ग्लोबल हीटिंग और मानव जनित जलवायु परिवर्तन इंसानी सेहत के लिए एक बड़ा खतरा बन रहा है। वृद्ध लोगों और सहरुग्णता वालों को सबसे अधिक खतरा होता है।
तापमान में 49 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि और लंबे समय तक गर्मी की प्रचंड लहर देखने के बाद, पिछले कुछ दिनों में आखिरकार दिल्ली-एनसीआर के लोगों को लू से कुछ राहत मिली। लेकिन यह राहत एक छलावा ही है क्योंकि वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह की शुरुआती गर्मी की घटनाएं 30 गुना अधिक होने की संभावना है।
पिछले कुछ हफ्तों में, भारत में लू वक्त से पहले चलने लगी जो अप्रत्याशित बात थी। इस लगातार चली हीटवेव से पानी की कमी, फसल बर्बाद होना और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा हुआ।
शारीरिक स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव
अकेले महाराष्ट्र में, हीटस्ट्रोक के कारण 25 से अधिक लोगों की मौत हो गई है, स्वास्थ्य विभाग ने दिखाया कि राज्य में हीट स्ट्रोक के 374 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
दिल्ली में, सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने चक्कर आना, थकान, निर्जलीकरण और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव सहित गर्मी के संपर्क से जुड़े लक्षणों वाले रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी।
लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक है, जिनकी कमजोर आबादी में 2017- 2021 के बीच अत्यधिक गर्मी का सबसे अधिक जोखिम था। 2019 में, भारत में गर्मी ने 46,562 लोगों की जान ली, दूसरे नंबर पर चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या (72,019)।
गर्मी से संबंधित घटनाओं के बढ़ने की भविष्यवाणी के साथ, मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ रहा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक डॉ दिलीप मावलंकर कहते हैं, “भूगोल के आधार पर, लोगों में गर्मी सहनशीलता के विभिन्न स्तर होते हैं। यहां तक कि एक ही क्षेत्र में, गर्मी अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरीकों से, अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती है।”
युवा लोगों में अत्यधिक गर्मी का प्रभाव अधिक आम है, जो लंबे समय तक कड़ी शारीरिक गतिविधि में लगे रहने के दौरान लगातार अधिक तापमान और गर्मी झेलते हैं। उदाहरण के लिए, भट्टियों में काम करने वाले मज़दूर। वृद्ध लोगों में तो शारीरिक श्रम न होने पर भी हीट स्ट्रोक हो सकता है जिसका असर पता लगाना कई बार मुश्किल होता है।
गायब होती रातों की नींद
डॉ मावलंकर के मुताबिक, “ केवल अधिकतम तापमान पर ही अपना ध्यान केंद्रित करके हम असली समस्या को नहीं देख पाते। दिन के न्यूनतम तापमान को नोट करना महत्वपूर्ण है। यह रात का तापमान है जो तय करता है कि हमारे शरीर को कोई राहत मिलती है या नहीं।
दुनिया के कुछ हिस्सों में, रातें दिनों की तुलना में तेज़ गर्म हो रही हैं। हाल के एक अध्ययन में यह भी पाया गया कि बढ़ती गर्मी के कारण औसत वैश्विक नागरिक पहले से ही साल में 44 घंटे की नींद खो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति डिग्री गर्मी में नींद की कमी महिलाओं के लिए पुरुषों की तुलना में लगभग एक चौथाई अधिक है। पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए दोगुनी और कम संपन्न देशों में तीन गुना अधिक है।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के वर्किंग ग्रुप II की रिपोर्ट “जलवायु परिवर्तन 2022: प्रभाव, अनुकूलन और भेद्यता” शीर्षक से मार्च में जारी की गई थी, जिसमें कहा गया था कि एशिया अत्यधिक गर्मी के कारण उच्च मानव मृत्यु दर का सामना कर रहा है। उच्च तापमान के साथ संचार, श्वसन, मधुमेह और संक्रामक रोगों के साथ-साथ शिशु मृत्यु दर से संबंधित मौतों में वृद्धि हुई है। अधिक लगातार गर्म दिन और तीव्र गर्मी की लहरें एशिया में गर्मी से संबंधित मौतों को बढ़ा देंगी।
