Photo: Gunjan Jain

भारत की कम कार्बन उत्सर्जन रणनीति के मुख्य बिन्दु क्या हैं?

मिस्र में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत ने दीर्घकाल के लिये कम कार्बन उत्सर्जन रणनीति का खाका पेश किया है।

भारत ने शर्म-अल-शेख में चल रहे सम्मेलन में दीर्घ काल के लिये कम कार्बन उत्सर्जन रणनीति का ऐलान किया जिसे लॉन्ग टर्म लो कार्बन डेवलपमेंट (LT-LEDS) कहा जाता है। भारत समेत कुल 57 देशों ने अब तक अल्प कार्बन उत्सर्जन की दीर्घ अवधि रणनीति का रोड मैप जमा किया है। 

केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा, “हम लॉन्ग टर्म लो कार्बन डेवलपमेंट (LT-LEDS) रणनीति को दुनिया के सामने रख रहे हैं जो कार्बन उत्सर्जन कम करने के भारत के राष्ट्रीय संकल्प (एनडीसी) और 2070 तक नेट ज़ीरो हासिल करने के रोडमैप और विज़न को दुनिया के सामने रखता है। हम उन सभी ज़रूरी बिन्दुओं को दुनिया के सामने रख रहे हैं जो कि कम कार्बन उत्सर्जन के मार्ग पर चलने कि लिये अपनाये जायेंगे।”

भारत ने इस रणनिति के तहत 100 पन्नों के दस्तावेज़ में सात प्रमुख बातें बताई हैं।  

  1. बिजली उत्पादन के लिये लिये लो-कार्बन डेवलपमेंट 

इसके तहत सरकार ने साफ ऊर्जा को बढ़ावा देने और ग्रिड को मज़बूत करने का इरादा जताया है। भारत बिजली की मांग का प्रबन्धन करेगा और ऊर्जा की पर्याप्त सप्लाई के लिये यह सुनिश्चित करेगा कि कहां जीवाश्म ईंधन का प्रयोग ज़रूरी है। इसे हासिल करने के लिये सरकार ईंधन दक्षता (fuel efficiency) को सुधारने के साथ साफ ईंधन के इस्तेमाल की ओर बढ़ेगी। अलग-अलग ट्रांसपोर्ट के लिये अधिक से अधिक साफ स्रोतों से बनी बिजली  

  1. कम कार्बन उत्सर्जक ट्रांसपोर्ट सिस्टम

इसे हासिल करने के लिये सरकार ईंधन दक्षता (fuel efficiency) को सुधारने के साथ साफ ईंधन के इस्तेमाल की ओर बढ़ेगी। अलग-अलग ट्रांसपोर्ट के लिये अधिक से अधिक साफ स्रोतों से बनी बिजली का इस्तेमाल करेगी। 

  1. अनुकूलन और टिकाऊ शहरीकरण को बढ़ावा 

जलवायु संकट के मद्देनज़र शहरी विकास में अनुकूलन काफी महत्वपूर्ण है। मौजूदा भवनों और भविष्य में इमारतों के निर्माण को ग्लोबल वॉर्मिंग की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुये किया जायेगा। बेहतर ठोस कचरा प्रबंधन और वो कार्बन म्युनिस्पल डिलिवरी पर सरकार काम करेगी।

  1. औद्योगिक क्षेत्र के लिये कम कार्बन इमीशन वाले ढांचे का विकास

पूरे औद्योगिक क्षेत्र में ऊर्जा और संसाधन दक्षता बढ़ाने के लिये प्राकृतिक और बायो-मास मटीरियल को बढ़ावा। संभव हो तो ऊंधन को बदलना और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में  बिजलीकरण। विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई सेक्टर) में विकार्बनीकरण की बात कही गई है। 

  1. वातावरण से CO2 हटाना और इंजीनियरिंग का इस्तेमाल 

यह एक नया क्षेत्र है जिसमें सरकार प्रयोग करना चाहती है। इनोवेशन, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) को भारत ज़रूरी मानता है। भारत अभी इसे लेकर बहुत स्पष्ट और आश्वस्त नहीं दिखता कि वातावरण से कार्बन हटाने के लिये प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग का इस्तेमाल आर्थिक और तकनीकी रूप से कितना कारगर होगा  लेकिन इस साल की शुरुआत में 2030 के लिये जारी एक ड्राफ्ट रोडमैप में तेल और गैस क्षेत्र में कार्बन कैप्चर उपयोग और स्टोरेज (सीसीयूएस) की बात कही गई है और कुछ पायलट प्रोजेक्ट चल रहे हैं। 

  1. सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिकी को ध्यान में रखकर वनों को बढ़ावा  

भारत के वनों में वनस्पतियों, जंतुओं और आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण करना और उनकी बहाली इस नीति का सार है।  टिकाऊ विकास की रणनीति बनाते हुये स्थानीय समुदायों की जीविका और सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये जंगलों पर उनकी निर्भरता को भी खयाल में रखा जायेगा। 

  1. अल्प-कार्बन के आर्थिक और वित्तीय पहलुओं का समझना 

भारत जानता है कि उसके वित्तीय तंत्र पर विकार्बनीकरण की कोशिशों से बोझ पड़ेगा और इसलिय क्लाइमेट फाइनेंस को मुख्यधारा में लाने के लिये एक बहुपक्षीय मैकेनिज्म पर ध्यान केंद्रित करेगा जिसमें इनोवेशन और प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा दिया जायेगा।

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