Vol 1, May 2024 | कितना कारगर हो सकता है भारत का कोयला गैसीकरण मिशन

Newsletter - May 18, 2024

भारत की कोयला गैसीकरण योजना: संभावनाएं, रोडमैप और चुनौतियां

भारत की योजना 2030 तक 100 मीट्रिक टन कोयले का गैसीकरण करने की है, और देश के पास इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रचुर भंडार हैं। लेकिन इसे सफल बनाने के लिए कुछ चुनौतियों से निपटना होगा, जैसे खराब गुणवत्ता के कोयले, और प्रभावी कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन और स्टोरेज तकनीक की कमी आदि।

हाल के वर्षों में भारत ने बड़े पैमाने पर कोयला गैसीकरण पर काम शुरू किया है। इसके कारण स्पष्ट हैं — जीवाश्म ईंधन से ‘ट्रांज़िशन अवे’, यानी प्रयोग कम करके कार्बन उत्सर्जन घटाने का संकल्प भारत ने भी किया है। भारत का इरादा 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का भी है। लेकिन इन संकल्पों के साथ ही यह संभावना उत्पन्न होती है कि भारत में सस्ते घरेलू कोयले की जो प्रचुर आपूर्ति होती है, वह किसी काम में नहीं आएगी। ऐसे में, भारत को कोयला गैसीकरण ‘वास्तव में कोयला जलाने’ की तुलना में उत्सर्जन कम करने का अधिक स्वच्छ विकल्प दिखाई देता है। इससे भारत प्राकृतिक गैस और और मेथनॉल, इथेनॉल और अमोनिया जैसे ऊर्जा ईंधनों के बढ़ते आयात में भी कटौती कर सकता है।

क्या है कोयला गैसीकरण

कोयला गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कार्बनयुक्त पदार्थों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, पेट्रोलियम कोक या बायोमास आदि को कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन में परिवर्तित किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह कोयले के रासायनिक घटकों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सिंथेसिस गैस उत्पन्न होती है, जिसे सिनगैस भी कहा जाता है। सिनगैस हाइड्रोजन (H2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का मिश्रण है और इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।

कोयले के गैसीकरण का रासायनिक समीकरण इस प्रकार है 

 3C (कार्बन)+ O2 + H2O = H2 + 3CO (सिनगैस)।

कोयला गैसीकरण की प्रक्रिया में काफी ऊर्जा और पानी खर्च होता है और भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। प्रिंसटन स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स द्वारा प्रकाशित एक पेपर में कहा गया है कि कई मामलों में यह उत्सर्जन कोयला जलाने से भी अधिक होता है। अतः, गैसीकरण को सफल बनाने के लिए जरूरी है उत्सर्जित कार्बन का संग्रहण (कैप्चर), उपयोग (यूटीलाइज़ेशन) और भंडारण (स्टोरेज) बहुत महत्वपूर्ण है।

कोयला गैसीकरण भारत के लिए क्यों है जरूरी

जैसा की पहले बताया गया, कोयला गैसीकरण के माध्यम से भारत स्वच्छ ईंधन की और बढ़ना चाहता है और प्राकृतिक गैस, कोकिंग कोल, मेथनॉल, अमोनिया और अन्य आवश्यक उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करना चाहता है। सिनगैस मैनुफैक्चरिंग क्षेत्रों जैसे स्टील उत्पादन में कोकिंग कोल और प्राकृतिक गैस की जगह ले सकती है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के उर्वरक, ईंधन, साल्वेंट और सिंथेटिक सामग्री का उत्पादन करने के लिए भी किया जा सकता है।

इसके अलावा यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत द्वारा की गई उत्सर्जन में कटौती की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने भी सहायक हो सकता है।

कोयला गैसीकरण की जरूरत भारत में कोयले की प्रचुरता से भी जुड़ी है। भारत दुनिया के शीर्ष पांच कोयला भंडारों में से एक है। देश में लगभग 344 बिलियन टन (बीटी) कोयला भंडार हैं, जिनमें से 163 बिलियन टन कोयला निश्चित रूप से निकाला जा सकता है। सरकार इन भंडारों का दोहन करने के लिए तत्पर है।

2017 में तत्कालीन कोयला सचिव सुशील कुमार ने दावा किया था कि कोयला गैसीकरण से भारत के (प्राकृतिक गैस, कोकिंग कोल और यूरिया, मेथनॉल और अमोनिया आदि जैसे अन्य रसायनों के) आयात बिल में पांच वर्षों में 10 बिलियन डॉलर की कमी आएगी।

पिछले एक दशक में कोयले और लिग्नाइट के गैसीकरण की योजना में तेजी आई है। सितंबर 2021 में सरकार ने कोयला गैसीकरण मिशन की रूपरेखा बताते हुए पहला व्यापक मिशन दस्तावेज़ प्रकाशित किया। दस्तावेज़ के अनुसार: “पर्यावरण संबंधी चिंताओं और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के साथ, इसके सस्टेनेबल उपयोग के लिए कोयले का विविधीकरण अपरिहार्य है।”

सरकार कोयला गैसीकरण संयंत्रों को “रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण” बताती है क्योंकि “कोयले की कीमतें बहुत तेजी से नहीं बदलती और घरेलू कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है”। भारत ने 2030 तक 100 मिलियन टन (एमटी) कोयला गैसीकरण का लक्ष्य रखा है।

सरकार के नीति दस्तावेज़ में कहा गया है, “कोयला जलाने की तुलना में गैसीकरण को एक स्वच्छ विकल्प माना जाता है। गैसीकरण कोयले के रासायनिक गुणों के उपयोग की सुविधा प्रदान करता है। कोयला गैसीकरण से उत्पन्न सिनगैस का उपयोग सिंथेटिक प्राकृतिक गैस (एसएनजी), ऊर्जा ईंधन (मेथनॉल और इथेनॉल), उर्वरकों और पेट्रो-रसायनों के लिए अमोनिया के उत्पादन में किया जा सकता है।”

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने लगभग 56 मीट्रिक टन कोकिंग कोल का आयात किया, जो कुल आयातित कोयले का लगभग 23.5% था। इस पर सरकार ने 19.2 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए। इसी तरह, भारत लगभग 50% प्राकृतिक गैस का आयात करता है। भारत अपनी इथेनॉल खपत का 90% से अधिक और लगभग 15% अमोनिया का भी आयात करता है।   

