फोटो : Bizvibe.com

क्या कुसुम योजना की मदद से अन्नदाता से ऊर्जा-दाता बन पाए उत्तर प्रदेश के किसान?

  • कुसुम योजना को शुरू हुए करीब दो साल बीतने को हैं पर उत्तर प्रदेश में इसके दो बड़े हिस्से का काम अभी शुरू ही नहीं हो पाया है।
  • फीडर में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल और किसानों की जमीन पर सोलर प्लांट लगने के सिवा, इस योजना में किसानों को सब्‍स‍िडी पर सोलर पंप भी दिया जाना है। बाकी के दोनों काम की शुरुआत नहीं हुई और सोलर पंप के लाभार्थी किसानों की संख्या भी बहुत कम है।
  • इस योजना के तहत अब तक केवल 3,000 किसानों को ही सोलर पंप मिला है जबकि 8,000 का लक्ष्‍य तय था।

उत्तर प्रदेश में आयोजित किसानों की एक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में घोषणा की थी कि 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी। उसके बाद तो यह सिलसिला चल निकला और सरकार ने कई मौकों पर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। इस लक्ष्य को हासिल करने के तमाम घोषणाएं हुईं। इनमें किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (कुसुम) योजना भी शामिल है जिसकी घोषणा 2019 में की गयी। इसके तहत किसानों को सौर ऊर्जा से कमाई होने की बात कही गयी और इन्हें अन्नदाता के साथ-साथ ऊर्जा-दाता बनाने की बात की गयी। कुसुम योजना को आए भी दो साल गुजर गए। पर उत्तर प्रदेश में इस योजना के दो मुख्य घटक अभी तक कागजों में ही सिमटें हैं। किसानों को सोलर पम्प देने का लक्ष्य भी आधा-अधूरा ही हासिल हो पाया है।

जिन किसानों को यह सोलर पम्प मिल पाया है उन्हें कोई कमाई तो नहीं हो पाई है पर सिंचाई के पैसे जरूर बचे हैं। इसलिए ये किसान खुश हैं।

“सोलर पंप से मुझे बहुत फायदा है। गर्मी में हफ्ते में दो बार पानी लगता है। एक एकड़ में कम से कम एक हजार रुपए का खर्च आता है, ऐसे में हफ्ते में सिंचाई के ल‍िए 2 हजार रुपए खर्च हो जाते थे। सोलर पंप लगने से स‍िंचाई का पैसा बच रहा है, यही मेरा फायदा है,” अपने सोलर पंप को दिखाते हुए 43-वर्षीय  नरपती सुमन कहते हैं।

लखनऊ के बांदेखेड़ा गांव के रहने वाले नरपती सुमन सब्‍जी और फल की खेती करते हैं। नरपती उत्तर प्रदेश के उन चुनिंदा किसानों में से हैं ज‍िन्‍हें पीएम कुसुम योजना के तहत सोलर पंप मिला है। उन्‍हें प‍िछले साल (2020) नवंबर में सोलर पंप मिला था।

हालांकि ऐसे किसानों की संख्या काफी कम है। दूसरी तरफ इस योजना को ऐसे प्रचारित किया जाता रहा है कि इससे “अब देश का अन्‍नदाता, ऊर्जादाता भी बनेगा।” बजट 2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी यह कहा था। ऐसा ही दावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अलग-अलग रैलियों में करते आए हैं।

लेकिन जनसंख्‍या के आधार पर भारत के सबसे बड़े राज्‍य उत्‍तर प्रदेश में किसानों के ऊर्जा दाता बनने की बात दूर की कौड़ी लगती है।

क्‍या है कुसुम योजना?

केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी की जाए। इसी के मद्देनजर सरकार ने कई योजनाएं शुरू की और इन्हीं में से एक ‘पीएम कुसुम योजना’ भी है।

कुसुम योजना के अंतर्गत तीन योजनाएं हैं। इसमें किसानों की जमीन पर सोलर प्‍लांट लगाने की योजना है। इसके अंतर्गत  0.5 मेगावाट से 2 मेगावाट के प्‍लांट लगाए जाने हैं। इसमें किसान अपनी जमीन कंपनियों को लीज पर देंगे और जमीन के किराए के रूप में उनकी कमाई हो पाएगी।

इसी तरह इस योजना के दूसरे हिस्से में किसानों को स‍िंचाई के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप दिए जाने का प्रावधान है। इसमें केंद्र और राज्‍य सरकार की तरफ से क्रमश: 30-30 प्रतिशत की सब्‍सिडी दी जाती है। यानी कुल 60 प्रतिशत की सब्‍सिडी मिलती है। हालांकि, इस योजना में सिर्फ पंप दिया जाना है जिससे किसान सिंचाई का काम कर सकते हैं। इसमें बिजली पैदा करके बेचने की बात लागू नहीं होती। 2020 के बजट में वित्त मंत्री ने कहा कि 20 लाख ऐसे सौर पंप की स्‍थापना की जाएगी। कुसुम योजना के इसी हिस्से के तहत नरपती सुमन को सोलर पंप मिला है।  

कुसुम योजना के तीसरे भाग के तहत बिजली से चलने वाले सरकारी ट्यूबवेल को सौर ऊर्जा से चलाने की बात कही गई है। किसानों के ट्यूबवेल के ल‍िए अलग से फीडर होते हैं। योजना है कि इन फीडर पर ही सोलर प्‍लांट लगा द‍िए जाएंगे, जिससे इनसे चलने वाले सभी ट्यूबवेल सौर ऊर्जा से चल सकेंगे। अध‍िकारियों का कहना है कि इससे किसानों को बिजली मुफ़्त मे मिलेगी और उनके पैसे बचेंगे। 

क्या है उत्तर प्रदेश में कुसुम योजना का हाल?

लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में कुसुम योजना के दूसरे हिस्से के तहत जिसमें सिर्फ सोलर पम्प लगाया जाना है, करीब 2197 स्‍टैंडअलोन पंप स्‍थाप‍ित किए गए। 28 फरवरी 2021 तक। वहीं अभी तक एक भी बिजली से चलने वाले ट्यूबवेल का सौरीकरण नहीं हुआ है। पूरे देश में केवल राजस्‍थान के 64 ट्यूबवेल का सौरीकरण हो पाया है।

उत्तर प्रदेश में कुसुम योजना के अलग-अलग घटक की जिम्‍मेदारी अलग-अलग अध‍िकारियों को दी गई है। इस योजना के पहले और तीसरे घटक की जिम्मेदारी ‘उत्‍तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभ‍िकरण’ (यूपी नेडा) के अध‍िकारी को दी गयी हैं। वहीं,  दूसरे हिस्से की जिम्मेदारी, जिसमें किसानों को सिर्फ सोलर पम्प दिया जाना है, कृष‍ि विभाग के पास है।

मोंगाबे-हिन्दी ने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों से बात कर यह जानने की कोशिश की कि अब तक कितने किसानों ने सोलर प्लांट लगाने के लिए अपनी जमीन दी हैं जो कि इस योजना के पहले हिस्से में आता है। उत्तर प्रदेश नेडा की सीनियर प्रोजेक्‍ट ऑफिसर नम्रता कालरा ने मोंगाबे-हिन्‍दी को बताया, “अभी टेंडर की प्रक्रिया होनी है। हमने फाइल तैयार कर ‘उत्‍तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग’ को भेज दी है। वहां से मंजूरी मिलने के बाद यूपी नेडा की वेबसाइट पर टेंडर निकाला जाएगा।”

