87 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि कोविड-19 का प्रकोप शुरू होने के बाद से उन्होंने व्यक्तिगत रूप से वायु की गुणवत्ता में सुधार अनुभव किया है।
हाइलाइट:
-अधिकांश भारतीय सोचते हैं कि वायु प्रदूषण सीधे तौर पर उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है
-भारत के निवासियों के लिए संक्रामक रोगों के साथ-साथ वायु प्रदूषण शीर्ष जनस्वास्थ्य की चिंता है
-अधिकांश भारतीयों को लगता है कि वायु प्रदूषण के ऐसे स्तरों के बीच रहने से न सिर्फ़ कोविड-19 जैसे वायरस से संक्रमित होने की सम्भावना बढ़ती है, उस संक्रमण के गंभीर के गम्भीर रूप लेने, और फिर उससे न उबर पाने की भी सम्भावना बढ़ जाती है
-अधिकांश भारतीयों ने लॉकडाउन के बाद वायु की गुणवत्ता में सुधार महसूस किया है
-अधिकांश भारतीयों को लगता है कि उनके स्थानीय क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए
-वायु की स्वच्छता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीतिगत उपायों के लिए जनता का भारी समर्थन है
– 86% उत्तरदाता वायु प्रदूषण को एक जन स्वास्थ्य मुद्दा मान उसके लिए चिंतित हैं
-चिंता का यह स्तर न सिर्फ़ संक्रामक बीमारियों के साथ है, जलवायु परिवर्तन (80%), मानसिक स्वास्थ्य (73%), नशीले पदार्थ और शराब (71%), धूम्रपान (68%) और मोटापे (65%) जैसी समस्याओं से आगे है।
कोविड-19 ने, यक़ीनन, हमारे-आपके जीने का अन्दाज़ और सोचने का नज़रिया बदल दिया है। जहाँ एक ओर इस वायरस के चलते दुनिया में घबराहट और डर का माहौल है, वहीँ दूसरी ओर इस महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन की वजह से कम हुए प्रदूषण के रूप में उम्मीद की एक किरण भी दिखती है।
कम-अज़-कम ग्लोबल मार्केट रिसर्च फर्म YouGov के साथ साझेदारी में क्लीन एयर फंड (CAF) द्वारा हाल ही में जारी किये गए इस सर्वे के नतीजे इस बात की ओर इशारा करते हैं। भारत, ब्रिटेन, पोलैंड, बुल्गारिया और नाइजीरिया में हुए इस वायु प्रदूषण पर सार्वजनिक अनुभूति सर्वे के नतीजे सीएएफ (CAF) की रिपोर्ट ब्रीदिंग स्पेस के साथ जारी किये गए हैं।
ब्रीदिंग स्पेस रिपोर्ट की सबसे ख़ास बात जो निकल कर आयी है, वो है कि यह रिपोर्ट सिफ़ारिश करती है कि कोविड-19 के काबू में आ जाने के बाद, तमाम सरकारें जब अपने-अपने देशों में विकास की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए नयी नीतियां बनायें, तब उनमें वायु प्रदूषण को कम करने को प्राथमिकता ज़रूर दें।
भारत की बात करें तो सर्वे के नतीजे बेहद उत्साहजनक हैं। ख़ास तौर से इसलिए क्योंकि अधिकांश (94 प्रतिशत) भारतीय मानते हैं कि वायु प्रदूषण सीधे तौर पर उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। साथ ही, अच्छी-ख़ासी तदाद (86 प्रतिशत) यह भी मानती है कि संक्रामक रोगों के साथ-साथ वायु प्रदूषण एक शीर्ष जनस्वास्थ्य की चिंता और मुद्दा भी है।
और आज जब कोविड का कहर बरप रहा है पूरी दुनिया में, तब ज़्यादातर भारतीयों को लगता है कि वायु प्रदूषण के ऐसे स्तरों के बीच रहने से न सिर्फ़ कोविड-19 जैसे वायरस से संक्रमित होने की सम्भावना बढ़ती है, उस संक्रमण के गंभीर गम्भीर रूप लेने, और फिर उससे न उबर पाने की भी सम्भावना भी बढ़ जाती है।
चिंता का यह स्तर सिर्फ़ संक्रामक बीमारियों के साथ ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन (80%), मानसिक स्वास्थ्य (73%), नशीले पदार्थ और शराब (71%), धूम्रपान (68%) और मोटापे (65%) जैसी समस्याओं से आगे भी है। इस बदलते नज़रिए की तस्दीक इस बात से होती है कि इस सर्वे के 87 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि कोविड-19 का प्रकोप शुरू होने के बाद से उन्होंने व्यक्तिगत रूप से वायु की गुणवत्ता में सुधार अनुभव किया है। साथ ही उन्हें यह भी लगता है कि उनके स्थानीय क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता में ज़रूर सुधार होना चाहिए।
इस सबके साथ ही, सर्वे के नतीजे बताते हैं कि अंततः वायु की स्वच्छता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीतिगत उपायों के लिए जनता का भारी समर्थन भी है। सर्वे के नतीजों पर जब विशेषज्ञों की राय जाननी चाही तो सभी ने इसे पर्यावरण और जलवायु की दृष्टि से बेहद सकारात्मक रूप से लिया।
काउन्सिल फॉर एनर्जी, एन्वायर्नमेंट एंड वाटर के सीईओ, अरुणभ घोष का मानना है कि, “इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय जिस हवा में सांस लेते हैं उसकी परवाह भी करते हैं। और साथ ही इस बारे में अधिक जागरूक भी हो रहे हैं कि वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य की चुनौतियों में इज़ाफ़ा करता है।”
स्थिति को सुधरने में जन भागीदारी की ओर इशारा करते हुए अरुणभ कहते हैं, “लॉकडाउन ने हमें नीले आसमान की झलक दिखा दी है। लेकिन उस झलक को स्थायी बनाने के लिए हम सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों की प्रतीक्षा नहीं कर सकते। हमें स्वच्छ हवा के लिए लोकतांत्रिक मांग बनाने की जरूरत है।”
महामारी के इस दौर में बेहतर हुई आब-ओ-हवा की एहमियत समझाते हुए, कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री की उप महानिदेशक, सीमा अरोड़ा, कहती हैं, “इस बुरे दौर में असल जीत साफ़ हवा की हुई है।”
वाक़ई, जीत साफ़ हवा की भी हुई है। अब देखना यह है कि कैसे हम इस संकट को अवसर में बदल इस महामारी के फ़िलहाल अस्थाई सकारात्मक असर को स्थाई तौर पर अपनी आने वाली नस्लों के लिए सुनिश्चित करते हैं।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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