चुपके-चुपके: ‘विकास’ के नाम पर पर्यावरण नियमों में प्रस्तावित ढील के कारण सरकार आलोचना के घेरे में है। फोटो- डीएनए इंडिया

पर्यावरण संबंधी नियमों में ढिलाई का प्रस्ताव

केंद्र सरकार ने एक ऐसा प्रस्ताव रखा है जिसे मंज़ूरी मिली तो किसी भी विकास परियोजना को अनुमति देने से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की आंकलन रिपोर्ट (EIA) को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। मीडिया में छपी ख़बरों के मुताबिक सरकार का प्रस्तावित बदलाव प्रोजेक्ट से होने वाले पर्यावरण प्रभाव के बारे में फैसला लेने का अधिकार ज़िला मजिस्ट्रेट को दे देता है। इसके अलावा कुछ मामलों में निर्माण कार्यों के लिये नगर पालिका या स्थानीय इकाई को अधिकार देने का प्रस्ताव है। 

क्लाइमेट जस्टिस की मांग लेकर लाखों स्कूली बच्चे उतरे सड़कों पर 

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की मांग को लेकर भारत समेत दुनिया के 110 देशों में लाखों बच्चे सड़कों पर प्रदर्शन के लिये उतर आये। ये सारे बच्चे अपने भविष्य को बचाने के लिये दुनिया भर की सरकारों और राजनेताओं से पहल करने की मांग कर रहे हैं। 15 साल की ग्रेटा थुनबर्ग ने अगस्त में पहली बार अकेले स्टॉकहोम में प्रदर्शन किया और उसके बाद से जलवायु परिवर्तन को लेकर यूरोप, अमेरिका और देश के दूसरे हिस्सों में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। 

यूरोपियन यूनियन ने नई संसद चुनी, क्लाइमेट पर कड़े कदमों की संभावना 

मई में नई EU संसद के गठन के बाद अब सवाल है कि क्या यूरोपियन यूनियन एकजुट होकर 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने के लिये एकजुट होगा। जहां जर्मनी, फ्रांस और स्वीडन समेत कई देश सितंबर में हो रहे न्यूयॉर्क सम्मेलन में और अधिक कड़े कदमों का वादा करना चाहते हैं वहीं हंगरी, पोलैंड और एस्टोनिया जैसे देश पेरिस वार्ता के तहत किये वादों से आगे बढ़ने को तैयार नहीं हैं। ज़ाहिर है यह जलवायु परिवर्तन पर यूरोपियन यूनियन के वैश्विक नेतृत्व की परीक्षा का समय है क्योंकि EU के भीतर कई कट्टर दक्षिणपंथी सरकारों की वजह से मत बंटा हुआ है। 

ब्रिटेन के इस गांव के बाशिंदे होंगे पहले “जलवायु परिवर्तन शरणार्थी” 

नॉर्थ वेल्स का तटीय गांव फेयरबॉर्न धीरे धीरे समंदर में समा रहा है और यहां के निवासी ब्रिटेन के पहले क्लाइमेट रिफ्यूजी यानी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से विस्थापित होने वाला समुदाय बन सकते हैं। जानकारों के मुताबिक समुद्री तूफान की वजह से कभी भी गांव पर संकट आ सकता है और यहां के करीब 850 निवासियों को अपने घर छोड़कर कहीं और जाना होगा।

“द गार्डियन” ने बदली जलवायु परिवर्तन पर ख़बरों की स्टाइल शीट 

पर्यावरण पर लगातार पैनी रिपोर्टिंग करने वाले द गार्डियन ने अब जलवायु परिवर्तन की ख़बरों को लिखने के लिये वैज्ञानिक रुप से अधिक उपयुक्त शब्दावली के इस्तेमाल का फैसला किया है। नई स्टाइल शीट के तहत अख़बार अब वैज्ञानिकों, पर्यावरण के जानकारों और नेताओं की तरह नई “प्रभावी शब्दावली” का इस्तेमाल करेंगे और पुराने “प्रभावहीन” हो चुके शब्दों से बचने की कोशिश करेगा। मिसाल के तौर पर बढ़ते ख़तरे को देखते हुये “ग्लोबल वॉर्मिंग” की जगह “ग्लोबल हीटिंग” और “क्लाइमेट चेंज” जैसे पुराने शब्द समूह की जगह “क्लाइमेट क्राइसिस, इमरजेंसी या ब्रेकडाउन” जैसे शब्द समूहों का इस्तेमाल होगा। 

पर्यावरण पर काम कर रहे कई संस्थानों और संगठनों ने इसका स्वागत किया है। दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड की निदेशक आरती खोसला कहती है, “स्पष्ट रूप से हम क्लाइमेट ‘चेंज’ से कहीं अधिक भुगत रहे हैं और ख़बरों की शब्दावली में पैनापन ज़रूरी है। जो हम अपने सामने होता देख रहे हैं वह तो ‘आपातकाल’ जैसी स्थिति है।”

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दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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