हिन्दुकुश के पिघलते ग्लेशियरों से 200 करोड़ लोगों पर संकट

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - June 18, 2021

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पश्चिमी हवाओं ने धीमी की मॉनसून की रफ्तार, मुंबई-गोवा में भारीबारिश

मौसम विभाग का अनुमान था कि मॉनसून 15 जून तक राजधानी दिल्ली पहुंचेगा लेकिन पश्चिमी हवाओं के कारण इसकी रफ्तार कम हो गई । अब कहा जा रहा है कि दिल्ली और पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों में इस महीने के अंत तक ही मॉनसून की बारिश होगी। हालांकि मध्य और पूर्वी भारत के इलाकों में अच्छी बारिश हो रही है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल में दो दिन देर से आया लेकिन इसके फैलने की रफ्तार तेज़ रही और अब मॉनसून देश के दो-तिहाई से अधिक हिस्से में फैल गया है।  मुंबई और गोवा में भारी बारिश हुई है और बुधवार को मुंबई के कई इलाकों में पानी भरा रहा। यहां एक हफ्ते पहले 9 जून को ही मॉनसून पहुंच गया था। गोवा में पिछले हफ्ते तेज़ बारिश हुई तो पुणे और कर्नाटक में बारिश हल्की रही। 

ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ने के साथ बढ़ता लू का कहर 

इस साल भले ही जून में सबसे ठंडा दिन (17.9 डिग्री) रिकॉर्ड किया गया हो लेकिन हीट वेव यानी लू के मामले में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। डाउन टु अर्थ पत्रिका में प्रकाशित ख़बर बताती है कि पिछले तीन दशकों में 1978 से 2014 के बीच लू की करीब 600 से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें 12,273 लोगों की जान गई है यानी हर साल औसतन 332 लोगों की जान गई थी। विज्ञान पत्रिका करंट साइंस में छपे शोध में पता चला है कि सबसे ज्यादा जानें आंध्रप्रदेश में गई हैं, जहां लू के कारण कुल 5,119 लोगों की जान गई थी।

भारत के केवल पांच राज्यों आंध्र प्रदेश , राजस्थान, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और बिहार में करीब 80 प्रतिशत मौतें हुई थी। इनमें से आंध्र प्रदेश में 42%, राजस्थान 17%, ओडिशा में 10%,  उत्तर प्रदेश में 7% और बिहार में भी 7% लोगों की जान गई। शोध कहता है कि अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम, मिज़ोरम, उत्तराखंड और गोवा में 1978 से 2014 के दौरान लू की घटनाएं सामने नहीं आई थी। 

हिन्दुकुश के पिघलते ग्लेशियर ला सकते हैं बाढ़, जलसंकट का ख़तरा 

हिन्दुकुश के पिघलते ग्लेशियर करीब 200 करोड़ लोगों के लिये संकट खड़ा कर सकते हैं। इनके पिघलने से भयानक बाढ़ के साथ जल संकट का खतरा है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनडीपी की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। साल 2100 तक इस पर्वत श्रंखला के दो-तिहाई ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। इन ग्लेशियरों से 10 प्रमुख नदियों और उनकी सहायक जलधाराओं में पानी आता है और कृषि, पेयजल और हाइड्रोपावर का काम चलता है। यूएनडीपी की रिपोर्ट में मानवीय हस्तक्षेप को इसके लिये ज़िम्मेदार कहा गया है और जीवाश्म (कोयले, तेल और गैस) ईंधन के इस्तेमाल को बन्द करने की सिफारिश है। 


क्लाइमेट नीति

प्लास्टिक बैन होगा ?: सिंगल यूज़ प्लास्टिक हानिकारक कचरे के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार है लेकिन उत्पादक उस पर पाबंदी की डेडलाइन पीछे खिसकाना चाहते हैं फोटो – Mali Maeder from Pexels

