
भारत में जीबीएस संक्रमण से 6 की मौत, सौ से अधिक बीमार
देश में जीबीएस यानी गिलियन बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी के सौ से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, जबकि इससे महाराष्ट्र में तीन लोगों की मौत हो गई है। बंगाल में भी तीन संदिग्ध मौतें हुई हैं, हालांकि अभी सरकार द्वारा इनकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र के पुणे में सामने आए हैं, जहां अबतक इस बीमारी के 130 मरीज मिल चुके हैं। बंगाल में कोलकाता और हुगली जिलों से तीन संदिग्ध मौतें रिपोर्ट की गई हैं, जबकि कथित रूप से जीबीएस से पीड़ित तीन अन्य बच्चों का कोलकाता के बीसी रॉय अस्पताल में इलाज चल रहा है। तेलंगाना में भी बीमारी का एक मामला सामना आया है।
महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने बताया है कि पुणे में जीबीएस के 80 प्रतिशत ऐसे इलाकों से आए हैं जो एक बड़े कुएं के आसपास स्थित हैं। माना जा रहा है कि यह बीमारी कुएं के प्रदूषित जल से फैली है।
जीबीएस एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसमें व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) ही उसकी पेरिफिरल नर्व्स पर हमला करती है। इस बीमारी में झुनझुनी और मांसपेशियों में कमज़ोरी के लक्षण होते हैं जिससे पक्षाघात हो सकता है लेकिन यह बीमारी कोरोना की तरह संक्रामक नहीं है। जीबीएस का कोई ज्ञात इलाज नहीं है, लेकिन उपचार से जीबीएस के लक्षणों को सुधारने और इसकी अवधि को कम करने में मदद हो सकती है। वैज्ञानिकों ने जीबीएस को अनिवार्य रूप से एक मानव-निर्मित महामारी बताया है।
तमिलनाडु के तट पर हज़ारों ओलिव रिडली कछुए मरे पाये गये
भारत के पूर्वी तट पर तमिलनाडु राज्य में हज़ारों ओलिव रिडली कछुए मृत पाये गये हैं। ओलिव रिडली कछुए समुद्री इकोसिस्टम को महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और हर साल दिसंबर से मार्च के बीच अंडे देने के लिए तट पर आते हैं लेकिन इस बार इतनी बड़ी संख्या में कछुओं के मृत पाये जाने पर पर्यावरणविदों ने गहरी चिन्ता जताई है और राज्य सरकार से कदम उठाने की मांग की है।
ओलिव रिडले कछुओं की बड़ी संख्या में मृत्यु का मुख्य कारण अंडे देने के सीज़न में तट से प्रतिबंधित पांच समुद्री मील के भीतर मछुआरों द्वारा ट्रॉलरों का बड़े पैमाने पर उपयोग करना और जहाजों पर कछुआ फंसने से रोकने की टर्टल एक्सपल्शन डिवाइस (टीईडी) का न होना शामिल है। बिना डिवाइस के प्रयोग के ट्रॉल जालों में कछुए फंस जाते हैं। राज्य सरकार ने यहां एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि तट से पांच समुद्री मील के भीतर ट्रॉल जाल से मछली पकड़ने पर पहले से ही प्रतिबंध लगा दिया गया है और घोंसला बनाने के मौसम के दौरान टीईडी की स्थापना के बिना ट्रॉल जाल का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
वायुमंडलीय कार्बन का स्तर 1.5 डिग्री की सीमा से कहीं अधिक
यूनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीय मौसम और जलवायु एजेंसी मेट ऑफिस ने खुलासा किया है कि जिस दर से वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के स्तर में वृद्धि हो रही है, वह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से नीचे रखने के लिए आवश्यक स्तर से कहीं अधिक है। मेट ऑफिस ने हवाई स्थित मौना लोआ वेधशाला के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया है कि 2024 में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता रिकॉर्ड रूप से 3.58 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) बढ़ी। जबकि जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए यह वृद्धि 1.8 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए।
कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में इस ऐतिहासिक उछाल के पीछे रिकॉर्ड जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन, उष्णकटिबंधीय जंगलों जैसे प्राकृतिक कार्बन सिंक के कमजोर होने और अल नीनो तथा जलवायु परिवर्तन के कारण असाधारण जंगल की आग की घटनाओं की विशेष भूमिका है।
महासागरों के गर्म होने की दर चार गुना बढ़ी
