Newsletter - December 22, 2022
जैव विविधता सम्मेलन: आदिवासियों के अधिकारों का सम्मान पर बड़े विनाशकारी प्रोजेक्ट्स की पहचान नहीं
जैव विविधता सम्मेलन में कुछ ऐतिहासिक फैसले हुए हैं लेकिन बायोडाइवर्सिटी को क्षति पहुंचाने वाले कारणों को तालिकाबद्ध नहीं किया गया है।
मॉन्ट्रियल (कनाडा) में अभी संपन्न हुए जैव विविधता सम्मेलन की तुलना 2015 में जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए हुई ऐतिहासिक पेरिस डील से की जा रही है। हालांकि करीबी अध्ययन से इस जैव विविधता संधि की कई कमज़ोरियों का भी पता चलता है।
हर दो साल में होने वाली इस बायोडाइवर्सिटी समिट में — जिसे सीबीडी भी कहा जाता है — दुनिया के करीब 200 देशों ने हिस्सा लिया था।
आखिर क्यों माना जा रहा है इसे ऐतिहासिक
मॉन्ट्रियल में 190 देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि मूल और आदिवासी समुदाय के अधिकारों का सम्मान करते हुए धरती के 30 प्रतिशत हिस्से को 2030 तक संरक्षित किया जाए। इसमें ज़मीन के साथ, नदियां, तालाब, तटीय क्षेत्र और समुद्र सभी शामिल हैं।
वर्तमान में धरती की केवल 17% भूमि और 10% समुद्री क्षेत्र ही कानूनी रूप से संरक्षित हैं।
साल 2030 तक इकोसिस्टम के क्षरण को रोकने और उसकी बहाली के लिए इन देशों ने 23 लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
सभी देशों ने तय किया है कि बायोडाइवर्सिटी के लिहाज से अति महत्वपूर्ण इलाकों की लगभग शून्य क्षति होने दी जाएगी।
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में लीगल रिसर्चर कांची कोहली कहती हैं कि जंगलों और जैव विविधता समृद्ध इलाकों में रहने वाले लोगों के अधिकारों का सम्मान इस सम्मेलन की बड़ी उपलब्धि है। कोहली के मुताबिक, “बायोडाइवर्सिटी के संरक्षण का जो संकल्प है यह बहुत बड़ी बात है और लोकल कम्युनिटी के अधिकारों का सम्मान करते हुए यह संरक्षण करना और बड़ी बात है। यह बात पहले नोगोया प्रोटोकॉल (साल 2010) में आई थी लेकिन तब यह एक्सेस और बैनेफिट शेयरिंग तक सीमित था। लेकिन अब पूरे बायोडाइवर्सिटी फ्रेमवर्क में इन दोनों बातों — जैव विविधता संरक्षण और सामुदायिक अधिकारों का सम्मान — को लाना बड़ी बात है।”
टिकाऊ जीवनशैली पर ज़ोर
भारत और कई अन्य विकसित देश कृषि सब्सिडी को जारी रखने के पक्ष में थे और इन पर चोट नहीं हुई है। हालांकि सरकारें इस बात पर सहमत हुई हैं कि पूरी दुनिया में जैव विविधता को क्षति पहुंचाने वाली हानिकारक सरकारी सब्सिडी में सालाना 50,000 करोड़ की कटौती की जाएगी।
समावेशी और टिकाऊ (सस्टेनेबल) जीवनशैली पर ज़ोर देते हुए इस सम्मेलन में वैश्विक खाद्य बर्बादी को आधा करने और अतिउपभोग (ओवरकंजम्पशन) और कचरे को घटाने का लक्ष्य रखा गया है। सम्मेलन में स्वीकार किए गए ग्लोबल डाइवर्सिटी फ्रेमवर्क में खतरनाक रसायनों और कीटनाशकों का भी इस्तेमाल आधा करने का लक्ष्य है।
इस संधि की कमियों की ओर इशारा करते हुए जानकार कहते हैं कि न तो जैव विविधता क्षति के बड़े कारणों की पहचान की गई है और न ही उन्हें रेखांकित किया गया है। जैसे कीटनाशकों की बात हुई, उसी तरह सड़क, रेलमार्ग और सुरंग बनाने या खनन प्रोजेक्ट्स की बात नहीं हुई जिनकी लिए जैव विविधता से समृद्ध इलाकों को बर्बाद किया जाता है।
कोहली कहती हैं कि यह बात जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में होनी वाली वार्ता से समझी जा सकती है। वह कहती हैं, “इन वार्ताओं में बात यहां आकर अटक जाती है कि किसे विकसित होने का हक़ है और किसे नहीं और इसीलिए पर्यावरण और जैव विवधता को क्षति पहुंचाने वाले प्रोजेक्ट्स को लेकर कोई स्पष्टता वार्ता के दस्तावेज़ में नहीं दिखती।”
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वार्ता में पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद रहीं क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क की प्रतिष्ठा सिंह कहती हैं, “कॉप-15 में हुई डील महत्वपूर्ण है और वास्तविक दुनिया में जैव विविधता संरक्षण के लिये बड़ी ज़रूरी भी। लेकिन वार्ता में किए वादे कितने प्रभावकारी होंगे यह इस पर निर्भर है कि राष्ट्रीय स्तर पर इन्हें कितना लागू किया जाता है।”