सरकार की कोयला गैसीकरण की नीति और योजना

नीति आयोग और केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने गैसीकरण रोडमैप को लागू करने के लिए प्रमुख समितियों का गठन किया। इस साल जनवरी में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी। सरकार ने इन परियोजनाओं पर 8,500 करोड़ रुपए (लगभग $1.02 बिलियन) खर्च करने की घोषणा की। इसके बाद कोयला मंत्रालय ने भारत में कोयला गैसीकरण संयंत्र स्थापित करने के लिए “इच्छुक सरकारी सार्वजनिक उपक्रमों और निजी निवेशकों की प्रतिक्रिया मांगने” के लिए तीन ड्राफ्ट रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी किए। 

इस 8,500 करोड़ रुपए के आवंटन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है

सरकारी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (पीएसयू) के लिए 4,050 करोड़ रुपए का प्रावधान है। इसमें तीन परियोजनाओं को एकमुश्त 1,350 करोड़ रुपए तक (या पूंजीगत व्यय के 15% तक, जो भी कम हो) की मदद की जा सकती है। निजी क्षेत्र और सरकारी पीएसयू के लिए 3,850 करोड़ रुपए का प्रावधान है। प्रत्येक परियोजना को 1,000 करोड़ रुपए या पूंजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का एकमुश्त अनुदान दिया जा सकता है। 

पायलट परियोजनाओं (स्वदेशी प्रौद्योगिकी) और/या छोटे पैमाने के प्रोडक्ट-आधारित गैसीकरण संयंत्रों के लिए 600 करोड़ रुपए रखे गए हैं। वे 100 करोड़ रुपए या पूंजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का एकमुश्त अनुदान प्राप्त कर सकते हैं।

26 जुलाई, 2023 को कोयला मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘मिशन दस्तावेज़ के अनुरूप, कोल इंडिया लिमिटेड ने देश में कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को शुरू करने के लिए बीएचईएल, गेल और आईओसीएल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।’

इसमें यह भी कहा गया कि ‘कोयला गैसीकरण को बढ़ावा देने के लिए कोयला मंत्रालय ने एक नीति बनाई है, जिसमें भविष्य में होनेवाली सभी वाणिज्यिक कोयला ब्लॉक नीलामियों में, गैसीकरण के लिए कोयला उपलब्ध कराने वाले ब्लॉकों को राजस्व हिस्सेदारी में 50% छूट मिलेगी, यानी उन्हें सरकार को राजस्व हिस्सेदारी का आधा ही देना होगा बशर्ते कि कुल कोयला उत्पादन का कम से कम 10% गैसीकरण के लिए उपलब्ध कराया जाए। इसके अलावा, नए कोयला गैसीकरण संयंत्रों के लिए कोयला उपलब्ध कराने हेतु एनआरएस (गैर-विनियमित क्षेत्र) के तहत एक अलग नीलामी विंडो बनाई गई है।’

केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने पिछले साल घोषणा की थी कि ओडिशा में देश का पहला कोयला गैसीकरण-आधारित तालचेर उर्वरक संयंत्र अक्टूबर 2024 तक तैयार हो जाएगा। जब भारत की कोयला गैसीकरण योजना हकीकत में बदलेगी, तो यह प्लांट कई परियोजनाओं में से एक होगा।

दिसंबर 2022 में, तत्कालीन केंद्रीय कोयला सचिव अमृत लाल मीना और कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के अध्यक्ष प्रमोद अग्रवाल ने ओडिशा के अंगुल में जिंदल स्टील (जेएसपीएल) की फैसिलिटी का दौरा किया। कंपनी का दावा था कि यह “दुनिया का सबसे बड़ा गैसीकरण संयंत्र” है।

“अंगुल संयंत्र में जेएसपीएल घरेलू कोयले द्वारा गैस-आधारित डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआई) संयंत्र का संचालन कर रहा है। तालचेर फर्टिलाइजर लिमिटेड (टीएफएल) यूरिया उत्पादन के लिए हाई ऐश घरेलू गैर-कोकिंग कोयले में पेट कोक मिलाने की दिशा में भी आगे बढ़ रही है,” कोयला मंत्रालय ने अपने मिशन पेपर में कहा। 

क्या हैं चुनौतियां

लेकिन इस मार्ग में कुछ बड़ी बाधाएं हैं जिन्हें दूर करना अभी बाकी है। इनमें प्रमुख हैं भारत में पाए जाने वाले कोयले की खराब गुणवत्ता और गैसीकरण की प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित कार्बन को संग्रहीत करने और उपयोग करने (सीसीयूएस) के लिए प्रभावी तकनीक का अभाव।

सार्वजनिक और निजी कंपनियों ने गैसीकरण संयंत्र स्थापित करने में रुचि दिखाई है, लेकिन उन्हें सरकार से भारी सब्सिडी की उम्मीद है। इस कारण एक बड़ी वित्तीय चुनौती भी है। भारत इस्पात और उर्वरक जैसे उद्योगों के लिए कोयला गैसीकरण का उपयोग करना चाहता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या गैसीकरण से यह उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहले से ही मौजूद उत्पादों से सस्ते होंगे?

यह कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं और इस मिशन को सफल बनाने के लिए इन्हें तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है।

घरेलू कोयले की ख़राब क्वालिटी

भारत में खनन किए जाने वाले कोयले में राख की मात्रा बहुत अधिक होती है — लगभग 25% -40%, जबकि आयातित कोयले का औसत ऐश कंटेंट 10% -20% होता है।

ऊर्जा उत्पादन में राख का योगदान नहीं होता। इसलिए अधिक ऐश कंटेंट वाले कोयले से सिनगैस की कम मात्रा उत्पन्न होती है। गैसीकरण के दौरान ऐश पिघल कर इकठ्ठा हो जाती है जिससे संयंत्र के संचालन में दिक्कत आ सकती है। अधिक राख से अधिक स्लैग भी पैदा होता है, जिसके कारण प्रबंधन और निपटान की लागत बढ़ जाती है। इस सब का मिलाजुला असर यह होता है कि सिनगैस की गुणवत्ता कम हो जाती है।

कोयले में मौजूद राख जैसी अशुद्धियों को कोल वाशिंग से हटाया जा सकता है। लेकिन भारत में पाए जाने वाले कोयले की वाशिंग क्षमता भी कम है।

