मुंबई में फैक्ट्रियां हर साल 20 लाख टन कोयला जलाती हैं और वायु प्रदूषण के मामले में समुद्र तट पर होने का जो फायदा शहर को मिलता है वह कोयले के इस धुंयें से खत्म हो रहा है। यह बात दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की एक स्टडी में सामने आयी है। सीएसई ने शहर के कुल 13 में से 4 औद्योगिक इलाकों का अध्ययन किया जिनमें ट्रांस-थाने क्रीक (टीटीसी), तालोजा, अंबरनाथ और दोम्बीवली शामिल हैं। ये चारों इलाके मुंबई मेट्रोपोलिटन रीज़न का 70% क्षेत्र कवर करते हैं।
ट्रांस थाने क्षेत्र सबसे अधिक प्रदूषित है और इस अध्ययन में शामिल क्षेत्रों के कुल प्रदूषण का 44% यहीं से होता है। इसके बाद तालोजा का नंबर है जो 26% के लिये ज़िम्मेदार है। सीएसई ने अपनी स्टडी में कई सुझाव दिये हैं जिनमें फैक्ट्रियों द्वारा कोयले के बजाय अपेक्षाकृत साफ ईंधन का इस्तेमाल प्रमुख सिफारिश है।
यूपी में हैं 10 में से 8 सबसे प्रदूषित शहर
देश के 99 शहरों से लिये गये रियल टाइम आंकड़ों पर आधारित एक अखिल भारतीय शोध में कहा गया है देश के छोटे और तेज़ी से बढ़ रहे कस्बे अब वायु प्रदूषण के नये केंद्र (हॉट स्पॉट) बन रहे हैं। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वॉयरेंन्मेंट (सीएसई) की स्टडी में कहा गया है कि ऐसे 10 सबसे प्रदूषित शहरो में 8 उत्तर प्रदेश में हैं जिनमें गाज़ियाबाद और बुलंदशहर लिस्ट में टॉप करते हैं। कुल 99 शहरों – जिनका अध्ययन किया गया – में से 23 उत्तर भारत के हैं। दिल्ली इस लिस्ट में पांचवें नंबर पर है और राजस्थान का भिवाड़ी दसवें नंबर पर है। साफ हवा के मामले में मैसुरु की एयर क्वॉलिटी सर्वोत्तम पाई गई जिसके बाद सतना (मध्यप्रदेश) और कोच्ची (केरल) का नंबर था।
भारत में पिछले साल वायु प्रदूषण से मरे 1.2 लाख लोग
पिछले साल यानी 2020 में भारत में कुल 1.2 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरे। यह बात एयर क्वालिटी (आई क्यू एयर -IQAir) डाटा के ग्रीनपीस दक्षिणपूर्व एशिया विश्लेषण में सामने आयी है। इन मौतों में से 54,000 तो दिल्ली में ही हुईं| | रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण भारत में 2 लाख करोड़ की आर्थिक क्षति का कारण बना। ‘ग्रीनपीस: कॉस्ट टु इकनोमि ड्यू टु एयर पॉल्युशन एनालिसिस 2021’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन एडवाइड़री ग्रुप (ग्रीनपीस) द्वारा जारी की गई है।
दुनिया भर में अधिक आबादी वाले पांच बड़े शहरों – दिल्ली, मैक्सिको सिटी, साओ पाउलो, शंघाई और टोक्यो में लगभग 1.6 लाख लोगों की मौत का कारण पीएम 2.5 है। रिपोर्ट में वास्तविक समय स्वास्थ्य प्रभाव और फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) से आर्थिक लागत का अनुमान लगाने के लिए ऑनलाइन उपकरण -‘कॉस्ट एस्टीमेटर’ का इस्तेमाल किया गया| यह उपकरण ग्रीनपीस दक्षिण पूर्व एशिया, आईक्यूएयर और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के बीच सहयोग से लगाया गया है।
दिल्ली-एनसीआर : ईंट के भट्ठों पर प्रदूषण बोर्ड करेगा फैसला
भारत की हरित अदालत एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने दिल्ली-एनसीआर इलाके में उन्हीं ईंट के भट्टों को सीमित रूप से चलाने की अनुमति दी है जिनमें ज़िक-जैक टेक्नोलॉजी लगी हो। कोर्ट ने कहा है कि मार्च औऱ जून के बीच कितने और कौन से भट्ठे चलेंगे ये इस बात पर निर्भर है कि उस क्षेत्र में हवा की क्वॉलिटी कैसी है। जब हवा ज़हरीली क्वॉलिटी की नहीं होगी तभी भट्ठे चल सकेंगे। राज्य और केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की संयुक्त समिति इस बात का फैसला करेगी कि किन ईंट भट्टों को चलने दिया जाये।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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