वित्त पर विवाद कायम, अफ्रीकी देशों की अनदेखी
हमेशा की तरह फाइनेंस की कमी इस सम्मेलन में भी एक बड़ा मुद्दा रही है। विकसित और विकासशील देशों में फ्रेमवर्क में तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वित्त की ज़रूरत को लेकर गंभीर मतभेद उभरे। साथ ही राष्ट्रीय परिस्थिति के हिसाब से अलग-अलग देशों की ज़िम्मेदारियों में अंतर को लेकर भी मतभेद रहा।
सम्मेलन के आखिर में अफ्रीकी देश कांगो ने एक नए बायोडाइवर्सिटी फंड को क्रियान्वित करने की मांग की और कहा कि जैव विविधता संरक्षण के तय लक्ष्यों के लिए अधिक महत्वाकांक्षी वित्त लक्ष्य पर बहस होनी चाहिए।
कांगो के विरोध के बावजूद सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे चीन ने फ्रेमवर्क को स्वीकार करवा लिया, जिसे लेकर काफी विवाद हुआ।
प्रतिष्ठा सिंह के मुताबिक, “बात मूल निवासियों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए अधिक सेफगार्ड बनाने की हो या जैव विविधता संरक्षण के लिए वित्त मुहैया कराने की, तमाम देशों के बीच अधिक विश्वास बनाने के प्रयास करने चाहिए।”
कांची कोहली कहती हैं, “पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था या विकास का ढांचा ही ऐसा बना हुआ है कि उसकी कीमत जैव विविधता को चुकानी पड़ती है। इसलिए कोई भी देश — चाहे वहां जैव विविधता को नष्ट होने से बचाया जाना है या संरक्षण कार्यक्रम चलाने हों — उसके लिए वह धन मांग रहा है, जो समझा जा सकता है। लेकिन यह बात भी ध्यान देने की है कि सिर्फ वित्त के भरोसे ही जैव विविधता संरक्षण नहीं हो पाएगा। सारी अंतर्राष्ट्रीय नीतियां फाइनेंस पर ज़ोर दे रही हैं लेकिन जब तक जैव विविधता संरक्षण के लिये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दबाव नहीं होगा तब तक केवल फाइनेंस काम नहीं करेगा।”
Newsletter - December 24, 2022
यूनाइटेड किंगडम के मौसम विभाग के मुताबिक में वैश्विक औसत तापमान के हिसाब से अगला साल दुनिया के अधिकतम तापमानों वालों वर्षों में दर्ज होगा। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि 2023 में धरती के औसत तापमान 1.2 डिग्री को बढ़ोत्तरी दर्ज होगी। यह वृद्धि प्री इंडस्ट्रियल स्तर (1850-1900) से मापी जाती है। अगर यूके के मौसम विभाग की यह भविष्यवाणी सच हुई तो साल 2023 लगातार दसवां साल होगा जब धरती की तापमान वृद्धि 1 डिग्री से अधिक दर्ज हो रही है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि हालांकि एल-निनो प्रभाव की गैर मौजूदगी के कारण 2023 रिकॉर्डतोड़ गर्मी वाला वर्ष नहीं होगा लेकिन सबसे गर्म सालों में ज़रूर दर्ज होगा। पिछले कुछ सालों से हो रही रिकॉर्डतोड़ गर्मी ने मानव जीवन और फसलों के साथ जैवविविधता पर गहरा असर डाला है। साल 2022 में मार्च का महीना सबसे अधिक तापमान वाला दर्ज किया गया था।
सर्दियों में जंगलों में एक बार फिर दिखी आग
साल 2020 की तरह – जब पूरे देश में जाड़ों में लगी आग से बड़ी क्षति हुई – एक बार फिर देश भर के जंगलों में आग दिख रही है। सर्दियों में आग का यह सिलसिला नवंबर से शुरू होता है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक अब तक 635 अलर्ट भेजे गये। सबसे अधिक 102 चेतावनियां मध्यप्रदेश के जंगलों में आग को लेकर दी गईं। भारत में 7 से 14 दिसंबर के बीच उत्तराखंड के जंगलों में आग की सबसे अधिक घटनायें दर्ज हुईं। सर्दियों में शुष्क मौसम और जाड़ों में बरसात न होना भी आग की घटनाओं में बढ़ोतरी का कारण है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में 36% जंगल ऐसे हैं जहां बार-बार आग का ख़तरा है। इनमें 4% जंगल में आग लगता का ख़तरा अत्यधिक (एक्सट्रीम) है।
