दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पहली बार क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) का सहारा लेने जा रही है। इस पहल के तहत पांच उड़ानें चलाई जाएंगी, जिनमें प्रत्येक उड़ान लगभग 90 मिनट की होगी और इसमें सीडिंग मिश्रण का छिड़काव किया जाएगा। लाइव मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार यह छिड़काव उत्तर-पश्चिम और बाहरी दिल्ली के कम सुरक्षा वाले हवाई क्षेत्र में लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में किया जाएगा।
इस क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन की योजना आईआईटी कानपुर ने तैयार की है और इसे तकनीकी समन्वय के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), पुणे को सौंपा गया है। पीटीआई के अनुसार इस योजना को 4 जुलाई से 11 जुलाई के बीच लागू किया जाएगा।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि “3 जुलाई तक क्लाउड सीडिंग के लिए मौसम अनुकूल नहीं है, लेकिन 4 से 11 जुलाई के बीच की अवधि उड़ानों के लिए प्रस्तावित की गई है।”
यह दिल्ली में अपनी तरह का पहला प्रयास होगा, जिसमें वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम वर्षा की मदद ली जाएगी। यदि यह प्रयास सफल रहता है, तो भविष्य में इसे और व्यापक स्तर पर अपनाया जा सकता है।
एनसीएपी पर दिल्ली ने खर्च किया सिर्फ एक-तिहाई फंड
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत दिल्ली को प्रदूषण नियंत्रण के लिए मिले 42.69 करोड़ रुपए में से अब तक केवल 13.94 करोड़ (32.65%) रुपए खर्च किए गए हैं।
पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली समेत 14 शहरों ने प्राप्त राशि का 50 प्रतिशत से भी कम उपयोग किया है। नोएडा, फरीदाबाद, विशाखापत्तनम, जालंधर, और वाराणसी जैसे शहरों में भी फंड उपयोग की स्थिति कमजोर है। 2019 में शुरू हुए एनसीएपी के तहत 2026 तक पीएम10 प्रदूषण को 40 प्रतिशत तक घटाने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन अब तक 12,636 करोड़ रुपए में से सिर्फ 71% राशि ही खर्च हो पाई है।
यूरोप में ध्वनि प्रदूषण से हर साल 66,000 मौतें: रिपोर्ट
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप में 11 करोड़ से अधिक लोग हानिकारक ध्वनि प्रदूषण से जूझ रहे हैं, जिससे हर साल करीब 66,000 लोगों की मौतें समय से पहले होती हैं और दिल की बीमारी, मधुमेह व अवसाद के कई मामले सामने आते हैं।
कार, ट्रेन और हवाई जहाज से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण बच्चों समेत करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार, प्रदूषण से प्रभावित लोगों की वास्तविक संख्या 15 करोड़ तक हो सकती है। यूरोपीय संघ ने 2030 तक लंबे समय से ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित लोगों की संख्या 30% तक कम करने का लक्ष्य रखा है।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा।
सेकेंडरी पॉल्यूटेंट्स से होता है एक तिहाई पीएम2.5 प्रदूषण: स्टडी
भारत में पीएम 2.5 प्रदूषण का लगभग एक-तिहाई हिस्सा सेकेंडरी पॉल्यूटेंट्स (प्रदूषकों), विशेषकर अमोनियम सल्फेट से होता है, जो वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और अमोनिया (NH₃) की प्रतिक्रिया से बनता है।
यह खुलासा सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) की एक स्टडी में हुआ है। अध्ययन के अनुसार, देशभर में अमोनियम सल्फेट की औसत सांद्रता 11.9 माइक्रोग्राम/घनमीटर है, जिसमें से 60% SO₂ उत्सर्जन कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट्स से आता है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व स्तर पर सबसे अधिक मात्रा में SO2 उत्सर्जित करता है, जो 11.2 मिलियन टन है, और NOX के उत्सर्जन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है, जो 9.4 मिलियन टन है और अमोनिया (NH3) का उत्सर्जन 10.4 मिलियन टन है। ये बढ़े हुए स्तर सल्फेट, नाइट्रेट और ओजोन जैसे द्वितीयक प्रदूषकों के व्यापक निर्माण के लिए आदर्श परिस्थितियाँ बनाते हैं। एक बार बनने के बाद, ये कण लंबी दूरी तय कर सकते हैं, शहरों, राज्यों और क्षेत्रों में फैल सकते हैं, जिससे वायु प्रदूषण एक सीमा पार का मुद्दा बन जाता है जो शहरी और ग्रामीण दोनों आबादी को प्रभावित करता है।
हालांकि फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम अनिवार्य हैं, फिर भी केवल 8% संयंत्रों ने इन्हें स्थापित किया है।
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