उत्तर-पश्चिम भारत में इतिहास का सबसे गर्म जून, मनमौजी मौसम का पूर्वानुमान होता जा रहा है कठिन

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक पिछले 124 सालों में उत्तर पश्चिम भारत के लिए यह सबसे गर्म जून का महीना था, जिससे दिल्ली, उत्तर प्रदेश और क्षेत्र के अन्य हिस्सों में घातक गर्मी दर्ज की गई। इसमें कम से कम 100 लोगों की मौत हो गई। मौसम विभाग के रिकॉर्ड्स में 1901 से तापमान दर्ज करने का सिलसिला शुरु हुआ और 2024 में जून का महीना अब तक का सबसे गर्म महीना था। जून देश में मानसूनी बारिश में 11% की कमी के साथ समाप्त हुआ, जो 2001 के बाद से 7वीं सबसे कम बारिश है, जिससे यह महीना चरम मौसमी घटना वाला महीना बन गया। झारखंड (-61 प्रतिशत), बिहार (-52 प्रतिशत), उत्तराखंड (-49 प्रतिशत), हरियाणा (-46 प्रतिशत) उत्तर प्रदेश (-34 प्रतिशत), गुजरात (-30 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (-28 प्रतिशत), और ओडिशा (-27 प्रतिशत) में मानसून की एक सप्ताह से 10 दिन की देरी के कारण वर्षा की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया। 

मौसम विभाग ने 28 जून को 24 घंटे की अवधि में दर्ज की गई 235.5 मिमी बारिश को भी अभूतपूर्व बताया – जो 1936 के बाद से सबसे अधिक है और कहा कि घटना का सही पूर्वानुमान लगाना एक चुनौती थी क्योंकि शहर के कुछ हिस्सों में लगभग 100 मिमी बारिश घंटे भर में ही की दर्ज की गई।  जुलाई में देश के कुछ हिस्सों, खासकर पश्चिमी हिमालय की तलहटी में अत्यधिक बारिश और बाढ़ की आशंका है।

जुलाई में अत्यधिक वर्षा से भारत के कुछ हिस्सों में तबाही,  लेकिन पूर्वी भारत में धान उपज वाले क्षेत्र में कम वर्षा 

यह रुझान हर साल गंभीर होता जा रहा है, “जुलाई में अत्यधिक वर्षा देश के कुछ हिस्सों में कहर बरपा रही है, लेकिन कुछ अन्य, विशेष रूप से पूर्वी भारत में धान उपज वाले क्षेत्र में कम बारिश दर्ज की जा रही है।” 

जुलाई में दक्षिण-पश्चिम मानसून तेज़ होने से पश्चिमी हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र में अभूतपूर्व वर्षा हुई।

रविवार को बरेली के बहेड़ी में 460 मिमी बारिश दर्ज की गई; उत्तराखंड के चंपावत के बनबसा में 430 मिमी, नैनीताल के चोरगलिया में 310 मिमी दर्ज की गई; गोवा के पणजी में 360 मिमी बारिश दर्ज की गई; रायगढ़ में ताला 290 मिमी; और मुंबई के सांताक्रूज़ में रविवार और सोमवार की सुबह के बीच 24 घंटों में 270 मिमी दर्ज की गई।

अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक “इसमें कुछ असामान्य है”। मौसम विभाग  (आईएमडी) 200 मिमी से अधिक बारिश को “बेहद भारी” (एक्सट्रीमली हैवी) श्रेणी में रखता है और इन स्टेशनों पर अधिकांश बारिश न केवल आईएमडी की “बेहद भारी” श्रेणी से परे थी, बल्कि कुछ ही घंटों के अंतराल में रिकॉर्ड किया गया। दूसरी ओर, गंगा के तटीय मैदान जैसे पश्चिम बंगाल और पूर्वी क्षेत्रों में 1 जून से 52% की कमी दर्ज की गई। झारखंड में 49%; छत्तीसगढ़ 25% और ओडिशा 27%, यहां तक कि केरल में भी 26% की कमी दर्ज की गई।

चक्रवाती तूफान बेरिल ने फिर रिकॉर्डतोड़ तापमान वृद्धि के प्रति आगाह किया 

चक्रवात बेरिल ने कैरेबियन के कुछ हिस्सों में भारी तबाही मचाई है और जलवायु परिवर्तन की भूमिका पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। करीब 160 मील प्रति घंटे (257 किमी/घंटा) से अधिक की अधिकतम निरंतर हवा की गति के साथ, यह लगभग 100 वर्षों के रिकॉर्ड में सबसे ख़तरनाक श्रेणी पांच अटलांटिक तूफान बन गया।