प्लास्टिक बैन की समय सीमा आगे बढ़ाना चाहते हैं उत्पादक

भारत अगले साल (जनवरी 2022) से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पाबंदी लगाना चाहता है लेकिन इंडिया स्पेन्ड में प्रकाशित ख़बर बताती है कि ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन ने पाबंदी की डेडलाइन को आगे बढ़ाने को कहा है। गुब्बारों में इस्तेमाल होने वाली स्टिक, झंडे, टॉफी कवर, इयर बड, कटलरी, सिगरेट फिल्टर,  एसोसिएशन ने कोरोना महामारी के कारण पैदा आर्थिक दिक्कतों की दलील दी है। प्रस्तावित पाबंदी लागू हुई तो स्ट्रॉ और सजावट के लिये इस्तेमाल होने वाले थर्माकोल आदि पर रोक लग जायेगी। नये नियम अभी लागू प्लास्टिक प्रबंधन नियमों की जगह लेंगे। 

एक 13 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक में इन सभी चीज़ों को उनके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और दैनिक जीवन में उपयोगिता के इंडैक्स पर नापा। कमेटी अभी इस मुद्दे पर सभी भागेदारी  लोगों के  भारत में हर साल 95 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि  हर रोज़ 25,940 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। 

मसूरी में बनेगी सुरंग, वैज्ञानिकों ने उठाये सवाल 

उत्तराखंड के हिल स्टेशन मसूरी में करीब 3 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने के प्रस्ताव पर जानकारों ने सवाल उठाये हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले हफ्ते ट्विटर पर जानकारी दी कि मसूरी में 2.74 किलोमीटर लम्बी सुरंग के लिये उन्होंने 700 करोड़ रुपये मंज़ूर किये हैं जिससे मॉल रोड, मसूरी शहर और लाल बहादुर शास्त्री (आईएएस अकादमी) की ओर “आसान और बिना अटकाव” ट्रैफिक चलेगा। राज्य के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने नितिन गडकरी का आभार जताते हुए कहा था कि इससे मसूरी में “कनेक्टिविटी आसान” होगी।  

मसूरी हिमालय के अति भूकंपीय संवेदनशील (ज़ोन-4) में है। माना जा रहा है कि सुरंग के लिये करीब कुल 3000 से अधिक पेड़ कटेंगे और वन्य जीव क्षेत्र नष्ट होगा। इसके अलावा पहाड़ों पर खुदाई और ड्रिलिंग की जायेगी जिससे कई स्थानों पर भूस्खलन का खतरा बढ़ सकता है। डी डब्लू (हिन्दी) में छपी ख़बर के मुताबिक पिछले साल देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन इकोलॉजी और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रायपुर के भू-विज्ञानियों और विशेषज्ञों ने एक शोध प्रकाशित किया जिसके मुताबिक मंसूरी का करीब 44% हिस्से में भूस्खलन को लेकर औसत, अधिक या बहुत अधिक  खतरा है। 

इस शोध में कहा गया है कि भट्टाफॉल, जॉर्ज एवरेस्ट, कैम्पटी फॉल और  बार्लोगंज जैसे इलाके अधिक खतरे वाले (हाई हेजार्ड ज़ोन) में हैं। वाडिया संस्थान के जानकार कहते हैं कि उन्हें प्रस्तावित सुरंग बनाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी वरना उसके प्रभावों को अपने शोध में शामिल करते। मसूरी के संबंधित क्षेत्र के वन अधिकारियों ने भी कहा कि उन्हें इस प्रोजेक्ट को लेकर अब तक कुछ पता नहीं है। 

