साल 2020 – कोरोना काल में लॉकडाउन से वायु प्रदूषण में क्षणिक राहत मिली लेकिन फिर हालात पहले की तरह ख़राब हो गये। PM 2.5 के मामले में भारत के महानगर दुनिया में सबसे निचले पायदान पर रहे | Photo: Free Press Journal

नियमों के पालन में 65% कोयला बिजलीघर फेल

देश के 65 प्रतिशत कोयला बिजलीघर 2022 की उस तय समय सीमा का पालन नहीं कर पायेंगे जिसके भीतर उन्हें धुंआं रोकने के लिये चिमनियों में यंत्र लगाने थे। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की ताज़ा आंकलन रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट कहती है कि बहुत बड़ी संख्या में कोयला बिजलीघर मानकों को पूरा करने के मामले में “लापरवाह और आलसी” हैं।

उद्योगों से होने वाले प्रदूषण में पावर प्लांट्स का 60% हिस्सा है। कुल 45% SO2, 30% NOx और 80% मरकरी बिजलीघरों से निकलता है। सीएसई की नई रिपोर्ट, जिसमें इस साल अगस्त तक के हालात का आंकलन किया गया है, कहती है  कि कुल बिजलीघरों में से केवल 56% नये पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) मानकों का पालन करते हैं और मात्र 35% SO2 से जुड़े उत्सर्जन मानकों के हिसाब से हैं।

लॉकडाउन: प्रदूषण में रिकॉर्ड गिरावट लेकिन क्षणिक कामयाबी

कोरोना महामारी के कारण की गई तालाबन्दी ने पूरे देश में वायु प्रदूषण का स्तर कम कर दिया जिससे शोधकर्ताओं को महानगरों में पॉल्यूशन के बेस लेवल का अध्ययन करने का अवसर मिला। यह एक ऐसी जानकारी है जो अब तक हासिल करना दुश्वार रहा है। लॉकडाउन में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरू का प्रदूषण स्तर मापा गया और पहले 74 दिन में ही नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत  2024  के लिये तय किये गये प्रदूषण नियंत्रण लक्ष्य का 95% हासिल किया गया।  इन पाबंदियों के चलते तराई के इलाकों से ही लोगों को हिमालय के दर्शन हो गये।

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के मुताबिक इस साल के अंत तक पूरी दुनिया में कार्बन इमीशन में 7% (जीवाश्म ईंधन और उद्योगों से निकलने वाला)  गिरावट हो सकती है जो पिछले साल की तुलना में 2.4 गीगाटन CO2 के बराबर गिरावट होगी। अमेरिका में इस साल CO2 इमीशन में 12%, ईयू में 11%  और चीन में 1.7% गिरावट हुई है।  

वायु प्रदूषण: PM 2.5 के मामले में भारत के हाल सबसे बुरे 

वायु प्रदूषण से लड़ने के लिये भारत ने भले ही कागज़ों पर पहल की हो लेकिन दुनिया में उसकी रेंकिंग सबसे खराब बनी हुई है। इस साल जाड़ों में उत्तर भारत एक बार फिर से घातक प्रदूषण की गिरफ्त में आ गया। हीर साल अक्टूबर-नवंबर की तरह इस साल भी इन महीनों में दिल्ली के ज़्यादातर इलाकों में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स अति हानिकारक (हज़ॉर्डस) स्तर पर था और आपातकालीन स्थिति बनी रही। कुछ जगहों में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) 700 से अधिक दर्ज किया गया। इसी तरह उत्तर भारत  और देश के कई शहरों में एयर क्वॉलिटी बहुत खराब रही। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक इस दौरान पीएम 2.5 सबसे बड़ा प्रदूषक रहा है। गुड़गांव, नोयडा, फरीदाबाद और गाज़ियाबाद के लोनी इलाकों में प्रदूषण 500 के सूचकांक तक पहुंच गया।

वायु प्रदूषण: इमरजेंसी में भर्ती बच्चों की संख्या 30% बढ़ी

राजधानी दिल्ली में दो साल तक की गई एक स्टडी बताती है कि प्रदूषण के बढ़ने के साथ-साथ इमरजेंसी रुम में उन बच्चों के संख्या भी बढ़ रही है जिन्हें सांस की तकलीफ है। इस अध्ययन के तहत इस साल जून 2017 से फरवरी 2019 के बीच अस्पताल में भर्ती 19,120 बच्चों के डाटा का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि अधिक और मध्यम प्रदूषण स्तर वाले दिनों में सांस की तकलीफ के साथ अस्पताल पहुंचने वाले बच्चों की संख्या कम प्रदूषण वाले दिनों के मुकाबले 21%-28% अधिक थी। बड़े प्रदूषकों के रूप में सल्फर डाइ ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड की पहचान की गई है। हालांकि अस्पताल में इन भर्तियों का पीएम 2.5 और पीएम 10 में बढ़ोतरी के साथ कोई बड़ा संबंध नहीं दिखा। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्वास्थ्य पर पार्टिकुलेट मैटर का हानिकारक प्रभाव तुरंत न दिखना इसकी वजह हो सकती है।

मद्रास हाइकोर्ट ने स्थाई रूप से बन्द किया वेदांता का प्लांट

मद्रास हाइकोर्ट ने वेदांता की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कंपनी ने अपने कॉपर स्मेल्टर  को फिर से चलाने की अनुमति मांगी थी।  यह प्लांट दो साल पहले 13 प्रदर्शनकारियों की पुलिस फायरिंग में मौत के बाद बन्द किया गया था। वेदांता का कहना है कि उस पर पर्यावरण को क्षति पहुंचाने आरोप गलत हैं और पुलिस फायरिंग के बाद प्लांट को बतौर “राजनीतिक कार्रवाई” बन्द किया गया है। हालांकि अदालत ने अपना आदेश प्रदूषण पर आधारित रखा और कहा है “प्रदूषण करने वाले भुगते” सिद्धांत लागू होना चाहिये। साल 2018 में हज़ारों लोग दक्षिण भारत के टूथकुंडी में वेदांता के खिलाफ सड़कों पर उतरे। वेदांता ने अपनी याचिका में कहा कि प्लांट का बन्द होना “अर्थव्यवस्था पर चोट” है लेकिन कोर्ट ने 815 पन्नों के फैसले में कहा, “अदालतों का हमेशा मानना रहा है कि जब भी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण में से किसी एक को चुनना हो तो पर्यावरण सर्वोपरि है।”

वायु प्रदूषण से घटती है ज़िंदगी 5 साल: रिपोर्ट

देश में वायु प्रदूषण के कारण औसत उम्र में 5 साल से अधिक कटौती हो रही है। देश की एक चौथाई आबादी अभी इतना प्रदूषण झेल रही है जितना किसी और देश में नहीं है। यह तथ्य शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी संस्थान (EPIC) द्वारा बनाये गये एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) रिपोर्ट में सामने आये हैं।  AQLI एक वायु प्रदूषण इंडेक्स है जो मानव जीवन पर प्रदूषण के प्रभाव को बताता है।  रिपोर्ट कहती है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के उलट अभी हवा की जो क्वॉलिटी है वह उम्र को 5 साल से अधिक कम करने वाली है। देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले एक इंसान की औसत उम्र 9.4 साल और सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य यूपी में 10.3 साल घट रही है।  रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण  कोरोना महामारी से अधिक घातक है और बना रहेगा। पिछले 2 दशकों में देश में पार्टिकुलेट मैटर 42% बढ़े हैं और भारत की 84% आबादी देश के तय मानकों से खराब हवा में सांस ले रही है।

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