जलवायु परिवर्तन से वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा हैजा: डब्लूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि दुनिया में हैजे का प्रकोप बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी रफ्तार तेज़ हो सकती है। दुनिया के नक्शे को देखें तो कोई हिस्सा नहीं है जहां हैजे का प्रकोप न हो। विशेषरूप से अफ्रीका का सींग कहे जाने वाले प्रायद्वीपीय क्षेत्र और यहां साहेल की पट्टी वाले इलाके में भारी बाढ़, अभूतपूर्व मॉनसून और लगातार चक्रवाती तूफानों के कारण हैजे का प्रकोप बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। हेती, मलावी, सीरिया और लेबलान के इलाकों में हैजा फैला है। पाकिस्तान में भी इस साल आई बाढ़ के बाद डायरिया के पचास हज़ार मामले सामने आये हैं लेकिन प्रयोगशाला से पुष्ट हुये हैजे के मामले कुछ हज़ार में ही हैं। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि ला-निना प्रभाव के लगातार तीसरे साल जारी रहने के कारण साल 2023 में भी हालात के सुधरने का पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता है।
परागण की कमी का असर फल-सब्ज़ियों के उत्पादन पर
भू-उपयोग में बदलाव, ख़तरनाक कीटनाशकों और जलवायु परिवर्तन के कारण वह कीट-पतंगे और जन्तु कम हो रहे हैं जो परागण करते हैं और कई वनस्पतियों के अस्तित्व को बनाये रखते हैं। इन्वॉयरेनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव में प्रकाशित रिसर्च से पता चलता है। इन्वायरेंमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव में प्रकाशित शोध के मुताबिक कीटों की कमी से पर्याप्त परागण नहीं हो पा रहा जिसकी वजह से फल, सब्ज़ियों और अखरोट के वैश्विक उत्पादन में 3-5 प्रतिशत की कमी हुई है। शोध कहता है कि इस कारण पौष्टिक भोजन न मिल पाने से सालाना 4.27 लाख अतिरिक्त लोगों की मौत भी हो रही है। महत्वपूर्ण है कि यह क्षति ग्लोबल वॉर्मिंग की रफ्तार रोकने के लिये ज़रूरी जैव विविधता को नष्ट कर रही है। मॉन्ट्रियल में हाल ही में हुये समिट में दुनिया के तमाम देशों ने धरती के 30% हिस्से को बचाने की घोषणा की है। इस सम्मेलन में साल 2030 तक इकोसिस्टम के क्षरण को रोकने और उसकी बहाली के लिए इन देशों ने 23 लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
एटालिन जलविद्युत परियोजना पर केंद्र ने की अरुणाचल सरकार से बात
अरुणाचल प्रदेश में स्थानीय मूल निवासियों द्वारा 3097 मेगावॉट की एटालिन जलविद्युत परियोजना के विरोध के बाद अब केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से पूछा है कि उसके इस पर क्या विचार हैं। इस जल विद्युत परियोजना के लिये 1165 हेक्टेयर वन भूमि का इस्तेमाल होगा और घने जंगल में चौड़ी पत्तों वाले करीब 2.8 लाख पेड़ कटेंगे। एटालिन प्रोजेक्ट एक रन-ऑफ-दि-रिवर पावर प्रोजेक्ट है जिसमें टर्बाइन चलाने के लिये नदी से पानी को काटकर एक नहर या सुरंग में डाल दिया जाता है। अरुणाचल में पिछली 9 दिसंबर को तय फॉरेस्ट एडवाइज़री कमेटी की बैठक से ठीक पहले प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों और जानकारों ने कमेटी को चिट्ठी लिखी थी। फिर 20 दिसंबर को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सरकार से इस बारे में पूछा है।
देश में ज़मीन से जुड़े तीन-चौथाई विवाद होते हैं कॉमन लैंड पर
दिल्ली स्थित रिसर्च संस्था लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच (एससीडब्लू) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है वर्तमान में हल किये गये या चल रहे सभी भू-संबंधी विवादों में तीन-चौथाई से अधिक मामले सार्व (कॉमन) लैंड से जुड़े हैं। एलसीडब्लू द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिये देश भर में 600 से अधिक मामलों का अध्ययन और विश्लेषण किया और पाया कि इन विवादों के तहत 15.15 लाख हेक्टेयर भूमि फंसी हुई है और सवा छह लाख से अधिक लोग इससे प्रभावित हैं। इन विवादों में एक चौथाई मामले आदिवासियों को विशेष अधिकार देने वाली पांचवीं अनुसूची से जुड़े हैं। सार्व भूमि यानी कॉमन लैंड के अंतर्गत जंगल, चरागाह, तालाब और ‘वेस्टलैंड’ जैसे प्राकृतिक संसाधन आते हैं जिनका उपयोग समुदाय मिलकर करते हैं। वन अधिकार कानून 2006 को ठीक से लागू न करना इन विवादों की मुख्य वजह है। इस रिसर्च पर विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है।
विलुप्त हो जाएंगी पेंगुइन समेत अंटार्कटिका की 65% प्रजातियां