वास्तव में, जुलाई में इस श्रेणी के अटलांटिक तूफान का केवल एक ही पिछला मामला दर्ज किया गया है – जब 16 जुलाई 2005 को एमिली चक्रवात तट से टकराया था। हर तूफान के पीछे अपने  जटिल कारण होते हैं, जिससे विशिष्ट मामलों को पूरी तरह से जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराना मुश्किल हो जाता है। लेकिन असाधारण रूप से उच्च समुद्री सतह के तापमान को तूफान बेरिल के इतना शक्तिशाली होने का प्रमुख कारण माना जा रहा है। आमतौर पर, ऐसे शक्तिशाली तूफ़ान सीज़न के अंत में ही विकसित होते हैं, जब गर्मियों में समुद्र गर्म हो जाते हैं।

असम में बाढ़ का पानी घटा लेकिन मरने वालों की संख्या 100 तक पहुंची 

बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक राज्य के कुछ हिस्सों में पानी कम होने के बाद भी असम में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। इस साल बाढ़, भूस्खलन, तूफान और बिजली गिरने से मरने वालों की संख्या अब 100 हो गई है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 ज़िलों में 14 लाख से अधिक लोग बाढ़ की चपेट में हैं। 

ब्रह्मपुत्र सहित कई प्रमुख नदियाँ अलग-अलग स्थानों पर खतरे के स्तर से ऊपर बह रही हैं और अलग-अलग स्थानों पर बारिश का पूर्वानुमान है। अधिकारियों ने कहा कि बाढ़ की स्थिति में मामूली सुधार हुआ है क्योंकि रविवार को बाढ़ से पीड़ित लगभग 22.75 लाख लोगों की तुलना में 27 जिलों में बाढ़ से पीड़ित लोगों की संख्या घटकर लगभग 18.80 लाख हो गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि धुबरी सबसे बुरी तरह प्रभावित है, जहां 2.37 लाख से अधिक लोग पीड़ित हैं, इसके बाद कछार (1.82 लाख) और गोलाघाट (1.12 लाख) हैं। प्रशासन वर्तमान में 1,57,447 विस्थापित लोगों की देखभाल करते हुए 20 जिलों में 365 राहत शिविर और राहत वितरण केंद्र संचालित कर रहा है।

वन्यजीव बोर्ड लेगा संरक्षित क्षेत्र में परियोजनाओं को मंजूरी देने का निर्णय 

अब, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एससी-एनबीडब्ल्यूएल) या वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति संरक्षित वन क्षेत्रों में परियोजनाओं को मंजूरी देने पर फैसला करेगी। हिन्दुस्तान टाइम्स (एचटी) की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्यों को सूचित किया है कि जब तक एनबीडब्ल्यूएल की स्थायी समिति मंजूरी नहीं दे देती, तब तक परियोजनाओं पर वन मंजूरी पर विचार नहीं किया जाएगा।

अखबार ने कहा कि सभी परियोजना प्रस्तावक केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की परिवेश 2.0 वेबसाइट और नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम (एनएसडब्ल्यूएस) पर एक साथ वन और वन्यजीव सहित पर्यावरणीय मंजूरी के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिसके माध्यम से निवेशक आवेदन कर सकते हैं।

संरक्षित क्षेत्रों में परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए स्थायी समिति के लगभग सभी निर्णय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 29 और धारा 35 (6) के अनुपालन में नहीं हैं, जो निर्दिष्ट करता है कि तब तक कोई परियोजना नहीं हो सकती जब तक कि यह वन्यजीवों का खयाल नहीं रखती। यह बात विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में रेखांकित की है। 

सूखे और मिट्टी की बिगड़ती सेहत से बढ़ सकता है कार्बन उत्सर्जन 

एक नए अध्ययन से पता चला है कि सूखे के समय फटी धरती की सतह CO2 उत्सर्जित करती है जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है। मोंगाबे इंडिया  की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने सूखे, मिट्टी की शुष्कता और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के बीच एक फीडबैक लूप की पहचान की है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को तेज कर सकता है। सूखे और मिट्टी की सतह के टूटने के कारण, मिट्टी में कार्बन का ऑक्सीकरण होता है और कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में उत्सर्जित होता है, जिससे तापमान में और वृद्धि होती है। इस फीडबैक लूप को सूखे और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच अंतरसंबंध को समझने के लिए और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है। मृदा स्वास्थ्य जलवायु शमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कृषि और जलवायु-संबंधी परिणामों के लिए इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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