Newsletter - October 15, 2021
मॉनसून की विदाई की ख़बरों के बाद भी बारिश के अलर्ट जारी हो रहे हैं। मौसम विभाग ने तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के कई हिस्सों में सक्रिय मॉनसून की बात कही है। 17 अक्टूबर को हिमाचल, उत्तराखंड और यूपी में भारी बारिश की आशंका है। उधर बंगाल की खाड़ी में एक चक्रवाती प्रसार के कारण एक कम दबाव का क्षेत्र बन गया है जो दक्षिण ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों तक असर दिखायेगा। अंडमान निकोबार द्वीप समूह और इसके आसपास कई इलाकों में बारिश और 50 किमी प्रतिघंटा तक हवा चलने के आसार हैं। इस कारण मछुआरों को समुद्र में न जाने को कहा गया है। इस बारे में विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है।
थलीय जल हानि के मामल में भारत सर्वाधिक प्रभावित: विश्व मौसम संगठन
विश्व मौसम संगठन की नई रिपोर्ट का अंदाज़ा है कि टेरिस्टियल वॉटर शॉर्टेज (टीडब्लूएस) यानी थलीय जल में पूरे विश्व में 1 सेमी प्रति वर्ष की दर से गिरावट हो रही है। स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेस रिपोर्ट के विश्लेषण में बताया गया है कि भारत में यह गिरावट सबसे अधिक – पिछले 20 साल में 3 सेमी प्रति वर्ष की दर से – हुई है। कुछ इलाकों में तो यह हानि 4 सेमी प्रति वर्ष की दर से भी हो रही है। उत्तर भारत में हालात सबसे ख़राब हैं।
उधर विश्व मौसमविज्ञान कांग्रेस (डब्लूएमसी) ने ये भी कहा है कि मौसम विज्ञान, जलवायु और हाइड्रोलॉजी के क्षेत्र में आपसी सहयोग की ज़रूरत है।
वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस साल 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया जिसमें कहा गया कि उत्तराखंड में सात जलविद्युत परियोजनाओं को बनाने के लिये भारत सरकार के तीन मंत्रालय (पर्यावरण, जलशक्ति और ऊर्जा) में सहमति बन गयी है। लेकिन द वायर साइंस की एक रिपोर्ट में विश्लेषण के आधार पर यह खुलासा किया गया है कि पर्यावरण मंत्रालय ने इन सात हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को पास कराने के लिये तथ्यों को छुपाया और पूरी सूचना नहीं दी जो सरकार के इरादों के खिलाफ जा सकती थी।
असल में उत्तराखंड में 2013 में हुई केदारनाथ आपदा के बाद सरकार ने विशेषज्ञों की समिति गठित की थी जिसने कहा था कि आपदा को बिगाड़ने में जल विद्युत परियोजनाओं की निश्चित भूमिका थी। सरकार ने दिसंबर 2014 में इस जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था और कहा था कि “विकास परियोजनाओं खासतौर से हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर कोई फैसला… मज़बूत और स्पष्ट वैज्ञानिक तर्कों पर आधारित होना चाहिये।” अब सरकार की नई स्थिति इससे काफी भिन्न है और वह कुल 2000 मेगावॉट से अधिक क्षमताओं की परियोजनाओं पर काम शुरू कर रही है। इस रिपोर्ट को विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है।
कंपनियां लौटा सकेंगी कोयला खदानें
कोयला मंत्रालय ऐसी योजना बना रहा है जिसके मुताबिक जिस कंपनी को कोयला खदान आवंटित की गई है, वह अगर किसी तकनीकी समस्या के कारण खनन शुरू नहीं कर पा रही तो खदान वापस की जा सकती है। पीटीआई के मुताबिक ऐसे में कंपनी एक कमेटी द्वारा जांच के बाद – बिना कोई वित्तीय दंड या मैरिट के आधार पर तय किये गये दंड को चुकाकर – खदान वापस कर सकती है। मंत्रालय के एजेंडा नोट के मुताबिक यह योजना “कोयला उत्पादन बढ़ाने और ईज़ ऑफ बिज़नेस” को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। सरेंडर किये गये कोल ब्लॉक को तुरंत नीलामी के लिये उपलब्ध कराया जायेगा।
जलवायु परिवर्तन: पंचवर्षीय लक्ष्यों का समर्थन करेगा यूरोपियन यूनियन