नम्रता कालरा ने बताया कि “इसके तहत 0.5 से 2 मेगावाट के प्‍लांट लगने हैं। एक मेगावाट का प्‍लांट लगाने में करीब तीन करोड़ के आस पास खर्च आता है। प्‍लांट लगाने के ल‍िए कोई सब्‍सिडी नहीं दी जा रही है। इस योजना में किसान अपनी जमीन लीज पर देगा और सौर ऊर्जा की कंपनियां प्‍लांट लगाएंगी।”

इससे साफ है कि राज्य में योजना के इस घटक का काम अभी फाइलों तक सिमटा है। वहीं, इससे किसान को सीधे तौर पर फायदा होते नजर नहीं आता। साथ ही ऊर्जादाता बनने जैसी बात भी इसमें लागू नहीं होती।

बिजली से चलने वाले पंप का सौरीकरण भी नहीं हुआ

कुसुम योजना के तीसरे घटक का काम भी ‘यूपी नेडा’ द्वारा देखा जाता है। इसके तहत बिजली से चलने वाले पंप को सौर ऊर्जा से चलाया जाना है। यूपी नेडा के प्रोजेक्‍ट ऑफिसर राम कुमार को इसकी जिम्‍मेदारी मिली है। मोंगाबे-हिन्‍दी से राम कुमार बताते हैं, “किसानों के ट्यूबवेल के लिए बिजली विभाग के अलग से फीडर होते हैं। हमारा प्‍लान हैं कि इन फीडर पर सोलर प्‍लांट लगा दिए जाएं, जिससे फीडर से चलने वाले ट्यूबवेल को सौर ऊर्जा से चलाया जा सके।”

राज्य में करीब 4,400 फीडर हैं जिससे किसानों के ट्यूबवेल को बिजली दी जाती है। इसमें से करीब 2,200 फीडर ऐसे हैं जो पूरी तरह से अलग हैं, यानी इनसे गांव में ब‍िजली नहीं जाती सिर्फ सिंचाई के लिए बिजली दी जाती है। राम कुमार बताते हैं, “अभी हम सर्वे करा रहे हैं कि पहले चरण में कितने फीडर पर प्‍लांट लगाए जाएं। एक फीडर पर करीब 100 के आस पास ट्यूबवेल हैं। ऐसे में सबका लोड जोड़कर एक जगह प्‍लांट लगाया जाएगा। यह प्‍लांट एक से दो मेगावाट के होंगे।”

अगर फीडर पर डेढ़ मेगावाट के प्‍लांट लगाए जाते हैं तो इनकी लागत करीब 5 करोड़ के आस पास आएगी। प्‍लांट के लिए केंद्र सरकार की ओर से 30% और राज्‍य सरकार की ओर से 30% सब्‍सिडी दी जाएगी, यानी कुल 60% सब्‍सिडी दी जाएगी। इसके अलावा 40% का खर्च प्‍लांट लगाने वाली कंपनी को करना होगा। 

राम कुमार बताते हैं, “यह प्‍लांट रिन्यूएबल एनर्जी सर्विस कंपनी लगाएंगी। इस प्‍लांट से किसानों के ट्यूबवेल को बिजली मिलेगी जिससे वो सिंचाई कर पाएंगे। वहीं, सिंचाई के बाद जो बिजली बचेगी उसे सरकार खरीद लेगी और बिजली को ग्र‍िड में भेज दिया जाएगा।”

उत्तर प्रदेश नेडा के अध‍िकारियों के बयान से साफ है कि कुसुम योजना के पहले और तीसरे घटक का काम अभी शुरू नहीं हुआ। वहीं, इन दोनों ही घटक में यह बात लागू नहीं होती कि किसान बिजली बेच पाएंगे। सोलर प्‍लांट की लागत इनती ज्‍यादा है कि लघु और सीमांत किसान प्‍लांट लगाने के बारे में सोच भी सकते।

