केरल के वायनाड जिले में मेप्पाडी के पास पहाड़ी इलाकों में मंगलवार सुबह भारी भूस्खलन हुआ। इस चरम मौसमी घटना से हुई आपदा में कम से कम डेढ़ सौ लोगों के मारे जाने की आशंका है। ख़बर लिखे जाने तक 156 लोगों के शव निकाल लिए गए थे और कई लोगों के लापता होने का समाचार है।मनोरमा के मुताबिक इस आपदा में 50 से अधिक घर तबाह हो गये हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सैकड़ों अन्य लोगों के मलबे में फंसे होने की आशंका है। स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, अधिकांश पीड़ित चाय बागानों में काम करते थे और बागानों के निचले हिस्से में रहते थे। अकेले वायनाड में 45 राहत शिविरों में 3,069 लोग हैं।
वायनाड में सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात को भारी बारिश हुई। वायनाड ज़िले में सामान्य से 5 गुना अधिक बरसात हो गई जिस कारण कई भूस्खलन हुए। बचाव कार्यों में बाधा का सामना करना पड़ा। मौसम विभाग ने 3 अगस्त तक भारी बारिश का पूर्वानुमान किया है और ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। वायनाड जिले के अधिकारियों ने बताया कि थोंडरनाड गांव में रहने वाले एक नेपाली परिवार के एक साल के बच्चे की भूस्खलन में मौत हो गई। मनोरमा के अनुसार, भूस्खलन ने चूरलमाला में मुख्य पुल को नष्ट कर दिया है, जिससे भूस्खलन से प्रभावित विभिन्न स्थानों पर कई लोग फंस गए हैं।राहत कार्यों के लिए सेना को बुलाया गया है
समाचार एजेंसी पीटीआई ने वैज्ञानिकों के हवाले से कहा कि केरल में भूस्खलन जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक खनन और इलाके में वन क्षेत्र के नुकसान का मिलाजुला परिणाम हो सकता है। न्यूजवायर ने कहा कि भारत में भूस्खलन हॉटस्पॉट पर 2021 के एक अध्ययन से पता चला है कि केरल में कुल भूस्खलन का 59% प्रतिशत वृक्षारोपण क्षेत्रों में हुआ। रिपोर्ट में 2022 के अध्ययन का हवाला दिया गया है जिसमें पाया गया कि 1950 और 2018 के बीच जिले में 62% जंगल गायब हो गए, जबकि वृक्षारोपण कवर लगभग 1,800% बढ़ गया। रिपोर्ट में एक अध्ययन का भी उल्लेख किया गया है जिसमें पाया गया कि 1950 के दशक तक वायनाड के कुल क्षेत्रफल का लगभग 85% भाग वन आवरण के अंतर्गत था।
कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीयूएसएटी) में वायुमंडलीय रडार अनुसंधान के लिए उन्नत केंद्र के निदेशक एस अभिलाष ने पीटीआई को बताया, “हमारे शोध में पाया गया कि दक्षिणपूर्व अरब सागर का तापमान बढ़ रहा है, जिससे केरल सहित इस क्षेत्र के ऊपर का वातावरण गर्म हो रहा है।” थर्मोडायनामिक रूप से अस्थिर।”
भूस्खलन पश्चिमी घाट के मुख्य क्षेत्र से होकर गुजरने वाली प्रस्तावित महत्वाकांक्षी 4-लेन अनाक्कमपोइल-कल्लाडी-मेप्पादी जुड़वां सुरंग सड़क परियोजना के साथ हुआ है। भारी बारिश ने अक्सर क्षेत्र की पर्यावरण संबंधी संवेदनशीलता को उजागर किया है। इससे पहले अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने बताया था कि सुरंग अलाइनमेंट भूस्खलन की संभावना वाले अत्यधिक नाजुक इलाके से होकर गुजरता है।
देश के कई हिस्सों में बाढ़ के बावजूद जुलाई में मॉनसून का वितरण विषम
जुलाई में देश के विभिन्न हिस्सों में भारी बाढ़ देखी गई, फिर भी देश भर में मानसून की बारिश 3% कम है। (मॉनसून की गणना 1 जून से 30 के बीच की जाती है), मुख्य रूप से हाल के वर्षों में मानसून के तेजी से अनियमित, विषम वर्षा पैटर्न देखा गया है और जून के महीने में इसमें 11% की कमी थी।
हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक उत्तर पश्चिम भारत में 12% बारिश की कमी है; पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में 10%; मध्य भारत में 4% की कमी; लेकिन प्रायद्वीपीय भारत पर 19% अधिक बारिश हुई। जुलाई में अब तक 4.7% अधिक बारिश देखी गई है, लेकिन ऐसा लगता है कि अधिकांश वर्षा प्रायद्वीपीय भारत में केंद्रित है, जहां महीने भर के दौरान 25% अधिक बारिश दर्ज की गई है। जुलाई में, उत्तर पश्चिम भारत में 1.1% अधिक मॉनसून दर्ज किया गया; मध्य भारत, 5.9% अधिक; और पूर्वी तथा पूर्वोत्तर भारत में 5.4% अधिक।
राजधानी में आईएएस कोचिंग सेंटर में पानी भरने से 3 छात्रों की जान गई
दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर में पानी भर जाने से दो लड़कियों समेत कुल 3 छात्रों की जान चली गई। शनिवार को राजेंद्र नगर स्थित राउस आईएएस कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में बारिश का पानी भर गया जहां 30 छात्र पढ़ाई कर रहे थे जिनमें से तीन की जान चली गई। बाकी 27 में से कुछ या तो खुद बाहर निकल आए या उन्हें बाद में निफंस को नहीं निकाला जा सका।