यूरोपियन संघ (ईयू) क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिये उन पंचवर्षीय लक्ष्यों का समर्थन करेगा जिन पर नवंबर में ग्लासगो (यूके) में हो रहे जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन में चर्चा होनी है। महत्वपूर्ण है कि पोलैंड समेत यूरोपीय यूनियन (ईयू) के कुछ सहस्य देश दस वर्षीय लक्ष्य तय करने की मांग कर रहे हैं फिर भी यूरोपीय संघ के मंत्रियों ने एक बयान में कहा है कि वह पंचवर्षीय लक्ष्यों का समर्थन करेंगे यदि सभी सरकारें इसका पालन करें और यूरोपीय क्लाइमेट क़ानून के तहत यह कदम उठाये जायें।
सोच यह है कि छोटे अवधि के लक्ष्य देशों पर नियमित रूप से दबाव बनाये रखेंगे और वह उस रफ्तार से काम करेंगे जो इमीशन में तय कटौती के लिये ज़रूरी है जबकि लम्बी अवधि के लक्ष्य हों तो देश सुस्त पड़ सकते हैं। बड़े उत्सर्जक देशों में भारत और चीन ने सिंगल टाइम फ्रेम का विरोध किया है।
ग्रीन क्लाइमेट फंड में अब भी ₹ 1000 करोड़ की कमी
विकसित देशों ने ग्रीन क्लाइमेट फंड (जिसका वादा पेरिस संधि में किया गया था) में हर साल $ 100 बिलियन यानी ₹ 10,000 करोड़ जमा करने का जो वादा किया था वह पूरा नहीं किया है। इसमें अब भी ₹ 1,000 करोड़ की कमी है। पिछले महीने अमेरिका ने अपना सहयोग बढ़ाकर दोगुना करने का इरादा जताया। जानकार कहते हैं कि अमीर देश इस फंड में सहयोग के गणित में ईमानदारी नहीं बरत रहे और कई दूसरे अनुबन्धों के तहत दिये तकनीकी सहयोग की गणना भी इस फंड में शामिल कर रहे हैं। उधर स्पेन, नॉर्वे और स्वीडन जैसे यूरोपीय देश ग्लासगो सम्मेलन से पहले वादे और हक़ीक़त के अन्तर को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
दिल्ली सरकार को NCAP के तहत केंद्र से मिलेंगे ₹ 18 करोड़
दिल्ली सरकार को नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत केंद्र से इस साल 18 करोड़ रुपये मिलेंगे। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की घोषणा जनवरी 2019 में की गई थी जिसके तहत लगभग 100 से अधिक शहरों को शामिल किया गया है। इस प्रोग्राम का लक्ष्य 2024 तक हवा में प्रदूषण (2017 को आधार वर्ष मानते हुये) को 20-30% कम करना है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक दिल्ली को पहली बार ये फंड दिया जा रहा है क्योंकि पहले उसके पास संसाधन उपलब्ध थे। इस कार्यक्रम के तहत 82 शहरों के लिये 290 करोड़ रखे गये हैं।
महंगे ईंधन और मशीनों की कमी के कारण किसानों ने फिर जलाई पराली
पंजाब में किसानों ने खेतों में पराली जलाना शुरू कर दिया है जो कि इन महीनों में दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में वायु प्रदूषण की एक मुख्य वजह होता है। सीईईडब्लू की रिपोर्ट के अनुसार 1 सितंबर से 13 अक्टूबर के बीच 1,160 जगह खेतों में आग लगाई गई। खेती में कई साल से अभिनव प्रयोग की कोशिशों के बावजूद भी धान खरीफ की प्रमुख फसल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन ज़िलों में पूसा -44 नाम की जो प्रजाति बोई जाती है – जो देर से तैयार होती है उसकी ठूंठ काफी ऊंची रह जाती है – उन ज़िलों में पराली जलाने की अधिक घटनायें हुई हैं।
सीईईडब्लू की रिपोर्ट के मुताबिक हैप्पी सीडर और सुपर सीडर के नाम से खुंटी साफ करने की जो मसीन उपलब्ध हैं वो संख्या में काफी कम हैं और बहुत कारगर नहीं हैं। अगर गैर बासमती वाले खेतों में कुल 100 मशीनें लगा दें तो वह 2021 में कुल 66% हिस्से को ही साफ कर पायेंगी। साथ ही 2019 के मुकाबले 8% अधिक पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ी कीमतों ने यह काम और मुश्किल कर दिया है।
वायु प्रदूषण से हर मिनट मर रहे 13 लोग: WHO रिपोर्ट
ग्लासगो में शुरु हो रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन कॉप -26 की विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण – जो कि जीवाश्म ईंधन के जलने से होता है – से पूरी दुनिया में हर एक मिनट में 13 लोगों की मौत हो रही है।