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि महासागरों के गर्म होने की दर पिछले चार दशकों की तुलना में चार गुना तेज हो गई है।
एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि 2019-23 के दौरान समुद्र का तापमान प्रति दशक 0.27 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है, जबकि 1980 के दशक के अंत में यह हर दशक में 0.06 डिग्री सेल्सियस था।
ग्लोबल मीन सी लेवल टेम्परेचर (वैश्विक औसत समुद्री सतह तापमान) में परिवर्तन की अंतर्निहित दर पृथ्वी के ऊर्जा संचय के अनुपात में बढ़ती है और रिपोर्ट में यह लिखा गया है कि 1985-89 के दौरान 0.06 (सेल्सियस प्रति दशक) से बढ़कर 2019-23 में 0.27 (सेल्सियस प्रति दशक) हो गई है।
रिपोर्ट के लेखकों ने बताया कि महासागरों का तेजी से गर्म होना पृथ्वी की ऊर्जा में बढ़ते असंतुलन के कारण होता है – जिससे सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी द्वारा अवशोषित की जाती है, जो अंतरिक्ष में वापस जाने की तुलना में अधिक होती है।
उन्होंने कहा कि 2010 के बाद से ऊर्जा असंतुलन लगभग दोगुना हो गया है, और यह आंशिक रूप से ग्रीनहाउस गैस के बढ़ते स्तर के कारण है क्योंकि पृथ्वी अब पहले की तुलना में सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में कम लौटा रही है।
अपने विश्लेषण में, टीम ने पाया कि 2023 और 2024 की शुरुआत में अनुभव की गई रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी का लगभग आधा (44 प्रतिशत) तेज रफ्तार से गर्म हो रहे महासागरों के कारण हो सकता है।
ऐसा माना जाता है कि वैश्विक महासागर का तापमान 2023 और 2024 की शुरुआत में लगातार 450 दिनों के लिए रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है।
पर्याप्त फाइनेंस के अभाव में प्रभावित होगा क्लाइमेट एक्शन: आर्थिक सर्वे
संसद में पेश किए गए 2024-25 के आर्थिक सर्वे में भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार, वी अनंत नजवरन ने चेतावनी दी है कि विकसित राष्ट्रों से वित्तीय सहायता की कमी के कारण विकासशील देश अपने जलवायु लक्ष्यों को संशोधित करने के लिए बाध्य हो सकते हैं। उन्होंने कॉप29 से मिले क्लाइमेट फाइनेंस पैकेज को नाकाफी बताते हुए, विकसित देशों की आलोचना की।
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि विकसित देशों से समर्थन की कमी के बीच, विकाशसील देशों को क्लाइमेट एक्शन के लिए घरेलू संसाधनों का रुख करना होगा। सर्वे में इस बात पर जोर दिया गया है कि उचित फाइनेंस के बिना क्लाइमेट एक्शन और सस्टेनेबल डेवलपमेंट को नुकसान होगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसे स्थिति में भारत को क्लाइमेट रेसिलिएंस को प्राथमिकता देनी चाहिए।
ट्रम्प ने अमेरिका को पेरिस डील, से बाहर किया, डब्लूएचओ से भी किनारा
डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के पहले ही दिन अमेरिका को पेरिस क्लाइमेट डील को संचालित करने वाले यूएनएफसीसीसी से बाहर करने और विकासशील देशों को सभी प्रकार की वित्तीय मदद (क्लाइमेट फाइनेंस) पर रोक लगाने के आदेश जारी किये। इसके साथ ही ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) से भी अपने देश का नाता तोड़ लिया। ट्रम्प के यह फैसले अप्रत्याशित नहीं हैं लेकिन इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी उथल-पुथल मच गई है।
ईरान, यमन और लीबिया के साथ अब अमेरिका चौथा देश होगा जो पेरिस संधि का हिस्सा नहीं है। अमेरिका के इस फैसले का इस साल के अंत में ब्राज़ील में होनी वाली सालाना वैश्विक क्लाइमेट वार्ता (कॉप-30) पर असर पड़ता तय है जहां क्लाइमेट फाइनेंस चर्चा का प्रमुख विषय रहेगा।
ब्लूमबर्ग ने कहा उनका संगठन करेगा क्लाइमेट फाइनेंस की भरपाई
ट्रम्प के फैसले के बाद उद्योगपति माइक ब्लूमबर्ग ने कहा है कि उनका संगठन ब्लूमबर्ग फिलएंथ्रोपी फंडिंग गैप को भरेगा। करीब 10 साल तक न्यूयॉर्क के मेयर रहे माइक ब्लूमबर्ग जलवायु मामलों में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत भी हैं। वे 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में उतरे भी थे लेकिन बाद में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। अमेरिका यूएन में जमा होने वाली क्लाइमेट फाइनेंस का 22 प्रतिशत हिस्सा देता है और 2024 में उसने करीब $ 11 बिलियन डॉलर दिये थे। अब अमेरिका के पीछे हटने से क्लाइमेट फंडिंग का बढ़ेगा।
