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ताउते तूफान ने बताया कितना संवेदनशील है भारत का पश्चिमी तट

“तट पर 25 नाव कतार से लगी थी तभी एक जोर का तूफान आया। हवा का जोर इतना अधिक था कि ये सारी नावें आपस में टकराकर टूट गईं। मैं बढ़ा-चढ़ा कर नहीं बोल रहा हूं बल्कि सारी नाव सच में टुकड़ों में टूटकर बिखर गईं। कुछ नहीं बचा,” ये शब्द हैं मुंबई के मड आइलैंड निवासी मछुआरे किरण कोहली के जिन्होंने ताउते चक्रवाती तूफान का विध्वंस अपनी आंखों से देखा।

ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस की दूसरी लहर की चपेट में बुरी तरह फंसा है और मौत का आंकड़ा तीन लाख के पार पहुंच चुका है, चक्रवाती तूफान रूपी आफत ने देश के समुद्री तटों पर दस्तक दे दी और अच्छी-खासी तबाही मचाई।

14 मई से चक्रवात ने अपना असर दिखाना शुरू किया और 17 मई को इसका एक जोरदार प्रहार गुजरात के पोरबंदर और महुवा तटों पर हुआ।

चक्रवात की वजह से अरब सागर में लक्षद्वीप के पास दबाव बनना शुरू हुआ। तूफानी हवा की रफ्तार 230 किमी प्रति घंटे तक पहुंच गई, जिसकी वजह से समुद्र की लहरें तीन मीटर तक उठ गईं। गुजरात के तटों के टकराने के साथ तूफान ने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र के तटों पर भी भयानक रूप ले लिया।

“इस चक्रवाती तूफान को पश्चिमी समुद्री तट पर सबसे लंबा सफर करने वाला तूफान माना जाएगा,” कहते हैं के एस होसालिकर, जो भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, पुणे के क्लाइमेट रिसर्च एंड सर्विस प्रभाग के प्रमुख हैं।

“इस दौरान हमने हर तीन घंटे में बुलेटिन जारी किया। 16 मई को स्थिति काफी गंभीर बनी थी। दक्षिणी गोवा से लेकर रत्नागिरी तक समुद्र तट से 200 किमी के भीतर लगातार बारिश हुई। 17 मई को स्थिति और भी गंभीर हो गई जब तूफान ने 200 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार पकड़ ली। मुंबई से तूफान 180 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गुजरा,” उन्होंने कहा।

सैटेलाइट का डाटा उपलब्ध होने के बाद से यह लगातार चौथा वर्ष है जब अरब सागर में मानसून के पूर्व चक्रवात देखने को मिल रहा है। 180 से 210 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम रफ्तार लिए इस तूफान के बारे में नासा की एक रिपोर्ट कहती है कि यह 3 या 4 श्रेणी के टक्कर का तूफान है।  इस तरह ताउते 1998 के बाद अरब सागर का पांचवां सबसे शक्तिशाली तूफान बन गया है। जलवायु वैज्ञानिक इसके पीछे की वजह समुद्र तल का लगातार गर्म होना बता रहे हैं। 

ताउते की विभीषिका का अभी आकलन किया जा रहा है। यह तटवर्ती इलाकों में रहने वाले 91 लोगों की जिंदगियां लील चुका है और 66 लोग अभी भी गायब बताए जा रहे हैं। कई हजार पेड़ और बिजली के खंभे जड़ से उखड़ गए। तटवर्ती राज्यों में कई इलाकों की बिजली 100-100 घंटे बाद भी नहीं आई। इन राज्यों में सरकारी संपत्ति का भी काफी नुकसान हुआ है। निचले इलाके के लोगों को वहां से हटाना भी पड़ा।

केरल के कुछ हिस्सों में इसकी वजह से स्थानीय बाढ़ जैसे हालात बन गए। तूफान ने मछली पकड़ने वाले नाव  को भी तबाह किया जो कि गुजरात और महाराष्ट्र के तटों पर रखे हुए थे। गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात में लोगों का घर उजड़ने की सूचना भी सामने आई है। इमारतों में आई दरारों ने हमारे पश्चिमी तटों की नाजुक स्थिति की पोल खोल दी, कहती हैं मंजू मेनन जो सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च से जुड़ी हैं।

