वजूद की जंग

PHOTO – वजूद की जंग: आदिवासियों के सतत संघर्ष ने आखिरकार सरकार को भारतीय वन कानून - 1927 में प्रस्तावित बदलाव वापस लेने पर मजबूर किया है। Photo: theWire.in

अमेज़न: वनों का कटान एक दशक में सबसे अधिक

ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारो जो कहते हैं वह करके दिखाते हैं। उन्होंने ‘विकास’ का वादा किया और अब आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि पिछले एक दशक से अधिक समय में अमेज़न के जंगलों का सर्वाधिक विनाश हुआ है। उपग्रह से मिली तस्वीरों से पता चलता है कि अगस्त 2018 से जुलाई 2019 के बीच करीब 10,000 वर्ग किलोमीटर जंगल उड़ा दिये गये हैं।

इस बीच ब्राज़ील के पर्यावरण मंत्री रिकार्डो सैलेस ने कहा है कि उनका देश पर्यावरण विनाश से लड़ने के लिये और अधिक धन चाहता है। ब्राजील के मुताबिक जंगलों को बचाने के लिये सरकार प्रतिबद्ध है।

आदिवासियों की जीत: सरकार ने वन अधिकार कानून में संशोधन वापस लिया

भारत में भी वन क्षेत्र पर सरकार का हमला जारी है लेकिन आदिवासियों के निरंतर संघर्ष और विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने 1927 में बनाये गये भारतीय वन अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन वापस ले लिये हैं। प्रस्तावित संशोधनों में आदिवासियों के अधिकारों में कटौती और वन अधिकारियों और प्रशासन को जो अधिकार देनी की बात थी उन्हें लेकर काफी विवाद हुआ था और सरकार को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था। अब केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक सरकार आदिवासियों और जंगल में रह रहे नागरिकों के अधिकार के लिये प्रतिबद्ध है। माना जा रहा है कि झारखंड में चुनावों को देखते हुये सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती पर इन प्रस्तावित संशोधनों को वापस लिया है।    

जर्मनी: जलवायु परिवर्तन संरक्षण कानून को हरी झंडी

जर्मनी ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने की दिशा में एक क्लाइमेट प्रोटेक्शन पैकेज को मंज़ूरी तो दे दी लेकिन इसकी उपयोगिता को लेकर कई सवाल बने हुये हैं। जर्मन चासंलर एंजिला मार्कल की पार्टी और उनके सोशल डेमोक्रेट सहयोगियों के बीच महीनों तक चली खींचतान के बाद इस पर सहमति बनी है। इस पैकेज का उद्देश्य 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये देश की तय लक्ष्य हासिल करना है लेकिन जानकारों का कहना  है कि इस कानून के प्रावधान जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई आपात स्थिति और उसके कुप्रभाव रोकने के लिये काफी नहीं होंगे।

इस बीच जर्मनी के कैबिनेट मंत्रियों ने यूरोपियन यूनियन के तमाम देशों से अपील की है कि वह दिसंबर में मेड्रिड में हो रहे जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन में अग्रणी भूमिका निभायें।

मलेशिया का वादा, 2021 तक पाम ऑयल यूरोपीय मानकों जैसा होगा

दुनिया में इंडोनेशिया के बाद पाम ऑयल (ताड़ का तेल) के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक मलेशिया ने कहा है कि वह इस तेल के उत्पादन में सभी खाद्य सुरक्षा नियमों को लागू करेगा और 2021 तक देश का पाम आयल, यूरोपीय खाद्य सुरक्षा मानकों के बराबर होगा।

हालांकि मलेशिया अब तक यूरोपीय यूनियन के खाद्य मानकों के लिये अनमना रहा है। पिछले महीने उसने कहा था कि यूरोपीय यूनियन के नियम भोजन के लिये ताड़ के तेल की मांग को प्रभावित कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल डबलरोटी बनाने और चॉकलेट स्प्रेड के रूप में होता है। सरकार को लगता है कि यूरोपीय स्तर का तेल बनाना मलेशिया के पाम ऑयल उत्पादकों को आर्थिक रूप से भारी पड़ेगा क्योंकि  तेल इंडस्ट्री अभी देश में तय किये गये मानकों पर ही खरी नहीं उतर रही है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.