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने 2020 में नीति आयोग के लिए एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें कहा गया, “भारतीय कोयले में अधिक ऐश कंटेंट (35-55%), अधिक नमी की मात्रा (4-20%), कम सल्फर की मात्रा (0.2-0.7%) और कम कैलोरिफिक वैल्यू (2,500-5,000 किलो कैलोरी/किग्रा के बीच) ) होती है। यह अन्य देशों के कोयले में पाई जाने वाली सामान्य सीमा (5,000 से 8,000 किलो कैलोरी/किग्रा) से बहुत कम है।”

रिपोर्ट में कहा गया कि “75% से अधिक भारतीय कोयले में राख की मात्रा 30% से अधिक है, कुछ में तो यह 50% तक भी है। इसकी वॉशएबिलिटी भी ख़राब है”।

पूर्व ऊर्जा सचिव आलोक कुमार ने कार्बनकॉपी को बताया, “यह एक वास्तविक चुनौती है। चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य देश (कोयला) गैसीकरण की प्रक्रिया के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले कोयले का उपयोग कर रहे हैं। गैसीकरण के लिए अपने कोयले का प्रभावी ढंग से उपयोग करने से पहले भारत को अभी भी तकनीकी प्रगति की जरूरत है।” 

नीति आयोग के सलाहकार (ऊर्जा) राजनाथ राम खराब कोयले की चुनौती को स्वीकार करते हैं, लेकिन कहते हैं कि इस मुद्दे के समाधान के लिए “टेक्नोलॉजी विकसित की जा रही है”। “हम भारत में पाए जाने वाले कोयले के हाई ऐश कंटेंट से निपटने का तरीका खोजने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे पायलट प्रोजेक्ट में 40% तक ऐश कंटेंट वाले कोयले का परीक्षण किया जा रहा है,” उन्होंने कहा।

कार्बन कैप्चर, यूटीलाइज़ेशन और स्टोरेज

दूसरी ओर कार्बन का संग्रहण (कैप्चर), उपयोग (यूटीलाइज़ेशन) और भंडारण (स्टोरेज) यानि सीसीयूएस की टेक्नोलॉजी कितनी प्रभावी है, यह भी चर्चा का विषय है। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के प्रोग्राम मैनेजर पार्थ कुमार ने बताया, “(गैसीकरण के दौरान) भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के कारण इस तकनीक में सीसीयूएस की भूमिका महत्वपूर्ण है। लेकिन सीसीयूएस पर स्पष्ट सरकारी नीति और समर्थन की कमी है, देश में वास्तविक भंडारण क्षमता स्थापित करने में भी कोई प्रगति नहीं हुई है और न ही देश ने CO2 के उपयोग का आर्थिक रूप से व्यवहार्य कोई मॉडल विकसित किया है।”

नीति आयोग के राजनाथ राम कहते हैं, “कार्बन सेक्वेस्ट्रेशन (यानि CO2 का संग्रहण और भंडारण) के लिए भूवैज्ञानिक अध्ययन किए जा रहे हैं”। लेकिन शोधकर्ताओं और ऊर्जा विशेषज्ञों को सीसीयूएस की व्यवहार्यता पर संदेह है, वे इसे एक महंगी और अप्रमाणित तकनीक बताते हैं और परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता पर सवाल उठाते हैं।

आलोक कुमार के अनुसार, “यदि आप कोयले का उपयोग (गैसीकरण के लिए) करना चाहते हैं तो आपको इसे कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (सीसीयू) के साथ करना होगा, अन्यथा आप CO2 उत्सर्जन को बढ़ा देंगे। हालांकि, गैसीकरण में CO2 उत्सर्जन की (उच्च) सांद्रता के कारण कार्बन कैप्चर की लागत कम होती है क्योंकि गैसीकरण यथास्थान किया जाएगा। लेकिन हां, उन्नत (कार्बन कैप्चर और उपयोग) तकनीक जरूरी है।” 

(यह रिपोर्ट मार्च 21, 2024 को पहले अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी।)

अप्रैल के महीने में देश के कई हिस्सों में तापमान के रिकॉर्ड टूटे, जलवायु परिवर्तन है कारण

इस साल अप्रैल में पूर्वी और प्रायद्वीपीय भारत में तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। देश में चल रहे आम चुनावों के लिए मतदान के बीच लोगों को अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि देश के बड़े हिस्से में अप्रैल में भीषण गर्मी का संबंध जलवायु संकट से है। 

अगर रात्रि के तापमान को देखें तो 1901 से (जब से मौसम के रिकॉर्ड रखे गये हैं) पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत में रात का तापमान सबसे अधिक दर्ज किया गया। औसत तापमान के मामले में यह तीसरा सबसे गर्र्म अप्रैल रहा। मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकतम, न्यूनतम और औसत तापमान के मामले में यह प्रायद्वीप में दूसरा सबसे गर्म अप्रैल था। 

मौसम कार्यालय के विशेषज्ञ कुछ राज्यों और कुछ राज्यों में इतने असामान्य रूप से उच्च तापमान का एक मुख्य कारण अल नीनो और जलवायु परिवर्तन को मानते हैं। अधिकारियों का कहना है कि दुर्भाग्य से, हमारे पास अभी तक गर्मी से होने वाली मौतों का कोई डेटा नहीं है। गर्मी से होने वाली मौतों को मुख्य रूप से दर्ज नहीं किया जाता है क्योंकि व्यक्ति अक्सर अंग विफलता जैसी अन्य जटिलताओं से मर जाता है। हम बस इतना कह सकते हैं कि तापमान अत्यधिक रहा है।

मुंबई में धूल भरी आंधी,  ग्राउंड हीटिंग और भारी नमी से आया तूफान, 14 मरे 

मुंबई में धूल भरी आंधी से एक भवन पर लगे होर्डिंग के गिरने के कारण 14 लोगों की जान चली गई और 74 लोग घायल हुए। यह घटना शहर के घाटकोपर इलाके में हुई। सोमवार को अचानक इस तूफान के कारण कुछ घंटों के लिये जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। इस दौरान 50-60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हवायें चलीं और लोग सड़कों पर फंस गये। हवाई उड़ानें भी कुछ देर के लिये निलंबित करनी पड़ी।

मौसम विज्ञानियों का कहना है कि तेज़ हवाओं के पीछे ज़मीन का गर्म होना, प्रचुर नमी और वातावरण में अस्थिरता का संयोजन हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह मॉनसून से पहले की सक्रियता है और पहले भी इस तरह की घटनायें हुई हैं लेकिन इस बार यह अपेक्षाकृत असामान्य है।

