यूनाइटेड किंगडम के मौसम विभाग के मुताबिक में वैश्विक औसत तापमान के हिसाब से अगला साल दुनिया के अधिकतम तापमानों वालों वर्षों में दर्ज होगा। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि 2023 में धरती के औसत तापमान 1.2 डिग्री को बढ़ोत्तरी दर्ज होगी। यह वृद्धि प्री इंडस्ट्रियल स्तर (1850-1900) से मापी जाती है। अगर यूके के मौसम विभाग की यह भविष्यवाणी सच हुई तो साल 2023 लगातार दसवां साल होगा जब धरती की तापमान वृद्धि 1 डिग्री से अधिक दर्ज हो रही है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि हालांकि एल-निनो प्रभाव की गैर मौजूदगी के कारण 2023 रिकॉर्डतोड़ गर्मी वाला वर्ष नहीं होगा लेकिन सबसे गर्म सालों में ज़रूर दर्ज होगा। पिछले कुछ सालों से हो रही रिकॉर्डतोड़ गर्मी ने मानव जीवन और फसलों के साथ जैवविविधता पर गहरा असर डाला है। साल 2022 में मार्च का महीना सबसे अधिक तापमान वाला दर्ज किया गया था।
सर्दियों में जंगलों में एक बार फिर दिखी आग
साल 2020 की तरह – जब पूरे देश में जाड़ों में लगी आग से बड़ी क्षति हुई – एक बार फिर देश भर के जंगलों में आग दिख रही है। सर्दियों में आग का यह सिलसिला नवंबर से शुरू होता है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक अब तक 635 अलर्ट भेजे गये। सबसे अधिक 102 चेतावनियां मध्यप्रदेश के जंगलों में आग को लेकर दी गईं। भारत में 7 से 14 दिसंबर के बीच उत्तराखंड के जंगलों में आग की सबसे अधिक घटनायें दर्ज हुईं। सर्दियों में शुष्क मौसम और जाड़ों में बरसात न होना भी आग की घटनाओं में बढ़ोतरी का कारण है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में 36% जंगल ऐसे हैं जहां बार-बार आग का ख़तरा है। इनमें 4% जंगल में आग लगता का ख़तरा अत्यधिक (एक्सट्रीम) है।
जलवायु परिवर्तन से वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा हैजा: डब्लूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि दुनिया में हैजे का प्रकोप बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी रफ्तार तेज़ हो सकती है। दुनिया के नक्शे को देखें तो कोई हिस्सा नहीं है जहां हैजे का प्रकोप न हो। विशेषरूप से अफ्रीका का सींग कहे जाने वाले प्रायद्वीपीय क्षेत्र और यहां साहेल की पट्टी वाले इलाके में भारी बाढ़, अभूतपूर्व मॉनसून और लगातार चक्रवाती तूफानों के कारण हैजे का प्रकोप बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। हेती, मलावी, सीरिया और लेबलान के इलाकों में हैजा फैला है। पाकिस्तान में भी इस साल आई बाढ़ के बाद डायरिया के पचास हज़ार मामले सामने आये हैं लेकिन प्रयोगशाला से पुष्ट हुये हैजे के मामले कुछ हज़ार में ही हैं। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि ला-निना प्रभाव के लगातार तीसरे साल जारी रहने के कारण साल 2023 में भी हालात के सुधरने का पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता है।
परागण की कमी का असर फल-सब्ज़ियों के उत्पादन पर
भू-उपयोग में बदलाव, ख़तरनाक कीटनाशकों और जलवायु परिवर्तन के कारण वह कीट-पतंगे और जन्तु कम हो रहे हैं जो परागण करते हैं और कई वनस्पतियों के अस्तित्व को बनाये रखते हैं। इन्वॉयरेनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव में प्रकाशित रिसर्च से पता चलता है। इन्वायरेंमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव में प्रकाशित शोध के मुताबिक कीटों की कमी से पर्याप्त परागण नहीं हो पा रहा जिसकी वजह से फल, सब्ज़ियों और अखरोट के वैश्विक उत्पादन में 3-5 प्रतिशत की कमी हुई है। शोध कहता है कि इस कारण पौष्टिक भोजन न मिल पाने से सालाना 4.27 लाख अतिरिक्त लोगों की मौत भी हो रही है। महत्वपूर्ण है कि यह क्षति ग्लोबल वॉर्मिंग की रफ्तार रोकने के लिये ज़रूरी जैव विविधता को नष्ट कर रही है। मॉन्ट्रियल में हाल ही में हुये समिट में दुनिया के तमाम देशों ने धरती के 30% हिस्से को बचाने की घोषणा की है। इस सम्मेलन में साल 2030 तक इकोसिस्टम के क्षरण को रोकने और उसकी बहाली के लिए इन देशों ने 23 लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
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