Newsletter - August 26, 2022
बाढ़ और भूस्खलन का कहर जारी, देश के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में 50 की मौत
भारत के उत्तरी और पूर्वी हिस्से में ज़बरदस्त मॉनसूनी बारिश और भूस्खलन के कारण करीब 50 लोगों की मौत हो गई। बारिश के पानी ने कई गांवों में फसल को पूरी तरह चौपट कर दिया। इससे पहले अगस्त और सितंबर में मौसम विभाग ने औसत बारिश का पूर्वानुमान किया था जिससे उम्मीद थी कि फसल अच्छी होगी और अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। भारत में जीडीपी में कृषि का 15% से अधिक योगदान है और देश की करीब आधी आबादी सीधे या परोक्ष रूप से रोज़गार के लिये इस पर निर्भर है।
उत्तर भारत में में बारिश और भूस्खलन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड रहे। हिमाचल में तीन दिनों के भीतर 36 लोगों की जान गई और उत्तराखंड में कम से कम 4 लोग मरे और 13 लापता हो गये। इन राज्यों में हालात को काबू में करने के लिये आपदा प्रबंधन की टीमें लगाई गईं। उधर पूर्वी राज्य ओडिशा में 8 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुये और कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई।
संवेदनशील फूलों की घाटी क्षेत्र में हैलीपेड का विरोध
उत्तराखंड के चमोली ज़िले में यूनेस्को की विश्व धरोहर घोषित की गई फूलों की घाटी में एक हेलीपैड के निर्माण का विरोध हो रहा है। यहां के स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों का कहना है कि यहां अतलाकोटी (घांघरिया और हेमकुण्ड के बीच 7 किलोमीटर का हिस्सा) एक संवेदनशील एवलांच क्षेत्र है जहां आपदा का खतरा किसी टाइम बम की तरह है। हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले चमोली ज़िले में जल्दी ग्लोशियर पिघल रहे हैं और पिछले साल यहां विनाशकारी बाढ़ की घटना हुई थी।
यह क्षेत्र लक्ष्मण गंगा जलागम क्षेत्र में है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट और हिमालयन जियोलॉजी की 2011 में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां पचास से अधिक एवलांच वाले इलाके हैं जहां पिछले कुछ सालों में जमी ताज़ा बर्फ के पहाड़ खिसक कर नीचे आ सकते हैं। इस क्षेत्र में जहां गर्मियों में 30 डिग्री तक तापमान पहुंचने लगा है वहीं जाड़ों में यह शून्य से 7 डिग्री नीचे तक पहुंच जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी अनिश्चितता बढ़ रही है। महत्वपूर्ण है कि इसी क्षेत्र में एक रोपवे भी बनाया जा रहा है और एक हेलीपैड पहले से स्थित है।
ग्लोबल वॉर्मिंग: भारत में गेहूं की पैदावार में होगी 7% तक गिरावट
एक नई रिसर्च बताती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के प्रयासों से अगर धरती की तापमान वृद्धि 2 डिग्री तक सीमित भी कर ली जाये तो गेहूं की पैदावार बड़ा उतार-चढ़ाव होगा। भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों और अफ्रीकी देशों में गेहूं के उत्पादन में बड़ी गिरावट और मूल्यों में तेज़ उछाल दिखेगा। जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक भारत में गेहूं की पैदावार में 6.9% की कमी और कीमतों में 36% तक का उछाल होगा। रिसर्च के मुताबिक मिस्र में तो गेहूं का उत्पादन 24.2% तक गिर सकता है। खाद्य और कृषि संगठन ने पहले ही चेतावनी दी है कि 2050 तक अनाज की वार्षिक मांग 43 प्रतिशत तक बढ़ जायेगी और इस लिहाज से शोध के नतीजे भारत के लिये डराने वाले हैं।
