स्पेन की राजधानी मेड्रिड में 2 हफ्ते चले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दुनिया की तमाम सरकारें कोई भी सकारात्मक नतीजा हासिल करने में नाकामयाब रहीं। पिछले दो साल में आईपीसीसी समेत तमाम विशेषज्ञ पैनलों की कई रिपोर्ट और शोध यह साफ कह चुके हैं कि धरती का तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के कई हिस्सों में क्लाइमेट एक्शन को तेज़ करने के लिये बड़े प्रदर्शन हुये। उसके बावजूद इस सम्मेलन में विकसित, विकासशील और तमाम अन्य देशों द्वारा अपने मतभेद न मिटा पाना और किसी सार्थक नतीजे पर न पहुंच पाना एक बड़ा झटका है।
सम्मेलन में 197 देशों मे हिस्सा लिया लेकिन केवल 73 देशों ने ही क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिये घोषित स्वैच्छिक प्रयासों को अगले साल ग्लासगो में होने वाले सम्मेलन से पहले (NDCs) मज़बूत करने का संकल्प किया। सम्मेलन में तमाम सरकारों के वार्ताकार कार्बन मार्केट को लेकर कोई नतीजे पर नहीं पहुंच पाये। मसौदे के ड्राफ्ट में कई अनसुलझे विषय बने रहे। अब इनका फैसला अगले साल होगा।
ग्रीन डील: 2050 तक यूरोपियन यूनियन (EU) होगा कार्बन न्यूट्रल
एक एतिहासिक फैसले में यूरोपियन यूनियन ने एक ग्रीन डील पर सहमति बना ली है जिसके तहत 2050 तक 28 देशों का यह ब्लॉक कार्बन न्यूट्रल बनेगा यानी यूनियन के देशों का कुल नेट कार्बन उत्सर्जन ज़ीरो होगा। ब्रसेल्स में 10 घंटे की बैठक के बाद पिछली 13 दिसंबर को यह सहमति बनी और इस मामले में EU कुछ देश अनमने थे। हालांकि यह समझौता EU देशों के लिये किसी तरह बाइडिंग (अनिवार्य) नहीं है। पोलैंड (जिसका 75% अधिक बिजली उत्पादन कोयले पर टिका है) को फिलहाल इससे छूट दी गई है। चेक गणराज्य और हंगरी भी इस ग्रीन डील के लिये अनमने दिखे।
पर्यावरण नियमों का पालन करे रेलवे: NGT
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि पूरे देश में हर रेलवे स्टेशन प्रदूषण का बड़ा केंद्र है और इसलिये रेलवे विभाग को इससे जुड़ी हर पर्यावरण मंज़ूरी लेनी चाहिये। अदालत ने कहा कि सारे रेलवे स्टेशन 1986 में बने पर्यावरण संरक्षण क़ानून के अंतर्गत आते हैं और इसे लेकर अधिकारियों को कोई ग़लतफहमी नहीं होनी चाहिये। कोर्ट के इस क़ानून के तहत ठोस कचरा, प्लास्टिक, बायो मेडिकल वेस्ट, बिल्डिंग मटीरियल और इलैक्ट्रोनिक कचरे के अलावा अति हानिकारक कूड़े के लिये नियम हैं और सभी रेलवे स्टेशनों में ऐसी गतिविधियां होती हैं जहां इससे जुड़े नियम लागू होते हैं।
उज्ज्वला स्कीम के तहत सिलेंडर भरवाने का ग्राफ गिरा: CAG
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मोदी सरकार ने मार्च 2020 तक 8 करोड़ लोगों को रसोई गैस देने का लक्ष्य रखा है। ऑडिटिंग बॉडी कैग (CAG) की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि भले ही सरकार ने 90% लक्ष्य हासिल कर लिया हो लेकिन जिन लोगों को यह सुविधा दी गई वह लगातार अपना सिलेंडर खाली होने पर नहीं भरवा पा रहे। कैग रिपोर्ट में अत्यधिक इस्तेमाल का शक भी जताया गया है। जिन 1.93 करोड़ उपभोक्ताओं को यह सुविधा मिले 1 साल से अधिक वक़्त हो गया है उनके बीच औसत सालाना री-फिल 3.66 था। सिलेंडर कम भरवाने का एक संभावित कारण सिलेंडर और उपभोक्ता के बीच की दूरी है। रिपोर्ट के मुताबिक करीब 50% डीलरों को सिलेंडर पहुंचाने के लिये 92 किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है और 17% लाभार्थियों को सिलेंडर बदलने के लिये गैस गोदाम तक जाना पड़ता है। रिपोर्ट में करीब 12.5 लाख लाभार्थियों को मिली सुविधा को लेकर सवाल भी खड़े होते हैं क्योंकि उनका आर्थिक स्तर इस योजना के तहत तय मानदंडों से मेल नहीं खाता।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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