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ और वैश्विक स्वास्थ्य सलाहकार डॉ राकेश पाराशर की चेतावनी को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। उनके मुताबिक, “जैसे ही गर्मी बढ़ती है, मानव शरीर पसीने से खुद को ठंडा करने की कोशिश करता है। इससे हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। निर्जलीकरण के साथ अधिक पसीना आने से भी किडनी खराब हो सकती है, ”।
इसी रिपोर्ट में, आईपीसीसी ने भविष्यवाणी की है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, हिमालयी क्षेत्र में संभावित प्रकोप के साथ, दक्षिणी और पूर्वी राज्यों के अलावा देश के कई हिस्सों में मलेरिया के लिये अनुकूल हालात पैदा होंगे और साल के अधिक महीनों में मच्छर पनपेंगे। डेंगू का जोखिम, विशेष रूप से, लंबे मौसम और एशिया, यूरोप, मध्य और दक्षिण अमेरिका और उप-सहारा अफ्रीका में व्यापक भौगोलिक वितरण के साथ बढ़ेगा, संभावित रूप से सदी के अंत तक अतिरिक्त अरबों लोगों को संकट में डाल देगा।
जलवायु परिवर्तन से वर्षा का पैटर्न प्रभावित हो रहा है, यह मलेरिया, डेंगू आदि जैसे वेक्टर जनित रोगों की सीमा और वितरण को बदल रहा है। बढ़ते तापमान और बढ़ी हुई वर्षा वेक्टर की लंबे समय तक प्रजनन करने की क्षमता को सक्षम कर सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव
गर्मी का असर शारीरिक तनाव पर ही नहीं रुकता, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। पहले से मौजूद मानसिक बीमारी होने से गर्मी की लहर के दौरान मौत का खतरा तीन गुना हो सकता है। बच्चों और बुजुर्गों को निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन का खतरा होता है जो व्यवहार संबंधी लक्षण पैदा कर सकता है।
उच्च गर्मी के दौरान काम करने में असमर्थता कई लोगों के लिए गंभीर वित्तीय प्रभाव डाल सकती है, जिससे मानसिक तनाव हो सकता है। लू और बढ़ते कर्ज की वजह से गिरे गेहूं के उत्पादन के कारण पंजाब में 14 किसानों की आत्महत्या से मौत हो गई।
अप्रत्यक्ष प्रभाव
फसल का खराब होना या गर्मी के कारण सिकुड़ना कुपोषण को बढ़ा सकता है जो भारत में पहले से ही एक बड़ी समस्या है।
जैसे-जैसे हमारी धरती गर्म होती जा रही है, वैसे-वैसे पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के मामले बढ़ गए हैं। अनुसंधान में पाया गया है कि कि डीडीटी और रोगाणु – जिनमें से कुछ हजारों वर्षों से जमे हुए हैं – पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वातावरण में आ सकते हैं।
एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि गरमी बढ़ने से जैसे जैसे लोग ठंडे इलाकों में बसेंगे तो उनका जंगली पशुओं और दूसरे जन्तुओं के साथ संपर्क होगा। इससे अलग-अलग प्रकार के वायरल के प्रकोप को बढ़ावा मिल सकता है। अधिक ऊंचाई पर प्रजाति-समृद्ध पारिस्थितिक तंत्र में ऐसा होने की सबसे अधिक संभावना है, विशेष रूप से अफ्रीका और एशिया के क्षेत्रों में, और उन क्षेत्रों में जो अफ्रीका के साहेल क्षेत्र, भारत और इंडोनेशिया सहित मनुष्यों द्वारा घनी आबादी वाले हैं।
दुनिया भर के कई देश अब गर्मी के निपटने के लिये राहत अधिकारियों की नियुक्ति कर रहे हैं ताकि गर्मी से पैदा हालात के लिये रणनीति बनायी जा सके।
एक गर्म ग्रह में हमारे स्वास्थ्य के लिए असंख्य खतरे ही नहीं होंगे बल्कि यह अर्थव्यवस्था से लेकर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिये भी ख़तरा है। ऐसे में इसके हालात के मूल्यांकन और तुरन्त कदम उठाये जाने की ज़रूरत है।
यह रिपोर्ट क्लाइमेट इम्पैटस से साभार ली गयी है।
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