बायोमास पर नियंत्रण: नये शोध बताते हैं कि जंगलों की आग और बायोमास बर्निंग किशोरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालते हैं। अब सरकार ने पराली को कोयलाघरों में जलाने के लिये एक्शन प्लान बनाया है। फोटो - Photo by Matt Palmer on Unsplash

पराली नियंत्रण: सरकार बायोमास को जलायेगी कोयला बिजलीघरों में

खेतों में खुंटी या पराली जलाने से हर साल प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये सरकार ने ‘नेशनल मिशन ऑन यूज़ ऑफ बायोमास’ (बायोमास के इस्तेमाल पर राष्ट्रीय मिशन) की योजना बनाई है। सरकार का कहना है इसके द्वारा वह ताप बिजलीघरों का कार्बन फुट प्रिंट (इमीशन) कम करेगी। इस मिशन की अवधि अभी कम से कम 5 साल होगी और यह खेतों से बायोमास को बिजलीघरों तक पहुंचाने की सप्लाई चेन में बाधा को दूर करेगा। सरकार अभी ईंधन में 5% या उससे अधिक बायोमास मिलाकर शुरुआत करेगी। 

सरकार का दावा है कि इस मिशन से साफ हवा के लिये चल रहे नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) में मदद मिलेगी। हालांकि बायोमास को साफ ऊर्जा की श्रेणी में रखने को लेकर ही विवाद हैं। यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राष्ट्र इसे रिन्यूएबिल मानते हैं लेकिन कई जानकार कहते हैं कि इससे प्रदूषण कम नहीं होगा बल्कि वह एक जगह से हटकर दूसरी जगह होगा। 

फसल जलाने या जंगलों की आग से होने वाले प्रदूषण के कारण किशोरों के कद पर असर

एक नये शोध में पता चला है कि जिन 13 से 19 साल की लड़कियों ने अत्यधिक बायोमास प्रदूषण झेला उनका कद बाद में कम रह गया। यह अध्ययन कहता है कि लम्बे समय तक फसल जलने से या जंगलों में आग से उठा धुआं अगर किशोरों के फेफड़ों में जाता रहा तो उसके हानिकारक प्रभाव होते हैं। उत्तर भारत की लड़कियों पर इसका सबसे अधिक खतरा है।   यह अध्ययन बताता है कि जन्म से पूर्व और उसके बाद का प्रदूषण कद में 0.7% या 1.07 सेमी के बराबर कमी कर सकता है।  इस सर्वे में रिमोट सेंसिंग से बायोमास जलाने के अध्ययन और 13 से 19 साल की लड़कियों पर पूरे देश में किये सर्वे को मिलाया गया। 

गर्भवती महिला के प्रदूषण झेलने से नवजात शिशु को अस्थमा का ख़तरा 

अमेरिका में हुई एक नई स्टडी के मुताबिक अगर कोई महिला गर्भावस्था के दौरान स्वयं अल्ट्रा फाइन कणों (यूएफपी) का प्रदूषण झेलती है तो उसके बच्चे को अस्थमा होने की संभावना बढ़ जाती है।  यूएफपी  पर सरकार नियंत्रण नहीं रखती और उन बड़े कणों (पार्टिकुलेट मैटर) से अधिक खतरनाक होते हैं जिनकी लगातार मॉनिटरिंग होती है। 

यूएफपी वाहनों और लकड़ी के जलने से निकलते हैं और वैज्ञानिकों का कहना  है कि एक शुगर क्यूब के आकार जितनी हवा में ये कण दसियों हज़ार की संख्या में हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने यह शोध अमेरिका के बोस्टन में 400 माताओं और उनके नवजात बच्चों पर किया जिन पर गर्भवस्था से लेकर जन्म के बाद तक अध्ययन किया गया।

Website |  + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.