उधर ब्लूमबर्ग फिलएंथ्रोपी ने वर्ष 2024 में अकेले करीब $ 4.5 मिलियन क्लाइमेट फंड में दिया था। जानकारों का कहना है ब्लूमबर्ग का इरादा नेक और घोषणा स्वागत योग्य है लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने की मुहिम उद्योगपतियों या फिलएंथ्रोपी संगठनों के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती है। सवाल यह भी है कि अमेरिका केवल क्लाइमेट फंड देने से पीछे नहीं हट रहा बल्कि वह ग्रीनहाउस गैसों के लिए ज़िम्मेदार जीवाश्म ईंधन के व्यापार को भी खूब बढ़ाने की बात कर रहा है।
नेपाल ने एवरेस्ट पर्वतारोहण की फीस बढ़ाई
नेपाल ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए परमिट शुल्क में 36 प्रतिशत की वृद्धि की है। नेपाली अधिकारियों का कहना है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर कचरा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से कई उपाय भी शुरू किए हैं। नए संशोधित पर्वतारोहण नियमों के तहत, वसंत ऋतु (मार्च-मई) में सामान्य दक्षिण मार्ग से एवरेस्ट पर चढ़ने वाले विदेशियों के लिए रॉयल्टी शुल्क मौजूदा 11,000 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति से बढ़ाकर 15,000 अमेरिकी डॉलर कर दिया गया है।
सितंबर-नवंबर में पर्वतारोहण के लिए इच्छुक लोगों को 7,500 अमेरिकी डॉलर चुकाने होंगे। वर्तमान में इस दौरान यह शुल्क 5,500 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति है। वहीं, सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) और मानसून (जून-अगस्त) सीज़न के लिए प्रति व्यक्ति परमिट लागत 2,750 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 3,750 अमेरिकी डॉलर हो गई है। पर्यटन बोर्ड की निदेशक आरती न्यूपाने ने कहा, इस आशय का कैबिनेट निर्णय पहले ही हो चुका है, हालांकि आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है। उन्होंने कहा कि 8848.86 मीटर ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिए नई फीस 1 सितंबर, 2025 से लागू होगी।
ब्रिटेन की संसद ने जलवायु परिवर्तन कानून पर बहस को टाला
ब्रिटेन की संसद ने जलवायु परिवर्तन और प्रकृति संरक्षण पर नए लक्ष्य निर्धारित करने के लिए एक प्रस्तावित कानून पर बहस नहीं करने के पक्ष में वोट दिया है। बिल पर बहस खत्म करने के प्रस्ताव को हाउस ऑफ कॉमन्स में 120 वोट मिले जबकि इसके पक्ष में सात वोट पड़े, जिसका अर्थ है कि यह विधेयक अब जुलाई तक संसद में वापस नहीं आएगा और इसके कानून बनने की संभावना नहीं है।
‘क्लाइमेट एंड नेचर बिल’ नामक यह विधेयक लिबरल डेमोक्रेट सांसद रोज़ सैवेज द्वारा प्रस्तावित किया गया था, हालांकि उन्होंने बिल पर वोटिंग के लिए जोर नहीं दिया, और कहा कि वह मंत्रियों के साथ मिलकर बिल पर सहमति बनाने का प्रयास करेंगी।
इस बिल का उद्देश्य है उत्सर्जन में कटौती करने और प्रकृति को बहाल करने के लिए जनता की राय से एक रणनीति बनाना। बिल का विरोध कर रहे कंज़र्वेटिव सांसदों की दलील है कि मौजूदा कानून जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम हैं।
मुंबई में पेट्रोल-डीज़ल वाहनों पर लग सकता है प्रतिबंध, पैनल गठित
महाराष्ट्र सरकार ने बढ़ते प्रदूषण के मद्देनज़र मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र (एमएमआर) में पेट्रोल और डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की संभावना का अध्ययन करने के लिए एक सात-सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह समिति तीन महीनों में अपने सुझाव प्रदान करेगी। मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में 1.20 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं, जो वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने ट्रैफिक और उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण पर चिंता जताते हुए इस पैनल के गठन का आदेश दिया था।