 जंगलों की आग से दुर्लभ पक्षी और जंतु प्रजातियों पर संकट 

उत्तराखंड में इस साल अब तक 1000 से अधिक फॉरेस्ट फायर हो चुकी हैं। इसमें 5 लोगों की जान जा चुकी है और 1400 हेक्टेयर से अधिक जंगल जल चुके हैं। बारिश ने फिलहाल जंगलों की आग को फिलहाल बुझा दिया है पर बढ़ते तापमान और खुश्क मौसम के कारण संकट बना हुआ है। जानकारों का कहना है कि जंगलों में बार बार लगने वाली आग से केवल पेड़ों, वनस्पतियों, झाड़ियों और जड़ीबूटियों के साथ मिट्टी की परत ही नष्ट नहीं होती बल्कि कई पक्षी और जंतु प्रजातियों को भी नष्ट होने का ख़तरा है। 

उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (रिसर्च) संजीव चतुर्वेदी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, “हमारे पास पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ हैं जिनका प्रजनन काल अप्रैल से जून तक जंगल के बीच होता है जब फायर सीज़न भी होता है। उत्तराखंड के जंगलों में लगातार और अनियंत्रित जंगल की आग धीरे-धीरे इन प्रजातियों को बड़े खतरे में डाल रही है।”

चतुर्वेदी ने कहा कि चीयर फैजेंट, कलिज फैजेंट, रूफस-बेलिड कठफोड़वा, चॉकलेट पैंसी और आम कौवा जैसी पक्षी प्रजातियों का प्रजनन काल मार्च से जून तक होता है, यही वह अवधि है जब क्षेत्र के वन क्षेत्र में सबसे अधिक आग लगती है। चीयर फैजेंट संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों में शामिल है।  

जानकारों का कहना है कि न केवल चीयर फैजेंट बल्कि पिपिट बर्ड, रोज़ फिंच और हिमालयन मोनाल जैसे दुर्लभ पक्षी भी कई कारणों से लुप्तप्राय हो गए हैं, जिनमें प्रजनन के मौसम में जंगलों की आग भी शामिल है।

केरल के आदिवासी क्षेत्रों को करना पड़ रहा है अत्यधिक गर्मी का सामना 

केरल के घने जंगलों की आदिवासी बस्तियां भीषण गर्मी से जूझ रही हैं। कोट्टूर के पास चेनमपारा में और अगस्त्यरकुदम पहाड़ियों की घाटी में स्थित कानी आदिवासी बस्ती तिरुवनंतपुरम जिले की सबसे अच्छी जगहों में से एक मानी जाती है। हालाँकि, जंगल के अंदर बसी इस आदिवासी बस्ती में हालात बहुत अच्छे नहीं है।

शहरवासी गर्मी सहन नहीं कर पा रहे हैं और पानी की कमी से जूझ रहे हैं। कुट्टीचल और कोट्टूर क्षेत्रों में लगभग 28 आदिवासी बस्तियाँ हैं, और पानी की कमी और अत्यधिक गर्मी तबाही मचा रही है। 

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में औसत तापमान में 4.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक का विचलन देखा गया और पलक्कड़ में ऑरेंज अलर्ट जारी करना पड़ा। यदि मंगलवार को दर्ज किया गया उच्च तापमान अगले दिनों में भी जारी रहता है, तो संभावना है कि अलाप्पुझा, त्रिशूर और कोल्लम जिलों के लिए हीटवेव अलर्ट या घोषणाएं जारी की जाएंगी। पलक्कड़ में सनस्ट्रोक से मौत की सूचना मिली है।

ला निना प्रभाव: अधिक बारिश और बाढ़ की संभावना 

जून में शुरू होने वाले मानसून में औसत से अधिक बारिश और बाढ़ देखी जा सकती है क्योंकि अगले कुछ महीनों में प्रशांत महासागर में ला नीना मौसम प्रभाव के लिए परिस्थितियाँ अनुकूल हो गई हैं। यह बात अमेरिका के राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र (NOAA) ने कही है। हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक यह घटना जून-अगस्त 2024 की शुरुआत में बन सकती है। 

भारत में ला नीना एक अधिक मानसून और उपमहाद्वीप में औसत से अधिक बारिश और ठंडी सर्दियों से जुड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले महीने (जून) में अल नीनो से ईएनएसओ-न्यूट्रल में संक्रमण होने की संभावना है। एनओएए के अनुमानों के अनुसार, ला नीना प्रभाव के विकसित होने की संभावना जून-अगस्त (49%) या जुलाई-सितंबर (69%)  में है। 

यूरोप में गर्मी से जुड़ी मौतों में 30% की वृद्धि: लैंसेट 

लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार, 2003-12 और 2013-2022 के बीच यूरोप में प्रति 100,000 लोगों पर गर्मी से संबंधित मौतों में 31% की वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन की 2024 की यूरोप रिपोर्ट में कहा गया है कि “यूरोप में जलवायु परिवर्तन हो रहा है और यह लोगों को मार रहा है।” नई बीमारियाँ फैल रही हैं, हे फीवर का मौसम जल्दी शुरू हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक  “व्यायाम के लिए जोखिम भरे घंटे अब दिन के सबसे गर्म हिस्से से  परे समय तक बढ़ रहे हैं।”

कीनिया और ब्राज़ील में बाढ़, सैकड़ों मरे 

कीनिया में अत्यधिक वर्षा और उसके परिणामस्वरूप आई बाढ़ के कारण 200 से अधिक लोग मारे गए हैं और 150,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। 29 अप्रैल को, अत्यधिक वर्षा के कारण नाकुरु काउंटी में एक बांध टूट गया, जिससे कम से कम 50 लोग मारे गए – जिनमें से सत्रह बच्चे थे। प्रमुख सड़क मार्गों के बंद होने के कारण देश भर में व्यवसाय और स्कूल अभी भी बंद हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवात हिदाया से ख़तरा बढ़ रहा था और इससे मामले और बदतर होने की आशंका थी, शनिवार को लैंडफॉल के बाद चक्रवात कमज़ोर हो गया। कीनिया और पड़ोसी तंजानिया महत्वपूर्ण क्षति से बचने में कामयाब रहे।

दक्षिणी ब्राज़ील में कई दिनों की भारी बारिश के कारण दक्षिणी राज्य रियो ग्रांडे डो सुल में “भारी बाढ़ और भूस्खलन” हुआ है, जिसमें कम से कम 55 लोग मारे गए हैं। राज्य के 497 शहरों में से आधे से अधिक शहर तूफान से प्रभावित हुए हैं, कई क्षेत्रों में सड़कें और पुल नष्ट हो गए हैं। तूफान के कारण भूस्खलन भी हुआ और बेंटो गोंसाल्वेस शहर के पास एक जलविद्युत परियोजना ढह गई,  जिससे 30 लोगों की मौत हो गई। बढ़ते जल स्तर के कारण क्षेत्र में एक दूसरे बांध के भी टूटने का खतरा है।