वैश्विक तापमान बढ़ने के साथ ही अंटार्कटिका के प्राचीन परिदृश्य में बदलाव हो रहा है और नए शोध से पता चलता है कि इस क्षेत्र के पौधों और जानवरों की अधिकांश प्रजातियां — खासकर इसके ख्यातिलब्ध पेंगुइन — संकट में हैं।
पीएलओएस बायोलॉजी नमक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि अंटार्कटिका की लगभग 65% मूल प्रजातियां इस सदी के अंत तक विलुप्त हो जाएंगी, यदि दुनिया के तरीकों में कोई बदलाव नहीं आया और उत्सर्जन में कटौती नहीं की गई तो। सबसे ज्यादा खतरा एम्परर पेंगुइन को है।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि अंटार्कटिका में वर्तमान संरक्षण प्रयास तेजी से बदलते महाद्वीप पर प्रभावी नहीं हो रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि लागत प्रभावी रणनीतियों के एक और स्तर को लागू करके अंटार्कटिका की कमजोर जैव विविधता का 84% तक बचाया जा सकता है।
भारत पर जलवायु परिवर्तन का जोखिम विशेष रूप से अधिक है: आरबीआई के डिप्टी गवर्नर
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर राजेश्वर राव ने कहा है कि भारत पर जलवायु जोखिमों का खतरा विशेष रूप से अधिक है और देश की लंबी तटरेखा, ऊर्जा मिश्रण में जीवाश्म ईंधन का बड़ा हिस्सा और ग्रामीण आजीविका की कृषि पर निर्भरता को देखते हुए त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
राव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ता है और इसके परिणामस्वरूप वित्तीय संस्थान और प्रणालियां प्रभावित होती हैं।
उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन हासिल करने के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता है और इसके लिए भौतिक संपत्ति पर हर साल औसतन 9.2 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर खर्च करने की आवश्यकता है, जो वर्तमान में खर्च किए जा रहे 3.5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर से कहीं अधिक है।
भारत के मामले में, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद ने पहले ही अनुमान लगाया है कि 2070 तक हमारी नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए 10.1 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर के कुल निवेश की आवश्यकता होगी।
वायु प्रदूषण का सामना करने के लिए साथ आएं दक्षिण-एशियाई देश: रिपोर्ट
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में छह बड़े एयरशेड हैं जिनके बीच वायु प्रदूषक घूमते रहते हैं। इनमें से कुछ एयरशेड ऐसे हैं जिनका कुछ हिस्सा पाकिस्तान में है। रिपोर्ट ने कहा है कि भारत सरकार के मौजूदा उपाय पार्टिकुलेट मैटर को कम कर सकते हैं, लेकिन प्रदूषण में भारी कमी तभी संभव है जब एयरशेड में फैले क्षेत्र समन्वित नीतियां लागू करें।
एयरशेड एक सामान्य भौगोलिक क्षेत्र होता है जहां प्रदूषक फंस जाते हैं और पूरे क्षेत्र की वायु गुणवत्ता एक जैसी हो जाती है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए न केवल इसके स्रोतों से निबटने की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय सीमाओं के बीच समन्वय भी जरूरी है। भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के वैज्ञानिकों को वायु प्रदूषण से निबटने के लिए ‘एयरशेड एप्रोच’ अपनाते हुए एक संवाद स्थापित करना चाहिए।
इन प्रयासों से पीएम2.5 से उत्पन्न खतरे में औसतन कमी आएगी और सालाना 7,50,000 से अधिक लोगों की जान बचेगी।
उत्तर भारत में धान की बुवाई में देरी बनती है प्रदूषण का कारण: रिपोर्ट
पंजाब और हरियाणा के कुछ जिलों में धान की बुवाई और पराली जलाने में देरी से एक सोपानी प्रभाव (कैस्केडिंग इफ़ेक्ट) उत्पन्न होता है जिससे पिछले एक दशक में आस-पास के क्षेत्रों में अत्यधिक प्रदूषण फैला है, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक नए शोध पत्र में कहा गया है।
पंजाब के उत्तरी और पश्चिमी जिलों में धान की बुआई और उसके बाद पराली जलाने में सबसे ज्यादा देरी होती है। अगर इन जिलों ने धान की बुआई में देरी नहीं की होती तो राष्ट्रीय राजधानी जैसे इलाकों में होने वाला प्रदूषण बहुत कम होता।