हालांकि चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों में तापमान वृद्धि के कारण गेहूं की पैदावार बढ़ेगी। अनुमान है कि इस कारण वैश्विक पैदावार में करीब 1.7 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जायेगी।
जलवायु परिवर्तन से कम होगी सौर और पवन ऊर्जा क्षमता
एक नये शोध में कहा गया है कि आने वाले 50 सालों में जलवायु परिवर्तन के असर से सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन प्रभावित होगा। यह शोध पुणे स्थित भारतीय ऊष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) ने किया है जिसके मुताबिक सूर्य के किरणों की तीव्रता आने वाले दिनों में कई जगहों पर कम हो सकती है जिसका असर सौर ऊर्जा उत्पादन पर पड़ेगा। इसी तरह पवन ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता भी प्रभावित होगी। हवा की गति उत्तर भारत में कम और दक्षिण भारत में तेज़ हो सकती है।
आईआईटीएम का यह अध्ययन जलवायु मॉडल आँकलन पर आधारित है। जानकारों का कहना है कि ऐसे में सौर और पवन ऊर्जा टेक्नोलॉजी के विकास में निवेश और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने की ज़रूरत है।
भारत भले ही जलवायु परिवर्तन से सबसे संकटग्रस्त देशों में हो लेकिन यहां की संसद में इस ज्वलंत मुद्दे पर बहुत ही कम चर्चा होती है। इस विषय पर हुई एक रिसर्च से पता चला है कि 1999 से 2019 के बीच पूछे गये संसदीय सवालों में केवल 0.3% ही जलवायु परिवर्तन पर थे। यह हैरान करने वाली बात है क्योंकि देश में किसी भी तरह की समस्या के लिये अक्सर सरकारें एक्सट्रीम वेदर या क्लाइमेट चेंज पर ज़िम्मेदारी डालते हैं लेकिन इन बीस सालों में संसद में कुल 895 ही ऐसे सवाल पूछे गये जिनका रिश्ता जलवायु परिवर्तन से था। यह कुल संसदीय प्रश्नों के आधे प्रतिशत (0.3%) से भी कम है।
वेबसाइट मोंगाबे इंडिया में इस विषय पर लिखी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में करोड़ों गरीब लोग जलवायु परिवर्तन के हिसाब से संकटग्रस्त क्षेत्रों में रहते हैं फिर भी यहां क्लाइमेट जस्टिस और एडाप्टेशन के लेकर विमर्श न के बराबर है। जलवायु परिवर्तन चुनावी मुद्दा भी नहीं बनता जो कि चिन्ता विषय है।
ग्लोबल वार्मिंग पर अपने राष्ट्रीय लक्ष्य पर समय सीमा से आगे है भारत
केंद्र सरकार का कहना है कि भारत ग्लोबल वॉर्मिंग पर तय अपने निर्धारित राष्ट्रीय लक्ष्य (एनडीसी) हासिल करने की प्रक्रिया में समय से आगे चल रहा है। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि भारत 23 सितंबर से पहले संयुक्त राष्ट्र में अपने तय लक्ष्यों की प्रगति की रिपोर्ट जमा कर देगा। सभी देशों को इस तारीख तक अपने तय राष्ट्रीय लक्ष्यों की रिपोर्ट जमा करनी है। यह लक्ष्य 2015 में पेरिस डील के तहत तय हुये हैं जिन्हें सभी देश समय समय पर अपडेट करते हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के पैनल (यूएनएफसीसीसी) में इन रिपोर्ट्स के जमा होने के बाद साल के अंत में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में सचिवालय द्वारा रिपोर्ट प्रकाशित की जायेगी जिसमें सभी एनडीसी का विश्लेषण होगा।
इस विश्लेषण से ही यह तय होता है कि साल के अंत तक धरती की तापमान वृद्धि को 2 डिग्री तक रोकने और 1.5 डिग्री के आसपास सीमित करने की दिशा में क्या तरक्की हुई है। अब तक की रिपोर्ट्स के हिसाब से तमाम देशों के प्रयास इस दिशा में नाकाफी ही हैं।
मराठवाड़ा में 8 महीनों में 600 किसानों की गई जान, एक्सट्रीम वेदर या कमज़ोर सरकारी नीति ?