अफगानिस्तान में भीषण बाढ़ से 300 लोगों की मौत, बच्चों को कीचड़ से निकाला गया 

अफगानिस्तान में भीषण बाढ़ के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई और इसके बाद तीन बच्चों को कीचड़ से बचाया गया है। मारे गये लोगों में कम से कम 51 बच्चे हैं। ताज़ा  प्राकृतिक आपदा अफगानिस्तान में सूखे के बाद आई है, और इसे उन लोगों पर पड़ने वाले जलवायु संकट के रूप में देखा जा रहा है जो ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए सबसे कम ज़िम्मेदार हैं। 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त की है। रविवार को जारी बयान में उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और सहायता एजेंसियां ​​मदद के लिए तालिबान द्वारा संचालित सरकार के साथ काम कर रही हैं।

गुट्रिस ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र और अफगानिस्तान में उसके सहयोगी जरूरतों का तेजी से आकलन करने और आपातकालीन सहायता प्रदान करने के लिए वास्तविक अधिकारियों के साथ समन्वय कर रहे हैं।”

उत्तराखंड: फॉरेस्ट फायर पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को फटकारा

सुप्रीम कोर्ट ने फॉरेस्ट फायर मामले में बुधवार को केंद्र और उत्तराखंड सरकार को आड़े हाथ लिया। उच्चतम न्यायालय ने  फंडिंग की कमी और वनकर्मियों को चुनाव ड्यूटी में लगाने पर कड़े सवाल पूछे और कहा कि राज्य में हालात बहुत खराब हैं ।  उत्तराखंड में इस साल कुल 1063 आग की घटनायें हुई हैं जिसमें 1400 हेक्टेयर से अधिक जंगल आग में जल गये और 5 लोगों की मौत हुई। जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संजीव मेहता की बेंच ने तीखे सवाल पूछे और कहा कि 10 करोड़ की मांग होने पर केवल 3.15 करोड़ रुपये ही क्यों दिये है। कोर्ट ने पूछा कि वनकर्मियों को चुनाव की ड्यूटी पर क्यों लगाया गया। 

वेबसाइट न्यूज़लॉन्ड्री ने दस्तावेज़ों के आधार पर प्रकाशित ख़बर में कहा था कि वनकर्मियों की चुनाव ड्यूटी में तैनाती आग से निपटने के लिए होने वाली वार्षिक तैयारियों के आड़े आई। ज़िलाधिकारियों ने अपनी ही सरकार, चुनाव आयोग और एनजीटी के आदेशों और चेतावनियों की अनदेखी कर न केवल वनकर्मियों को बड़ी संख्या में चुनाव में लगाया बल्कि वन विभाग के वाहनों को भी चुनाव के लिए अपने कब्जे में ले लिया।  

आपदाओं के कारण भारत में 5 लाख लोग हुए विस्थापित: रिपोर्ट

भारत में 2023 में बाढ़, तूफान, भूकंप और अन्य आपदाओं के कारण पांच लाख से अधिक लोगों ने देश के भीतर ही अन्य जगहों पर पलायन किया। जिनेवा स्थित इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2022 के मुकाबले विस्थापन में बड़ी गिरावट आई है। साल 2022 में लगभग 25 लाख लोग आतंरिक रूप से विस्थापित हुए थे।

‘बाढ़ विस्थापन हॉटस्पॉट’ कहे जाने वाले दिल्ली शहर में 9 जुलाई, 2023 को भारी बारिश के बाद यमुना नदी उफान पर आ गई, जिससे कई स्थानीय निवासियों को उनके घरों से निकालना पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 27,000 लोग विस्थापित हुए।

दक्षिण एशिया में कुल मिलाकर 2023 में लगभग 37 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए, जिनमें 36 लाख आपदाओं के कारण विस्थापित हुए। यह 2018 के बाद से सबसे कम विस्थापन है। शोधकर्ताओं के अनुसार, आपदाओं के कारण विस्थापन में गिरावट के लिए आंशिक रूप से अल नीनो घटना को जिम्मेदार है, जिसके कारण मानसून के दौरान औसत से कम बारिश हुई और बड़े चक्रवात नहीं पैदा हुए।

क्लाइमेट फाइनेंस पर भिड़े अमीर और विकासशील देश

नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्यों के लिए पैसा कौन देगा, इस बात पर अमीर और विकासशील देशों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। कोलंबिया के कार्टाजेना में हाल में हुई वार्ता पर नज़र रखने वाले एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क ने यह खबर दी है।

नवंबर में दुनिया भर के नेता एक नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर बातचीत करने के लिए एकत्र होंगे। फ़िलहाल यह सीमा 2025 के बाद से हर साल कम से कम 100 बिलियन डॉलर है, जिसका उद्देश्य है एनर्जी ट्रांज़िशन में विकाशसील देशों की सहायता करना।

बताया जा रहा है कि अमेरिका ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के अनुच्छेद 9.3 का हवाला देते हुए कहा है कि न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) में ‘स्वैच्छिक’ रूप से ‘योगदान करने का विकल्प है’।

वहीं भारत ने समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) की ओर से बोलते हुए कहा कि क्लाइमेट फाइनेंस के लक्ष्य पेरिस सम्मेलन और समझौते के सिद्धांतों और प्रावधानों और अनुच्छेद 9 के अनुसार होना चाहिए। अनुच्छेद 9 के अंतर्गत, विकसित देशों को कहा गया है कि वह विकासशील देशों को मिटिगेशन और अडॉप्टेशन के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराएंगे।

यूएन बदलेगा कार्बन मार्केट, भूमि अधिग्रहण से होगा बचाव

पेरिस समझौते के तहत स्थापित किए जा रहे नए वैश्विक कार्बन मार्केट मानदंडों के अनुसार, अब कार्बन क्रेडिट डेवलपर्स को लोगों की जमीन और जल संसाधनों को हड़पने से रोका जाएगा। क्लाइमेट होम न्यूज़ ने बताया कि बॉन में हाल में संपन्न हुई बैठक में दुनिया भर के देशों और विशेषज्ञों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावित अनुच्छेद 6.4 कार्बन क्रेडिटिंग व्यवस्था के लिए अपील और शिकायत प्रक्रिया को मंजूरी दे दी।      

