शिकागो यूनिवर्सिटी और एनर्जी पालिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स या एक्यूएलआई) की मानें तो एक औसत भारतीय, वायु प्रदूषण की वजह से, अपनी ज़िन्दगी के पांच साल खोने को मजबूर है। शायद इसलिए क्योंकि भारत की एक चौथाई आबादी के लिए प्रदूषण को झेलना मजबूरी है। और बीते दो दशक में तो भारत में प्रदूषण 46 प्रतिशत बढ़ा है। . आज भारत में 84 प्रतिशत लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जो भारत के स्वयं के वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक प्रदूषित हैं सबसे दुःख की बात है कि जीवन जीने के लिए जिस गुणवत्ता की हवा चाहिए, उस मामले में भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर आज भी खरा नहीं उतरता।
लेकिन देशभर में अगर 25 प्रतिशत तक प्रदूषण कम किया जाये, तो राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा में 1.6 साल बढ़ोत्तरी हो सकती है। ये आंकड़ा तब है जब पूरे देश में, 4000 शहर और उनसे जुड़े लगभग 6.5 लाख गाँव हैं, जहाँ 130 करोड़ लोग रहते हैं। तो प्रदूषण में बस पच्चीस फीसद की कमी से अगर इतनी बड़ी जनसंख्या की औसतन उम्र डेढ़ साल बढ़ रही है, तो सोचिये उन शहरों में लोगों की कितनी उम्र बढ़ेगी जहाँ प्रदूषण बेहद बढ़ा हुआ है? ज़ाहिर है वहां इस कमी का ज़्यादा असर दिखेगा और उम्र भी ज़्यादा बढ़ेगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आप अपने शहर में ही प्रदूषण में कमी ला कर अपनी ज़िन्दगी में कुछ समय और जोड़ सकते हैं।
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स या एक्यूएलआई 2020 के अनुसार डबल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता के मानकों परअगर खरा उतरें तो दुनिया की सबसे बड़ी उप राष्ट्रीय इकाई, उत्तर प्रदेश, के 230 मिलियन लोगों का जीवन 8.6 साल और अधिक बढ़ जाये । वहीं डबल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप हवा में सुधर होने पर दिल्ली के निवासी भी अपने जीवन में 9.4 साल और अधिक देख सकते हैं । इसी तरह हरियाणा के 8.6 साल ,बिहार 7.6 साल, झारखण्ड 5.9, छत्तीसगढ़ 4.0, हिमाचल के 3.1 साल, उत्तराखंड 4.4, महारष्ट्र के 3.1, गुजरात के 3.1 , तेलंगना 3.1तमिल नाडू 3.1, आंध्र प्रदेश 3.0, कर्नाटक 2.3,पश्चिम बंगाल 7.1 और ओडिशा के 4.7 वर्ष और अधिक जी सकते अगर वहां वायु की गुणवत्ता डबल्यूएचओ के मानक के अनुसार होती ।
यह आंकडें हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि आज जब दुनियाभर में कोविड की वैक्सीन बनाने की होड़ मची हुई है तब यह मौका है कि हम अपने एक और दुश्मन को पहचानें। वो दुश्मन जो हर दिन अरबों लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। और वह दुश्मन है वायु प्रदूषण। शिकागो यूनिवर्सिटी की ओर से जारी नए एक्यूएलआई रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक हवा में तैर रहे पार्टीकुलेट मैटर कोविड से पहले इंसानों के स्वास्थ्य को कमजोर कर रहा था। और अगर आनेवाले समय में स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर नहीं की गई, तो कोविड के बाद भी यह मानव जीवन प्रत्याशा को और बुरी तरह प्रभावित करेगा।
भारत का है बुरा हाल
बात भारत की करें तो यहाँ जीवन प्रत्याशा पांच साल कम हो गई है। यानी एक औसत भारतीय वायु प्रदूषण की वजह से अपने जीवन के पांच साल कम जीने को मजबूर है। साथ ही, भारत की आबादी का एक चौथाई हिस्सा प्रदूषण को झेलने के लिए भी मजबूर हैं। दुनिया के किसी भी देश में इतनी बड़ी आबादी इससे प्रभावित नहीं है। वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स-एक्यूएलआई) यानी जीवन जीने के लिए जिस गुणवत्ता की हवा चाहिए, उस मामले में भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरा नहीं उतरता है। पिछले दो दशकों में भारत में पार्टीकुलेट मैटर (कण प्रदूषण) में 42 प्रतिशत की तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। आज भारत में 84 प्रतिशत लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जो भारत के स्वयं के वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक प्रदूषित हैं.