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में 8 महीनों में कुल 600 किसानों की जान जाने से यह सवाल मुखर हो गया है कि वहां कृषि कितनी बदहाल है। डाउन टु अर्थ में छपी ख़बर के मुताबिक साल 2021 के 12 महीनों में औरंगाबाद ज़िले (जो की मराठवाड़ा का अधिकांश हिस्सा है) में 800 किसानों की मौत हुई। इस साल जनवरी से जुलाई के बीच में ही 547 किसान मरे। किसानों की आत्महत्या के पीछे पहले सूखा और फिर बेइंतहा बारिश से हुई फसल बर्बादी को वजह बताया जा रहा है। इससे लाखों हेक्टेयर में तूर, मक्का, सोयाबीन, कपास और केले की फसल चौपट हो गई।
हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किसानों की आत्महत्या के लिये एक्सट्रीम वेदर के बजाय सरकार की नीतियों को दोषी ठहराया है। कृषि से जुड़े एक्टिविस्ट्स ने डाउन टु अर्थ को कहा कि सरकार जिस भाव में उपज खरीदने की बात करती है उससे काफी कम कीमत देती है और बैंक भी किसानों को समय पर कर्ज नहीं देते।
क्लाइमेट एक्शन पर सहयोग की अमेरिकी पेशकश पर चीन का ठंडा रुख
चीन ने मंगलवार को अमेरिका की पेशकश ठुकरा दी जिसमें बाइडेन सरकार ने क्लाइमेट पर सहयोग करने और वार्ता को शुरू करने की पेशकश की थी। चीन ने क्लाइमेट फाइनेंस पर अमेरिका के रुख की आलोचना की और कहा कि बाइडेन सरकार चीन के सोलर पैनलों पर लगे प्रतिबंध को हटाये।
अमेरिका की सीनेटर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन ने इसी महीने क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप की बैठक को रद्द कर दिया था। ताइवान में स्वायत्ता और लोकतंत्र के बावजूद चीन उसे अपना हिस्सा मानता है।
क्लाइमेट से जुड़ा कानून पास करने के बाद चीन में अमेरिकी राजदूत निकोलस बर्न ने क्लाइमेट प्रयासों पर अपने देश की पीठ थपथपाते हुये कहा कि चीन को कुछ ऐसा ही करना चाहिये और अमेरिका के साथ रुकी बातचीत को शुरु करना चाहिये। इस पर चीन ने बहुत ही ठंडा रुख दिखाते हुये बस यही कहा कि “हमें सुनकर अच्छा लगा लेकिन देखने की बात होगी कि क्या अमेरिका जो कह रहा है वह कर सकता है।”
महत्वपूर्ण है कि चीन और अमेरिका अभी दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जन देश हैं और इनके कुल इमीशन दुनिया के सालाना इमीशन के 40 प्रतिशत से अधिक होते हैं।
दिल्ली की एयर क्वॉलिटी सुधारने के लिये 60 करोड़ डॉलर की योजना
दुनिया में सबसे खराब एयर क्वॉलिटी वाले शहरों में एक दिल्ली की हवा को साफ करने के लिये राज्य सरकार 60 करोड़ डॉलर की योजना बना रही है। दिल्ली के डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन के वाइस चेयरमैन जैस्मिन शाह के मुताबिक हवा को साफ करने के लिये साल 2025 तक यहां कुल वाहनों के 80% इलैक्ट्रिक होंगे औऱ इनके लिये बड़ी संख्या में चार्जिंग स्टेशन लगाये जायेंगे। शाह के मुताबिक दिल्ली अपनी एक चौथाई बिजली सोलर पैनलों की मदद से बनायेगा ताकि कार्बन इमीशन को प्रभावी रूप से कम किया जा सके।
महत्वपूर्ण है कि एयर क्वॉलिटी के एक वैश्विक विश्लेषण में पाया गया था कि पीएम 2.5 के मामले में दिल्ली दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषित शहर है। बुधवार को अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टिट्यूट द्वारा ‘एयर क्वॉलिटी एंड हेल्थ इन द सिटी’ नाम से जारी रिपोर्ट में दुनिया के 7,000 शहरों के साल 2010 से 2019 तक के डाटा का एनालिसिस किया गया। इसमें पीएम 2.5 की सूची में दिल्ली और कोलकाता पहले और दूसरे नंबर पर रहे।
