केंद्रीय कैबिनेट ने दो साल पहले आधिकारिक रूप से घरेलू आइल पाम को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत फैसले को मंज़ूरी दी लेकिन उत्तर पूर्वी राज्य मेघालय इसके पक्ष में नहीं है। महत्वपूर्ण है कि राज्य में एनडीए की सरकार है लेकिन नेशनल पीपुल्स पार्टी के लीडर और मेघालय औद्योगिक विकास कॉर्पोरेशन के चेयरमैन जेम्स के संगमा और राज्य के कृषि और स्वास्थ्य मंत्री एम ए लिंगदोह ने इसका विरोध किया है। इन लोगों का कहना है कि ऑइल पाम की खेती जैव विविधता को नष्ट कर देगी और राज्य के किसान भी इसके खिलाफ हैं।
महत्वपूर्ण है कि इसी साल 25 जुलाई से 12 अगस्त के बीच कई राज्यों ने ऑइल पाम की खेती को बढ़ाने के लिए नेशनल मिशन फॉर एडिबल ऑइल्स — ऑइल पाम के तहते देश भर में कार्यक्रम किये थे। पतंजलि फूड और गॉदरेज एग्रोवेट जैसी कंपनियां इसे बढ़ा रही हैं। संगमा, जो पहले राज्य के वन और पर्यावरण मंत्री भी रह चुके हैं, ने कहा कि वह हमेशा ही ऑइल पाम की खेती के खिलाफ रहे हैं।
भारत पूरी दुनिया में पाम ऑइल का सबसे बड़ा आयातक है और यहां इस तेल की सबसे अधिक खपत भी है। सरकार देश में 10 लाख हेक्टेयर से अधिक ज़मीन में इसकी खेती करना चाहती है और इसके उत्पादन को 2025-26 तक 11.20 लाख टन तक करना चाहती है। आज देश में आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और गोवा के साथ उत्तर पूर्व के त्रिपुरा, नागालैंड, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों को शामिल किया गया है।
जी-20 में अनुपस्थित रहेंगे रूसी राष्ट्रपति पुतिन
रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भारत में हो रहे जी-20 सम्मेलन में अनुपस्थित रहेंगे। उनकी गैरमौजूदगी में विदेश मंत्री सर्जेई लेवरोव नुमाइंदगी करेंगे। यूक्रेन के साथ शुरु हुए युद्ध के बाद पुतिन ने पूर्व सोवियत संघ देशों के अलावा केवल ईरान की ही यात्रा की है। एक इंटरनेशन क्रिमनल कोर्ट के वॉरंट के बाद पुतिन ने हाल में दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में भी अनुपस्थित रहे।
आतंकवाद, विश्व अर्थव्यवस्था और कोरोना महामारी के बाद उपजे हालात के साथ जी-20 में जलवायु परिवर्तन एक अहम मुद्दा है। इस समूह के देश दुनिया के करीब 80% कार्बन एमिशन के लिए ज़िम्मेदार हैं। जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहा भारत चीन और अमेरिका के बाद तीसरे नंबर का सबसे बड़ा उत्सर्जक है और जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े शिकार देशों में है और विकासशील देशों के हितों को आगे बढ़ाने में उसकी भूमिका अहम है।
‘इकोसाइड’ को अपराध घोषित करने के लिए क़ानून
दुनिया के कई देश इकोसाइड को अपराध घोषित करने के लिए क़ानून बना रहे हैं हालांकि यह कितना प्रभावी होगा वह क़ानून की सख़्ती और क्रियान्वयन पर निर्भर है। अंग्रेज़ी समाचार पत्र गार्डियन में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सबसे नए मामलों में मेक्सिको एक ऐसा देश है जहां पर्यावरणीय क्षति करने वाले को दंडित करने के लिये ऐसे क़ानून की मांग हो रही है। मेक्सिको के प्रस्तावित क़ानून में इकोसाइड क्राइम के लिए क़ानूनी जानकारों के अंतर्राष्ट्रीय पैनल द्वारा 2021 में तय परिभाषा को इस्तेमाल किया है।