पर्यावरण, क्लाइमेट चेंज और स्वास्थ्य पर डब्लूएचओ की निदेशक डॉ मारिया नेयारा के मुताबिक वायु प्रदूषण पर डब्लूएचओ की गाइडलाइंस को मान लिया जाये तो इस कारण होने वाली मौतों को 80% कम किया जा सकता है।
उत्तराखंड: सौर स्व रोज़गार योजना में विलंब और अड़चनें
उत्तराखंड सरकार ने सितंबर 2020 में मुख्यमंत्री सौर स्व-रोज़गार योजना शुरू की थी जिसके तहत दस हज़ार लोगों को 25 किलोवॉट तक के प्लांट वितरित किये जाने थे लेकिन इस योजना में कुछ तकनीकी अड़चनें हैं और कुछ यह सुस्त चल रही है। सरकार कहती है कि इस योजना के तहत राज्य कुल 250 मेगावॉट अतिरिक्त सौर ऊर्जा उत्पादन कर पायेगा। लेकिन इस योजना के तहत अगस्त 2021 तक करीब 1250 आवेदन आये और लगभग साढ़े पांच सौ लोगों को अलॉटमेंट हुये। इस योजना के क्रियान्वयन में एक दिक्कत पहाड़ों में सही क्षमता के ट्रांसफॉर्मर न होना है। अब ट्रांसफॉर्मर के हिसाब से सौर प्रोजेक्ट क्षमता में बदलाव किया जा रहा है।
सौर ऊर्जा उत्पादन वृद्धि में सितंबर में दर्ज हुई गिरावट
एक ऐसे समय में जब देश के ताप बिजलीघरों में कोयला सप्लाई में कमी की बात सामने आई है तो वक्त रायटर्स द्वारा सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि भारत की सौर ऊर्जा उत्पादन वृद्धि का ग्राफ गिरा है। साल दर साल (ईयर ऑन ईयर) के आधार पर किये विश्लेषण से पता चलता है कि अगस्त में 41% से सितंबर में 24.7% हो गई। यानी पिछल साल के इन्हीं महीनों के मुकाबले सौर उत्पादन बढ़ने की रफ्तार घट गई। ऊर्जा के दूसरे स्रोतों हाइड्रो और गैस से बिजली उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले कमी हुई है।
क्लाइमेट चेंज प्रभाव रोकने के लिये 2030 तक साफ ऊर्जा उत्पादन सौर ऊर्जा उत्पादन 3 गुना होना चाहिये: IEA रिपोर्ट
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी आईईए के 2021 के अनुमान मुताबिक अगर सारे देश अपने वादों पर अमल भी करें तो भी 2050 तक नेट ज़ीरो के लिये 2030 तक जितना इमीशन कट करना है वह उसका 20% लक्ष्य ही हासिल कर पायेंगे। आईईए के कार्यकारी निदेशक फतेह बेरोल ने कहा है कि अगर साफ ऊर्जा को तीन गुना नहीं किया जाता तो एनर्ज़ी मार्केट में उथल पुथल से संकट बना रहेगा। उन्होंने कहा कि तेल और गैस में जितने निवेश की बात की गई है वह तो 2050 के नेट-ज़ीरो टार्गेट के समतुल्य है लेकिन साफ ऊर्जा में सरकारी निवेश जितना होना चाहिये उस मुकाबले अभी एक-तिहाई ही है।
नॉर्वे में अब 90% कारें इलैक्ट्रिक या हाइब्रिड, अप्रैल 2022 तक बाज़ार में उतरने वाली हर कार होगी इलैक्ट्रिक
नॉर्वे में बिक रही 90% कारें अब इलैक्ट्रिक या हाइब्रिड हैं। कहा जा रहा है कि अप्रैल 2022 तक यहां के बाज़ार में पूरी तरह से इलैक्ट्रिक कारें ही होंगी। यहां बन रही नई कारों में 80% पूरी तरह इलैक्ट्रिक कारें हैं। बाज़ार में टेस्ला के मॉडल वाई और मॉडल 3 के साथ स्कोडा की एन्याक का दबदबा है। नॉर्वे बैटरी कारों के लिये उपभोक्ताओं को सबसे अधिक प्रोत्साहन देने वाला देश है। यहां बैटरी कार ग्राहकों को वैट पर पूरी छूट मिलती है। नॉर्वे का इरादा 2025 तक नई पेट्रोल कारों की बिक्री पूरी तरह बन्द करने का है। अप्रैल 2022 तक यहां के बाज़ार में उतरने वाली हर नई कार पूरी तरह से इलैक्ट्रिक होंगी।
भारत देगा 3 लाख बैटरी तिपहिया और 3,400 ई-बसों का ऑर्डर
भारत की कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज़ लिमिटेड (सीईएसएल) ने कहा है कि वह 3 लाख बैटरी वाहनों, 1200 इलैक्ट्रिक कारों (और एसयूवी) के साथ 3,400 ई-बसों के लिये देश भर में टेंडर निकालेगी। इन टेंडरों में प्रति-किलोमीटर-भुगतान के नियम के हिसाब से वाहनों की बोलियां लगाई जायेंगी जिनमें उनकी सर्विसिंग और बाकी खर्चे शामिल होंगे। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) इनकी खरीद करेगी। संभावना है कि 1 लाख तिपहिया बैटरी वाहनों की पहली खेप अगले 18-24 महीनों में सड़क पर होगी।
