आम धारणा है कि कीट-पतंगे प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं, और यही कारण है कि वे रात में कृत्रिम रोशनी के पास इकट्ठा हो जाते हैं। हमारे लेखकों और कवियों की उपमाओं से इस विश्वास को बल मिला है। अक्सर माया और मोह को समझाने के लिए दीपक और पतंगे का उदाहरण अक्सर दिया जाता है। भक्तिकाल के सूरदास, तुलसीदास, कबीर से लेकर सूफी कवियों और आधुनिक शायरी और फिल्मों में प्रकाश के मोह में पतंगे के जलने का वर्णन किया है। लेकिन नई रिसर्च बताती है कि लेखकों और कवियों की कल्पना की उड़ान वैज्ञानिक कसौटी पर खरी नहीं है।
हाल ही में नेचर कम्युनिकेशन पत्रिका में प्रकाशित एक शोध ने कीड़ों के प्रकाश के प्रति अस्थिर व्यवहार का रहस्य उजागर किया है। यह अध्ययन बताता है कि सभी कीड़े समान रूप से प्रकाश की ओर आकर्षित नहीं होते हैं। वे सीधे प्रकाश की ओर नहीं जाते हैं, बल्कि प्रकाश स्रोत से उन्हें जोड़ने वाली रेखा से समकोण पर उड़ने का प्रयास करते हैं। दरअसल, कीड़े प्राकृतिक रूप से प्रकाश की ओर पीठ करके उड़ते हैं।
इसे आप उनकी जीन प्रोग्रामिंग कह सकते हैं। यही तंत्र उन्हें दिन के समय — जब सूर्य ऊपर होता है — सीधे उड़ने में मदद करता है। रात में, जब सूर्य नहीं होता, तो वे अपनी उड़ान की दिशा बनाए रखने के लिए उपलब्ध प्रकाश स्रोतों का उपयोग करते हैं। रात में जब कीड़े कृत्रिम प्रकाश देखते हैं, तो वे अपनी उड़ान की दिशा निर्धारित करने के लिए इसका उपयोग करते हैं। वे प्रकाश के सबसे चमकीले क्षेत्रों की ओर अपनी पीठ रखने का प्रयास करते हैं। यह प्रक्रिया, जिसे ‘डोर्सल लाइट रिस्पांस’ कहा जाता है, के प्रभाव से वे प्रकाश के चारों ओर मंडराने लगते हैं।
कृत्रिम प्रकाश स्रोत की उपस्थिति में, कीड़े अपनी सीधे उड़ने की क्षमता खो देते हैं। यह कीटों की एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है, जो उनके जीन में उपस्थित (प्रोग्राम) होती है। यही कारण है कि जब प्रकाश का स्त्रोत छत पर होता है तो कीड़े छत के करीब गोलाकार लूप में उड़ने की कोशिश करते हैं। जब प्रकाश स्रोत नीचे रखा होता है तो कीड़े उल्टा उड़ने की कोशिश करते हैं और इसलिए नीचे गिर जाते हैं। जब प्रकाश स्रोत दीवार पर लगा होता है तो कीड़े ऊर्ध्वाधर लूप में उड़ने की कोशिश करते हैं। वह हर परिस्थिति में इसी तंत्र का पालन करते हैं, भले ही इससे उनकी उड़ान रुक जाती हो या वे उड़ान के दौरान गिर जाते हो। डोर्सल लाइट रिस्पांस (Dorsal Light Response) कीड़ों के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र है। यह उन्हें अपना रास्ता खोजने और तेज रोशनी से बचने में मदद करता है, जो उनके लिए हानिकारक हो सकती है।
मक्खियों की तरह ही परागण में कीट-पतंगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस कारण वे जैव विवधता संरक्षण में अहम हैं। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच कीट पतंगों के व्यवहार का अध्ययन अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। बहुत सारे कीट पक्षियों का आहार बनते हैं और खाद्य श्रंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। उनकी उपस्थिति बताती है कि किसी क्षेत्र में जलीय जीवन और जैव विविधता कितनी स्वस्थ या कमज़ोर है।
इसलिए उनकी आबादी में गिरावट पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है, जिसका एक प्रमुख कारण कृत्रिम प्रकाश के प्रति कीड़ों का व्यवहार भी है। आधुनिक युग में प्रकाश प्रदूषण में वृद्धि के बीच यह समझना महत्वपूर्ण है कि कृत्रिम प्रकाश कीड़ों को कैसे प्रभावित करता है। यह समझ हमें ऐसे कृत्रिम प्रकाश स्रोत विकसित करने में मदद कर सकती है जो कीड़ों के लिए कम आकर्षक हों और उनकी घटती आबादी को रोकने में मदद करें।
(अमित तिवारी, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में कार्यरत भूवैज्ञानिक हैं)