ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित कॉप30 जलवायु सम्मेलन दो सप्ताह की कठिन बातचीत के बाद एक समझौते के साथ समाप्त हुआ। सम्मलेन में गरीब और विकासशील देशों की मदद के लिए अनुकूलन वित्त (अडॉप्टेशन फाइनेंस) को 2035 तक तीन गुना करने पर सहमति जताई, लेकिन इसमें कोई स्पष्ट राशि तय नहीं की गई। कई देशों और विशेषज्ञों ने कहा कि यह मदद बहुत देर से मिलेगी, जबकि जलवायु आपदाएं अभी ही गंभीर रूप ले चुकी हैं।
सबसे बड़ी निराशा जीवाश्म ईंधन ट्रांज़िशन पर हाथ लगी। तेल, गैस और कोयले से दूर जाने की प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से अंतिम दस्तावेज़ में जगह नहीं मिली। यूरोपीय संघ, कोलंबिया और कई लैटिन अमेरिकी देशों ने इसका विरोध किया, लेकिन सऊदी अरब और अन्य बड़े उत्पादक देशों की आपत्तियों के कारण समझौता कमजोर पड़ा।
अंत में ब्राजील ने सम्मेलन के बाहर एक अलग ‘रोडमैप’ प्रक्रिया की घोषणा की, जिसमें जीवाश्म ईंधन से ट्रांज़िशन और वनों की सुरक्षा पर काम करने की बात कही गई है, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
सम्मेलन ने ‘जस्ट ट्रांज़िशन’ पर एक नया बेलेम एक्शन मैकेनिज़म भी शुरू किया, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण हो। व्यापार और जलवायु नीतियों के तालमेल पर भी आगे वार्षिक चर्चाएं होंगी।
अफ्रीकी देशों और लघुद्वीपीय देशों ने अनुकूलन के सूचकांकों और धनराशि पर गंभीर आपत्ति जताई। कार्यकर्ताओं ने कहा कि वादे तो किए गए हैं, लेकिन ज़रूरी संसाधनों का अभाव गरीब देशों को असुरक्षित छोड़ देगा। भारत ने BASIC (ब्राज़ील, साउथ अफ्रीका, भारत और चीन) समूह की ओर से सम्मेलन की अध्यक्षता की सराहना की और कहा कि यह परिणाम जलवायु कार्रवाई की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करेगा।
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