किसी भी देश की स्वास्थ्य प्रणाली और उस प्रणाली की प्राथमिकतायें उस देश की जन स्वास्थ्य को लेकर संजीदगी दिखाती हैं। भारत की स्वास्थ्य प्रणाली भी इस नियम से अछूती नहीं। लेकिन भारत की स्वास्थ्य प्रणाली का एक काला सच भी है। और वो काला सच है कार्बन।
वो कार्बन, जो एक वक़्त में हमारे लिए ज़रूरी था, लेकिन जबसे उसे हमने अपनी चाहत बना लिया है, वो हमारे लिए अब जानलेवा होता जा रहा है। कार्बन का धुआं रोज़ हमारी ज़िन्दगी के साल हमसे छीन रहा है। और कुछ इस हद तक छीन रहा है कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली अगर एक हाथ हमें सेहत दे रही है तो दूसरे हाथ कार्बन उत्सर्जन कर हमसे हमारी सेहत ले भी रही है।
जी हाँ, बात कार्बन फुटप्रिंट की हो तो भारत दुनिया के उन शीर्ष 10 देशों में है जिनकी स्वास्थ्य प्रणालियाँ दुनिया भर में स्वास्थ्य प्रणालियों से उत्सर्जित होने वाले कार्बन का 75 फ़ीसद हिस्सा बनाती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन हेल्थ केयर विदाउट हार्म द्वारा 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र का उत्सर्जन 10 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के बराबर है। दूसरे शब्दों में कहें तो इतना है जितना 5,16,286 पेट्रोल के टैंकरों में रखे पेट्रोल से होगा। इस उत्सर्जन की तुलना यात्री वाहनों से करें तो जितना एमिशन 8,280,255 यात्री वाहन करते हैं, उतना उत्सर्जन हमारी स्वास्थ्य प्रणाली करती हैं।
अगर कुल कार्बन एमिशन में इसके योगदान की बात करें तो भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का कुल कार्बन उत्सर्जन में योगदान 1.5 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक औसत 4.4 प्रतिशत है।
लेकिन इस सब के बावजूद, क्या हमारे देश में जनस्वास्थ्य प्रणाली से जुड़े एमिशन को कम करने के लिए कोई प्रतिबद्धता दिखाई देती है?
जब तक आप इस सवाल का जवाब तलाश रहे हैं, तब तक यह जान लीजिये कि यूके की नेशनल हेल्थ सर्विसेज (एनएचएस –NHS) ने 2040 तक अपने को पूरी तरह कार्बन उत्सर्जन शून्य बनाने का फैसला किया है।
अपने इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए एनएचएस ने हर साल अपनाये जाने वाले ठोस कदम तय किये हैं। गौरतलब है कि ब्रिटेन के सबसे बड़े एक हेल्थ केयर प्रोवाइडर (स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता) के रूप में वह देश के लगभग 4% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।
उसकी यह घोषणा उस समय जब पूरी दुनिया जहरीली हवा में साँस लेने के दुष्प्रभावों को बखूबी परख चुकी है। डॉक्टर और मरीज दोनों ही जहरीली हवा में साँस लेने की वजह से होने वाले अस्थमा, हृदय रोग, स्ट्रोक और फेफड़े के कैंसर जैसी जान लेवा बीमारियों से हर रोज जूझते रहते हैं। कोविड संक्रमण के छाए संकट में वायु प्रदूषण की वजह से हालात बद से बदतर हो रहे हैं।
इन हालात के बीच एनएचएस की नेट ज़ीरो कार्बन इमिशन प्रतिबद्धता का सीधा मतलब है जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभावों से हजारों लोगों की हिफाज़त है। उसने 2032 तक अपने उत्सर्जन को 80% कम कर लेने की योजना बनायी है। साथ ही इस मक़सद को पूरा करने के लिए वह 2022 शून्य उत्सर्जन वाली एम्बुलेंस फ्लीट का इस्तेमाल करेगी। अपनी रिपोर्ट में इस घोषणा के साथ एनएचएस ने कहा है कि वह पहले ही अंतर्राष्ट्रीय मानक 1990 बेसलाइन की तुलना में अपनी कार्बन पदचिह्न में 62 प्रतिशत तक कटौती कर चुकी है।
इस घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया व्ययक्त करते हुए पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रोफेसर के. श्रीनाथ रेड्डी, ने कहा, “जलवायु परिवर्तन इस सदी और मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जैसा जैसे दुनिया कोविड महामारी से लड़ रही है वैसे वैसे , हमें एक बार फिर याद आ रहा है कि हेल्थ सिस्टम ही इस दुनिया को ठीक करके फिर से हरा भरा बना सकता है। आज की एनएचएस की घोषणा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में स्वास्थ्य क्षेत्र के ऐसे नेतृत्व का एक जीता जगता उदाहरण है। जो दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को ऐसे कदम उतने के लिए प्रेरित करता है भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र भी अपने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए रिन्यूएबिल ऊर्जा को अपनाकर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। हेल्थ केयर प्रोवाइडरों (स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं) के पास संभावित स्वास्थ्य खतरों से लोगों की रक्षा करने का यह एक बेहतरीन मौका है।’’
इस पूरे मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एनएचएस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सर साइमन स्टीवंस, ने कहा, “2020 में कोविड -19 का वर्चस्व रहा है और यह हमारे सामने आने वाली सबसे अधिक स्वास्थ्य संबंधी आपातकालीन स्थिति है। लेकिन निस्संदेह जलवायु परिवर्तन राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए सबसे गहरा दीर्घकालिक खतरा है।”
वहीँ इस विषय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस, ने कहा, “दुनिया के हर हिस्से में स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती आवश्यक है। मैं दुनिया में सबसे बड़ी एकल स्वास्थ्य प्रणाली, इंग्लैंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के नेतृत्व में, 2040 तक अपने स्वयं के संचालन में कार्बन तटस्थ होने के लिए और अपने आपूर्तिकर्ताओं और भागीदारों में उत्सर्जन में कमी लाने के लिए स्वागत करता हूं। स्वास्थ्य एक ग्रीन, सुरक्षित ग्रह की ओर हमें ले जा रहा है।’’
अंततः सवाल फिर उठता है कि क्या भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के लिए ऐसा कुछ करना संभव है?
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
40% आयात शुल्क के कारण एक्मे-स्कैटेक ने 900 मेगावाट की सौर परियोजना रोकी
-
हरित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को सकल घरेलू उत्पाद का 11% खर्च करना होगा, 40% खर्च नवीकरणीय ऊर्जा में होना चाहिए: मैकिन्से
-
भारत साफ ऊर्जा के संयंत्रों को ग्रिड से जोड़ने के लिये लगाएगा 161 करोड़ डॉलर
-
मिशन 500 गीगावॉट और नेट ज़ीरो वर्ष का हुआ ऐलान पर व्यवहारिक दिक्कतें बरकार
-
साफ ऊर्जा बढ़ाने के लिये भारत की “मिशन 500 गीगावॉट” की योजना