पिछली रिपोर्टों से पता चलता है कि सड़क की धूल के बाद वाहन प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं। विशेषज्ञ हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए केवल सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों की अनुमति देने की व्यवहार्यता का आकलन करेंगे।
राजनैतिक बहस के बीच क्या है यमुना में प्रदूषण की सच्चाई
दिल्ली में विधानसभा चुनावों के कारण यमुना के प्रदूषण पर तीखी राजनैतिक बहस छिड़ी हुई है। यमुना में अमोनिया के खतरनाक स्तर के लिए दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा की भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। जवाब में भाजपा ने केजरीवाल पर आरोप लगाया है कि वह यमुना की सफाई में विफल रहने के कारण जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण के लिए दोनों ही राज्य जिम्मेदार हैं और उन्हें साथ मिलकर यमुना की सफाई के प्रयास करने चाहिए। राज्यों के निकायों द्वारा दिए गए आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि हरियाणा में अमोनिया-युक्त पानी यमुना में छोड़ा जाता है। लेकिन ऐसा मुख्यतः जल-निकासी से जुड़ी समस्याओं के कारण होता है। वहीं यमुना के कुल प्रदूषण में दिल्ली का योगदान 76 प्रतिशत है। जानकार बताते हैं कि साल में 15 से 22 बार यमुना के जल में अमोनिया की मात्रा 1 पीपीएम से ऊपर की वृद्धि होती है। यह उछाल मुख्य रूप से दिसंबर से मार्च के बीच में होता है जब मानसून खत्म होने के बाद नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है।
पहली बार ब्रेन टिश्यू में मिला माइक्रोप्लास्टिक
हाल के अध्ययनों में पहली बार मानव मस्तिष्क के ऊतकों में माइक्रोप्लास्टिक्स मिला है, विशेष रूप से घ्राण बल्ब में जो गंध की भावना को संसाधित करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि घ्राण नसों के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक्स मस्तिष्क में प्रवेश कर सकते हैं। स्वास्थ्य पर इसके क्या प्रभाव होते हैं, इसपर अभी अध्ययन चल रहे हैं, लेकिन आशंका है कि इससे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों की संभावना बढ़ जाती है। मानव शरीर के विभिन्न अंगों पर माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रभावों पर पहले भी कई अध्ययन किए जा चुके हैं। मौजूदा अध्ययन दर्शाता है कि प्लास्टिक प्रदूषण कितना व्यापक है और मानव स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।
पालार नदी में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दिया मुआवजे का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में चमड़े की फैक्ट्रियों द्वारा पालार नदी में किए जा रहे प्रदूषण को कम करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने बिना उपचार के पालार नदी में छोड़े जा रहे अपशिष्ट को ‘इकोसाइड’ बताते हुए प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह मुआवजा प्रदूषणकारी उद्योगों से वसूला जाएगा। साथ ही, इकोलॉजी को हो रहे नुकसान का आकलन और ऑडिट करके सुधार के उपायों सुझाव देने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन करने का भी आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उद्योगों के लिए आवश्यक है कि वह पर्यावरणीय नियमों का पालन करें और सस्टेनेबल तरीके अपनाएं।
बजट 2025: ग्रीन एनर्जी सेक्टर को नीतिगत सहायता की उम्मीद
भारत में अक्षय ऊर्जा सेक्टर आगामी केंद्रीय बजट 2025 में महत्वपूर्ण नीतिगत सहायता की उम्मीद कर रहा है, जिससे एनर्जी ट्रांजिशन में तेजी आ सके। उद्योग से जुड़े विशेषज्ञ अक्षय ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने के लिए अधिक इंसेंटिव देने और ग्रीन हाइड्रोजन पहलों के लिए समर्थन बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं।
साथ ही नवीकरणीय सेक्टर में अधिक रोजगार पैदा करने और उद्योगों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया जा रहा है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक विकास को भी गति प्रदान की जा सके। विशेषज्ञ अपतटीय पवन ऊर्जा, ग्रीन हाइड्रोजन और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर अधिक ध्यान देने की भी मांग कर रहे हैं। पवन ऊर्जा क्षेत्र में भी ट्रांसमिशन से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए सहायता की उम्मीद की जा रही है।