सड़क निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई अवमानना याचिका 

उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क इलाके में फिर से शुरू किये गये सड़क निर्माण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर हुई है। फॉरेस्ट और वाइल्ड लाइफ संबंधी अनुमति न होने के कारण कोर्ट ने यह सड़क निर्माण कार्य 2019 में रोक दिया था। लालढांग-चिल्लरखाल नाम से जानी जाने वाली करीब साढ़े ग्यारह किलोमीटर लम्बी यह सड़क संवेदनशील वन क्षेत्र से गुजरेगी जो राजाजी नेशनल पार्क और कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के बीच हाथियों और बाघों के आने जाने का रास्ता है। वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (डब्लूआईआई) और नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने इस क्षेत्र का मुआयना किया था और इस इलाके को “बाघों के विचरण के लिये महत्वपूर्ण” बताया था। याचिकाकर्ता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का 2-19 का आदेश अब भी मान्य है क्योंकि इस सड़क प्रोजेक्ट के लिये फॉरेस्ट और वाइल्डलाइफ संबंधी अनुमति अभी तक नहीं ली गई है। 

भोपाल गैस पीड़ित विधवाओं की पेंशन डेढ़ साल से अटकी 

औद्योगिक प्रदूषण समाज के गरीब और कमज़ोर तबकों को किस तरह प्रभावित करता है भोपाल गैस त्रासदी इसकी एक मिसाल रही है। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक  कोरोना महामारी के दौर में विधवाओं को मिलने वाली 1000 रुपये प्रति माह की पेंशन पिछले 18 महीनों से अटकी है। पहले ये महिलायें अपनी समस्या की ओर ध्यान खींचने के लिये सड़क पर आंदोलन कर रही थीं लेकिन कोरोना में संक्रमण के कारण प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई है। साल 1984 में 2-3 दिसंबर की रात कीटनाशकों के कारखाने से मिथाइल आइसो सायनेट नाम की ज़हरीली गैस का रिसाव होने से भोपाल में करीब 10,000 लोग मारे गये थे। हालांकि सरकार ने आधिकारिक रूप से 3,787  लोगों के मरने की बात ही कुबूल की है।  

महत्वपूर्ण है कि लाखों लोग इस गैस से बीमार हो गये और जो बच्चे बाद में पैदा हुए उन पर भी गैस का असर दिखा। सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि कोरोना से भोपाल शहर में हुई तीन चौथाई मौतें गैस पीड़ितों की है, जबकि शहर में उनकी आबादी एक चौथाई भी नहीं है। 


वायु प्रदूषण

क्षणिक राहत: मॉनसून से पहले तेज़ हवा के कारण दिल्ली-एनसीआर की हवा कुछ साफ हुई है। फोटो – Yogendra Singh on Pexels

तेज़ हवाओं से दिल्ली की हवा हुई कुछ साफ

मॉनसून के दिल्ली पहुंचने से पहले तेज़ हवाओं के कारण यहां की हवा कुछ साफ हो गई है। ये राहत दिल्ली और आसपास के इलाकों में अगले कुछ दिन दिख सकती है। मौसम विभाग ने 16 से 18 जून के बीच हवा की गुणवत्ता मध्यम से संतोषजनक स्तर पर रहने का बात कही। अगले कुछ दिन बयार का सकारात्मक असर दिखेगा लेकिन पीएम 10 के रूप में धूल के अपेक्षाकृत बड़े कण प्रमुख प्रदूषक के रूप में मौजूद रहेंगे। डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन में छपी ख़बर के मुताबिक राजधानी में तेज सतही हवाओं की दिशा बदलती रहेगी तथा इसकी गति 10 से 16 किमी प्रति घंटे होगी। इस हफ्ते हल्की बारिश या गरज के साथ बौछारें पड़ने का अनुमान है। 

कोरोना लॉकडाउन-1 के बाद हानिकारक NO2 का स्तर बढ़ा 

कोरोना महामारी को रोकने के लिये लगाये गये पहले लॉकडाउन के एक साल बाद दुनिया भर में हानिकारक NO2 का स्तर फिर बढ़ गया है। उपग्रह से मिली तस्वीरों के आधार पर किया गया ग्रीनपीस का अध्ययन बताता है कि साल 2020 की पहली छमाही में हवा कुछ साफ हुई थी लेकिन अब स्पष्ट है कि इसके लिये लम्बी रणनीति की ज़रूरत है। जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करके उसकी जगह सौर और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल इसके लिये बेहतर विकल्प है। 

