फोटो: UNclimatechange/Flickr

संयुक्त राष्ट्र का जलवायु बजट 10% बढ़ाने पर सहमत हुए सभी देश, चीन का योगदान भी बढ़ा

बॉन (जर्मनी) में हाल ही में संपन्न हुई जलवायु वार्ता में शामिल हुए करीब 200 देशों ने यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के 2026-27 के बजट को 10 प्रतिशत बढ़ाकर 81.5 मिलियन यूरो (लगभग 816 करोड़ रुपए) करने पर सहमति दी।

महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस बजट में चीन की हिस्सेदारी को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया। चीन से अधिक हिस्सेदारी केवल अमेरिका की (22 प्रतिशत) तय की गई। हालांकि अमेरिका इस वार्ता में शामिल नहीं हुआ।

यूएनएफसीसीसी प्रमुख साइमन स्टील ने इस फैसले को मुश्किल समय में सहयोग का “स्पष्ट संकेत” बताया।

हालिया वर्षों में अमेरिका के पेरिस डील से बाहर होने और चीन द्वारा देरी से फंड मिलने के कारण संयुक्त राष्ट्र के जलवायु निकाय को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा है और कई कार्यक्रम रद्द करने पड़े हैं।

बॉन वार्ता में विभिन्न देश ग्लोबल गोल ऑन अडॉप्टेशन (जीजीए) पर भी एक समझौते पहुंचे। पेरिस समझौते के तहत स्थापित यह लक्ष्य विशेष रूप से कमजोर देशों को चरम मौसम की घटनाओं से निपटने में मदद देने के लिए है। हालांकि, यह विवाद बना रहा कि वित्तीय सहायता कौन देगा और कैसे मापी जाएगी।

विकासशील देशों ने इसे अधूरा और विकसित देशों द्वारा जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश बताया, जबकि यूरोपीय संघ ने इसे सफल करार दिया। अब निगाहें नवंबर में ब्राज़ील में होने वाले कॉप30 शिखर सम्मेलन पर टिकी हैं।

भारत ने किशनगंगा, रतले विवाद पर आर्बिट्रेशन कोर्ट के फैसले को खारिज किया

भारत ने द हेग-स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) द्वारा किशनगंगा और रतले हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं पर दिए गए तथाकथित “सप्लिमेंटल अवार्ड” को सख्ती से खारिज कर दिया है। इस फैसले में कथित पीसीए ने कहा था कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि स्थगित करने से विवाद के निपटारे पर पीसीए की अधिकारिता “सीमित” नहीं होगी, और उसका निर्णय दोनों पक्षों पर बाध्यकारी है।

जवाब में भारत सरकार ने कहा है कि भारत पीसीए को कभी मान्यता नहीं देता और यह निर्णय अंतर्राष्ट्रीय कानून और सिंधु जल संधि का उल्लंघन है। 

विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान पर “झूठे विवाद पैदा कर अंतर्राष्ट्रीय मंचों का दुरुपयोग करने” का आरोप लगाया।

भारत ने अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया था और कहा कि अब इस संधि के तहत कोई दायित्व बाध्यकारी नहीं है।

इससे पहले भारत सरकार ने विश्व बैंक द्वारा नियुक्त निष्पक्ष विशेषज्ञ (न्यूट्रल एक्सपर्ट) मिशेल लीनो से रतले और किशनगंगा हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं पर चल रही कार्यवाही को स्थगित करने का अनुरोध भी किया था।

फ्रांसीसी बांध विशेषज्ञ और अंतर्राष्ट्रीय बांध आयोग के अध्यक्ष रह चुके लीनो को अक्टूबर 2022 में विश्व बैंक ने न्यूट्रल एक्सपर्ट नियुक्त किया था। विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट एक तकनीकी विशेषज्ञ होता है, जो सिंधु जल संधि के तहत भारत-पाकिस्तान के बीच जल विवादों को सुलझाने का माध्यम होता है।

न्यूट्रल एक्सपर्ट का काम है दोनों पक्षों को सुनकर यह तय करना कि इन परियोजनाओं की डिज़ाइन संधि के अनुरूप है या नहीं। पाकिस्तान का आरोप है कि भारत न्यूनतम जल प्रवाह की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है।

भारत ने 24 अप्रैल को पाकिस्तान को संधि स्थगन की औपचारिक सूचना दी थी और लीनो से कहा कि वह पहले से तय कार्य योजना (वर्क प्रोग्राम) को रद्द करें। पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति जताई है और कार्यवाही जारी रखने की मांग की है।

किशनगंगा (झेलम की सहायक नदी) और रतले (चिनाब) दोनों पर बानी परियोजनाओं को लेकर भारत-पाकिस्तान में लंबे समय से विवाद चल रहा है। भारत का मानना है कि केवल निष्पक्ष विशेषज्ञ को ही इन मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार है, जबकि पाकिस्तान ने पीसीए की प्रक्रिया शुरू करवा दी।

सरकार अब चिनाब बेसिन में जल परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने और पाकिस्तान की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए अपने अधिकारों का प्रयोग करने की दिशा में बढ़ रही है।

जलवायु संकट को और गंभीर बना रही है झूठी जानकारी: रिपोर्ट

एक नई वैश्विक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन पर भ्रामक और झूठी जानकारी इस संकट को और गंभीर बना रही है।

इंटरनेशनल पैनल ऑन द इन्फॉर्मेशन एनवायरनमेंट (आईपीआईई) द्वारा 300 अध्ययनों की समीक्षा के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जीवाश्म ईंधन कंपनियां, दक्षिणपंथी राजनेता और कुछ देश क्लाइमेट एक्शन में बाधा पहुंचा रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया पर बॉट्स और ट्रोल्स गलत जानकारियों को तेजी से फैला रहे हैं। ब्राज़ील समेत कई देश इस पर रोक लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की पहल का समर्थन कर रहे हैं।

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