भारत में गैर-जीवाश्म स्रोतों से ऊर्जा क्षमता बढ़कर हुई 218 गीगावाट
भारत की कुल गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित क्षमता 217.62 गीगावाट तक पहुंच चुकी है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि 2024 में 24.5 गीगावाट सौर क्षमता और 3.4 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो 2023 की तुलना में सौर में दो गुना से अधिक वृद्धि और पवन ऊर्जा की स्थापना में 21 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2024 तक भारत की समग्र ऊर्जा उत्पादन क्षमता 462 गीगावाट थी, जिसमें हाइड्रो पावर समेत नवीकरणीय क्षमता 209.444 गीगावाट थी।
इस साल 28 गीगावाट तक अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ेगा भारत
मौजूदा वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता में 25 से 28 गीगावाट तक की वृद्धि कर सकता है। इसमें से अधिकांश हिस्सेदारी सौर ऊर्जा की होगी। इंडिया रेटिंग्स के अनुसार, दिसंबर 2024 के अंत तक 18.8 गीगावाट ऊर्जा क्षमता स्थापित की जा चुकी है। पीवी मैगज़ीन के अनुसार, रेटिंग एजेंसी को उम्मीद है कि 2030 तक भारत की कुल ऊर्जा क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 55 से 60% तक जाएगी। हालांकि, वास्तविक बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा केवल 35% से 40% का ही योगदान करेगी।
जानकारों का कहना है कि ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के लिए भूमि अधिग्रहण, कनेक्टिविटी और पर्याप्त निकासी/ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी समस्याओं का हल महत्वपूर्ण है।
सोलर पीवी के लिए नया क्वालिटी कंट्रोल आदेश जारी
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने ‘सौर प्रणाली, उपकरण और घटक सामान आदेश, 2025’ अधिसूचित किया है, जो 2017 में जारी नियमों की जगह लेगा। यह आदेश सोलर पीवी मॉड्यूल, इनवर्टर और स्टोरेज बैटरी पर लागू होगा। इस आदेश के तहत सोलर पीवी मॉड्यूल, इनवर्टर और स्टोरेज बैटरियों को (बीआईएस द्वारा अधिसूचित) नवीनतम भारतीय मानकों के अनुरूप होना आवश्यक होगा तथा बीआईएस से लाइसेंस के तहत मानक चिह्न धारण करना होगा। हालांकि निर्यात के लिए बने उत्पाद इन मानकों से बाहर रहेंगे।
भारत के ऑटोमोटिव उद्योग को उम्मीद है कि आगामी केंद्रीय बजट में इलेक्ट्रिक वाहनों पर नए इंसेंटिव के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर ध्यान दिया जाएगा। ईवी बैटरी और चार्जिंग सेवाओं जैसे महत्वपूर्ण घटकों पर जीएसटी में कटौती की मांग लंबे समय से की जा रही है। वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है, लेकिन बैटरी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर आदि पर 18 प्रतिशत की उच्च दर से टैक्स लगाया जाता है। उद्योग से जुड़े व्यापारियों की दलील है कि इससे लागत बढ़ती है, और एडॉप्शन प्रभावित होता है। इसके अलावा चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और बैटरी मैनुफैक्चरिंग पर भी नीतिगत सहायता की उम्मीद की जा रही है।
भारत में 7.4% तक बढ़ा ईवी का प्रयोग, 20230 तक होगी 30-35% हिस्सेदारी: रिपोर्ट
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग बढ़कर 7.4 प्रतिशत हो गया। ईटी ऑटो ने एसबीआई कैपिटल मार्केट्स की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि 2030 तक भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़कर 30-35% हो सकती है। हालांकि फिर भी दबदबा जीवाश्म ईंधन वाहनों का ही रहेगा। रिपोर्ट के अनुसार, पीएम ई-ड्राइव और एसपीएमईपीसीआई जैसी सरकारी प्रोत्साहन योजनाओं से ईवी अडॉप्शन और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ेगा।