हीटवेव के दौरान वायु प्रदूषण ने भी बनाया रिकॉर्ड
सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) के ताज़ा विश्लेषण से पता चलता है कि इस साल गर्मियों में हीटवेव के दौरान उत्तर भारत में वायु प्रदूषण ने भी रिकॉर्ड बनाया। पीएम 2.5 का औसत स्तर 71 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया जो डब्लूएचओ के तय मानकों (5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से 14 गुना अधिक था। पीएम 2.5 का बढ़ता स्तर अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश में यह चिन्ता का विषय है।
आंकड़े बताते हैं बिहारशरीफ में दैनिक पीएम 2.5 का स्तर सबसे अधिक 285 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जबकि हरियाणा के रोहतक में यह 258 और पटना में 200 रिकॉर्ड किया गया। सीएसई का विश्लेषण बताता है कि वायु प्रदूषण के इस स्तर के लिये केवल वाहन ही नहीं बल्कि उद्योग और बिजलीघर, कूड़ा जलाना और शुष्क गर्म मौसम में धूल का उड़ना ज़िम्मेदार रहा। इसके बारे में विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है।
वायु प्रदूषण से हो रही चुपचाप मौत, कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री का बयान
पिछले महीने सरकार ने संसद में कहा था कि वायु प्रदूषण एक शहरी समस्या है और उससे इसी तरीके से निपटा जाना चाहिये। लेकिन अब कर्नाटक में बीजेपी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के सुधाकर ने कहा है कि “वायु प्रदूषण से लोग चुपचाप मर रहे हैं” और इस समस्या को “कई स्तर पर” हल करना होगा वरना आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। सुधाकर ने यह बात वायु प्रदूषण से जुड़े एक कार्यक्रम – इंडिया क्लीन एयर समिट 2022 – में कही।
उधर कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिन श्रीनिवासुलू ने कहा है कि लोग वायु प्रदूषण की समस्या को तभी समझेंगे जब यह उनको चोट पहुंचायेगा। श्रीनिवासुलू ने कहा कि ब्रांकाइटिस के मरीज़ों की बढ़ती संख्या और इसका प्रकोप लोगों को यह समझाने के लिये काफी होना चाहिये कि एयर पॉल्यूशन कितनी बड़ी चिन्ता है।
भारत ने 2022 की पहली छमाही में 7 गीगावॉट सोलर क्षमता जोड़ी
साल 2022 की पहली छमाही में भारत ने कुल 7.2 गीगावॉट की सोलर क्षमता जोड़ी जो कि पिछले साल इसी समयावधि में लगी 4.5 गीगावॉट के मुकाबले 59% अधिक है। भारत की कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता अब लगभग 57 गीगावॉट हो गई है। राजस्थान मार्च में देश का पहला राज्य बना जिसकी कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता 10 गीगावॉट तक पहुंच गये। राजस्थान के अलावा गुजरात और महाराष्ट्र इस मामले में अग्रणी राज्यों में हैं ।
महत्वपूर्ण है कि 2021 में 10 गीगावॉट क्षमता के संयत्र लगे और अब 2022 लगता है सोलर पैनल लगाने के उस रिकॉर्ड को भी तोड़ देगा। मरकॉम की रिसर्च के मुताबिक लार्ज स्केल सोलर अभी कुल क्षमता का 90% है जबकि रूफ टॉप 10% के बराबर है।