रिसर्च के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में वायु प्रदूष्ण के स्तर, कोरोना से पहले की तुलना में सबसे नाटकीय रूप से बढ़े। जहां अप्रैल 2020 में NO2 के स्तर यहां 30% गिरे थे वहीं 2021 में इसी समय महामारी से पहले की तुलना में ये 47% बढ़े हैं। इसी तरह बैंकॉक और जकार्ता में यह महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच चुके हैं। NO2 ईंधन के जलने से निकलती है वातावरण में मौजूद बेहद हानिकारक गैसों में से एक है। 

कोयला बिजलीघरों के खिलाफ दिल्ली सरकार पहुंची सुप्रीम कोर्ट

दिल्ली सरकार ने अपने पड़ोसी राज्यों में स्थित कुछ कोयला बिजलीघरों को बन्द कराने के लिये सुप्रीम कोर्ट  का दरवाज़ा खटखटाया है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि हरियाणा, उत्तरप्रदेश और पंजाब के ये बिजलीघर  दिल्ली -एनसीआर को प्रदूषित कर रहे हैं। उनका कहना था कि इस मामले  को सुलझाने के लिये केंद्र के इनकार के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई है। इन 10 बिजलीघरों में दादरी, हरदुआगंज, नाभा, तलवंडी साबो, पानीपत और यमुनानगर में स्थित बिजलीघर शामिल हैं। 

साल 2018 में द एनर्ज़ी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (टेरी) के एक अध्ययन में कहा गया था कि राजधानी में वायु प्रदूषण का 60% हिस्सा दिल्ली के बाहर से आता है। केंद्र सरकार ने नियमों को बदलते हुये दिल्ली के आसपास 10 किलोमीटर के दायरे में 10 लाख से अधिक आबादी वाले क्षेत्रों  में स्थित बिजलीघरों के लिये नये उत्सर्जन नियमों का पालन ज़रूर कर दिया है। 


साफ ऊर्जा 

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विलुप्त होती चिड़िया पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला बदलने की याचिका करेंगी कंपनियां

अक्षय ऊर्जा कंपनियां सुप्रीम कोर्ट से अपने उस फैसले पर फिर से विचार करने की अपील कर सकती हैं जिसमें कोर्ट ने गुजरात और राजस्थान में ज़मीन के भीतर बिजली की लाइन बिछाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में यह फैसला विलुप्त हो रही ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (एक विशाल चिड़िया) को ध्यान में रखते हुये दिया। जिन कंपनियों पर कोर्ट के इस फैसले का असर पड़ेगा उनमें अडानी ग्रीन, टाटा पावर रिन्यूएबल, रिन्यू पावर और हीरो शामिल हैं। एनर्जी वर्ल्ड डॉट कॉम में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक कंपनियां चाहती हैं कि कोर्ट यह फैसला एक सीमित क्षेत्र पर ही लागू करवाये।  

ढुलमुल नीतियों से सौर ऊर्जा क्षेत्र पर संकट 

सरकार की नीतियों में अनिश्चितता का असर सौर ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ रहा है। सरकार ने 2015 में हुई पेरिस संधि में घोषणा की थी कि 2022 तक अक्षय ऊर्जा की 175 गीगावाट की क्षमता विकसित की जाएगी लेकिन अब तक कुल 95 गीगावाट का लक्ष्य हासिल किया जा सका है। यह मुमकिन नहीं है कि बचे एक साल में सरकार बाकी की दूरी तय कर ले। इसी तरह साल 2030 तक भारत का लक्ष्य 450 गीगावाट साफ ऊर्जा क्षमता विकसित करने का है। मोंगाबे इंडिया में छपी रिपोर्ट बताती है कि सरकारों के मनमाने फैसले इस राह में बाधा बन रहे हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार ने – इस उम्मीद में कि पुनः नीलामी करने पर और सस्ते दरों पर बिजली मिलेगी –  निजी डेवलपर्स के साथ सौर ऊर्जा के कुछ पुराने बिजली खरीद समझौते (पीपीए) को रद्द कर दिया है। जानकार कहते हैं कि अगर राज्य सरकारें निवेशकों और डेवलपर्स के साथ नीलामी के तहत किए गए शर्तों का पालन नहीं करती हैं तो इससे साफ ऊर्जा को लेकर दीर्घकालिक लक्ष्य हासिल नहीं कर पायेंगी। इन लक्ष्यों को पाने के लिये भारी निवेश की जरूरत है और यह तभी संभव होगा जब निवेशकों को देश में एक स्पष्ट नीति का पालन होता दिखे। 

