फोटो: @Indiametdept/X

मॉनसून सामान्य तिथि से 9 दिन पहले ही पूरे भारत पर छाया

दक्षिण-पश्चिम मानसून रविवार को राजधानी दिल्ली पहुंचा और इसने  “निर्धारित समय से नौ दिन पहले ही पूरे देश को कवर कर लिया – जब से आईएमडी ने राजधानी के लिए शुरुआत के रिकॉर्ड शुरू किए हैं तब से यह एक ऐसी दुर्लभ मौसम संबंधी घटना है जो 2001 के बाद से केवल पांच बार हुई है, ।” 

वर्ष 2001-2025 की अवधि के दौरान दिल्ली पहुंचने के बाद मानसून को पूरे देश को कवर करने में आम तौर पर चार दिनों का औसत लगता है लेकिन इस साल 29 जून का अभिसरण 2020 के बाद से सबसे जल्दी पूर्ण राष्ट्रीय कवरेज है।

मौसम विज्ञान विभाग ने रविवार को एक बयान में कहा, “दक्षिण-पश्चिम मानसून आज 29 जून 2025 को राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शेष हिस्सों और पूरी दिल्ली में आगे बढ़ गया है। इस प्रकार, यह सामान्य तिथि 08 जुलाई (सामान्य तिथि से नौ दिन पहले) के मुकाबले 29 जून 2025 को पूरे देश को कवर कर चुका है।” 

मॉनसून की पहली बारिश 24 मई को केरल में पहुंची थी – 2001 के बाद से चौथा सबसे शीघ्र आगमन – दक्षिणी तट से दिल्ली तक की 36-दिवसीय यात्रा उसी अवधि में छठी सबसे लंबी यात्रा रही।

आईएमडी ने कहा है कि भारत के अधिकांश हिस्सों में जुलाई में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। मध्य भारत, उत्तराखंड और हरियाणा में लोगों से बाढ़ के जोखिम के कारण सतर्क रहने के लिए कहा गया है।

एशिया में तापमान वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से बढ़ रहा है, अर्थव्यवस्थाएं हो रही हैं प्रभावित: डब्ल्यूएमओ

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने एशिया में जलवायु की स्थिति पर अपनी ताज़ा रिपोर्ट (2024) में कहा गया है कि एशियाई भूभाग वैश्विक औस से लगभग दोगुनी गति से गर्म हो रहा है, जिससे अधिक चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है और क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं पर भारी असर पड़ रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में एशिया का औसत तापमान 1991-2020 के औसत से लगभग 1.04 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जो रिकॉर्ड पर सबसे गर्म या दूसरा सबसे गर्म वर्ष था। बीते साल  2024 में, समुद्र के रिकॉर्ड क्षेत्र में हीटवेव ने अपनी पकड़ बना ली थी। समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड पर सबसे अधिक था। एशिया की समुद्री सतह की दशकीय वार्मिंग दर वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी थी। महाद्वीप के प्रशांत और हिंद महासागर के किनारों पर समुद्र का स्तर वैश्विक औसत से अधिक हो गया, जिससे तटीय क्षेत्रों के लिए जोखिम बढ़ गया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्दियों में बर्फबारी में कमी और गर्मियों में अत्यधिक गर्मी ग्लेशियरों के लिए नुकसानदेह है। रिपोर्ट बताती है, “मध्य हिमालय और तियान शान में, 24 में से 23 ग्लेशियरों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ, जिससे ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ और भूस्खलन जैसे खतरे बढ़ गए और जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक जोखिम पैदा हो गया।”

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते टर्बुलेंस से विमानों को खतरा: रिपोर्ट

ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में 4 मई 2024 को क़्वांटस एयरलाइन्स के एक बोइंग 737 विमान में अप्रत्याशित रूप से मौसम खराब होने के कारण यात्रियों और विमान सेवा कर्मियों को चोटें आईं। जांच में पाया गया कि यह तीव्र टर्बुलेंस पायलट की अनुमान से कहीं अधिक था।

एक नए शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण गरज और तूफानों से पैदा होने वाले तेज़ हवाओं के झोंकों — विशेषकर डाउनबर्स्ट्स — की तीव्रता और फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है। ये माइक्रोबर्स्ट्स विमान के लिए खासतौर पर टेकऑफ और लैंडिंग के समय बेहद ख़तरनाक हैं।

वैज्ञानिकों ने पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में गर्मी और नमी को इसकी मुख्य वजह बताया है।

पूरी दुनिया में शिशु टीकाकरण का ग्राफ़ गिरा, भारत में 14 लाख बच्चों को नहीं लगा टीका 

