है। पहले ये महिलायें अपनी समस्या की ओर ध्यान खींचने के लिये सड़क पर आंदोलन कर रही थीं लेकिन कोरोना में संक्रमण के कारण प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई है। साल 1984 में 2-3 दिसंबर की रात कीटनाशकों के कारखाने से मिथाइल आइसो सायनेट नाम की ज़हरीली गैस का रिसाव होने से भोपाल में करीब 10,000 लोग मारे गये थे। हालांकि सरकार ने आधिकारिक रूप से 3,787  लोगों के मरने की बात ही कुबूल की है।  

महत्वपूर्ण है कि लाखों लोग इस गैस से बीमार हो गये और जो बच्चे बाद में पैदा हुए उन पर भी गैस का असर दिखा। सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि कोरोना से भोपाल शहर में हुई तीन चौथाई मौतें गैस पीड़ितों की है, जबकि शहर में उनकी आबादी एक चौथाई भी नहीं है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.