एवलांच से तबाही: उत्तरकाशी में एवलांच इतना भयानक था कि घटना के 3 दिन बाद तक भी राहतकर्मी मौके पर नहीं पहुंच पाये हैं।

उत्तरकाशी में एवलांच; कम से कम 10 पर्वतारोही मरे

उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित द्रौपदी का दांडा-2 चोटी पर हुये एवलांच में कम से कम 10 पर्वतारोहियों की मौत हो गई। यह हादसा पिछले मंगलवार को हुआ। सभी पर्वतारोही नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रशिक्षु थे। संस्थान की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया कि इस पर्वतारोहण दल में कुल 41 सदस्य थे जिसमें 34 ट्रेनी शामिल थे। मंगलवार सुबह 4 बजे चोटी से लौटते हुये ये दल एवलांच की चपेट में आ गया। गुरुवार देश शाम तक राहत कर्मियों की टीम बर्फ में दबे पर्वतारोहियों तक नहीं पहुंच पाई थी। आशंका जताई जा रही है कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है। 

जानकार इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या इस एवलांच के लिये सितंबर की असामान्य बारिश ज़िम्मेदार है। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में देहरादून स्थित वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक मनीष मेहता ने इसे एक ‘पाउडर एवलांच’ बताया है जब बारीक और ढीली बर्फ चोटी से खिसक जाती है। मेहता के मुताबिक एवलांच तब होता है जब किसी चोटी की बर्फ को रोक पाने की क्षमता से अधिक  हिम वहां पर जमा हो जाये। उत्तराखंड में यह एवलांच की पहली घटना नहीं है पिछले साल नन्दादेवी अभ्यारण्य पर त्रिशूल चोटी पर हुये एवलांच में भी नौसेना के 4 सदस्य फंस गये थे।

मॉनसून की समाप्ति: 27% ज़िलों में सूखा, मराठवाड़ा में 40 लाख हेक्टेयर पर उगी फसल तबाह 

पिछले शुक्रवार मॉनसून सीज़न की समाप्ति के बाद मौसम विभाग ने कहा कि इस साल 1 जून और 30 सितंबर के बीच सामान्य से 6 प्रतिशत अधिक बरसात हुई लेकिन जुलाई-अगस्त में बारिश के असमान वितरण के कारण इस साल गंगा के मैदानी इलाकों का बड़ा हिस्सा सूखा प्रभावित रहा। भारत के 188 ज़िलों में सामान्य से कम (20 से 59 प्रतिशत की कमी) बारिश हुई  और 7 ज़िलों में सामान्य से बहुत कम (60 प्रतिशत से अधिक कमी) बारिश हुई। झारखंड, बिहार, यूपी, पंजाब, हरियाणा, असम, दिल्ली और उत्तराखंड में सामान्य से कम बारिश हुई।

मध्य भारत में सामान्य से 19 प्रतिशत अधिक और दक्षिणी प्रायद्वीप में सामान्य से 22 फीसद अधिक बरसात दर्ज हुई। आधिकारिक रूप से  1 जून और 30 सितंबर के बीच का वक्त मॉनसून सीज़न माना माना जाता है। उत्तर पश्चिमी भारत में सामान्य के मुकाबले 1 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। लेकिन पूर्वी व उत्तर पूर्वी भारत में 18 फीसदी कम बारिश हुई। 

उधर असामान्य और अनिश्चित मौसम का असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है। इस साल मराठवाड़ा में ही 36 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल पर लगी फसल इस कारण तबाह हो गई। 

अन्य महासागरों की तुलना में चार गुना तेजी से अम्लीय हो रहा है आर्कटिक महासागर

एक नए अध्ययन में पाया गया है की आर्कटिक महासागर अन्य महासागरों की तुलना में चार गुना तेजी से अम्लीय हो रहा है। आर्कटिक महासागर, जो वायुमंडल में सभी कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का एक तिहाई हिस्सा अवशोषित करता है, जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण अधिक अम्लीय हो गया है। अध्ययन के अनुसार, पिछले तीन दशकों में आर्कटिक क्षेत्र में समुद्री बर्फ के तेजी से नुक़सान ने दीर्घकालिक अम्लीकरण की दर को तेज कर दिया है।

उत्तरी ध्रुव में तेजी से समुद्री-बर्फ पिघलने के कारण CO2 का अवशोषण ज़्यादा  हो रहा  है, जिसकी गति से वैज्ञानिक हैरान हैं | उनके अनुसार आर्कटिक समुद्री जीवन के लिए इसके प्रभाव भयंकर होंगे। वैज्ञानिकों का अनुमान है की यदि पश्चिमी आर्कटिक में समुद्री बर्फ का गायब होना जारी रहता है, तो यह प्रक्रिया अगले कुछ दशकों में और तेज हो सकती है।

चक्रवाती तूफान इयान का कहर, फ्लोरिडा और क्यूबा में 60 लोगों की मौत 

चक्रवाती तूफान इयान – जो पिछले हफ्ते अमेरिका में फ्लोरिडा के दक्षिण पश्चिमी तट से टकराया था – के कारण 62 लोगों की मौत हो गई है। यहां 240 किलोमीटर प्रति घंटा तक की रफ्तार से हवायें चलीं और बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। पूरे इलाके में बत्ती गुल रही और फ्लोरिडा में 6,00,000 लोगों को बिना बिजली गुजारा करना पड़ा। उत्तरी कैरोलिना में भारी बारिश और तेज़ हवायें चलीं। 

फ्लोरिडा में लैंडफॉल के बाद इसका असर क्यूबा में भी देखा गया।  इस हफ्ते हवाना में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे क्योंकि तूफान के बाद वहां 27 सितंबर के बाद से बिजली बहाल नहीं की जा सकी।    

स्विस हिमनदों के पिघलने की सबसे तेज़ रफ्तार 

पिछले सौ साल में (जब से हिमनदों के पिघलने का रिकॉर्ड रखा जा रहा है) इस साल स्विटज़रलैंड के ग्लेशियर सबसे तेज़ रफ्तार से पिघले हैं। हिमनदों की मॉनिटरिंग करने वाली संस्था ग्लेमॉस (GLAMOS) के मुताबिक इस साल ग्लेशियरों ने अपने बचे हुये हिस्से का 6% खो दिया जो कि अब तक की सबसे अधिक क्षति है। यह 2003 में हुये रिकॉर्ड मेल्ट का लगभग दोगुना है। आंकड़ों के हिसाब से कुछ ग्लेशियर गायब हो गये हैं। यहां एक जगह तो सिर्फ चट्टान ही दिखी जो कि 1000 साल से बर्फ में दबी थी। एक दूसरी  जगह एक विमान का मलबा दिखा जो कई साल पहले दुर्घटनाग्रस्त होकर एल्प्स में गिरा था। 

+ posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.