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पश्चिमी हवाओं ने धीमी की मॉनसून की रफ्तार, मुंबई-गोवा में भारीबारिश

मौसम विभाग का अनुमान था कि मॉनसून 15 जून तक राजधानी दिल्ली पहुंचेगा लेकिन पश्चिमी हवाओं के कारण इसकी रफ्तार कम हो गई । अब कहा जा रहा है कि दिल्ली और पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों में इस महीने के अंत तक ही मॉनसून की बारिश होगी। हालांकि मध्य और पूर्वी भारत के इलाकों में अच्छी बारिश हो रही है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल में दो दिन देर से आया लेकिन इसके फैलने की रफ्तार तेज़ रही और अब मॉनसून देश के दो-तिहाई से अधिक हिस्से में फैल गया है।  मुंबई और गोवा में भारी बारिश हुई है और बुधवार को मुंबई के कई इलाकों में पानी भरा रहा। यहां एक हफ्ते पहले 9 जून को ही मॉनसून पहुंच गया था। गोवा में पिछले हफ्ते तेज़ बारिश हुई तो पुणे और कर्नाटक में बारिश हल्की रही। 

ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ने के साथ बढ़ता लू का कहर 

इस साल भले ही जून में सबसे ठंडा दिन (17.9 डिग्री) रिकॉर्ड किया गया हो लेकिन हीट वेव यानी लू के मामले में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। डाउन टु अर्थ पत्रिका में प्रकाशित ख़बर बताती है कि पिछले तीन दशकों में 1978 से 2014 के बीच लू की करीब 600 से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें 12,273 लोगों की जान गई है यानी हर साल औसतन 332 लोगों की जान गई थी। विज्ञान पत्रिका करंट साइंस में छपे शोध में पता चला है कि सबसे ज्यादा जानें आंध्रप्रदेश में गई हैं, जहां लू के कारण कुल 5,119 लोगों की जान गई थी।

भारत के केवल पांच राज्यों आंध्र प्रदेश , राजस्थान, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और बिहार में करीब 80 प्रतिशत मौतें हुई थी। इनमें से आंध्र प्रदेश में 42%, राजस्थान 17%, ओडिशा में 10%,  उत्तर प्रदेश में 7% और बिहार में भी 7% लोगों की जान गई। शोध कहता है कि अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम, मिज़ोरम, उत्तराखंड और गोवा में 1978 से 2014 के दौरान लू की घटनाएं सामने नहीं आई थी। 

हिन्दुकुश के पिघलते ग्लेशियर ला सकते हैं बाढ़, जलसंकट का ख़तरा 

हिन्दुकुश के पिघलते ग्लेशियर करीब 200 करोड़ लोगों के लिये संकट खड़ा कर सकते हैं। इनके पिघलने से भयानक बाढ़ के साथ जल संकट का खतरा है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनडीपी की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। साल 2100 तक इस पर्वत श्रंखला के दो-तिहाई ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। इन ग्लेशियरों से 10 प्रमुख नदियों और उनकी सहायक जलधाराओं में पानी आता है और कृषि, पेयजल और हाइड्रोपावर का काम चलता है। यूएनडीपी की रिपोर्ट में मानवीय हस्तक्षेप को इसके लिये ज़िम्मेदार कहा गया है और जीवाश्म (कोयले, तेल और गैस) ईंधन के इस्तेमाल को बन्द करने की सिफारिश है। 

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