उत्तरी भारत में पिछले कुछ दिनों से बहुत तेज़ बारिश हो रही है। ईटी ने मौसम विभाग के आंकड़ों के आधार पर बताया कि पंजाब में एक ही दिन में लगभग 1,300% ज्यादा बारिश दर्ज की गई। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू की नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।
आईएमडी के अनुसार, पिछले सोमवार सुबह 8:30 बजे तक 24 घंटे में पंजाब में 48 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य बारिश 3.5 मिमी होती है। यह 1,272 प्रतिशत अधिक है। हरियाणा में 28.1 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य 3.5 मिमी से 702 प्रतिशत अधिक है। हिमाचल प्रदेश में 42.5 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य 6.5 मिमी होती है। यह 554 प्रतिशत अधिक है।
आईएमडी ने कहा कि इस महीने बेहद भारी बारिश ज्यादातर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में हुई है। इसका कारण पूर्वी पाकिस्तान में बने एक ट्रफ को बताया गया है।
जम्मू-कश्मीर में मंगलवार को रिकॉर्डतोड़ मूसलाधार बारिश हुई। आईएमडी के अनुसार, उधमपुर में 24 घंटे के भीतर 629.4 मिमी और जम्मू में 296 मिमी बारिश दर्ज की गई। माता वैष्णो देवी मंदिर मार्ग पर भी भूस्खलन हुआ जिसमें 34 श्रद्धालुओं की मौत हो गई।
दिल्ली में बारिश ने 15 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा
शुक्रवार को हुई भारी बारिश से दिल्ली में हालात बिगड़ गए। कई जगहों पर ट्रैफिक जाम लग गया। एक दीवार गिरने से तीन बच्चे घायल हो गए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस अगस्त में अब तक 399.8 मिमी बारिश हुई है। यह पिछले 15 सालों में सबसे ज़्यादा है। 2010 में अगस्त महीने में 455.8 मिमी बारिश हुई थी। मौसम विभाग के अनुसार, इस साल का अगस्त 2010 के बाद सबसे बरसाती महीना बन गया है।
मुंबई में बाढ़ जैसी स्थिति
महाराष्ट्र में भारी बारिश से आठ लोगों की मौत हो गई और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। मुंबई में लगातार बारिश हो रही है और 1 सितंबर तक मौसम ऐसा ही रहने का अनुमान है। जुलाई में सूखा जैसे हालात थे, लेकिन 16 अगस्त से शहर में बहुत तेज़ बारिश शुरू हो गई। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बारिश “क्लाइमेट चेंज ऑन स्टेरॉयड्स” का असर है।
पश्चिम एशिया में बढ़े तापमान से उत्तर भारत में भारी बारिश: शोध
पश्चिम एशिया में तापमान वैश्विक औसत से तेज़ी से बढ़ रहा है। इसके कारण ज़मीन और अरब सागर के बीच दबाव का अंतर बन रहा है। इस वजह से नमी से भरी दक्षिण-पश्चिमी हवाएं हिमालय की तराई, पश्चिमी भारत और पाकिस्तान की ओर आ रही हैं। नतीजतन, वहां तेज़ बारिश और बाढ़ जैसी घटनाएं हो रही हैं। यह जानकारी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने दी है।
महाराष्ट्र, खासकर मुंबई में होने वाली अत्यधिक बारिश का कारण भी अरब सागर का तेज़ गर्म होना बताया गया है। अरब सागर का तापमान औसत से तेज़ बढ़ रहा है, जिससे नमी भरी हवाएं ज़मीन की ओर आ रही हैं। इसके चलते महाराष्ट्र में भारी बारिश की घटनाएं तीन गुना बढ़ गई हैं।
अखबार ने अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि मानसून का रुख धीरे-धीरे उत्तर-पूर्व भारत से पश्चिम की ओर खिसक रहा है। उत्तर-पूर्व भारत में औसत बारिश 10% कम हुई है, जबकि पश्चिम और उत्तर-पश्चिम भारत में औसत बारिश 25% बढ़ गई है।
यूरोपीय संघ में जंगल की आग का नया रिकॉर्ड, स्पेन में 4 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र जला
पॉलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ अब तक की सबसे भीषण जंगल की आग के दौर से गुजर रहा है। जनवरी से अब तक 10,16,000 हेक्टेयर भूमि जल चुकी है, जो साइप्रस से बड़ा और बेल्जियम के एक-तिहाई के बराबर क्षेत्र है, यह जानकारी यूरोपीय संघ की यूरोपियन फॉरेस्ट फायर इन्फॉर्मेशन सिस्टम के आंकड़ों से मिली है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल स्पेन में ही चार लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र जल चुका है, जबकि छोटे से पुर्तगाल में आग ने 2,70,000 हेक्टेयर क्षेत्र यानी देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 3 प्रतिशत जला डाला। स्पेन में, जहाँ रिकॉर्ड 1960 के दशक से उपलब्ध हैं, यह वर्ष 1994 के बाद का सबसे भीषण आग का मौसम है।
रिपोर्ट के अनुसार, हाल के सप्ताहों में दोनों देशों में तेज़ गर्मी और सूखे ने जंगलों को सुखा दिया, जिससे पूरा प्रायद्वीप आग के लिए बारूद का ढेर बन गया। जलवायु परिवर्तन ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है, जिससे अधिक बार और अधिक तीव्र हीटवेव तथा सूखे की स्थिति बन रही है।
निजी जंगल अधिक संवेदनशील, अध्ययन का खुलासा
वाइली ऑनलाइन लाइब्रेरी की रिपोर्ट के अनुसार, एक नए अध्ययन में पाया गया है कि निजी औद्योगिक जंगल प्राकृतिक जंगलों की तुलना में जंगल की आग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि वे चरम मौसम की स्थिति और जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित होते हैं और उनका प्रबंधन भी अलग ढंग से किया जाता है।
अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया स्थित नॉर्दर्न सिएरा नेवाडा क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (LiDAR) तकनीक का उपयोग करके आग लगने से पहले के जंगलों की संरचना का अध्ययन किया। यहाँ पाँच बड़ी जंगल की आग ने 4,60,000 हेक्टेयर क्षेत्र को प्रभावित किया था।
अध्ययन में पाया गया कि निजी औद्योगिक भूमि पर भीषण आग लगने की संभावना सार्वजनिक भूमि की तुलना में 1.45 गुना अधिक थी। यह प्रभाव ईंधन में नमी की तीन मानक विचलन की कमी के बराबर था।
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि घने, समान रूप से फैले जंगल, जिनमें “लैडर फ्यूल्स” (नीचे से ऊपर तक फैलने वाले सूखे पौधे और पेड़) अधिक होते हैं, उनमें भीषण आग की संभावना सबसे अधिक होती है। चरम मौसम ने इस प्रभाव को और बढ़ा दिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि ऊपर के पेड़ों को हटाने वाली प्रबंधन तकनीकें विशेषकर ऐसे हालात में ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
निजी उद्योगों द्वारा प्रबंधित जंगल अधिक घने, एकरूप और अधिक लैडर फ्यूल वाले पाए गए, जबकि सार्वजनिक जंगलों में ऐसा कम देखा गया। यही कारण निजी जंगलों में भीषण आग लगने की अधिक संभावना को समझाने में मदद करता है।
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