कोल इंडिया करेगी बैटरी वाहनों और चार्जिंग पॉइन्ट्स में निवेश
भारत सरकार ने देश की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी कोल इंडिया से कहा है कि वह विद्युत वाहनों और ईवी चार्जिंग पॉइन्ट्स में निवेश करे। ई-मोबिलिटी को “सनराइज़ इंडस्ट्री” कहा जाता है और सरकार का यह सुझाव “कोयला मंत्रालय के एजेंडा फॉर 2021-22” का हिस्सा है। कोल इंडिया पहले ही इस दिशा में काम करने का इरादा जता चुकी है लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि जिन चार्जिंग पॉइन्ट्स में कंपनी निवेश करेगी वह कोयले से बनी बिजली से चलेंगे या साफ ऊर्जा का इस्तेमाल होगा।
कोयले की कमी के कारण देश में “ब्लैक-आउट” की ख़बरों के बाद कोयला मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि देश में पावर प्लांट्स की ज़रूरत के हिसाब से पर्याप्त कोयला है। कोयला मंत्री ने कहा है कि कोल इंडिया के पास 4 करोड़ टन कोयले का भंडार है जो हर रोज़ बिजलीघरों को करीब 72 लाख टन सप्लाई देने के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे पहले मीडिया में यह ख़बर आई थी कि आधे से अधिक बिजलीघरों में 3 दिन से कम का कोयला बचा है। इसके अलावा भारत की स्टील और सीमेंट कंपनियां ऑस्ट्रेलिया से (10-15 डॉलर प्रति टन कम कीमत पर) जो कोयला खरीदती हैं वह राजनीतिक विवादों के कारण चीन के गोदामों में पड़ा है।
इसके बावजूद आयातित कोयले की कीमत बढ़ी है। देश की करीब 65 प्रतिशत बिजली कोयला बिजलीघरों से आती है और दो तिहाई कोयले का प्रयोग बिजली बनाने के लिये होता है।
केलिफोर्निया में तेल रिसने से मछलियां मरीं, दलदली भूमि नष्ट
दक्षिण केलिफोर्नियां के समुद्र तट पर बड़ी मात्रा में तेल रिसाव से मछलियों की मौत हो गई है और वेटलैंड के प्रदूषित होने से पक्षी दलदल में फंस गये हैं। ऐसा अनुमान है कि तेल पाइप लाइन में हुये लीक के कारण सवा लाख गैलन यानी 3000 बैरल से अधिक तेल करीब 13 वर्ग मील इलाके में फैला है जिसे स्थानीय अधिकारी “पर्यावरणीय विनाशलीला” बता रहे हैं। पता चला है कि तेल पाइपलाइन में 13 इंच की दरार एक या कई जहाजों द्वारा समुद्र के भीतर कई टन के लंगर डालने और पूरी पाइप लाइन को घसीटने के कारण हुआ है। अमेरिकी तटरक्षक स्थानीय सरकार के साथ हालात को संभालने की कोशिश में लगे हैं और उन्होंने 5500 गैलन कच्चे तेल के गोले साफ किये हैं।
नेट ज़ीरो की प्रतिबद्धता से ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री का इनकार
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीशन ने साफ कहा है कि उनका देश 2050 तक नेट-ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प नहीं करेगा क्योंकि रोज़गार और आमदनी के लिये जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) का प्रयोग ज़रूरी है। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने यह बात अगले महीने ग्लासगो में हो रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से ठीक पहले कही है जबकि यह चेतावनी दे दी गई है कि अगर समयबद्ध तरीके से नेट-ज़ीरो के लिये कदम न उठाये गये तो उनके देश के लिये अंतरराष्ट्रीय कर्ज़ महंगा हो जायेगा। मॉरीशन कहते रहे हैं कि उनकी सरकार “ट्रांजिशनल टेक्नोलॉजी” पर काम कर रही है लेकिन 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया का प्रति व्यक्ति इमीशन 9 गुना है और अमेरिका से 4 गुना है। भारत की तुलना में ऑस्ट्रेलिया का प्रति व्यक्ति कार्बन इमीशन 37 गुना है।