कार्बन क्रेडिट परियोजनाओं को लागू करने से पहले और बाद में चुनौती देने की नीतियों पर इस समझौते को क्लाइमेट कार्यकर्ता एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देख रहे हैं। क्लाइमेट होम ने बताया कि क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (सीडीएम) कहे जाने वाले पिछले संयुक्त राष्ट्र कार्बन मार्केट में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं थी। कार्बन मार्केट पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने स्थानीय लोगों और उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाया है, साथ ही अक्सर उत्सर्जन में कटौती का दावों पर खरे नहीं उतरे हैं।

कार बीमा के लिए प्रदूषण सर्टिफिकेट को अनिवार्य करने वाले फैसले की समीक्षा करेगी सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय थर्ड पार्टी मोटर बीमा पॉलिसी को नवीनीकृत करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (पीयूसी) को अनिवार्य बनाने के अपने 2017 के आदेश पर फिर से विचार करेगा। अदालत के सामने यह बात रखी गई कि उसके आदेश के बाद से लगभग 55% वाहनों के पास बीमा कवर नहीं है, जिससे सड़क दुर्घटनाओं में मुआवजों के दावों का निपटान करने में कठिनाई हो रही है।  

अदालत ने कहा, “एक सही संतुलन बनाना होगा कि वाहन पीयूसी मानदंडों के अनुरूप रहें और सभी वाहनों के पास बीमा कवर भी हो।” मामले की सुनवाई अब 15 जुलाई को होगी।

अदालत ने एमिकस क्यूरी और वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह से सुझाव देने के लिए कहा है कि 2017 के आदेश को कैसे संशोधित किया जा सकता है। सिंह ने अदालत को सूचित किया कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से परामर्श किया जा सकता है। 2017 का आदेश पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण, या ईपीसीए, की सिफारिश के आधार पर पारित किया गया था।

पुरानी मोटर बोट से वायु प्रदूषण सुंदरबन के लिए  है बड़ा ख़तरा

बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी  (आईआईटी) कानपुर के पर्यावरण वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन ने पश्चिम बंगाल में सुंदरबन में वायु प्रदूषण के गंभीर खतरे पर प्रकाश डाला है। अध्ययन में कोलकाता महानगर और व्यापक भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र से विशेष रूप से काले कार्बन या कालिख कणों से समृद्ध प्रदूषकों के प्रवाह पर प्रकाश डाला गया है।

ये प्रदूषक सुंदरबन की वायु गुणवत्ता से गंभीर रूप से समझौता कर रहे हैं, जिससे इसका इकोसिस्टम खतरे में पड़ गया है। अध्ययन में स्थानीय नावों में पुरानी मोटरों को हवा में भारी जहरीली धातुओं के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में पहचाना गया है। इसका कारण सुंदरबन के निवासियों द्वारा सामना की जाने वाली आर्थिक बाधाएं हैं, जो तरल पाइप गैस जैसे स्वच्छ विकल्पों तक सीमित पहुंच के कारण जलाऊ लकड़ी या गोबर जैसे ठोस ईंधन पर निर्भर हैं। घरेलू रोशनी के लिए केरोसिन लैंप का प्रचलित उपयोग और अंतर-द्वीप परिवहन के लिए डीजल से चलने वाली नावों पर निर्भरता क्षेत्र में वायु प्रदूषण में योगदान देने वाले कारकों के रूप में है।

दुनिया का सबसे बड़ा हवा से कार्बन एकत्र करने वाला प्लांट आइसलैंड में चालू 

आइसलैंड वायुमंडल से सीधे कार्बन डाइऑक्साइड निकालने की दुनिया की सबसे बड़ी सुविधा अब आइसलैंड में चालु हो चुकी है।   स्विस फर्म क्लाइमवर्क्स द्वारा संचालित, “मैमथ” नाम के नए परिचालन संयंत्र ने डायरेक्ट एयर कैप्चर (डीएसी) की वैश्विक क्षमता को चौगुना कर दिया है। डायरेक्ट एयर कैप्चर तकनीक का उपयोग करते हुए, मैमथ एक विशाल वैक्यूम के रूप में कार्य करता है, हवा खींचता है और रासायनिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके कार्बन को बाहर निकालता है। निष्कर्षण के बाद, कैप्चर किए गए कार्बन को भूमिगत ले जाया जाएगा, जहां यह एक पृथक्करण प्रक्रिया से गुजरेगा जहां कार्बन को पत्थर में बदल दिया जाएगा, जिससे इसे प्रभावी ढंग से वायुमंडल से स्थायी रूप से दूर कर दिया जाएगा।

जबकि दुनिया भर में मौजूदा डीएसी परियोजनाएं सामूहिक रूप से सालाना लगभग 10,000 मीट्रिक टन कार्बन एकत्र करने का प्रबंधन करती हैं, मैमथ 2024 में पूरी तरह से चालू होने के बाद प्रति वर्ष 36,000 मीट्रिक टन तक निकाल पायेगा। जबकि पूरा ऑपरेशन आइसलैंड की स्वच्छ जियोथर्मल ऊर्जा द्वारा संचालित किया जाएगा, आइसलैंड के कुछ विशेषज्ञों ने कार्बन कैप्चर तकनीक के बारे में चिंता व्यक्त की है, जिसमें कहा गया है कि यह “अनिश्चितताओं और पारिस्थितिक जोखिमों से भरा है।”

औद्योगिक प्रदूषण से परेशान गांडेपल्ली के ग्रामीणों ने चुनाव के बहिष्कार का एलान किया

अपने गांव में सेंटिनी बायोप्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के कारण होने वाले जल और वायु प्रदूषण की समस्या का कोई समाधान न होने पर, आंध्र प्रदेश के एनटीआर जिले के गांडेपल्ली के स्थानीय लोगों ने फैक्ट्री को सील नहीं किए जाने पर चल रहे चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया है। 

2022 की जांच से पता चला कि फैक्ट्री सिंचाई नहरों और नदियों को प्रदूषित कर रही थी और आसपास की फसलों को नुकसान पहुंचा रही थी। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारियों से बार-बार गुहार लगाने के बावजूद फैक्ट्री को सील नहीं किया गया है।  उनकी मांग है की फैक्ट्री अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत गांव में विकास गतिविधियां शुरू करे और 70 एकड़ से अधिक की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले किसानों को मुआवजा दे। इसके परिचालन उद्देश्यों के लिए भूजल के अवैध दोहन को भी रोका जाना चाहिए।

