फोटो: Mario Hagen/Pixabay

2027 तक पिघल जाएगी आर्कटिक महासागर की पूरी बर्फ

जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक महासागर में समुद्री बर्फ तेजी से पिघल रही है। चिंताजनक अनुमानों से पता चलता है कि आर्कटिक क्षेत्र में 2027 की शुरुआत में पहला “आइस-फ्री डे”  दिख सकता हैनेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अध्ययन में भविष्यवाणी की गई है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों के बावजूद, 3 से 20 वर्षों के भीतर आर्कटिक की सारी बर्फ गायब हो सकती है। 

आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक औसत से चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे इकोसिस्टम बर्बाद हो रहे हैं, और यह फीडबैक लूप के माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग को भी तेज कर रहा है।

समुद्री बर्फ तापमान को नियंत्रित करने, समुद्री जीवों की रक्षा करने और सौर ऊर्जा को प्रतिबिंबित करके वैश्विक जलवायु को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि पहले “आइस-फ्री डे” का तत्काल कोई बड़ा प्रभाव नहीं दिखेगा लेकिन यह एक बड़े पर्यावरणीय बदलाव का प्रतीक होगा।

हालांकि सभी गणनाओं के हिसाब से आर्कटिक की पूरी बर्फ पिघलना तय है, लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके इस घटना को टाला जा सकता है और इसका व्यापक प्रभाव कम किया जा सकता है।

सबसे गर्म साल होगा 2024,  1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करेगा वैश्विक तापमान

यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के अनुसार, साल 2024 इतिहास का सबसे गर्म साल बनने की राह पर है, जब वैश्विक तापमान पहली बार पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस की महत्वपूर्ण सीमा को पार कर जाएगा।

नवंबर 2024 इतिहास में दर्ज अब तक का दूसरा सबसे गर्म नवंबर था, जब वैश्विक सतही हवा का तापमान 14.10 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1991-2020 के औसत से 0.73 डिग्री सेल्सियस अधिक है। 

यह महीना पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.62 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था, जो पिछले 17 में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने वाला 16वां महीना रहा। 1901 के बाद से भारत में यह दूसरा सबसे गर्म नवंबर रहा, जिसमें औसत अधिकतम तापमान सामान्य से 0.62 डिग्री सेल्सियस अधिक था। 

वैश्विक स्तर पर, जनवरी से नवंबर 2024 में तापमान 1991-2020 के औसत से 0.72 डिग्री सेल्सियस ऊपर देखा गया, जो इस अवधि में अबतक दर्ज सबसे अधिक तापमान है। यह पिछले सबसे गर्म वर्ष 2023 से भी अधिक है। समुद्र की सतह का तापमान भी रिकॉर्ड स्तर के करीब रहा।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि हालांकि यह पेरिस समझौते की 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा के स्थायी उल्लंघन का संकेत नहीं देता है, लेकिन यह दर्शाता है कि मजबूत क्लाइमेट एक्शन की तत्काल आवश्यकता है।

दुनियाभर में तेजी से सूख रही है भूमि: यूएन रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पृथ्वी की भूमि तेजी से शुष्क होती जा रही है, जिससे पौधे, वन्यजीव और मानव अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। मरुस्थलीकरण पर रियाद में संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन के दौरान जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि 1970 से 2020 के बीच पहले के दशकों की तुलना में  दुनिया भर की 75% से अधिक भूमि में शुष्क स्थितियां पैदा हुई हैं। 

यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेसर्टीफिकेशन के प्रमुख इब्राहिम थियाव ने कहा कि यह बदलाव जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और पानी की कमी के कारण हो रहा है, और यह संभवतः अपरिवर्तनीय होगा।

यदि वर्तमान तापमान वृद्धि जारी रहती है, तो इस सदी के अंत तक वर्तमान वैश्विक आबादी का लगभग एक-चौथाई हिस्सा को सूखती हुई भूमि पर रहना होगा। रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि शुष्क परिस्थितियां पानी की कमी को बढ़ाती हैं, कृषि उत्पादकता को कम करती हैं और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती हैं। इससे प्रवास भी बढ़ सकता है, विशेषकर दक्षिणी यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिणी एशिया जैसे क्षेत्रों में।

शिखर सम्मेलन में वार्ताकारों ने सूखे और भूमि क्षरण से निपटने के तरीकों पर चर्चा की, लेकिन इस बात पर बहस जारी है कि क्या अमीर देशों को वैश्विक सूखे से निपटने के लिए धन देना चाहिए। रिपोर्ट में कुशल जल उपयोग, सूखा प्रतिरोधी फसलें, पुनर्वनीकरण और बेहतर निगरानी जैसे उपाय सुझाए गए हैं।

युवाओं में गर्मी से संबंधित मौतें बढ़ीं, बच्चों पर भी है खतरा

बढ़ते जलवायु संकट से अत्यधिक गर्मी का खतरा भी बढ़ रहा है, जिसकी जद में दुनिया भर में युवा और बच्चे आ रहे हैं। हाल की रिपोर्टें उजागर करती हैं कि युवा वयस्कों में गर्मी से संबंधित मौतें बढ़ रही हैं। अमेरिका में 2018 से 2022 के बीच संबंधित मृत्यु दर लगभग दोगुनी हो गई है। 

वैज्ञानिक मानते हैं कि लंबे समय तक पड़ रही अत्यधिक गर्मी और खासकर निर्माण और कृषि जैसे उद्योगों में, जहां युवा मजदूर उच्च तापमान के संपर्क में आते हैं, कार्यस्थल पर पर्याप्त सुरक्षा उपायों की कमी से यह मौतें हो रही हैं।

दुनिया भर में बच्चों पर भी हीटवेव का खतरा बढ़ रहा है। अत्यधिक गर्मी के कारण 2050 के दशक तक सालाना 18 साल से कम उम्र के 1.6 अरब बच्चों के प्रभावित होने का अनुमान है। यह 2020 में प्रभावित होनेवाले 80 करोड़ बच्चों से नाटकीय रूप से अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बच्चों को इस संकट का खामियाजा भुगतना पड़ेगा, जहां स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा।  

संवेदनशील आबादी की सुरक्षा और बढ़ते नुकसान को रोकने के लिए जानकार तत्काल नीतिगत कार्रवाई का आग्रह करते हैं।

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