कोविड-19 के बीच तूफान की आफत, स्वास्थ्य और टीकाकरण अभियान प्रभावित

महामारी के दौरान जब राज्यों की स्थिति पहले से ही नाजुक है, तूफान ने समस्याओं में इजाफा किया। उदाहरण के लिए गोवा की स्थिति कोविड-19 संक्रमण की वजह से पहले से ही खस्ता है। यहां देश में सबसे अधिक 35 फीसदी संक्रमण दर है, यानी हर 100 जांच पर 35 कोविड-19 के मरीज मिल रहे हैं। राज्य में ऑक्सीजन की सप्लाई दुरुस्त करने में पहले से ही परेशानियां आ रही है। ऐसे में तूफान के दौरान बारिश की वजह से मेडिकल कॉलेज में नए बने कोविड-19 वार्ड में छत टपकने की समस्या आई। मुंबई में एक बड़े टीकाकरण स्थल को भी नुकसान हुआ है। इसी तरह गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र में चल रहे कोविड-19 टीकाकरण अभियान पर तूफान का असर हुआ।

ओएनजीसी के कर्मचारी और मछुआरों पर तूफानी आफत

भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक दल ने ऑइल एंड नेचुरल गैस कंपनी (ओएनजीसी) के लापता कर्मचारियों को खोजने के लिए राहत और बचाव अभियान चलाया।  तूफान के बाद समुद्र में तैनात ओएनजीसी  कर्मचारियों से भरा एक जहाज डूब गया।  इसमें 273 कर्मचारी सवार थे जिनमें से 186 को बचा लिया गया। 49 की मौत हो गई और 35 अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। दिल दहला देने वाला वाकया  सुनाते हुए जहाज पर मौजूद एक कर्मचारी ने बताया कि उन्हें तूफान आने की कोई सूचना आखिर-आखिर तक भी नहीं थी।

हालांकि, मछुआरों को तूफान की जानकारी भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र ने काफी पहले दे दी थी। समुद्र से मछुआरे तट पर लौट आए थे। सूचना के मुताबिक तमिलनाडु कन्याकुमारी तट पर 16 मछुआरे लापता हो गए हैं। साउथ एशियन फिशरमैन फ्रेटरनिटी के मुताबिक वे 5 मई को गहरे समुद्र में मछलियां पकड़ने गए थे। 13 मई के बाद से उनसे संपर्क नहीं हो पाया है।

“उनके पास एक वायरलेस सेट था जो कि सामान्य परिस्थितियों में 25 नॉटिकल माइल्स तक काम करता है,” फादर चर्चिल, संस्था के महासचिव ने कहा। भारतीय तटरक्षक दल ने उन्हें खोजने के लिए अभियान चलाया हुआ है।

केरल में तीन मछुआरों को तटरक्षक दल ने बचाया। समुद्र के बीच ही उनके बोट का इंजन फेल हो गया था।

किरण कोहली के मुताबिक मड आइलैंड पर मछुआरे अपनी नाव

से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे और तूफान आ गया। पांच लोग बोट में ही फंस गए। चार लोगों को तो बचा लिया गया लेकिन एक की जान चली गई।

मड आइलैंड पर ही देखते-देखते 70 बोट के टुकड़े हो गए। मछली पकड़ने वाले जाल को भी काफी स्थानों पर नुकसान हुआ है।

“हमें एक सम्मानजनक मुआवजे की जरूरत है,” कोहली कहते हैं।

“अगर एक बोट की कीमत 25 लाख आंकी जाए तो नुकसान 25 करोड़ का हुआ है। उम्मीद है सरकार इस तरफ ध्यान देगी,” वह कहते हैं।

मछली पकड़ने का व्यापार इस वर्ष मंदा ही चल रहा है। चीन को निर्यात बंद है और ऊपर से यह चक्रवात आ गया। इस वर्ष इस क्षेत्र में मंदी की आशंका जताई जा रही है।