यूपी ने अगले 5 साल में 16 गीगावॉट के सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने का प्रस्ताव रखा
उधर उत्तर प्रदेश सरकार ने सौर ऊर्जा को लेकर अपनी एक ड्राफ्ट पॉलिसी जारी की है जिसके मुताबिक अगले 5 साल में सरकार ने 16 गीगावॉट के सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने का प्रस्ताव रखा है। सरकार 16 गीगावॉट क्षमता का यह लक्ष्य 2026-27 तक हासिल करना चाहती है। इसमें 10 गीगावॉट यूटिलिटी स्केल पावर प्रोजेक्ट होंगे और 4 गीगावॉट रूफ टॉप सोलर होगा। मरकॉम के मुताबिक अभी यूपी की कुल सोलर क्षमता 2.3 गीगावॉट है और सभी राज्यों में वह नवें नंबर पर है। अपनी नीति में सरकार ने कहा है कि वह कृषि के लिये अनुपयुक्त ज़मीन को सोलर संयत्र लगाने के लिये मुहैया करायेगी और घरेलू, सरकारी और सरकार के अधीन पब्लिक सेक्टर संस्थानों और शैक्षिक संस्थानों में नेट मीटरिंग को बढ़ावा देगी।
सरकार सोलर को बढ़ावा देने के लिये पूरे राज्य में ‘सोलर सिटी’ बनाने और एमएसएमई सेक्टर को भी रूफ टॉप को तरजीह देने के लिये प्रोत्साहित करेगी। लखनऊ, प्रयागराज, आगरा, मेरठ, अयोध्या और नोयडा समेत कुल 20 शहरों को ‘सोलर सिटी’ बनाने का प्रस्ताव नई नीति में है।
नये पवन ऊर्जा संंयत्र लगाने की रफ्तार 2024 के बाद धीमी होगी
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नये पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने की रफ्तार 2024 तक अपने शिखर पर पहुंच जायेगी और उसके बाद इसकी रफ्तार में गिरावट की संभावना है। यह बात एनर्जी सेक्टर में काम करने वाली ग्लोबल विन्ड एनर्जी काउंसिल और एमईसी+ नाम की कंसल्टेंसी फर्म के अध्ययन में सामने आयी है। साफ ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ाने के वादों के तहत भारत ने कहा है कि वह 2030 तक अपनी 50% बिजली क्लीन एनर्जी के स्रोतों से बनायेगा। साल 2022 तक कुल 60 गीगावॉट विन्ड एनर्जी लगाने का लक्ष्य था लेकिन भारत ने अभी तक कुल 40 गीगावॉट के संयंत्र ही लगाये हैं।
दिल्ली में चार्ज़िंग पॉइन्ट्स को लेकर क्या है सरकार की योजना
दिल्ली सरकार वह साल 2024 तक हर 15 इलैक्ट्रिक वाहनों पर एक चार्जिंग स्टेशन की योजना बना रही है। इलैक्ट्रिक वाहनों को खरीदते समय ग्राहक के लिये चार्जिंग ही सबसे बड़ी फिक्र होती है। दिल्ली सरकार ने दो साल पहले अपनी ईवी नीति की घोषणा की थी और अब उसमें सुधार के तहत ये नया ऐलान किया गया है कि किसी भी दिल्ली वासी को 3 किलोमीटर के दायरे में चार्ज़िंग स्टेशन उपलब्ध होगा। दिल्ली सरकार का नीति पत्र कहता है कि 15 वाहनों पर एक चार्जिंग पॉइंट के लिये सरकार को शहर में कुल 18,000 चार्जिंग स्टेशन बनाने होंगे।
दिल्ली सरकार का कहना है कि दुपहिया और तिपहिया वाहनों का प्रदूषण में बड़ा योगदान है इसलिये इस सेगमेंट में ईवी को बढ़ावा देकर एयर क्वॉलिटी को बेहतर करने में मदद मिलेगी।
दो बड़ी कंपनियों ने बैटरियों के कच्चे माल के लिये कनाडा सरकार से किया करार
