इस साल कोराना महामारी से निपटने के लिये लॉकडाउन लागू होने के साथ ही भारत सरकार ने पर्यावरण प्रभाव आंकलन का एक मसौदा (ड्राफ्ट नोटिफिकेशन) जारी किया जिसका पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया। विरोध के मुख्य तर्क विकास योजनाओं के लिये जन सुनवाई की प्रक्रिया को हटाना और बिना अनुमति के शुरू किये गये प्रोजेक्ट्स को बाद में हरी झंडी (एक्स पोस्ट फेक्टो क्लीयरेंस) देना शामिल है। हालांकि कर्नाटक हाइकोर्ट के स्टे के कारण केंद्र सरकार नये नियमों को अब तक लागू नहीं कर पाई है।
कोयला खदान नीलामी से उठे सवाल, विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी नहीं
“आत्मनिर्भर” अभियान के तहत मोदी सरकार ने 18 जून को पांच राज्यों की 41 कोयला खदानों की नीलामी का ऐलान किया। इनमें से 29 खदानें तो देश के तीन राज्यों झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही हैं। हालांकि झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के विरोध के बाद केवल 38 खदानों की नीलामी हुई। सरकार ने इन खदानों का अधिकतम उत्पादन 22.5 करोड़ टन तक बताया और कहा इससे करीब ₹ 33,000 करोड़ का निवेश आयेगा और राज्यों को हर साल ₹ 20,000 करोड़ की राजस्व मिलेगा। साथ ही 2.8 लाख नौकरियों का दावा किया गया है। विदेशी निवेशकों ने हालांकि इन खदानों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई लेकिन अडानी और वेदांता समेत भारतीय कंपनियों को कोयला खदान मिली हैं।
कई देशों ने बताई कार्बन न्यूट्रल होने की समय सीमा
दुनिया कुल 65% ग्रीन हाउस गैस छोड़ने वाले देश जनवरी के अंत तक यह बता देंगे कि वह किस साल कार्बन न्यूट्रल बन जायेंगे। यानी उनके द्वारा किया गया नेट कार्बन उत्सर्जन शून्य होगा। इन देशों का वर्ल्ड इकोनोमी में 70% से अधिक हिस्सा है। यूरोपीय यूनियन ने इस दिशा में पहल की लेकिन हौसला बढ़ाने वाली बात यह है कि दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक देश चीन ने भी कह दिया है कि वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बन जायेगा। इसके अलावा जापान, दक्षिण कोरिया और यूके समेत 110 देशों ने बता दिया है कि किस साल तक वह अपना नेट कार्बन इमीशन ज़ीरो कर पायेंगे। भारत ने अब तक इस समय सीमा की घोषणा नहीं की है लेकिन यह ज़रूर कहा है कि वह अपना कार्बन फुट प्रिंट 30-35 प्रतिशत घटायेगा। साफ ऊर्जा की दिशा में पहल करने में यूरोपियन यूनियन एक बार फिर सबसे आगे है।
कोरोना पैकेज में ग्रीन रिकवरी के बजाय जीवाश्म ईंधन को तरजीह
क्लाइमेट ट्रांसपरेंसी की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना महामारी से निपटने में दुनिया के सबसे अमीर देशों की प्राथमिकता साफ ऊर्जा को बढ़ावा देना नहीं है। ज़्यादातर देशों ने जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस, कोयला) पर सब्सिडी बनाये रखी है जिसकी वजह से महामारी से पहले कार्बन इमीशन कम करने के उपायों को धक्का लगेगा। हालांकि EU ने इस दिशा में कुछ दिलचस्पी दिखाई है। कुल $ 83000 करोड़ के रिकवरी पैकेज में करीब 30% धन उस कारोबार के लिये रखा है जिससे साफ ऊर्जा के प्रयोग बढ़े और जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस, कोयला) पर निर्भरता कम हो। जर्मनी और फ्रांस ने (ईयू का हिस्सा होने के बावजूद) अलग से अपने रिकवरी पैकेजों की घोषणा की है। लेकिन अमेरिका और जापान जैसे देश इस दिशा में नाकाम दिखे हैं। भारत ने कोरोना से लड़ने के लिये $ 26,000 करोड़ ( 20 लाख करोड़ रुपये) का पैकेज बनाये है लेकिन ‘ग्रीन स्टिम्युलस इंडेक्स’ पैकेज पर वह पांचवां सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देश है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़
-
अगले साल वितरित की जाएगी लॉस एंड डैमेज फंड की पहली किस्त
-
बाकू वार्ता में नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर नहीं बन पाई सहमति