दुनिया में शिशु टीकाकरण कार्यक्रम का ग्राफ गिर रहा है। मेडिकल जर्नल लांसेट का ताज़ा विश्लेषण बताता है कि 2023 में दुनिया में 1.57 करोड़ बच्चे ऐसे थे जिन्हें कोई जीवनरक्षक टीका नहीं लगा और इनमें से 14.40 लाख भारत में थे। भारत उन देशों में है जहां टीकाकरण काफी सफल रहा है लेकिन लांसेट का विश्लेषण कहता है वर्ष 2023 में भारत उन 8 देशों में था जहां दुनिया के आधे बच्चे थे जिन्हें टीका नहीं लगा।

यह शोध वर्ष 2023 के  ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ के आंकड़ों पर आधारित है जिसमें दुनिया के सभी देशों का 1980 से 2023 तक का आंकड़ा लिया गया उन 11 प्रमुख बीमारियां शामिल हैं जिनके टीके बच्चों के लिए जीवनरक्षक माने जाते हैं। इस विश्लेषण के हिसाब से दुनिया के लगभग 100 देशों में खसरे यानी मीसल्स के टीकाकरण में कमी आई है। यह स्टडी बताती है कि 2010 के बाद के कई वजहों से टीकाकरण का ग्राफ गिरा है और 2019 के बाद कोविड महामारी के कारण इसमें गिरावट आई और इसमें भ्रांतियों और टीके के विरोध की भी भूमिका है। 

चीन में मौसम विभाग ने दी एक साथ हीटवेव और बाढ़ की चेतावनी 

चीन के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र (एनएमसी) ने बीते सोमवार (23 जून) को उत्तरी चीन के अधिकांश हिस्सों के लिए हीटवेव के लिए यलो अलर्ट जारी किया। इसमें 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की चेतावनी दी गई – कुछ क्षेत्रों और शहरों में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की चेतावनी दी गई। इस बीच, आठ दक्षिणी प्रांतों में मूसलाधार बारिश होने और कुछ क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा होने की आशंका जताई गई।

दक्षिण अफ्रीका में बाढ़ से करीब 100 मरे, पीर्वी केप क्षेत्र में आपातकाल लगाना पड़ा 

दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी केप क्षेत्र में बीते दिनों भारी बाढ़ से 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई जिसमें एक नवजात शिशु भी शामिल है। इसके बाद सरकार को वहां  राष्ट्रीय आपदा की घोषणा करनी पड़ी। ख़बरों के मुताबिक “दो बच्चे अभी भी लापता हैं। 9 और 10 जून को ठंड के कारण हुई भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई, जिससे पीड़ित और उनके घर बह गए, अन्य लोग अपने घरों में फंस गए, सड़कें और अन्य बुनियादी ढाँचे क्षतिग्रस्त हो गए और बिजली आपूर्ति बाधित हो गई।”

इस महीने की बाढ़ दक्षिण अफ्रीका में होने वाली प्रतिकूल मौसम घटनाओं की श्रृंखला में एकदम नई है। केप टाउन में पिछले साल, जुलाई में रिकॉर्ड बारिश हुई थी और हज़ारों घर क्षतिग्रस्त हो गए थे। 2022 में, दो तटीय प्रांतों में मूसलाधार बारिश के कारण कम से कम 459 लोगों की मौत हो गई।

जलवायु संकट किसानों के अनुकूलन के बावजूद भी प्रमुख फसलों की पैदावार को कर सकता है प्रभावित

एक नए अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ महत्वपूर्ण फसलों को “काफी हद तक” उत्पादन हानि हो सकती है। गार्डियन में प्रकाशित ख़बर बताती है कि धरती पर हर एक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ मक्का, सोया, चावल, गेहूं, कसावा और ज्वार की पैदावार में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 120 कैलोरी तक की कमी आ सकती है। 

इसी अध्ययन को कवर करते हुए डेली टेलीग्राफ ने कहा है कि अध्ययन से पता चलता है कि भोजन पर इसका प्रभाव “ऐसा होगा जैसे हर कोई नाश्ता छोड़ देगा”। न्यू साइंटिस्ट ने बताया कि शोधकर्ताओं ने जिन छह प्रमुख फसलों पर अध्ययन किया, उनमें से चावल को छोड़कर सभी को बढ़ते तापमान के साथ भारी नुकसान होने वाला है। अख़बार ने बताया कि “उदाहरण के लिए, वैश्विक मकई की पैदावार सदी के अंत तक लगभग 12% या 28% तक गिरने का अनुमान है और यह इस बात पर निर्भर करेगा कि ग्लोबल वॉर्मिंग न होने की तुलना में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन क्रमशः मध्यम होंगे या बहुत अधिक।”

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