“मैंने अपने पूरे जीवनकाल में ऐसा भयानक तूफान नहीं देखा है। एक बार 1979 में तूफान आया था तब मैं स्कूल में पढ़ता था। उस वक्त 100 के करीब नाव डूब गईं थी,” कोहली ने बताया।

मानसून से पहले आया तूफान इसलिए बड़ा नुकसान टला

जानकार मानते हैं कि तूफान अगर कुछ समय बाद आता तो हालात और भी बुरे हो सकते थे। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट से जुड़े जियो-एनालिटिक्स विशेषज्ञ राज भगत कहते हैं कि ताउते ने स्थानीय स्तर अधिक प्रभाव डाला। इसका मतलब तूफान की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में बाढ़ नहीं आई।

“ऐसा मानसून से पहले आने की वजह से हुआ है। गर्मी की वजह से देश के बांध खाली हैं और जमीन के पानी संग्रहण क्षमता अधिक है,”उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

“इसका मतलब दक्षिणी केरल की नदियां उफान पर आईं तो उत्तरी केरल का इलाका बाढ़ से अछूता रहा। शहरों में बाढ़ तो आईं लेकिन इसका सीमित असर रहा,” उन्होंने आगे कहा। वह आशंका जताते हैं कि इससे कम तीव्रता वाला तूफान भी अगर मानसून के दौरान आता तो नुकसान और भी गंभीर हो सकते थे।

जानकर यह भी मानते हैं कि इसका असर संवेदनशील क्षेत्रों में अधिक हुआ है। ये ऐसे क्षेत्र हैं जो मानव गतिविधियों की वजह से संवेदनशील हुए हैं।

“उदाहरण के लिए केरल का चेल्लानम गांव जो कि कोची और अलापी के बीच स्थित है। यहां 40-50 वर्ष पहले मैंग्रो का जंगल हुआ करता था,” कहते हैं सेंटर फॉर वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट के बशीर केके।

“अब वहां मैंग्रो खत्म हो गए हैं जिससे इस इलाके की तूफानों से रक्षा होती थी। इस इलाके में काफी निर्माण भी किया जा चुका है। परिणामस्वरूप चेल्लानम और इसके आसपास के इलाके में काफी नुकसान हुआ है,” वह कहते हैं।

मंजू मेनन कहती हैं पश्चिमी तट पर काफी निर्माण कार्य हुए हैं क्योंकि वहां तूफान का कोई बुरा अतीत नहीं रहा है। “अब यह क्षेत्र नाजुक स्थिति में हैं क्योंकि तूफान से बचने की कोई तैयारी नहीं है। पूर्वी तट जहां तूफान आते रहते हैं, ऐसी स्थिति के लिए बेहतर तैयार रहते हैं,” उन्होंने कहा।

पर्यावरणविद् और नेशनल फिशरवर्क्स फॉरम के पूर्व सचिव एजे विजयन का कहना है कि केरल में बंदरगाह और तटों को घेरकर बने निर्माण चक्रवात से इलाके को संवेदनशील बनाते हैं।

मेनन मानती हैं कि जलवायु परिवर्तन पर जब भी चर्चा होती है तो बायो इंधन के उपयोग और ऊर्जा तक ही बहस सीमित रहती है। हमें मूलभूत ढांचा के बारे में भी सोचना चाहिए।

“केंद्र सरकार काफी आक्रामक रूप से बंदरगाहों के निर्माण और विकास पर जोर दे रही है। इन्हें अर्थव्यवस्था के नए केंद्र के तौर पर देखा जा रहा है। हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि आने वाले समय में पश्चिमी तटों पर ऐसे चक्रवाती तूफान और भी देखने को मिलेंगे,” वह कहती हैं।

“इन तटों पर कई परमाणु ऊर्जा संयंत्र, रसायन बनाने वाली फैक्ट्रियां मौजूद हैं, जिसकी वजह से तूफान और अधिक विध्वंसक हो सकता है,” वह कहती हैं।

ये स्टोरी मोंगाबे हिन्दी से साभार ली गई है।

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