बचाव के लिए गोताखोरों को लगाना पड़ा। मौके पर मौजूद छात्रों ने स्थिति को “भयानक” बताया और ऐसी स्थिति बताई जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इस घटना से त्रुटिपूर्ण शहरी निर्माण और मौसम विभाग की चेतावनियों पर ध्यान न देने की बात भी सामने आती है। पुराने राजेंद्र नगर के निकटतम मौसम विभाग के पूसा मौसम स्टेशन ने शनिवार शाम 5.30 बजे से 8.30 बजे के बीच 31.5 मिमी बारिश की सूचना दी थी। कुछ छात्रों ने एक सप्ताह पहले भी ऐसी ही स्थिति होने की बात कही जब वहां की सड़क पर कमर तक बारिश का पानी भर गया।
चौबीस घंटों में ही टूटा सबसे गर्म दिन का रिकॉर्ड, जुलाई 22 रहा पिछले 84 सालों में सबसे गर्म दिन
सोमवार यानी 22 जुलाई, 2024 पिछले 84 सालों में दुनिया का सबसे गर्म दिन रहा। महत्वपूर्ण है कि यूरोपीय संघ की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने जुलाई 21 को सबसे गर्म दिन घोषित किया लेकिन यह रिकॉर्ड 24 घंटों में ही टूट गया। रविवार को वैश्विक औसत तापमान 17.09 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था और सोमवार को यह 0.06 डिग्री बढ़कर 17.15 डिग्री दर्ज किया गया। इस साल अमेरिका, यूरोप और रूस के अलावा एशिया के ज़्यादातर हिस्सों में तापमान काफी ऊंचा रहा।
इससे पहले सबसे गर्म दिन का रिकॉर्ड 6 जुलाई, 2023 ने बनाया था जब वैश्विक तापमान 17.08 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि पिछले सभी वर्षों और जुलाई 2023 के बाद के तापमानों के बीच महत्वपूर्ण अंतर है। सी3एस के निदेशक कार्लो बूनटेम्पो ने कहा कि पिछले 13 महीनों के तापमान और पिछले रिकॉर्ड के बीच का अंतर चौंका देने वाला है।
जुलाई 2023 से पहले, पृथ्वी का सर्वाधिक दैनिक औसत तापमान अगस्त 2016 में दर्ज किया गया था, जो 16.8 डिग्री सेल्सियस था। हालांकि, 3 जुलाई, 2023 के बाद से 57 दिन ऐसे रहे हैं जब दैनिक तापमान 2016 के इस रिकॉर्ड से अधिक रहा है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह साल, पिछले वर्ष 2023 के रिकॉर्ड को तोड़कर धरती पर अब तक सबसे गर्म वर्ष बन सकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और एल नीनो प्रभाव – जो अप्रैल में समाप्त हुई – ने इस वर्ष तापमान को और अधिक बढ़ा दिया है।
क्लाइमेट साइंटिस्ट, आईपीसीसी रिपोर्ट के लेखकों में एक और पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओरोलॉजी में वैज्ञानिक रॉक्सी कोल ने एक्स पर लिखा, “हम ऐसे युग में हैं जहां मौसम और जलवायु के रिकॉर्ड अक्सर हमारी सहनशीलता की सीमा से आगे निकल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप [मानव] जीवन और [लोगों की] आजीविका की भारी हानि हो रही है।”
निर्माण गतिविधियों और अंधाधुंध पर्यटन से हिमालयी मर्मोट पर छाया संकट
हिमालय में हो रहे निर्माण और विकास गतिविधियों और बढ़ते पर्यटन प्रभावों के कारण दुर्लभ स्तनधारी जीव हिमालयी मर्मोट के अस्तित्व पर संकट छा सकता है। यह बात आदिकैलाश के जोलिंगकोंग क्षेत्र में उत्तराखंड वन विभाग की रिसर्च विंग की रिपोर्ट में सामने आई है। हिमालयी मर्मोट 2900 से 5500 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते हैं।
उत्तराखंड वन विभाग की रिसर्च विंग के प्रमुख संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक अप्रैल से जून के बीच जोलिंगकोंग गांव के पास 17 मर्मोट के व्यवहार का अध्ययन किया गया जिनमें उनके द्वारा बिल खोदने, बैठने के तरीके, आपस में दोस्तान लड़ाई और भोजन तलाशते समय सतर्कता जैसे व्यवहार का अध्ययन किया गया। इस स्टडी में यह पाया गया है कि सड़क, होटल जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण और ट्रैकिंग रूट्स के कारण इस क्षेत्र में मर्मोट के बिलों को नुकसान हो रहा है और भोजन क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं। पर्यटकों द्वारा इस क्षेत्र में छोड़ा गया फूड वेस्ट मर्मोट को इंसानी भोजन पर निर्भर बना रहा है जिससे उसके द्वारा अपना प्राकृतिक भोजन तलाशने की प्रवृत्ति पर असर पड़ सकता है। शोध में कहा गया है कि अगर इस गतिविधियो को नियंत्रित नहीं किया गया तो निश्चित ही इस प्रजाति के अस्तित्व पर संकट छा जायेगा।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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