रूस, वियेतनाम और यूक्रेन ने ऐसे क़ानून बनाए हैं जहां पर्यावरण को गहरी क्षति पहुंचाने पर ‘इकोसाइड’ के लिये मुकदमा और सज़ा हो सकती है। यूक्रेन नोआ कखोवा बांध को तोड़ने के लिए रूस के खिलाफ अपने देश के इकोसाइड लॉ के तहत जांच कर रहा है। फ्रांस यूरोपीय यूनियन का पहला देश है जिसने इकोसाइड पर क़ानून बनाया लेकिन इसकी भाषा और प्रावधान उतने कड़े नहीं है जितना पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अपेक्षा की थी।
वन संरक्षण का बढ़ा-चढ़ाकर आकलन करके जारी किए जा रहे हैं लाखों कार्बन क्रेडिट
साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, निर्वनीकरण या डीफॉरेस्टेशन रोकने के स्तरों का बढ़ा-चढ़ाकर आंकलन करके लाखों कार्बन क्रेडिट जेनरेट किए जा रहे हैं। इसका मतलब है कि उत्सर्जन को संतुलित करने के लिए कंपनियों द्वारा खरीदे गए तमाम ‘कार्बन क्रेडिट’ वास्तव में वन संरक्षण से वैसे नहीं जुड़े हैं, जैसा कि उनको लेकर दावा किया गया है।
कार्बन क्रेडिट, या कार्बन ऑफसेट ऐसे परमिट होते हैं जो धारकों को एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति देते हैं।
कैम्ब्रिज और एम्स्टर्डम के व्रीजे विश्वविद्यालय के नेतृत्व में दुनिया भर के वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों की एक टीम ने पाया कि लाखों कार्बन क्रेडिट ऐसी गणनाओं पर आधारित हैं जो आरईडीडी+ परियोजनाओं की सफलताओं को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। आरईडीडी+ यूएनएफसीसीसी द्वारा विकसित एक स्वैच्छिक जलवायु परिवर्तन शमन फ्रेमवर्क है, जिसके तहत विकासशील देशों को वन प्रबंधन जैसे विकल्पों के माध्यम से उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इन प्रयासों के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण वनों की सुरक्षा में निवेश करके आरईडीडी+ योजनाएं कार्बन क्रेडिट जेनरेट करती हैं। यह क्रेडिट उस कार्बन को दर्शाते हैं जो अब उत्सर्जित नहीं होगा क्योंकि वनों को नहीं काटा जाएगा। कंपनियां, संस्थाएं या कोई व्यक्ति अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए कार्बन क्रेडिट खरीद सकते हैं।
लेकिन इस रिसर्च ने पाया है कि जिन पेड़ों या वनों के बदले में यह कार्बन क्रेडिट जारी किए गए हैं वह वास्तव में हैं ही नहीं, नतीजन कार्बन उत्सर्जन कम होने की बजाय बढ़ा है।
झरिया फायर ज़ोन से हर हफ्ते लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाएगा
सौ सालों से धधक रहे झरिया कोलफील्ड के डेंजर ज़ोन में रहने वाले लोगों को हर हफ्ते सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाएगा। धनबाद प्रशासन ने हर सप्ताह 10 से 15 परिवारों को डेंजर जोन से हटाने करने का निर्णय लिया है।
मानसून के दौरान यह फायर ज़ोन और खतरनाक हो जाते हैं। केंद्र सरकार के झरिया मास्टर प्लान के तहत प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को अगस्त 2021 तक सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया जाना चाहिए था, लेकिन आवास की कमी के कारण अब तक केवल 2,687 परिवारों का ही पुनर्वास किया जा सका है।
झरिया एक ऐसा इलाका है, जहां की जमीन पिछले 100 सालों से धधक रही है। ऐसा वहां जमीन के अंदर मौजूद कोयले की वजह से हो रहा है। यहां जमीन में मौजूद कोयले की वजह से अंदर ही अंदर आग जलती रहती है। झरिया में पहले भी जमीन धंसने और लोगों के हताहत होने के कई मामले सामने आ चुके हैं।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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