2008 में स्थापित यह फैक्ट्री 125 किलो लीटर प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता के साथ एक डिस्टिलरी के रूप में काम करती रही, जब तक कि इसे अप्रैल 2023 में 200 किलो लीटर प्रतिदिन का एक अलग इथेनॉल संयंत्र स्थापित करने के लिए पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिल गई।

भारत में है 207 गीगावॉट फ्लोटिंग सोलर की क्षमता: शोध

भारतीय और जर्मन विशेषज्ञों द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि भारत के जलाशयों पर करीब 207 गीगावाट तक की क्षमता वाले फ्लोटिंग सोलर लगाए जा सकते हैं। अध्ययन में यूरोपीय आयोग के कॉपरनिकस कार्यक्रम के हवाले से भारत के सभी जल निकायों के लिए जीआईएस-आधारित डेटा का उपयोग किया गया है। 

इस डाटा सेट में वही जल निकाय हैं जिनका उपयोगी क्षेत्रफल 0.015 वर्ग किमी से अधिक है और जिनमें 12 महीने पानी रहता है। सुरक्षित क्षेत्रों में स्थित जलाशयों को इससे बाहर रखा गया है। एक मेगावाट फ्लोटिंग पीवी स्थापित करने के लिए 0.015 वर्ग किमी क्षेत्र की जरूरत होती है। मध्य प्रदेश में अधिकतम 40,117 मेगावाट क्षमता है, इसके बाद महाराष्ट्र में 32,076 मेगावाट है।  

भारत की ऊर्जा क्षमता में सोलर की हिस्सेदारी बढ़कर हुई 19%

2024 की पहली तिमाही (Q1) में भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता में सौर ऊर्जा का हिस्सा बढ़कर 18.5% हो गया, जबकि स्थापित नवीकरणीय क्षमता में इसका हिस्सा 42.9% रहा। पिछले साल यह आंकड़े क्रमशः 15.2% और 37.4% थे। 

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और मेरकॉम के इंडिया सोलर प्रोजेक्ट ट्रैकर के आंकड़ों के अनुसार, बड़ी पनबिजली परियोजनाओं सहित भारत की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 190.6 गीगावॉट थी, जो 2024 की पहली तिमाही के अंत में कुल बिजली क्षमता मिश्रण का 43.1% है।

2023 के अंत में बिजली मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की कुल हिस्सेदारी 179.5 गीगावॉट थी, और कुल बिजली क्षमता मिश्रण में इसकी हिस्सेदारी 42% थी। भारत ने पिछली तिमाही के दौरान लगभग 32 बिलियन यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया।

अक्षय ऊर्जा क्षमता का दोहन करने में पिछड़ रहा है बंगाल

एक नए अध्ययन के अनुसार, स्वच्छ बिजली उत्पादन में पश्चिम बंगाल की प्रगति अन्य राज्यों की तुलना में धीमी है। अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) और स्वच्छ ऊर्जा थिंकटैंक एम्बर के संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि इस साल फरवरी तक राज्य ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का केवल आठ प्रतिशत ही दोहन किया है। पश्चिम बंगाल की कुल बिजली खपत में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी सिर्फ 10 प्रतिशत है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में स्वच्छ ऊर्जा के दोहन की क्षमता बहुत है। “नवीकरणीय ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को बढ़ावा देकर और इसमें निवेश करके राज्य अपने कार्बन फुटप्रिंट कम कर सकता है, रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है”।

पुंछ के सीमावर्ती गांव को सेना ने सोलर लाइट से किया जगमग

लाइन ऑफ़ कंट्रोल (एलओसी) से सिर्फ 600 मीटर की दूरी पर स्थित, जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले के डब्बी गांव में सेना ने सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइटें लगाई हैं। सेना के एक अधिकारी ने कहा कि यह परियोजना ऑपरेशन ‘सद्भावना’ के तहत बहुत कम समय में पूरी की गई है। 

मेंढर सब-डिवीजन के बालाकोटे तहसील का डब्बी गांव पिछले कुछ वर्षों में सीमा पार से होने वाली गोलाबारी से सबसे ज्यादा प्रभावित गांवों में से एक है और यहां स्ट्रीट लाइटों की कमी है। इस वजह से उन जगहों पर सोलर लाइटें लगाई गईं जहां स्थानीय लोग अक्सर आते-जाते हैं, ताकि उनके गांव की विद्युतीकरण प्रक्रिया को बढ़ावा मिले। सेना के उक्त अधिकारी ने बताया कि इस पहल से 19 घरों और 129 ग्रामीणों को स्ट्रीट लाइट की सुविधा मिली है।

भारत आगमन की योजनाओं को लेकर टेस्ला ने साधी चुप्पी

अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला ने अभी तक नई ईवी नीति के तहत भारत को लेकर अपनी योजनाओं का खुलासा नहीं किया है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि कंपनी ने भारत सरकार को अपनी योजनाओं के बारे में अबतक जानकारी नहीं दी है।

गौरतलब है कि टेस्ला प्रमुख इलॉन मस्क अप्रैल में भारत आने वाले थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर भारत में निर्माण करने की योजनाओं के बारे में बात करने वाले थे। लेकिन उन्होंने अंतिम समय में अपनी यात्रा रद्द कर दी।

कंपनी ने अपनी योजनाओं के बारे में सरकार को क्या बताया है, इस सवाल पर उक्त अधिकारी ने कहा, “वे (टेस्ला) बस चुप हैं…।” इस बाबत भेजे गए ई-मेल का भी टेस्ला ने कोई जवाब नहीं दिया।

टेस्ला द्वारा ठुकराए गए इंटर्न्स को भारतीय ईवी स्टार्टअप ने दिया ऑफर

हाल ही में लागत कम करने की दिशा में एक और कदम उठाते हुए टेस्ला ने कई समर इंटर्न्स के ऑफर रद्द कर दिए। इन इंटर्न्स अब बेंगलुरु स्थित इलेक्ट्रिक वाहन स्टार्टअप प्रवेग डायनेमिक्स ने ऑफर दिया है