शोधकर्ताओं ने पाया कि 2008-2019 के दौरान बायोमास जलने में देरी के अभाव में, हवा के बहाव के मार्ग में आस-पास के शहरों जैसे नई दिल्ली, बठिंडा और जींद में लगातार 11 प्रतिशत से लेकर 21 प्रतिशत तक कम पीएम2.5 दर्ज किया गया।
उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे जिलों में एक संशोधित भूजल नीति से बुवाई की तारीखें आगे बढ़ाकर उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता सुधारी जा सकती है, और भूजल का संरक्षण भी किया जा सकता है।
बिहार के इस शहर में हर घंटे ख़राब हो रही है हवा
वैसे तो बिहार के कई शहर वायु प्रदूषण के मामले में अव्वल हैं, लेकिन अगर पश्चिम चंपारण की बात करें तो जिला मुख्यालय बेतिया की हालत बेहद ही खराब है। एक महीने से ज्यादा हो गया लेकिन नगर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) घटने का नाम नहीं ले रहा है, जो पिछले एक माह से 400 के इर्द-गिर्द ही रह रहा है। 400 के आसपास के एक्यूआई को काफी खतरनाक माना जाता है। जिला प्रशासन और नगर निगम के तमाम प्रयासों के बाद इसमें गिरावट देखने को नहीं मिल रही है।
सुबह जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 350 के आसपास रह रहा है, तो वहीं शाम होते ही 400 के आसपास पहुंच जा रहा है। इस कारण नगर वासी एक माह से ज्यादा अवधि से जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है।
सूर्योदय के बाद जैसे जैसे शहर में चहल-पहल बढ़ती है, प्रदूषकों का ग्राफ बढ़ता शुरू हो जाता है। ऐसे में स्थिति हर एक घंटे के साथ बदतर होती चली जा रही है, जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।
दिल्ली में अब रियल टाइम आधार पर होगी वायु प्रदूषण के स्रोतों की पहचान
दिल्ली में प्रदूषण के सभी संभावित स्रोतों की पहचान करने और उनसे निबटने की तैयारी कर रही दिल्ली सरकार ने प्रदूषण के स्तर का अध्ययन करने के लिए हाई-टेक और डेटा संचालित परियोजनाओं की शुरुआत की है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 23 दिसंबर को ‘रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट प्रोजेक्ट’ की प्रगति की समीक्षा की। यह परियोजना दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आईआईटी कानपुर, आईआईटी दिल्ली और टेरी के साथ सहयोग से शुरू की गई है।
रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी में अत्याधुनिक वायु विश्लेषणकर्ताओं और एक मोबाइल वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली के साथ एक सुपरसाइट शामिल है, जो दिल्ली के ऊपर हवा में विभिन्न पदार्थों के स्तर को मापेगा।
यह परियोजना 1 नवंबर 2022 से शुरू हो गई है और इसके विभिन्न संकेतकों से संबंधित डेटा उपलब्ध कराया जा रहा है। रियलटाइम डेटा के आधार पर सरकार को प्रदूषण के स्रोतों (जैसे वाहनों का निकास, धूल, बायोमास जलाना और उद्योगों से उत्सर्जन) की सही पहचान करने में मदद मिलेगी।
सुपरसाइट डेटा घंटे, दैनिक और साप्ताहिक आधार पर वायु प्रदूषण के स्तर का पूर्वानुमान लगाने में भी मदद करेगा।
यह पूर्वानुमान दिल्ली सरकार को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए सक्रिय कदम उठाने और प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संसाधन आवंटित करने में सहायता करेंगे।
गैर-जीवाश्म स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए संसद में पारित हुआ कानून
संसद ने गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों जैसे बायोमास, इथेनॉल और ग्रीन हाइड्रोजन आदि के उपयोग को बढ़ावा देने और देश में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग की अनुमति देने के लिए एक विधेयक पारित किया है।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 के तहत नियमों का पालन न करने वाली औद्योगिक इकाइयों या जहाजों के लिए दंड का प्रावधान है। किसी वाहन द्वारा ईंधन खपत मानदंडों का पालन करने में विफल रहने पर निर्माता के लिए भी दंड का प्रावधान है।
इन संशोधनों का उद्देश्य अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए घरेलू कार्बन बाजार का विकास करना भी है।