सोलर उपकरणों का आयात महंगा होने से मुनाफे पर चोट 

रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने चेतावनी दी है कि सोलर उपकरणों के आयात में तेज़ी से बढ़ोतरी से उत्पादकों का मुनाफा गिरेगा। आयातित  फोटो वोल्टिक सोलर मॉड्यूल्स का की कीमत 22-23 प्रतिशत प्रति वॉट बढ़ गई है जो कि पिछले कुछ महीनों में ही 15% से 20% की बढ़ोतरी है। यह वृद्धि पॉलीसिलिकॉन के दाम बढ़ने से हुई है। इसकी सबसे अधिक चोट उन उत्पादकों पर होगी जिनको पिछले 6 से 9 महीने के बीच ₹ 2 से ₹ 2.25 प्रति यूनिट की दर से ठेके मिले हैं और अगले 12 से 15 महीने में काम पूरा करना है। जानकार कहते हैं कि अगर बेसिक कस्टम ड्यूटी को शामिल कर लिया जाये तो पूरे प्रोजेक्ट की 50-55 प्रतिशत कीमत इस पीवी मॉड्यूल के कारण ही होती है


बैटरी वाहन 

क्लीन डिलीवरी: फूड डिलीवरी सर्विस जोमेटो का कहना है कि 2030 तक उसके कारोबार में सभी वाहन बैटरी चालित होंगे।

भारत: ज़ोमेटो के सारे वाहन 2030 तक होंगे इलैक्ट्रिक

भारत की सबसे बड़ी फूड डिलीवरी सेवाओं में से एक ज़ोमेटो ने घोषणा की है कि साल 2030 तक उसके सभी वाहन पूरी तरह इलैक्ट्रिक (ईवी) होंगे और इससे कंपनी का कार्बन फुट प्रिंट कम होगा। कंपनी का यह कदम ईवी100 कलेक्टिव का हिस्सा बनने की योजना के तहत है जिसमें अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां  क्लाइमेट एक्शन को सपोर्ट करने के लिये पूरी तरह ईवी वाहनों का इस्तेमाल करेंगी। ज़ोमेटो दिल्ली में अपनी 35% डिलीवरी साइकिलों से करता है और मुंबई और बैंगलुरू को मिला दें तो कुल 20% डिलीवरी साइकिलों से है। 

इसी बीच सरकार ने फेम-II योजना के तहत इलैक्ट्रिक दुपहिया और तिपहिया वाहनों पर सब्सिडी 50% बढ़ा दी है। यानी अब यह 10,000 रु प्रति किलोवॉट घंटा से बढ़कर 15,000 रु प्रति किलोवॉट घंटा हो गई है। 