रिपोर्ट के अनुसार, आईसीई वाहनों को रेट्रोफिट करने से पुराने वाहन निर्माताओं को लाभ होगा, जबकि ईवी स्टार्टअप स्थापित करने की लागत अधिक है। चूंकि भारत ने इस बाजार में देर से प्रवेश किया है, इसलिए इनोवेशन की संभावना कम है। अभी भी कई क्षेत्रों में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और फ़ास्ट चार्जिंग की कमी है। वर्तमान में, चार्जिंग प्रदाताओं का मुनाफा अधिक है, लेकिन भविष्य में प्रमुख स्थानों के लिए प्रतिस्पर्धा के चलते प्रॉफिट प्रभावित हो सकता है।
2025 में पेट्रोल-डीज़ल से अधिक होगी इलेक्ट्रिक करों की बिक्री: रिपोर्ट
भारत का इलेक्ट्रिक कार बाजार 2025 में बड़ी बढ़ोत्तरी की ओर देख रहा है। इस साल लॉन्च होने वाली 28 कारों में से 18 मॉडल इलेक्ट्रिक होंगे, जो डीजल और पेट्रोल मॉडल से अधिक होंगे। यह वृद्धि पिछले वर्षों के मुकाबले उल्लेखनीय रूप से अधिक है। साल के अंत तक ईवी कारों की 200,000 यूनिट बिकने की उम्मीद है, जो कारों की कुल बिक्री का 4 प्रतिशत होगी।
गूगल-बीसीजी की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि तीन भारतीय उपभोक्ताओं में से एक ईवी खरीदने पर विचार कर रहा है। यह निर्णय लेने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। रिपोर्ट के अनुसार, चुनौतियों के बावजूद, इनोवेशन और स्थानीय मैनुफैक्चरिंग के कारण एडॉप्शन बढ़ रहा है।
ट्रम्प ने फिर शुरु की तेल और गैस कारोबार में तेज़ी की मुहिम
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने राष्ट्रपति पद के दूसरे कार्यकाल के पहले दिन राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल (नेशनल एनर्जी इमरजेंसी) की घोषणा की। यह ट्रम्प द्वारा जीवाश्म ईंधन के पक्ष में कदम उठाने और पहले से ही तेजी से बढ़ रहे अमेरिकी ऊर्जा उत्पादन को “मुक्त” करने के प्रयासों का हिस्सा था। इसके तहत ट्रम्प ने अलास्का में ड्रिलिंग पर प्रतिबंध वापस ले लिया है और गैस निर्यात पर पहले लगाई गई रोक को भी हटा लिया है।
महत्वपूर्ण है कि एनर्जी इमरजेंसी की घोषणा ट्रम्प के चुनाव प्रचार का हिस्सा थी और इससे उनकी सरकार को नई जीवाश्म ईंधन के लाइसेंस देना संभव होगा। लेकिन उनके इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
एविएशन फ्यूल, प्राकृतिक गैस पर लग सकता है जीएसटी: पुरी
केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी के अनुसार, एविएशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) जल्द ही वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में आ जाएगा। चूंकि एटीएफ एयरलाइंस की परिचालन लागत का लगभग 40% होता है, यह कदम से उनका वित्तीय बोझ बहुत कम हो सकता है। जेट ईंधन उत्पादक मैनुफैक्चरिंग और रिफाइनिंग उपकरण पर दिए जीएसटी पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं ले पाते हैं, जिससे एटीएफ की कुल लागत बढ़ जाती है। जिससे अंततः एयरलाइन सञ्चालन की लागत और टिकट के दाम भी बढ़ते हैं।
इसके अतिरिक्त, सरकार प्राकृतिक गैस को भी जीएसटी के तहत शामिल करने के बारे में सोच रही है। पुरी के अनुसार, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शुरू में इसका विरोध कर रहे थे, लेकिन अब उन्हें इसका फायदा समझ में आ गया है। इस कदम से गैस पर निर्भर व्यवसायों की उत्पादन लागत कम होगी और टैक्स कोड भी सुव्यवस्थित होगा।
जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन कम न हुआ तो पुणे में 40% बढ़ेंगी डेंगू से होनेवाली मौतें: शोध
एक हालिया वैश्विक अध्ययन ने चेतावनी दी है कि यदि जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम नहीं किया गया तो पुणे में डेंगू से संबंधित मौतें 2060 तक 40 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओरोलॉजी और पुणे म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन जैसे संस्थानों द्वारा किए गए इस शोध में कहा गया है कि इस अनुमानित वृद्धि में तापमान एक महत्वपूर्ण कारक है।
शताब्दी के मध्य तक पुणे का औसत तापमान 1-1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, इसके अलावा वर्षण और आर्द्रता भी बढ़ने की उम्मीद है। ये जलवायु परिवर्तन डेंगू संक्रमण के लिए अनुकूल स्थिति पैदा करते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि इस जोखिम को कम करने के लिए उत्सर्जन में कटौती जरूरी है।