गैर-जीवाश्म स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य करने और कार्बन ट्रेडिंग जैसी नई व्यवस्थाएं लागू करने से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकार्बनीकरण में तेजी आएगी और पेरिस समझौते के अनुरूप सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
इस विधेयक के पारित होने के साथ, भारत अपनी कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण योजनाओं को गति देने और ऊर्जा संरक्षण में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
नए नियमों से वाहनों के लिए ऊर्जा खपत मानकों को अनिवार्य करने और 100 किलोवाट या उससे अधिक की कनेक्टेड लोड वाली इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण कोड लागू करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
2023 के बजट में ऊर्जा संक्रमण पर होगा ज़ोर
नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण को सुगम बनाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट में कई पहलों का अनावरण कर सकती हैं। इन संभावित पहलों में प्रमुख हैं ग्रिड-स्केल बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (बीईएसएस) की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए 21,650 करोड़ रुपए की योजना, इन योजनाओं को व्यव्हार में लाने के लिए 3,765 करोड़ रुपए का अनुदान और बीईएसएस के निर्माण हेतु पुर्जों पर आयात शुल्क कम करना आदि।
इसके अलावा, सरकार नई ऊर्जा-दक्ष तकनीकों के लिए ब्याज में 5% की छूट और ऊर्जा-दक्ष तकनीकों को लागू करने वाले छोटे और मध्यम उद्यमों को ऋण राशि के 75% की क्रेडिट गारंटी या प्रति परियोजना 15 करोड़ रुपए के प्रावधान की घोषणा कर सकती है।
ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए जीवाश्म ईंधन से साफ़ ऊर्जा में संक्रमण महत्वपूर्ण है।
भारत में अक्षय ऊर्जा के लिए सब्सिडी हुई दोगुनी, 4 साल बाद बढ़ा आवंटन
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) के नए आंकड़ों के अनुसार, भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सब्सिडी पिछले वित्त वर्ष में दोगुनी हो गई। वर्ष 2021-2022 में यह सब्सिडी 11,529 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। यह 2017 के बाद से इस क्षेत्र के लिए आवंटन में पहली वृद्धि है।
भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत “गैर-जीवाश्म स्रोतों” से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है, और स्वच्छ ऊर्जा की ओर इस संक्रमण में यह सब्सिडी बहुत महत्वपूर्ण है।
“2021 से 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सब्सिडी में यह वृद्धि सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) की स्थापना में 155 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के कारण हुई है,” आईआईएसडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, जिसका शीर्षक है ‘मैपिंग इंडियाज एनर्जी पॉलिसी 2022’।
यह रिपोर्ट पहले 31 मई को वित्तीय वर्ष 2020-21 तक के आंकड़ों के साथ प्रकाशित की गई थी। इसे इस महीने 2021-2022 वित्तीय वर्ष के आंकड़ों के साथ संशोधित किया गया है।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अगले साल $25 बिलियन से अधिक का निवेश संभावित
वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल के साथ दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के पटरी से उतरने का जोखिम बढ़ गया है। ऐसे में विश्व का ध्यान अब नवीकरणीय ऊर्जा पर केंद्रित हो रहा है। भारत में सौर, पवन और जल से ऊर्जा उपत्पादन करने में $25 बिलियन या 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किए जाने की संभावना है।
यूक्रेन युद्ध के बाद से आसमान छूती तेल और गैस की कीमतों के कारण भारत जैसे आयात पर निर्भर देशों की सरकारें विकल्पों की तलाश में थीं।