दो बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों फोक्सवैगन और मर्सिडीज़ ने कनाडा सरकार के साथ निकिल, कोबाल्ट और लिथियम जैसे खनिजों के लिये करार किया है जो कि इलैक्ट्रिक वाहनों में बैटरी के लिये ज़रूरी हैं। ब्लूम्सबर्ग में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक इस बारे में कनाडा और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्ष एमओयू साइन करेंगे। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने कनाडा के जस्टिन ट्रोडियो के साथ प्रेसवार्ता में कहा कि “महत्वपूर्ण कच्चे माल” के लिये दोनों देश मिलकर काम करने की योजना बना रहे हैं।
वाक्सवेगन का कहना है कि इस करार से उसका उद्देश्य अमेरिका में अपनी फैक्ट्रियों के लिये सप्लाई चेन को छोटा करना है। अमेरिका की नई नीतियों से फोक्सवेगन के इस कदम को मदद मिली है। वाक्सवेगन के अलावा मर्सिडीज़ और स्टैलैंटिस एन वी जैसे ऑटोमेकर इस रणनीति पर काम कर रहे हैं।
भारत के कच्चे तेल का आयात पिछले साल के मुकाबले 35 प्रतिशत बढ़ा
इस साल जुलाई में भारत के कच्चे तेल का आयात पिछले साल जुलाई की तुलना में 35 प्रतिशत बढ़ गया। इस साल जून के मुकाबले इस आयात में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हेतल गांधी और क्रिसिल रिसर्च के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद लगी पाबंदियां हटने से मोबिलिटी बढ़ी और आर्थिक गतिविधियां तोज़ हुई जिस वजह से कच्चे तेल की खपत बढ़ी है। मार्च के बाद पहली बार जुलाई में भारत ने रुस से भी तेल का आयात शुरु किया और सऊदी अरब से यह आयात पिछले 5 महीनों में पहली बार बढ़ा है।
उधर भारत सरकार साल 2024-25 तक कच्चे तेल पर निर्भरता कम करने के लिये रोड मैप को अंतिम रूप दे रही है। समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक इससे पहले पेट्रोलियम मंत्रालय ने आयातित कच्चे तेल और गैस पर निर्भरता कम करने के अलग अलग विभागों और मंत्रालयों को सौंपे गये काम की मॉनिटरिंग के लिये कई वर्किंग ग्रुप भी बनाये थे।
रूस के ‘कार्बन बम’ के पीछे अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के वित्तीय संस्थान
जीवाश्म ईंधन यानी तेल और गैसे आदि के उत्पादन को बढ़ाने वाले रूस के ‘कार्बन बम’ प्रोजेक्ट के पीछे अमेरिका और यूके के वित्तीय संस्थान प्रमुख निवेशक हैं। यह बात हाल के आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आयी है। यूक्रेन में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि अमेरिका और यूके के इन वित्तीय संस्थानों को तुरंत ऐसे निवेश रोक देने चाहिये। आंकड़े बताते हैं कि रूस के ऐसे प्रोजेक्ट में करीब आधा निवेश अमेरिकी कंपनियों का है।
शोधकर्ताओं ने उन जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट्स की ‘कार्बन बम’ के तौर पर पहचान की है जिनसे एक बिलियन (100 करोड़) टन CO2 उत्सर्जित होती है जो कि यूके के सालाना इमीशन का 3 गुना है। रूस में ऐसे 40 कार्बन बम हैं जिनमें से 19 को विदेशी निवेश की मदद से रूसी कंपनियां चला रही हैं। शोध बताता है कि ऐसे तेल और गैस प्रोजेक्ट्स के लिये करीब 400 विदेशी वित्त संस्थानों ने रूसी कंपनियों को करीब 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर मदद की है जिनमें 84 बिलियन डॉलन उधार के रूप में और बाकी निवेश है। रूस-यूक्रेन युद्ध के 6 महीने बाद यूक्रेन के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यह डाटा रिलीज़ किये गये हैं।