भारत की पूरी आबादी डबल्यूएचओ की ओर से तय मानक से अधिक के स्तर के वायु गुणवत्ता वाले माहौल में जीने को विवश हैं। नतीजतन, औसत भारतीय अपना जीवन पांच साल कम जीते हुए देखे जा सकते हैं। डबल्यूएचओ के मानक के मुताबिक पांच साल आयु कम हो रहे हैं, वहीं राष्ट्रीय मानक के मुताबिक दो साल कम हो रहे हैं। इस बीच, भारत की जनसंख्या का एक चौथाई हिस्सा जिस प्रदूषण स्तर में जी रहा है, दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं देखा गया है।
इस आँखें खोलने वाली रिपोर्ट पर मिल्टन फ्रीडमैन प्रोफेसर और एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं, “कोरोना वायरस का खतरा काफी है। इसपर गंभीरता से ध्यान देने आवश्यकता है। लेकिन कुछ जगहों पर, इतनी ही गंभीरता से वायु प्रदूषण पर ध्यान देने की जरूरत है। ताकि करोड़ों-अरबों लोगों को अधिक समय तक स्वस्थ जीवन जीने का हक मिले।” माइकल ग्रीनस्टोन ने ही शिकागो यूनिवर्सिटी में ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) में अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर एक्यूएलआई की स्थापना भी की है।
भारत के बारे में वो आगे कहते हैं, वास्तविकता यह है कि फिलहाल जो उपाय और संसाधन भारत के पास है, उसमें वायु प्रदूषण के स्तर में खासा सुधार के लिए मजबूत पब्लिक पॉलिसी कारगर उपाय है। एक्यूएलआई रिपोर्ट के माध्यम से आम लोगों और नीति निर्धारकों को बताया जा रहा है कि कैसे वायु प्रदूषण उन्हें प्रभावित कर रहा है।
भारत की कोशिशें बनाम एक्यूएलाई
भारत सरकार की प्रदूषण नियंत्रण की कोशिशों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि साल 2019 में केंद्र सरकार ने प्रदूषण से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनकैप) की घोषणा की। इसके माध्यम से साल 2024 तक 20-30 प्रतिशत तक प्रदूषण कम करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है। लेकिन एक्यूएलाई के अनुसार इस लक्ष्य को हासिल करने के साथ स्वास्थ्य व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार की आवश्यकता है। अगर देशभर में 25 प्रतिशत तक प्रदूषण को कम किया जाता है, तो एनकैप के लक्ष्य को हासिल करने से पहले ही राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा में 1.6 साल और दिल्ली के लोगों के जीवन प्रत्याशा में 3.1 साल की बढ़ोत्तरी हो सकती है।
भारत में राज्य सरकारें वायु गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में पहले से ही प्रयासरत हैं। पार्टिकुलेट मैटर (कण प्रदूषण) के लिए दुनिया का पहला एमिशन ट्रेडिंग सिस्टम (ईटीएस) शिकागो यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर गुजरात में चल रहा है। जहां शिकागो यूनिवर्सिटी और गुजरात प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के साथ अन्य लोग मिलकर काम कर रहे हैं। सूरत में चल रहे इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाले कण प्रदूषण को कम करने पर शोध चल रहा है। वह भी कम से कम लागत में।
ग्रीनस्टोन एक बार फिर कहते हैं, “इतिहास उदाहरणों से भरा है कि कैसे मजबूत नीतियां प्रदूषण को कम कर सकती हैं, लोगों के जीवन को लंबा कर सकती हैं।” उनके मुताबिक, “भारत और दक्षिण एशिया के नेताओं के लिए अगली सफलता की कहानी बुनने का एक बहुत ही शानदार अवसर है। क्योंकि वे आर्थिक विकास और पर्यावरण गुणवत्ता के दोहरे लक्ष्यों को संतुलित करने के लिए काम करते हैं। सूरत ईटीएस की सफलता बताती है कि बाजार-आधारित लचीला दृष्टिकोण से दोनों लक्ष्यों को एक साथ हासिल किया जा सकता है।”
लेकिन जब तक नेता और नीति निर्धारक अपने स्तर पर इस दिशा में फ़ैसले लेते हैं, आप अपने स्तर पर प्रदूषण कम करने के कुछ फ़ैसले लेने की सोचिये। क्योंकि आप न सिर्फ़ अपनी, बल्कि अपने पूरे परिवार की उम्र बढ़ाने का एक सार्थक प्रयास कर सकते हैं। और आप इस प्रयास में सफल भी हो सकते हैं। याद रखियेगा कि बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है।
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