सड़कों पर बैटरी वाहनों की संख्या बढ़ाने की कोशिश 

कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज़ लिमिटेड (सीईएसएल) ने ऐलान किया है कि वह अगले कुछ सालों में बैटरी निर्माता कंपनियों से कुल 5 लाख दुपहिया और तिपहिया वाहन खरीदेगी।  सीईएसएल बिजली मंत्रालय के तहत काम करने वाली एनर्जी एफिसिएंसी सर्विसेज़ लिमिटेड (ईईएसएल) से जुड़ी है। इन वाहनों को खरीदने के पीछे सोच यह है कि जब सड़कों पर ये इलैक्ट्रिक वाहन दिखेंगे तो लोगों में इनके प्रति उत्सुकता बढ़ेगी और बाज़ार ज़ोर पकड़ेगा। कायनैटिक ग्रीन एनर्जी, हीरो इलैक्ट्रिक, महिन्द्रा इलैक्ट्रिक मोबिलिटी और पावर सोल्यूशंस जैसी कंपनियों ने  कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज़ लिमिटेड को ईवी सप्लाई करने में दिलचस्पी दिखाई है।  सीईएसएल ने यह भी कहा है कि वह नगरपालिकाओं को कचरा इकट्ठा करने के लिये किराये पर बैटरी वाहन देना चाहती है।


जीवाश्म ईंधन

कोयले में घाटा: पुराने कोयला संयंत्रों को बन्द करने से महाराष्ट्र सरकार को 16,000 करोड़ का फायदा होगा। फोटो – Loïc Manegarium on Pexels

महाराष्ट्र में नहीं लगेंगे “नये कोयला बिजलीघर”

महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की है कि वह राज्य में अब कोई नये कोयला बिजलीघर नहीं लगायेगी। इसके बजाय पावर की मांग को देखते हुये 25 गीगावॉट के सोलर पैनल लगाये जायेंगे। महाराष्ट्र भारत के सबसे औद्योगिक शहरों में है लेकिन क्लाइमेट रिस्क हॉराइज़न की रिपोर्ट कहती है कि कोयला बिजलीघर 55% क्षमता पर चल रहे हैं जो दिखाता है बिजली की मांग कम है और पुराने संयंत्रों को बन्द किया जा सकता है। 

रिपोर्ट में अनुमान है कि पुरानी कोल पावर यूनिटों को बन्द करने से अगले 5 साल में ₹ 16,000 करोड़ बचेंगे और इसलिये (कड़े नियमों के पालन के लिये) इन बिजली यूनिटों में प्रदूषण नियंत्रक टेक्नोलॉजी लगाने से बेहतर है कि इन्हें बन्द कर दिया जाये। 

कोल पावर नहीं कर पायेगी अक्षय ऊर्जा दरों का मुकाबला: आईफा

ऊर्जा क्षेत्र में काम करने वाली आईफा ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि भविष्य में भारत के बिजलीघरों से मिलने वाली बिजली की कीमत इतनी अधिक होगी कि वह दरें अक्षय ऊर्जा स्रोतों का  मुकाबला नहीं कर पायेंगी। आईफा ने यह चेतावनी करीब 33 गीगावॉट के निर्माणाधीन बिजलीघरों और कुल 29 गीगावॉट के उन संयंत्रों के लिये दी है जो अभी बनना शुरू नहीं हुए हैं। आईफा की रिपोर्ट कहती है कि सोलर पावर की दरें अभी काफी कम हैं और कोल पावर की मांग घटती जा रही है। फिर भी केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने संकेत दिये हैं कि साल 2030 तक भारत 58 गीगावॉट के नये कोल पावर प्लांट लगायेगा। अप्रैल 2021 से कोल इंडिया की ई-नीलामी बुकिंग 52.5% बढ़ गई हैं। 

नॉर्वे ने नये तेल और गैस लाइसेंस प्रस्तावित किये 

नार्वे सरकार ने तेल और गैस के नये लाइसेंस देने के लिये 84 नई निविदायें मांगी हैं। सरकार को लगता है कि इससे “पेट्रोलियम उद्योग में लम्बे समय के लिये आर्थिक तरक्की” का रास्ता खुलेगा। यह एक विरोधाभासी कदम है क्योंकि खुद पहले देश की जीवाश्म ईंधन से किनारा करने की नीति बना रहा था। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) ने जीवाश्म ईंधन का दोहन तुरंत रोकने को कहा था। क्लाइमेट कार्यकर्ता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं और नॉर्वे सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ड्रिलिंग लाइसेंस रोकने में नाकाम रहने के लिये यूरोप की मानवाधिकार अदालत में घसीटने की सोच रहे हैं