विश्व मौसम संगठन (WMO) ने इस हफ्ते जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वातावरण में लगातार जमा हो रही CO2 ने पिछले साल सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये। 25 नवंबर को जारी ग्रीन हाउस बुलेटिन में कहा गया है, “दुनिया में CO2 का औसत जमाव 407.8 ppm हो गया जबकि 2017 में यह आंकड़ा 405.5 ppm था”. माना जा रहा है कि इससे पहले ऐसी स्थिति 30-50 लाख साल पहले हो सकती है। CO2 स्तर के इस उछाल का कारण जीवाश्म ईंधन का अंधाधुंध इस्तेमाल माना जा रहा है.
ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ रहा है IOD इफेक्ट
ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग और अफ्रीका की बाढ़ में क्या समानता है? असल में इन दोनों का रिश्ता लगातार बढ़ रहे मौसमी प्रभाव IOD यानी इंडियन ओशियन डाइपोल से है। इसे भारतीय नीनो भी कहा जाता है और इसकी वजह है अरब सागर के पश्चिमी छोर और पूर्वी हिन्द महासागर के पूर्वी छोर पर तापमान का अंतर। वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण IOD का असर लगातार बढ़ रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस साल यह अब तक का सबसे ताकतवर डाइपोल रिकॉर्ड किया गया है। अफ्रीका में बाढ़ और ऑस्ट्रेलिया में लगी बुशफायर के पीछे इसका असर है।
इटली: वेनिस में बाढ़ से तबाही
इटली का वेनिस शहर इस महीने पांच दिन बाढ़ में डूबा रहा। बाढ़ से घिरे शहर के कई टूरिस्ट स्पॉट, होटल और दुकानों की तस्वीरें इंटरनेट पर छायी रहीं। प्रशासन का कहना है कि पिछले 50 साल में ऐसी बाढ़ यहां कभी नहीं दिखी। वेनिस के मेयर लुईगी ब्रुगनारो ने इस तबाही के लिये जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार ठहराया है। शहर को ऐसी बाढ़ से बचाने के लिये 1984 में एक फ्लड बैरियर की योजना बनाई गई थी। लेकिन कभी प्रोडक्ट की कीमत आड़े आई तो कभी भ्रष्टाचार। अब कहा जा रहा है कि 2021 तक बाढ़ निरोधी दीवार खड़ी हो जायेगी।
खतरनाक नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर में बढ़ोतरी
वातावरण में मौजूद तीसरी सबसे खतरनाक ग्रीन हाउस गैस है नाइट्रस ऑक्साइड जो ओज़ोन की परत के नष्ट होने के लिये ज़िम्मेदार है। नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में छपे शोध के मुताबिक साल 2009 से इस गैस का स्तर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ पैनल IPCC के अनुमान से भी अधिक तेज़ी से बढ़ा है। शोध के मुताबिक गैस के स्तर में इस तेज़ी के लिये दक्षिण अमेरिका और पूर्वी एशिया के देश अधिक ज़िम्मेदार हैं। शोध के मुताबिक बीसवीं सदी के मध्य से ही नाइट्रोज़न उर्वरक के अधिक इस्तेमाल और नाइट्रोज़न बेस वाली सोयाबीन और मूंगफली जैसी फसलों पर ज़ोर दिया गया। इससे पैदावार बढ़ाने में मदद तो मिली लेकिन N2O का स्तर भी बढ़ता गया है।
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