अपनी सेहत का ख्याल रखने के नाम पर आप भले ही तेल, घी, और चिकनाई से परहेज़ करते हों, लेकिन अगर आपके शहर की हवा प्रदूषित है, तो आपका सारा परहेज़ बेकार है. दरअसल ताज़ा वैज्ञानिक जानकारी यह है कि प्रदूषित क्षेत्र में रहना उच्च वसा वाले आहार खाने के बराबर है। साथ ही, अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया है कि मधुमेह जैसे कार्डियोमेटाबोलिक रोगों के विकास में भी वायु प्रदूषण एक भूमिका निभा सकता है।
अमेरिका में, केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी और जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किये गए इस शोध में यह हैरान करने वाला तथ्य सामने आया है। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि वायु प्रदूषण दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी घातक समस्याओं के लिए जो रिस्क फैक्टर्स हैं, उनके लिए रिस्क फैक्टर खुद है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन बीमारियों के कारक का कारक है वायु प्रदूषण।
भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ संजय राजगोपालन के नेतृत्व में हुई यह खोज इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में शिकागो यूनिवर्सिटी ने AQLI 2020 शीर्षक से एक रिपोर्ट और एक टूल जारी कर बताया है कि एक औसत भारतीय, वायु प्रदूषण की वजह से, अपनी ज़िन्दगी के सवा पांच साल खोने को मजबूर है। और बीते दो दशक में तो भारत में प्रदूषण 46 प्रतिशत बढ़ा है। सबसे दुःख की बात है कि जीवन जीने के लिए जिस गुणवत्ता की हवा चाहिए, उस मामले में भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर भी खरा नहीं उतरता।
मतलब एक ओर तो वायु प्रदूषण से हमारी जीवन प्रत्याशा घट रही है, वहीँ दूसरी ओर अब पता चल रहा है कि ख़राब हवा में साँस लेना सेहत के लिए हानिकारक तेल, घी, चिकनाई वाला खाना खाने के बराबर है।
लांसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदूषण वर्तमान समय में इन्सानों की मौत का सबसे बड़ा पर्यावरणीय कारण है और इसके चलते हर साल 90 लाख से अधिक लोग अपनी जान वक़्त से पहले खो देते हैं। वायु प्रदूषण के हृदय संबंधी प्रभावों का प्रमाण दिल का दौरा और स्ट्रोक और हृदय संबंधी मधुमेह जैसे रोग भी पैदा कर सकता है।
वर्तमान शोध के परिणाम बताते हैं कि वायु प्रदूषण कार्डियोमेटाबोलिक रोगों के उन्हीं रिस्क फैक्टर्स को बढ़ाता है जो सेहत के लिए बुरा खाना और व्यायाम न करने पर बढ़ते हैं। साथ ही इस शोध दल ने पाया कि वायु प्रदूषण के चलते ह्रदय रोगों और टाइप 2 डायबिटीज़ के कारकों को बढ़ावा मिलता है।
इस संदर्भ में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स क्लीवलैंड मेडिकल सेंटर ने एक बयान जारी कर बताया कि इस शोध का आधार चूहों के तीन समूह थे। एक नियंत्रण समूह जो स्वच्छ फ़िल्टर्ड हवा प्राप्त करता था, एक समूह जो 24 सप्ताह के लिए प्रदूषित हवा के संपर्क में रहा, और तीसरे समूह ने उच्च वसा वाले आहार को खाया। अंततः सामने यह आया कि प्रदूषण के सम्पर्क वाले समूह और उच्च वसा आहार खाने वाले समूह, दोनों में ही इंसुलिन प्रतिरोध और असामान्य मेटाबोलिज़म था।
अपने इस शोध पर प्रकाश डालते हुए डॉ राजगोपालन कहते हैं, “इस अध्ययन में हमने ऐसा वातावरण बनाया जो नई दिल्ली या बीजिंग के एक प्रदूषित दिन की नकल करता है। इसके लिए हमने पीएम 2.5 के बारीक कणों पर ध्यान केंद्रित किया। इस तरह के कण हवा में ऑटोमोबाइल्स, बिजली उत्पादन, और अन्य जीवाश्म ईंधन के जलने से पैदा होते हैं।” वो आगे इसका दूसरा पक्ष बताते हुए कहते हैं, “अच्छी ख़बर यह है कि चूहों पर प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव प्रदूषण हटाने से चले गए और साफ़ हवा में चूहे फिर से स्वस्थ दिखाई दिए।”
इस दिशा में शोधकर्ता अब और विशेषज्ञों को अपने साथ जोड़ कर वायु प्रदूषण के स्तर और दिल के स्वास्थ्य के बीच क्या सम्बन्ध है यह जानने की कोशिश करेंगे।
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके इस अध्ययन से नीति निर्माताओं को भारत और चीन जैसे अत्यधिक प्रदूषित देशों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। उम्मीद है प्रदूषण के दुष्प्रभावों के ऐसे आयाम भारत में यक़ीनन निति निर्धारण की दशा और दिशा को निर्धारित करने में सक्षम रहेंगे।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
दिल्ली में इस साल भी बैन रहेंगे पटाखे, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कहीं और जाकर जलाएं
-
दिल्लीवासियों के लगभग 12 साल खा रहा है वायु प्रदूषण: रिपोर्ट
-
वायु प्रदूषण एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता को दे रहा है बढ़ावा
-
वायु प्रदूषण से भारत की वर्ष-दर-वर्ष जीडीपी वृद्धि 0.56% अंक कम हुई: विश्व बैंक
-
देश के 12% शहरों में ही मौजूद है वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग प्रणाली