ब्राज़ील के शहर बेलेम में कॉप30 की शुरुआत के साथ एक स्पष्ट संदेश दे दिया गया — यह कार्यान्वयन (इम्प्लीमेंटेशन) कॉप है, और इसका मुख्य फोकस अनुकूलन (अडॉप्टेशन) पर होगा। सम्मेलन में 195 देशों के 47,000 से अधिक प्रतिनिधि पहुंचे। कॉप30 के अध्यक्ष आंद्रे कोरेआ दो लागो ने कहा कि अमेरिका की गैर-मौजूदगी और यूरोप की कमजोर जलवायु नीतियों के बीच दुनिया को समाधान के लिए ग्लोबल साउथ की ओर देखना चाहिए।
भारत ने समता, समान किंतु विभेदित दायित्व (Common but Differentiated Responsibilities-CBDR) और स्पष्ट क्लाइमेट फाइनेंस की मांग के साथ विकासशील देशों की आवाज को मजबूती दी। भारत ने ग्लोबल गोल ऑन अडॉप्टेशन को मजबूत करने और क्लाइमेट फंडिंग की एक समान परिभाषा तय करने की भी जरूरत बताई।
सम्मलेन की शुरुआत में ही कई विवादित मुद्दे सामने आए, जैसे टैरिफ, संशोधित एनडीसी, द्विवार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट और फाइनेंस से जुड़ा आर्टिकल 9.1। पहले दो दिनों में सम्मलेन स्थल पर विरोध प्रदर्शन भी हुए, जिसके बाद यूएनएफसीसीसी प्रमुख साइमन स्टील ने सुरक्षा व्यवस्था की आलोचना की और अत्यधिक गर्मी व बाढ़ के बीच बेहतर सुविधाओं की मांग की।
ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी (टीएफएफएफ) की शुरुआत रही एक बहुत बड़ा कदम रहा। इसे अब तक 5.5 अरब डॉलर से ज्यादा की प्रतिबद्धताएँ मिलीं। यह ग्लोबल साउथ द्वारा संचालित पहला बड़ा क्लाइमेट फाइनेंस फंड है। यह फंड जंगल बचाने वाले देशों को प्रति हेक्टेयर 4 डॉलर देगा, जिसमें 20% राशि स्थानीय और आदिवासी समुदायों के लिए तय होगी।
वित्त पर चर्चा में आईएचएलईजी रिपोर्ट प्रमुख रही। रिपोर्ट ने कहा कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को 2035 तक हर साल 3.2 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत होगी। इसमें पब्लिक ग्रांट, प्राइवेट कैपिटल, कार्बन मार्केट, विकासशील देशों के बीच आपसी सहयोग और एमबीडी सुधारों पर आधारित एक मजबूत वित्त मॉडल की मांग की गई। रिपोर्ट ने विकासशील देशों से कहा कि वे बड़े निवेश खींचने के लिए अपने देश-स्तरीय निवेश प्लान मजबूत और विश्वसनीय बनाएं।
कॉप30 में बढ़ी चिंता: जलवायु पर झूठी जानकारी का बड़ा खतरा
कॉप30 के दौरान जलवायु संबंधी गलत जानकारी बड़ा मुद्दा बनकर उभरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत कई नेता अब भी जलवायु परिवर्तन को झूठ या बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया दावा कहते हैं। रिपोर्टों के अनुसार जुलाई से सितंबर 2025 के बीच ऐसी गलत जानकारी 267% बढ़ी और 14,000 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। एआई से बने फर्जी वीडियो और झूठे बयान तेजी से फैल रहे हैं। ऊर्जा कंपनियों द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा के खिलाफ हजारों भ्रामक दावे फैलाए गए हैं। भारत में स्थिति खासकर संवेदनशील है क्योंकि 57% लोग प्राकृतिक गैस को जलवायु के लिए अच्छा मानते हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए यूएन और ब्राज़ील ने मिलकर एक नया ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन इन्फॉर्मेशन इंटेग्रिटी शुरू किया है, ताकि झूठी जानकारी को रोका जा सके और जलवायु चर्चाओं में सच को केंद्र में रखा जा सके।
संशोधित एनडीसी भी नहीं होंगे पर्याप्त: यूएनईपी रिपोर्ट
यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की एमिशंस गैप रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि दुनिया अब भी पेरिस समझौते के लक्ष्यों से दूर है। रिपोर्ट कहती है कि अगर सभी मौजूदा एनडीसी पूरी तरह लागू भी हो जाएं, तब भी तापमान 2.3–2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। मौजूदा नीतियां इसे 2.8 डिग्री सेल्सियस तक ले जा सकती हैं। 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य अस्थायी रूप से पार होना अब तय माना जा रहा है।
2024 में उत्सर्जन 57.7 GtCO2e तक पहुंच गया, जिसमें भारत, चीन और इंडोनेशिया की बढ़ोतरी सबसे ज्यादा थी। यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटेरेश ने कॉप30 से स्पष्ट योजना और मजबूत वित्तीय प्रतिबद्धताओं की मांग की।
स्वास्थ्य की अनदेखी कर रहा है क्लाइमेट फाइनेंस: रिपोर्ट
कॉप30 से पहले जारी हुई एक नई रिपोर्ट ने कहा कि वैश्विक क्लाइमेट फाइनेंस में सार्वजनिक स्वास्थ्य की जरूरतों को नजरअंदाज किया जा रहा है। 2004 से अब तक कुल बहुपक्षीय क्लाइमेट फाइनेंस का सिर्फ 0.5% यानी 173 मिलियन डॉलर ही स्वास्थ्य अनुकूलन पर खर्च हुआ। जबकि 87% राष्ट्रीय योजनाओं में स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी गई है। भविष्य में 18% जलवायु-जनित स्वास्थ्य जोखिम दक्षिण एशिया में होने की संभावना है, लेकिन उसे कोई सीधे स्वास्थ्य अनुकूलन फंड नहीं मिला। हीटवेव, बीमारियों और चरम मौसम से परेशान भारत को 2050 तक 2.4 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत होगी। रिपोर्ट ने अनुदान आधारित फंडिंग और बेहतर समन्वय की मांग की।
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