सोलर पंप मिलने से किसान खुश लेकिन बहुत कम लाभार्थी

वहीं, बात करें कुसुम योजना के दूसरे हिस्से की जिसके तहत किसानों को लाभ मिल रहा है। इसमें किसानों को सिंचाई के लिए सोलर पंप द‍िए जाते हैं। यूपी में कुसुम योजना के तहत करीब 3 हजार किसानों को सोलर पंप दिए गए हैं। किसानों का कहना है कि सोलर पंप से उन्हें फायदा हो रहा है। हालांकि ऐसे लाभार्थ‍ियों की संख्‍या काफी कम है।

इसके बारे में उप न‍िदेशक कृष‍ि पीयूष कुमार शर्मा मोंगाबे-हिन्‍दी से बताते हैं, “इस साल योजना का समय 31 मार्च से बढ़ाकर 31 मई कर दिया गया है। हमें 2019-20 में 8 हजार सोलर पंप देने का लक्ष्‍य मिला था, लेकिन कोरोना की वजह से तमाम द‍िक्‍कतें रहीं, ऐसे में इस लक्ष्‍य को 2020-21 का कर दिया गया। इन 8 हजार पंप में से अप्रैल 2021 तक करीब 3 हजार पंप किसानों को दिए जा चुके हैं।”  

किसानों को सोलर पंप के लिए सब्‍सिडी दी जाती है। केंद्र सरकार 30% और राज्‍य सरकार 30% सब्‍स‍िडी देती है, यानी कुल 60% सब्‍सिडी दी जाती है। बाकी का 40% किसान को देना होता है, जो करीब 1 लाख के आस-पास होता है।

हालांकि सोलर पंप की वजह से भूजल का दोहन भी बढ़ा है। खुद नरपती सुमन यह बात मानते हैं। वो बताते हैं कि “पहले किसी प्रकार फसल को जीवित रखने की चिंता रहती थी। जबसे सोलर पंप लगा है तो पानी का लेवल ऐसा रखते हैं कि देर तक नमी बनी रहे। इसमें थोड़ा ज्‍यादा पानी लगता है।”

ऐसा नहीं कि किसानों को सोलर पंप कुसुम योजना के तहत ही मिलना शुरू हुए हैं। बहुत से ऐसे किसान हैं ज‍िन्‍हें इस योजना के शुरू होने से पहले भी सब्‍सिडी पर सोलर पंप मिले हैं। पीलीभीत ज‍िले के पंचखेड़ा गांव के रहने वाले मनजीत सिंह बताते हैं, “साल 2017 में मुझे सोलर पंप मिला था। यह पंप किसानों के ल‍िए वरदान हैं। इससे सिंचाई का खर्च बचता है।”

देश में कुसुम योजना की प्रगति कैसी?

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय 8 मार्च 2019 से कुसुम योजना का काम कर रहा है। इस योजना के तहत अब तक कितना काम हुआ है, इससे जुड़ा एक सवाल लोकसभा में 18 मार्च 2021 को पूछा गया। इसके जवाब में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युत राज्‍य मंत्री आर के सिंह ने कहा, 28 फरवरी 2021 तक योजना के तहत कुल 24,688 स्‍टैंडअलोन सौर पंप लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त 64 ग्र‍िड संबद्ध कृष‍ि पंपों का सौरीकरण किया गया है। इस योजना के पहले घटक में 4,859 मेगावाट क्षमता के सौर विद्युत संयंत्रों की स्‍थापना की प्रगति व‍िभ‍िन्‍न चरणों में है।

लोकसभा में एक सवाल यह भी किया गया कि कुसुम योजना के तहत सौर ऊर्जा की बिक्री से कितना राजस्‍व प्राप्‍त हुआ है। इसके जवाब में आर के सिंह ने कहा, सौर व‍िद्युत की बिक्री से राजस्‍व की प्राप्‍त‍ि पहले और तीसरे घटक के तहत ही होनी है। इन घटकों के तहत परियोजनाएं या तो स्‍थापि‍त की जा रही हैं या हाल ही में स्‍थाप‍ित की गई हैं। ऐसे में राजस्‍व का आंकलन एक साल पूरे होने पर किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.