वहीं नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण को सिर्फ आयात के लिए ही नहीं, बल्कि कार्बन फुटप्रिंट में कटौती और नेट-जीरो लक्ष्यों को पूरा करने के लिहाज़ से भी जरूरी माना जा रहा है। यही कारण है कि 2022 में सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को देखते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, सौर उपकरणों के निर्माण और ऊर्जा भंडारण पर अत्यधिक जोर दिया।
भारत को 2030 तक 500 गीगावाट का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लगातार आठ वर्षों तक हर साल कम से कम 25 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता बढ़ानी होगी।
ईवी निर्माताओं ने किया इंसेंटिव का दुरुपयोग? केंद्र कर रहा जांच
केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री डॉ महेंद्र नाथ पांडेय ने इस हफ्ते संसद को बताया कि भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) निर्माताओं को 100 अरब रुपए (1.21 अरब डॉलर) के एक कार्यक्रम के तहत दिए गए इंसेंटिव के संभावित दुरुपयोग की जांच कर रही है।
उन्होंने कहा कि हीरो इलेक्ट्रिक वेहिकल्स प्राइवेट लिमिटेड और ओकिनावा ऑटोटेक प्राइवेट लिमिटेड सहित 12 इलेक्ट्रिक वाहन और पार्ट्स निर्माताओं के खिलाफ कार्यक्रम के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने की शिकायतें आईं थीं।
अन्य कंपनियां जिनके बारे में शिकायतें आईं थीं वह हैं बेनलिंग इंडिया एनर्जी एंड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड, ओकाया ईवी प्राइवेट लिमिटेड, जितेंद्र न्यू ईवी टेक प्राइवेट लिमिटेड, ग्रीव्स इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड, रिवॉल्ट इंटेलीकॉर्प प्राइवेट लिमिटेड, काइनेटिक ग्रीन एनर्जी एंड पावर सॉल्यूशंस लिमिटेड, एवन साइकिल लिमिटेड, लोहिया ऑटो इंडस्ट्रीज, ठुकराल इलेक्ट्रिक बाइक्स प्राइवेट लिमिटेड और विक्ट्री इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड।
अभी तक किसी भी कंपनी ने आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
भारत में रिकॉर्ड ईवी बिक्री, मार्च 2023 तक 6 लाख पहुंचने की संभावना
ईवी बिक्री के मामले में 2022 भारत के लिए ऐतिहासिक वर्ष रहा। इस साल ख़रीदे गए इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 2021 में हासिल किए गए पिछले रिकॉर्ड को भी पार कर गई।
इस साल अप्रैल से अब तक भारतीयों ने दोपहिया और तिपहिया वाहनों सहित चार लाख से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन ख़रीदे हैं, जिससे देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इस साल 9 दिसंबर तक भारत में करीब 4.43 लाख इलेक्ट्रिक वाहन बेचे जा चुके हैं, जबकि 2020 और 2021 में कोविड के दौरान देश में 48,179 इलेक्ट्रिक वाहन बेचे गए थे।
यह वित्तीय वर्ष 2021-22 में बेचे गए लगभग 2.38 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों से भी काफी अधिक है। इस साल ईवी की सर्वाधिक बिक्री अक्टूबर में हुई। त्यौहार के इस महीने के दौरान एक लाख से अधिक ईवी इकाइयां बेची गईं।
ईवी उद्योग को इस वित्तीय वर्ष में लगभग 60 प्रतिशत की आश्चर्यजनक वृद्धि के साथ छह लाख इकाईयों की बिक्री की उम्मीद है।
यूपी में इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी, छूट का आदेश जल्द: अधिकारी
उत्तर प्रदेश सरकार अपनी इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माण और गतिशीलता नीति -2022 में घोषित इलेक्ट्रिक वाहनों पर रियायतों को लागू करने के लिए एक औपचारिक सरकारी आदेश अगले सप्ताह जारी कर सकती है, उद्योग विभाग के एक अधिकारी ने बताया।
अधिकारी ने कहा कि सर्कुलर जारी करने में देरी इसलिए हुई क्योंकि कई अधिकारी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में व्यस्त थे।
उपरोक्त नीति में इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर 15% सब्सिडी की घोषणा की गई थी। इसके तहत पहले दो लाख दोपहिया वाहनों पर 5,000 रुपए की छूट मिलेगी।
वहीं, पहले 50,000 तिपहिया वाहनों पर 12,000 रुपए की छूट मिलेगी। इसके अलावा पहले 25 हजार चार-पहिया वाहनों पर भी छूट दी जाएगी। चार-पहिया वाहनों पर एक लाख रुपए की छूट मिलेगी।
वैश्विक वाहन उद्योग ईवी के प्रयोग को लेकर नहीं है आश्वस्त: सर्वे
