कोयला मंत्रालय छत्तीसगढ़ के सरगुजा में माइनिंग के लिये 1,760 हेक्टेयर ज़मीन अधिग्रहित करेगा लेकिन जो ज़मीन खनन के लिये ली जा रही है उसमें 98% संरक्षित वन क्षेत्र है। मंत्रालय ने इसी महीने रायपुर के अख़बार में नोटिस प्रकाशित कर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं। महत्वपूर्ण है कि सरकार ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 30 सितम्बर के उस ऑब्ज़रवेशन के बावजूद लिया है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि केंद्र या राज्य को पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील ज़ोन में खनन का अधिकार नहीं है।
हालांकि कोयला मंत्रालय कोल बियरिंग एरिया (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट की एक विशेष धारा के तहत अधिग्रहण कर रही। इसमें यह प्रावधान है कि सरकार उस क्षेत्र को माइनिंग के लिये अपने क़ब्ज़े में ले सकती है जिसमें उसने यह सुनिश्चित कर लिया हो कि वह नोटिफिकेशन के 2 साल के भीतर खनन कर सकती है।
फुकुशिमा प्लांट का पानी डीएनए को नष्ट करेगा
ग्रीनपीस ने चेतावनी दी है कि जापान के फुकुशिमा दायची न्यूक्लियर पावर प्लांट का प्रदूषित पानी अगर समुद्र में छोड़ा गया तो यह मानव डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है। ग्रीनपीस ने जापानी मीडिया में आई उन ख़बरों के बाद यह रिपोर्ट जारी की है जिनमें कहा गया कि सरकार मछुआरों के विरोध के बावजूद रेडियोएक्टिव तत्वों से भरे प्रदूषित पानी को समंदर में छोड़ने की अनुमति देने वाली है। ग्रीनपीस का कहना है कि कुल 1000 से अधिक टैंकों में करीब 12.3 लाख टन प्रदूषित पानी जमा है जिसमें रेडियोएक्टिव आइसोटोप कार्बन-14 और ट्राइटियम खतरनाक स्तर पर है।
क्लाइमेट फाइनेंस का बोझ गरीब देशों पर
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से लड़ना ग़रीब देशों पर भारी पड़ रहा है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट बताती है कि क्लाइमेट फाइनेंस के नाम अरबों डॉलर के कर्ज़ ऊंची ब्याज़ दरों पर उन देशों को दिये जा रहे हैं जो क्लाइमेट चेंज के कारण पैदा हो रही मुसीबतों से लड़ रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि कर्ज़ की शर्तें ऐसी हैं जो इन देशों के भविष्य पर असर डालेंगी। ग़रीब देशों को साल 2017-18 में अमीर देशों और सरकारी वित्तीय संस्थाओं से कुल 6000 अरब डॉलर का कर्ज़ मिला लेकिन अगर ब्याज इत्यादि को हटा दें तो कुल राशि 1900 से 2250 अरब डॉलर के आसपास ही बनती है।
क्लाइमेट फाइनेंस वह पैसा है जो ग्रांटस कर्ज़ या फिर मदद के रूप में अमीर देश, ग़रीब देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ने के लिये देते हैं। महत्वपूर्ण है कि गरीब देश उस ग्लोबल वॉर्मिंग के असर की कीमत चुका रहे हैं जिसके लिये वह खुद ज़िम्मेदार नहीं है क्योंकि स्पेस में तकरीबन सारा कार्बन अमीर या बड़े विकासशील देशों ने फैलाया है।
इकोसिस्टम संरक्षण के हैं दोहरे फायदे
एक नया शोध बताता है कि पारिस्थितिक तंत्र (इकोसिस्टम) को संरक्षित करने से धरती बचाने की मुहिम में दोहरा फायदा हो सकता है। यह प्रयास क्लाइमेट चेंज से लड़ने और जैव विविधता को बचाने का सबसे प्रभावी और किफायती तरीका होगा। उपग्रह से मिले आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि 15% परिवर्तित भूमि को उसके प्राकृतिक रूप में लौटाने से 60% वनस्पति और जन्तु प्रजातियों को विलुप्ति को रोका जा सकता है और 299 गीगाटन CO2 को सोखा जा सकता है – जो कि औद्योगिक क्रांति के बाद से उत्सर्जित कार्बन का 30% है।
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