एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में हर साल लगभग दस लाख बच्चे गर्भ में मर जाते हैं।
अबतक जाना जाता रहा है कि वायु प्रदूषण से मृत बच्चे पैदा होना का जोखिम बढ़ जाता है, लेकिन गर्भावस्था में ही बच्चों की मृत्यु का आकलन करने वाला यह पहला शोध है। नए अध्ययन के अनुसार, पिछले 10 एक सालों से इस समस्या से निबटने के बीजिंग के प्रयासों के बावजूद, चीन में सूक्ष्म पर्टिकुलेट मैटर हर साल गर्भ में 64,000 बच्चों की जान ले लेते हैं।
137 देशों के विश्लेषण से पता चला है कि 2015 में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में 2.5 माइक्रोन (पीएम2.5) से छोटे कणों के संपर्क में आने के कारण 40 प्रतिशत बच्चे मृत पैदा हुए। यह कण ज्यादातर जीवाश्म ईंधन जलने से उत्पन्न होते हैं।
अध्ययन में पाया गया कि 2015 में पीएम 2.5 के कारण 217,000 गर्भस्थ शिशुओं की मौत के साथ भारत इस मामले में पहले स्थान पर था, दूसरे स्थान पर पाकिस्तान, तीसरे पर नाइजीरिया और चीन चौथे स्थान पर था।
2015 में जिन देशों का अध्ययन किया गया उनमें 20 लाख से अधिक ऐसे मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्देशित स्तर 10μg/m3 से अधिक पीएम2.5 के संपर्क में आने से हुईं।
शोध: वायु प्रदूषण से बढ़ता है कई दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा
एक अध्ययन के अनुसार, यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से कई दीर्घकालिक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े होने को लेकर किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है, जो इंग्लैंड में 3.6 लाख से अधिक लोगों पर किया गया है।
फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि यातायात संबंधी वायु प्रदूषण — पीएम2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड — के उच्च स्तर से कम से कम दो दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है।
सबसे अधिक खतरा न्यूरो, सांस और दिल की बीमारियों तथा मानसिक समस्याओं जैसे अवसाद और चिंता के एक साथ होने का पाया गया।
किंग्स कॉलेज लंदन में रिसर्च एसोसिएट और शोध की लेखक एमी रोनाल्डसन के मुताबिक, “हमारे शोध ने संकेत दिया है कि जो लोग उच्च यातायात-संबंधी वायु प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं, उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याओं के एक साथ होने का खतरा अधिक होता है”
सीपीसीबी ने 131 शहरों में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग के लिए केंद्रीय निधि के इस्तेमाल पर लगाई रोक
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देश में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग के लिए केंद्र सरकार का फंड प्रयोग करने पर पाबंदी लगा दी है।
एचटी के अनुसार सीपीसीबी ने 131 नॉन-अटेनमेंट शहरों (यानी ऐसे शहर जो 5 वर्षों के लिए वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते) से कहा है कि वह केंद्रीय निधि का उपयोग करके वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों की खरीद बंद करें।
सीपीसीबी के आदेश से ऐसे शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी प्रभावित होगी जिनके पास रीयल-टाइम मॉनिटरिंग के साधन कम हैं। विशेषकर गंगा के मैदानों (आईजीपी क्षेत्र) में, जहां उच्च वायु प्रदूषण स्तर रिकॉर्ड किया जाता है।
आईजीपी क्षेत्र में कुछ शहरों में दो से पांच रीयल टाइम मॉनिटर हैं। उदाहरण के लिए, कानपुर में चार मॉनिटर हैं; पंजाब के बठिंडा में एक स्टेशन है; पूरे झारखंड में एक स्टेशन है; गुरुग्राम और फरीदाबाद में केवल चार स्टेशन हैं।
वायु गुणवत्ता आयोग ने दिल्ली-एनसीआर में लगे प्रतिबंधों को हटाया, लेकिन डीजल ऑटो हुए बैन
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के चरण तीन को समाप्त कर दिया है, जिसका अर्थ है निर्माण, विध्वंस और बीएस-IV पेट्रोल और बीएस-III डीजल वाहनों पर लगे प्रतिबंध को अब हटा दिया जाएगा।
इससे पहले सरकार ने राजधानी के आसपास के क्षेत्रों में डीजल ऑटो रिक्शा के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने कहा कि 1 जनवरी से राजधानी के आसपास के क्षेत्र जो हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आते है वहां डीजल से चलने वाले किसी भी नए रिक्शा का पंजीकरण नहीं किया जाएगा।
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