बड़े कदम की ओर: IEEFA का कहना है कि आने वाले दिनों में भारत की पवन-सौर हाइब्रिड ऊर्जा में काफी बढ़ोतरी होगी | Photo: PV Magazine India

पवन-सौर हाइब्रिड क्षमता 2023 तक होगी 11.7 GW

ऊर्जा क्षेत्र में रिसर्च और एनालिसिस करने वाले इंस्टिट्यूट ऑफ़ एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाईनेनशियल एनालिसिस (IEEFA- आईफा) का अनुमान है कि साल 2023 तक भारत की विन्ड-सोलर हाइब्रिड क्षमता 11.7 गीगावॉट तक पहुंच जायेगी। आईफा ने यह आंकड़ा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मंज़ूर किये गये टेंडरों के आधार पर दिया है। अभी यह क्षमता केवल 148 मेगावॉट है अगर ऐसा होता है तो 2020 से 2023 के बीच यह 223% चक्रवृद्धि सालाना दर से बढ़ोतरी होगी और कुछ क्षमता में 80 गुना की छलांग होगी।

बिजली में साफ ऊर्जा की हिस्सेदारी 3% बढ़ी

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के मुताबिक इस साल अप्रैल से अगस्त के बीच कुल बिजली में साफ ऊर्जा (सौर, पवन इत्यादि) का हिस्सा  23% से बढ़कर 26% हुआ। इकोनोमिक टाइम्स में छपी ख़बर बताती है कि कोरोना महामारी के कारण बिजली सेक्टर में घटी डिमांड इसकी वजह है। CEA के चेयरमैन के मुताबकि भारत ने कार्बन इमीशन तीव्रता को 30-33% घटाने का जो वादा किया है उसे वह लक्ष्य 2030 तक हासिल कर लिया जायेगा।

कोरोना का असर ऊर्जा के उत्पादन और खपत पर

कोरोना महामारी के कारण जो आर्थिक मन्दी आई है उसे जाने में वक्त लगेगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी आईईए का कहना है कि बिजली की पूरी मांग फिर से 2025 तक ही बहाल हो पायेगी। आईईए पश्चिमी देशों को बिजली पर सलाह देने का काम करती है। एजेंसी का कहना है कोरोना की वैक्सीन और दवा आ जाती तो विश्व अर्थव्यवस्था 2021 तक वापस लौट सकती थी और बिजली की मांग 2023 तक बहाल होती लेकिन वर्तमान स्थिति में ऐसा होता नहीं दिख रहा और टाइमलाइन 2025 तक खिंच सकती है।

पावर डिमांड: भारत में भी रिकवरी की रफ्तार है सुस्त

उधर क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच (Fitch) के मुताबिक इस साल भारत में बिजली की खपत 6.6% घट सकती है और इसके उत्पादन में 6.8% कमी आ सकती है। इस दौरान पावर कैपिसिटी केवल 2.7% बढ़ने का अनुमान है। एजेंसी का कहना है कि साल 2020 के दूसरे 6 महीनों में जिस थोड़ी से रिकवरी का अनुमान था वह अभी नहीं होगा क्योंकि यह सेक्टर कई ओर से दबाव झेल रहा है। एजेंसी की रिपोर्ट कहती है 2019 और 2029 के बीच भारत ज़रूर 262 गीगावॉट के नये बिजलीघर लगा सकता है लेकिन अगर इस क्षेत्र के संरचनात्मक मुद्दों को नहीं सुलझाया गया तो इसमें भी बाधायें आयेंगी। इसके लिये भारत को देश के भीतर सोलर उपकरण निर्माण क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये नीतिगत फैसले लेने होंगे।

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