एक सर्वेक्षण के मुताबिक वैश्विक ऑटोमोटिव उद्योग के अधिकारियों के बीच इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की दर को लेकर आत्मविश्वास पिछले साल की तुलना में कम हुआ है। इस बदलाव का कारण हैं आपूर्ति श्रृंखला की समस्याएं और बढ़ती आर्थिक चिंताएं।
अंतरराष्ट्रीय परामर्श और लेखा फर्म केपीएमजी द्वारा वार्षिक वैश्विक ऑटो सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 900 से अधिक ऑटोमोटिव अधिकारियों में से 76% ने आशंका जताई है कि मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दरें अगले वर्ष उनके व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगी।
वहीं अमेरिका में आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं और मंदी की आशंकाओं के बीच ईवी के लिए इंसेंटिव की शर्तें सख्त हुई हैं और बैटरी के लिए कच्चे माल के बारे में भी चिंताएं बढ़ीं हैं। वाहनों की कीमतों में भी रिकॉर्ड उछाल देखा जा रहा है।
2025 तक एक अरब टन से अधिक होगा भारत का कोयला उत्पादन: आईईए वार्षिक रिपोर्ट
भारत, चीन के साथ, दुनिया का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की वार्षिक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक भारत का अपना कोयला उत्पादन एक बिलियन टन को पार कर जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार भारत की कोयले की खपत 2007 के बाद से 6% की वार्षिक वृद्धि दर से दोगुनी हो गई है।
वैश्विक स्तर पर भारत और चीन ही ऐसे दो देश हैं जहां कोयला खान संपत्तियों में निवेश में तेजी आई है। आईईए का कहना है कि बाहरी निर्भरता को कम करने के लिए दोनों देशों में घरेलू उत्पादन में वृद्धि की गई है।
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने 2022 में कोयला और गैस व्यापार, मूल्य स्तर और आपूर्ति और मांग पैटर्न की गतिशीलता को बदल दिया है। लेकिन भारत और चीन में, जहां कोयला बिजली प्रणालियों का आधार है और गैस बिजली उत्पादन का सिर्फ एक अंश है, कोयले की मांग पर गैस की कीमतों का असर सीमित रहा है।
रुसी तेल खरीदना जारी रखेगा भारत
विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने कहा की भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को प्राथमिकता देगा और रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा। जयशंकर ने कहा कि यूरोपीय देशों के लिए अपनी ऊर्जा जरूरतों को प्राथमिकता देना और भारत को कोई और रास्ता ढूंढने के लिए कहना सही नहीं है।
भारत अब तक सात प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह और यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित रूसी तेल पर $ 60 प्रति बैरल मूल्य कैप के लिए प्रतिबद्ध नहीं है।यह कदम पश्चिमी सरकारों द्वारा मास्को के जीवाश्म ईंधन आय को सीमित करने का एक प्रयास है जिस से मास्को अपनी सेना और यूक्रेन पर आक्रमण पर काम लेता है ।
जयशंकर ने कहा कि यूरोपीय संघ भारत की तुलना में रूस से अधिक जीवाश्म ईंधन का आयात कर रहा है।
नए तेल और गैस क्षेत्रों के लिए फंडिंग बंद करेगा एचएसबीसी
एचएसबीसी ने घोषणा की है कि वह वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के अपने प्रयासों के तहत नए तेल और गैस प्रोजेक्ट्स को कर्ज़ देना बंद देगा। हालाँकि, इस साल की शुरुआत में बैंक आलोचना के घेरे में आया जब यह पता चला कि उसने 2021 में नए तेल और गैस में अनुमानित $8.7बिलियन (£6.4बिलियन ) का निवेश किया था। अब यूरोप के इस सबसे बड़े बैंक ने कहा कि उसने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा विशेषज्ञों से सलाह लेने के बाद यह फैसला किया है।
विशेषज्ञों का कहना है की एचएसबीसी की घोषणा जीवाश्म ईंधन दिग्गजों और सरकारों को एक मजबूत संकेत भेजती है कि नए तेल और गैस क्षेत्रों के वित्तपोषण के लिए बैंकों की रुचि कम हो रही है। 2020 में एचएसबीसी ने “शुद्ध शून्य” होने का – जिसका अर्थ है कि वातावरण में पहले से मौजूद ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि नहीं करना – और हरित परियोजनाओं में $1 ट्रिलियन (£806 बिलियन) तक का निवेश और ऋण देने का संकल्प लिया था।