इनमें से कई इंटर्न्स, जो टेस्ला के साथ काम करने के इंतज़ार में थे, उन्होंने लिंक्डइन पर अपना रोष जताया और कहा कि गर्मियों के लिए दूसरे प्रोग्राम खोजने का अब उनके पास समय नहीं है। इसके जवाब में प्रवेग डायनेमिक्स की पार्टनर शिवांगी बागरी ने लिंक्डइन पर लिखा कि ‘इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से प्रभावित लोगों को प्रवेग का निमंत्रण है’। बागरी ने कहा कि टेस्ला का नियुक्ति पत्र मिलना कौशल, अनुभव और क्षमता का प्रमाण है, और यह खूबियां ‘प्रस्ताव निरस्त होने के साथ चली नहीं जाएंगी’। “हम आपके साथ बातचीत करके यह देखेंगे कि आप प्रवेग में कैसे फिट हो सकते हैं,” बागरी ने लिखा।

चीनी ईवी पर आयात शुल्क बढ़ाकर 100% से अधिक करेगा अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जल्द ही घोषणा कर सकते हैं कि उनका प्रशासन “चीनी इलेक्ट्रिक वाहन आयात पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 100% करने वाला है”। अमेरिका सौर उत्पादों और अन्य स्वच्छ-ऊर्जा उत्पादों पर भी टैरिफ बढ़ाने वाला है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बाइडेन टैरिफ को चार गुना बढ़ाकर 102% कर सकते हैं, जबकि एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया कि इस कदम का ज्यादा प्रभाव नहीं होगा क्योंकि चीनी निर्माता “अमेरिकी उपभोक्ताओं पर निर्भर नहीं हैं”। 

चीनी समाचार एजेंसी झिन्हुआ ने बताया कि चाइना एसोसिएशन ऑफ ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सीएएएम) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में चीन ने कुल 870,000 यूनिट “नए ऊर्जा वाहनों” (एनईवी) का उत्पादन किया, जो पिछले साल के मुकाबले 35.9% अधिक था, जबकि बिक्री 33.5% बढ़कर 850,000 यूनिट तक पहुंच गई।

एक्सिकॉम ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए लॉन्च किया भारत का सबसे तेज़ डीसी चार्जर 

इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) चार्जर निर्माता एक्सिकॉम ने भारत का सबसे तेज़ डीसी चार्जर लॉन्च किया है। पीवी मैगज़ीन ने बताया कि इसे कई कनेक्टरों के साथ प्रयोग किया जा सकता है और इसका पावर आउटपुट 60 किलोवाट से 400 किलोवाट तक है। हार्मनी जेन 1.5 नाम के इस डीसी फास्ट चार्जर को स्वैप और एक्सपैंड किया जा सकता है। और उपलब्ध बिजली को एक साथ कई वाहनों को चार्ज करने के लिए शेयर किया जा सकता है।

ग्राहकों के चार्जिंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए यह चार्जर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) संचालित रिमोट प्रबंधन प्रणाली और इंटीग्रेटेड एम्बिएंट लाइटिंग जैसी कई सुविधाओं से लैस है। इंटीग्रेटेड केबल प्रबंधन प्रणाली के कारण इसे भारी चार्जिंग गन के साथ प्रयोग करना आसान है, जबकि इंटीग्रेटेड एम्बिएंट लाइटिंग से अंधेरे स्थानों को रोशन करने और अधिक दूरी से स्थिति पता करने में मदद मिलती है।

भारत की कुल स्थापित क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी 50% से नीचे हुई: रिपोर्ट

काउंसिल फॉर एनर्जी, इंवायरेंमेंट एंड वॉटर  (सीईईडब्ल्यू) की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2023-24 में पहली बार 50% से नीचे गिर गई। शोध के अनुसार, भारत की वित्त वर्ष 2023-2024 जो अतिरिक्त 26 गीगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता जोड़ी गई उसका 71% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से है। भारत में अब कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता 442 गीगावॉट हो गई है, जिसमें से 144 गीगावॉट (या 33%) नवीकरणीय स्रोतों से और 47 गीगावॉट (या 11%) जलविद्युत बिजलीघर हैं। परिणामस्वरूप, पहली बार, भारत की कुल स्थापित क्षमता में कोयले और लिग्नाइट की हिस्सेदारी 50% से नीचे आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 के बाद पहली बार उसी वित्तीय वर्ष में परमाणु क्षमता (1.4 GW) भी जोड़ी गई।

जलवायु संकट चेतावनियों के बावजूद ऑस्ट्रेलिया गैस के प्रयोग पर आमादा 

बीबीसी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने के वैश्विक आह्वान के बावजूद, ऑस्ट्रेलिया “2050 और उससे आगे” तक गैस निकालने और उपयोग करने की योजना बना रहा है। प्रधान मंत्री एंथनी अल्बानीज़ का कहना है कि उनकी सरकार नेट-ज़ीरो क्षमता हासिल करने का समर्थन करती है लेकिन घरेलू ऊर्जा आपूर्ति के लिए उन्हें गैस के प्रयोग को जारी रखना होगा। 

हालाँकि, आलोचकों ने तर्क दिया है कि यह कदम विज्ञान को नकारना है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने साफ कहा है कि जलवायु लक्ष्यों को पूरा करना है तो “कोयला, तेल और गैस के उपयोग में भारी कमी” करनी होगी। असल में घरेलू ऊर्जा की दलील देने वाला दुनिया में तरलीकृत प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है। इसलिये गैस का व्यापार उसकी अर्थव्यवस्था से जुड़ा है। 

सरकारी खजाने में कोल इंडिया का योगदान 6.4% बढ़ा

सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने वित्त वर्ष 2023-24 में सरकारी खजाने में 60,140.31 करोड़ रुपये का योगदान दिया, जो कि वित्त वर्ष 2022-2023 की तुलना में 6.4% की वृद्धि है। कोल इंडिया देश के लगभग 80% कोयले का उत्पादन करती है। कोयला मंत्रालय के शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, कंपनी ने वित्त वर्ष 22-23 में सरकारी खजाने को 56,524.11 करोड़ रुपये का भुगतान किया। मार्च 2024 में, सरकार को भुगतान की गई करों की कुल राशि 14.8% बढ़ गई, जो वित्त वर्ष 23 के इसी महीने में 5,282.59 करोड़ रुपये से बढ़कर 6,069.18 करोड़ रुपये हो गई। 

वित्त वर्ष 24 में सरकारी खजाने को भुगतान किए गए कुल 60,140.42 करोड़ रुपये में से अधिकतम 13,268.55 करोड़ रुपये झारखंड राज्य सरकार को गए। अन्य प्राप्तकर्ताओं में ओडिशा सरकार का 12,836.20 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ का 11,890.79 करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश का 6,188.89 करोड़ रुपये शामिल हैं।