भारत के कोयला बिजलीघरों के लिये $1160 करोड़ की धनराशि की मांग वित्त आयोग ठुकरा सकता है। ऊर्जा मंत्रालय ने कोयला बिजलीघरों में प्रदूषण नियंत्रक टेक्नोलॉजी लगाने के लिये यह रकम मांगी थी ताकि 2015 में बनाये गये उत्सर्जन मानकों को लागू किया जा सके। दिल्ली और एनसीआर के कोयला बिजलीघरों में इस साल के अंत तक यह टेक्नोलॉजी लगाई जानी है जबकि देश के बाकी कोल पावर प्लांट्स में 2022 तक उत्सर्जन नियंत्रक उपकरण लगाने हैं।
उधर निजी कंपनियों – जिन पर करीब अभी $1100 करोड़ का कर्ज़ है – ने साफ कह दिया है कि इस हाल में उनके लिये अपने कोयला बिजलीघरों में यह टेक्नोलॉज़ी लगाना अभी संभव नहीं है। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक भारत के आधे से अधिक कोयला बिजलीघर – जिनकी कुल क्षमता 166500 मेगावॉट है – निर्धारित समय सीमा का पालन नहीं कर पायेंगे क्योंकि बैंक आर्थिक रूप से खस्ताहाल इन कंपनियों को कर्ज़ नहीं देना चाहती।
कोल पावर: चीन और भारत मिट्टी में मिला रहे हैं सारी मेहनत
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) ने ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 2018 और जून 2019 के बीच चीन ने 42.9 GW के नये कोल पावर प्लांट लगाये और वह फिलहाल 148 GW के प्लांट और लगा रहा है। भारत ने भी 2014 से अब तक अपनी कोल पावर में 82 GW का इज़ाफा किया, हालांकि 7.4 GW के कोल प्लांट बन्द भी किये। रिपोर्ट के अनुसार इन दोनों बड़ो देशों द्वारा कोल पावर में बढ़त से दुनिया के अन्य देशों द्वारा बिजली के लिये कोयले का इस्तेमाल घटाने की कोशिश बेकार हो सकती है। चीन और भारत की कोल पावर में बढ़ोतरी पेरिस समझौते के लक्ष्य से कतई मेल नहीं खाती। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2025 तक अपना सालाना कोयला उत्पादन करीब 40 करोड़ टन बढ़ा सकता है।
कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिये राजस्व बंटवारे के नियमों होगा बदलाव
कोयला मंत्रालय ने घोषणा की है कि वह उन कंपनियों से 20% तक कम राजस्व वसूलेगा जो नीलाम की जाने वाली खदानों से जल्द कोयला निकालेंगी। सरकार का यह फैसला खनन कंपनियों को जल्द कोयला निकालने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये है। सरकार ने नीलामी के लिये 15 बड़े कोल ब्लॉकों की पहचान की है। इनमें से हर ब्लॉक से सालाना 40 लाख टन कोयला निकाल सकता है।
जीवाश्म ईंधन का अंधाधुंध उत्पादन जारी, कैसे बचेगी धरती!
दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) के उत्पादन पर संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के आंकड़े डराने वाले हैं। रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक धरती के तापमान को 2 डिग्री की तापमान वृद्धि तक रोकने के जितना जीवाश्म ईंधन जलाने की इजाज़त है, पूरे विश्व का उत्पादन उससे 150% अधिक होगा। अगर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री के भीतर रखने का सपना देखें तो अनुमानित कोयते, तेल औऱ गैस का यह उत्पादन सीमा से 280% ज़्यादा होगा। रिपोर्ट यह चेतावनी भी देती है कि अगर गैस के उत्पादन में बढ़ोतरी जारी रही तो इस ईंधन से अब तक हुये घटे कार्बन उत्सर्जन का कोई लाभ नहीं रहेगा उल्टे यह नेट ग्लोबल वॉर्मिंग में बढ़ोतरी ही करेगा।
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