उत्तराखंड के चमोली में शुक्रवार तड़के हिमस्खलन की चपेट में आए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के कैंप से आठ शव निकाले गए, जबकि 46 श्रमिकों को जीवित बाहर निकाला गया। इस प्रकार 60 घंटे बाद थलसेना, वायुसेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और अन्य एजेंसियों का मिलाजुला राहत और बचाव कार्य संपन्न हुआ।
अंतिम चार शवों को रविवार को निकाला गया। लापता श्रमिकों का पता लगाने के लिए हेलीकॉप्टरों, स्निफ़र डॉग और थर्मल इमेजिंग तकनीक का उपयोग किया गया। घायल श्रमिकों को ज्योतिर्मठ के सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया है। घायलों में दो की हालत गंभीर है और उन्हें एम्स, ऋषिकेश रेफर किया गया है।
शुक्रवार तड़के हुए हिमस्खलन में बीआरओ का शिविर गहरी बर्फ के नीचे दब गया था। डिफेंस जियोइनफॉर्मेटिक्स रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट ने गुरुवार को हिमस्खलन की चेतावनी दी थी, और मौसम विभाग ने भारी बर्फबारी और बारिश का अनुमान लगाया था। इन चेतावनियों के बावजूद, बीआरओ का कैंप ऐसे क्षेत्र में खुला रहा जहां हिमस्खलन की संभावना अधिक रहती है।
बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित माना गांव को पहले भारत-तिब्बत सीमा के ‘अंतिम गांव’ के रूप में जाना जाता था। इसे अब चीन की सीमा से पहले “पहला भारतीय गांव” कहा जाता है। 3,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस दूरवर्ती गांव में कठोर सर्दियों में तापमान -17 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इस कारण से यहां के करीब 1,200 स्थानीय निवासी नवंबर से अप्रैल के बीच गोपेश्वर में प्रवास करते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हिमस्खलन के दौरान गांव खाली रहने से जान-माल का नुकसान होने से बच गया।
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